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माध्यमिक स्तर इतिहास-शिक्षण के कौन-कौनसे उद्देश्य है? विवेचना कीजिए।
अथवा
“इतिहास शिक्षण में उद्देश्यों के महत्त्व की व्याख्या कीजिए।”
अथवा
माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के कौन-कौन से उद्देश्य एवं लक्ष्य है? विवेचना कीजिए।
इतिहास शिक्षण उद्देश्य (सामान्य)
शिक्षा सोद्देश्य प्रक्रिया है। इसके विभिन्न उद्देश्य हैं और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न विषयों के शिक्षण की व्यवस्था है। इससे स्पष्ट है कि विविध विषयों के शिक्षण से विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। इसलिए शिक्षा के उद्देश्यों को ही विभिन्न विषयों के शिक्षण उद्देश्य मान लेना अनुचित नहीं होगा। फिर भी प्रत्येक विषय के अपने शिक्षण उद्देश्य हैं, जिनकी प्राप्ति उस विषय विशेष के शिक्षण से ही महत्त्व है। यह इतिहास विषय के लिए भी समीचीन है क्योंकि इतिहास पृथ्वी पर मानव के क्रमिक विकास का अध्ययन है। अतः इतिहास शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं, जिन्हें सामान्य उद्देश्य भी कहा जाता है –
(1) ऐतिहासिक ज्ञान में अभिवृद्धि करना- छात्रों को इतिहास के अध्ययन से संबंधित परिभाषी शब्दों, तथ्यों, घटनाओं, प्रतीकों, प्रवृत्तियों, विचारों, समस्याओं, व्यक्तियों, तिथि-क्रम एवं सामान्यीकरण आदि का ज्ञान कराना इतिहास शिक्षण का मुख्य उद्देश्य है।
(2) इतिहास के प्रति रुचि उत्पन्न करना- इतिहास शिक्षण द्वारा छात्रों में इतिहास के प्रति रुचि उत्पन्न करना एक अन्य उद्देश्य है। आज के विज्ञान युग में अन्य विषयों की तुलना में विज्ञान का महत्त्व अधिक है परन्तु मानव जीवन के लिए इतिहास का महत्त्व भी कम नहीं है क्योंकि इतिहास हमें अतीतकालीन मानव एवं उसके क्रिया कलापों का ज्ञान प्रदान करता है। जैसा कि जोन्स ने लिखा है -“इतिहास जीवन की यथार्थ अनुभूतियों की खान है और आज का नवयुवक इतिहास का अध्ययन इसलिए करता है ताकि वह मानव जाति के अनुभवों से लाभान्वित हो सके।” अतः इतिहास शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों के समक्ष अतीत के माध्यम से वर्तमान को इस प्रकार स्पष्ट करे, जिससे उनमें इतिहास के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाएं।
(3) मानसिक शक्तियों का विकास करना – छात्रों की मानसिक शक्तियों का विकास करना भी इतिहास शिक्षण का उद्देश्य है। इतिहास छात्रों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। अतः किसी भी ऐतिहासिक घटना के कारण एवं प्रभाव का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्हें निरीक्षण, तर्क, स्मरण एवं निर्णय आदि मानसिक शक्तियों के प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाता है, जिससे उनकी मानसिक शक्तियों का विकास होता हैं।
(4) जीवकोपार्जन के योग्य बनाना – छात्रों को जीवकोपार्जन के योग्य बनाना भी इतिहास शिक्षण का अन्य उद्देश्य है। इतिहास का ज्ञान प्राप्त करके छात्र जीवन के विविध क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्य करके जीवकोपार्जन कर सकते हैं।
(5) अवकाश के सदुपयोग हेतु प्रशिक्षित करना – इतिहास शिक्षण का उद्देश्य छात्रों को अवकाश के क्षणों के सदुपयोग हेतु प्रशिक्षित करना भी है। अवकाश के क्षणों में छात्रों को ऐतिहासिक पर्यटनों के लिए प्रेरित किया जा सकता है, जिससे वे ऐतिहासिक तथ्यों, स्थलों एवं घटनाओं का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा छात्रों को समाचार पत्रों के ऐतिहासिक समाचारों की कटिंग करके एलबम बनाने, मॉडल, समय रेखा एवं समय चार्ट बनाने, विविध प्रकार के चित्र, मानचित्र, सिक्के एवं स्टेम्प आदि का संकलन करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा सकता है। इससे वे अवकाश के क्षणों का सदुपयोग करना सीखेंगे और उनका स्वस्थ मनोरंजन भी होगा।
(6) राष्ट्रीयता की भावना का विकास करना – इतिहास शिक्षण का उद्देश्य छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास करना है। इतिहास शिक्षण के समय छात्रों को राष्ट्रीय विरासत और ऐतिहासिक बलिदानों का ज्ञान करवाया जा सकता है। छात्रों को सुभाषचन्द्र बोस, सरदार भगतसिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, मंगलपाण्डे, चन्द्रशेखर आजाद, गोपालकृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, महात्मा गाँधी की कुर्बानियों एवं बलिदानों का ज्ञान कराकर राष्ट्रीयता की भावना विकसित की जा सकती है। इससे उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास होगा।
(7) अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध एवं सहयोग की भावना का विकास करना- छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध एवं सहयोग की भावना का विकास करना भी इतिहास शिक्षण का उद्देश्य है। वर्तमान समय में विश्व के अधिकांश देश परमाणु आयुधों के संग्रह में संलग्न हैं। इससे तृतीय विश्व युद्ध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इससे प्रबुद्ध वर्ग चिन्तित है। यदि तृतीय विश्व युद्ध होता है, तो सम्पूर्ण मानव सृष्टि नष्ट हो जाने की आशंका है क्योंकि विगत दोनों विश्व युद्धों से तृतीय विश्व युद्ध अत्यन्त विनाशकारी होगा। इसके लिए आवश्यक है कि इतिहास शिक्षण द्वारा प्रत्येक देश के छात्रों में विभिन्न राष्ट्रों के अन्योन्याश्रित संबंधों, प्रभावों एवं उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों को समझने की योग्यता विकसित की जाएं, जिससे उसमें मानवता के लिए सहानुभूति उत्पन्न हो और वे अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध, पारस्परिक सहयोग एवं मैत्री के लिए तत्पर हो ।
(8) भावी विश्व नागरिकता का प्रशिक्षण देना- आज के छात्र कल के भावी नागरिक हैं, जिनके कंधों पर विश्व का भार आने वाला है। अतः इसके लिए आवश्यक है कि छात्रों को विश्व इतिहास का विस्तृत ज्ञान कराया जाएं। अतीतकालीन घटनाओं एवं परिस्थितियों का वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में विस्तृत ज्ञान विवेचन किया जाएं। उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए उनमें वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना विकसित की जाएं, जिससे उनके कार्य स्वान्तः सुखाय न होकर परिजन हिताय के दृष्टिकोण पर आधारित हो जाएं।
वर्तमान परिस्थितियों में भारत में इतिहास – शिक्षण के उद्देश्य
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत ने राष्ट्रीय विकास के लिए धर्म-निरपेक्षता, लोकतंत्र, समाजवाद तथा शान्ति को निर्देशक सिद्धान्तों के रूप में ग्रहण किया है। इतिहास का अध्ययन करते समय इन सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना परमावश्यक है। परन्तु वास्तविकता कुछ और हैं। आजकल इतिहास के अध्यापन और उसकी पाठ्य पुस्तकों के निर्माण में इन स्वीकृत सिद्धांतों का किसी भी प्रकार से प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इस समय इतिहास के अध्यापन में राजनीतिक इतिहास, युद्धों, संधियों तथा ऐतिहासिक चरित्रों के वर्णन पर अधिक बल दिया जाता है जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इसके अध्यापन द्वारा सामाजिक विकास की समझदारी पर बल दिया जाएं, क्योंकि इसके माध्यम से छात्रों में इतिहास के लिए रुचि उत्पन्न की जा सकती है। साथ ही उनके दृष्टिकोण को व्यापक एवं उदार बनाया जा सकता है। आज साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता तथा धार्मिक कट्टरता एवं धर्मान्धता ने इतिहास के अध्यापन को प्रभावित करके राष्ट्रीय इतिहास के वास्तविक चित्र को धूमिल बना दिया है। साथ ही इन्होंने संकीर्ण भावनाओं को विकसित करने में सहयोग दिया है।
हमारा समाज सांस्कृतिक रूप में बहुआयामी है, इसलिए शिक्षा द्वारा उन सार्वजनिय और शाश्वत मूल्यों का विकास होना चाहिए जो लोगों को राष्ट्रीय एकता की ओर ले जा सकें। इसके लिए शिक्षा-क्रम या पाठ्यक्रम में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास, संवैधानिक जिम्मेदारियाँ तथा राष्ट्रीय अस्मिता से संबंधित अनिवार्य तत्त्व शामिल किए जाएं।
भारत में विभिन्न क्षेत्रों में शान्ति और आपसी भाई-चारे के लिए सदैव प्रयास किया है और वसुधैव कुटुम्बकम् के आदर्शों को संजोया है। इस परम्परा के अनुसार शिक्षा व्यवस्था का प्रयास यह होना चाहिए कि नई पीढ़ी में विश्वव्यापी दृष्टिकोण सुदृढ़ हो तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना बढ़े।
उक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इतिहास-शिक्षण के निम्नलिखित प्राप्य उद्देश्यों पर बल दिया जा सकता है-
(1) छात्रों को यह अनुभूति करवायी जाएं कि इतिहास सामाजिक परिवर्तन तथा विकास की प्रक्रिया का अध्ययन है।
(2) छात्रों को आधुनिक समाज, जिसमें वे रह रहे हैं, का ज्ञान प्रदान किया जाएं।
(3) छात्रों को देश की राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक निर्बलताओं से अवगत करवाया जाएं। साथ ही उन्हें दूर करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएं।
(4) छात्रों में सत्य, देश-प्रेम की भावना का विकास किया जाएं। इसके लिए उन्हें राष्ट्रीय विरासत की समझदारी प्रदान की जानी चाहिए। उनको यह बताया जाएं, कि इस विरासत का विकास किस प्रकार हुआ है। हमने विभिन्न जातियों, धर्मो तथा संस्कृतियों को अपनी विरासत में किस तरह मिलाया?
(5) छात्रों को राष्ट्रीय विरासत के साथ-साथ मानवीय विरासत से भी अवगतकराया जाएं, जिससे उनमें अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास किया जा सके।
(6) छात्रों को भारतीय संस्कृति की विविधता एवं एकता से अवगत कराया जाएं।
(7) छात्रों में आलोचनात्मक चिन्तन का विकास किया जाएं।
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