माध्यमिक स्तर पर विभिन्न अवस्थाओं पर इतिहास शिक्षण के महत्व का उल्लेख कीजिए।
अथवा
“विद्यालय स्तर पर इतिहास शिक्षण का उद्देश्य छात्रों को सभ्य नागरिक बनाना होता है।” स्पष्ट कीजिए।
माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के महत्व को तीन स्तर पर विभाजित किया जा सकता है (अ) प्राथमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व, (ब) उच्च प्राथमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व, (स) माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व –
(अ) प्राथमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व- इस आयु वर्ग के छात्रों में कल्पना लोक की विशेष प्रधानता होती है। परिवार में बड़े लोग कहानियों के माध्यम से इतिहास शिक्षण की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। छोटी-छोटी रूचिप्रद कहानियाँ जहाँ बालक के विचरण करते हुए विचारों को स्थिर करने में सहायक होती हैं, वही उसके अबोध तथा सरल मन पर कहानियों का प्रभाव पड़ता है। कहानियों को वह अपने हमजोलियों को सुनाता है। इस स्तर पर इस प्रकार वह कहानी कला से परिचित हो जाता है, जो उसकी ज्ञान पिपासा का पहला माध्यम है। अध्यापक को चाहिए कि भारतीय तथा विश्व इतिहास में ऐतिहासिक पुरूषों के जीवन से रूचिप्रद कहानियों का संकलन कर बालकों को सुनाये, जिससे इतिहास में उनकी रूचि बढ़े। आजकल ऐतिहासिक कहानी पुस्तकें सामान्यतया बाजार में उपलब्ध हैं। बुद्ध, महावीर, अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, सिकन्दर, ईसा मसीह आदि महान व्यक्तियों की कहानियाँ इस हेतु प्रयुक्त होती हैं।
इस स्तर पर छात्रों में कहानियों के द्वारा इतिहास शिक्षण के प्रति रूचि बढ़ायी एवं जाग्रत की जाती है। उसकी अपने अतीत के सम्बन्ध में सहज जिज्ञासा होती है, जिसकी कहानी से संतुष्टि की जा सकती है। वह धीरे-धीरे इतिहास के प्रसंगों से इतिहास के प्रति यह आरम्भिक रूचि ही उसे इतिहास के साथ आबद्ध कर देती है। इस जुड़ता जाता है। अवस्था पर छात्रों में समय तथा सन् का स्पष्ट विकास नहीं हो पाता है, किन्तु उनमें अतीत का बोध अवश्य उत्पन्न हो सकता है। वे व्यक्तियों एवं घटनाओं को उनके कालक्रम के परिप्रेक्ष्य में देख तथा समझ सकते हैं। कौन व्यक्ति अतीत में सबसे पहले कौन उसके बाद में आया यह भी समझ सकते है। इसी प्रकार इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं को कालक्रम के आधार पर देखने का अभ्यास प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार इतिहास की एक विशिष्टता, अतीत में झाँककर ग्रहण कर सकना ही इनमें क्रमिक विकास की शुरूआत हो पाती है।
(ब) उच्च प्राथमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व – बालक की आयु वृद्धि के साथ उसकी बुद्धि एवं समझ में भी बढ़ोतरी होती है। फलस्वरूप उसके ज्ञान का स्तर बढ़ जाता है। इस स्तर तक आते-आते छात्र में अनेक भावनाओं एवं मानसिक योग्यताओं का विकास होने लगता है। वह घटनाओं को अतीत के परिप्रेक्ष्य में देख सकता है, कालक्रम के आधार पर आयोजित कर सकता है। व्यक्तियों तथा घटनाओं की तुलना कर सकता है।
इस स्तर पर छात्र को राज्य एवं देश के भूगोल से परिचित करवा दिया जाता है। अतः वह व्यक्तियों एवं घटनाओं को उनके भौगोलिक परिवेश में देख सकता है। उसमें यह बोध पैदा होने लगता है कि किस प्रकार किन्हीं भौगोलिक परिस्थितियों ने उस प्रदेश एवं क्षेत्र के इतिहास पर प्रभाव डाला है। वह धीरे-धीरे इस भाव की भाषा को समझने लगता है कि भूगोल मंच है। इतिहास उस मंच पर अभिनीत नाटक और इस नाटक में मंच की एक सार्थक भूमिका होती है।
प्रदेश एवं देश के इतिहास से शनैः-शनैः उसमें स्वदेश प्रेम की भावना का जन्म एवं विकास होता है। वह इस देश को एक सम्पूर्णता के साथ देखता है। उसका इस देश है के प्रत्येक लोग एवं पक्षों के साथ तादाम्य होना प्रारम्भ होता है। इस देश के वीर, आत्मबलिदानी लोगों के प्रति श्रद्धा जागती है। इसकी विविधताओं के प्रति मोह जागता हैं। तथा इसकी सम्यता एवं संस्कृति के प्रति अनुराग पैदा होता है। वे यह समझने और सराहने लगते हैं कि भारतीय संस्कृति संसार की सबसे समृद्ध संस्कृति है तथा यह सब लोगों की मिली-जुली संस्कृति है।
(स) माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण का महत्व- इस स्तर पर छात्र मानसिक एवं शारीरिक रूप से परिपक्वता का परिचय देने लगता है। उसमें तर्क तथा चिन्तन का विकास होने लगता है। सुनकर विश्वास करने के स्थान पर हर बात को तर्क की कसौटी पर परख कर स्वीकार करना चाहता है। सूत्रों से इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा होती है। इतिहास कैसे विकसित हुआ, यह जानना तथा समझना चाहता है। उसकी इतिहास में वास्तविक रूचि उत्पन्न होने लगती है। ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण ऐतिहासिक अवशेषों के अध्ययन में रूचि होती है। यही उसके इतिहास के साथ भावनात्मक संयोग का प्रमाण है।
तर्क के साथ-साथ उसमें अन्य अभिवृत्तियों का भी विकास होने लगता है। विश्व एवं भारत के इतिहास के अध्ययन में वह अपने देश तथा विश्व के इतिहास का सही अवबोध पैदा करता है। विश्व संस्कृतियों के अध्ययन से वह समझने लगता है कि ये पारस्परिक आदान-प्रदान के आधार पर विकसित हुई है। वह यह भी समझने लगता है कि मानव सभ्यता का विकास सभी देश तथा संस्कृतियों के मिले-जुले योगदान का फल है। इससे उसमें विश्व बंधुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास होता है। इसके साथ ही साथ उसमें अपने देश के इतिहास को विश्व इतिहास के सन्दर्भ में देखने-समझने की दृष्टि पैदा होती है। उसमें राष्ट्रीयता की भावना का परम विकास होने लगता है।
इस प्रकार विद्यालयी शिक्षा में विभिन्न स्तरों पर इतिहास शिक्षण के द्वारा विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। जिनके द्वारा न केवल ज्ञानात्मक पक्ष, अपितु भावनात्मक पक्ष में भी निखार और परिमार्जन आता है तथा छात्र का बहुआयामी व्यक्तित्व विकसित होता है।
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