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श्रम लागत पर नियन्त्रण हेतु ध्यान देने योग्य बातें बताइए।
श्रम लागत पर नियन्त्रण हेतु ध्यान देने योग्य बातें (Important facts for control on Labour Cost)— आज के इस व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के युग में किसी भी उत्पादक के लिए उसके द्वारा उत्पादित वस्तु की लागत में कमी करना उसका प्रमुख उद्देश्य होता है। क्योंकि प्रत्येक वस्तु की कुल लागत का एक बड़ा भाग श्रम लागत ही होती है इसलिए न्यूनतम लागत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम लागत पर उचित नियन्त्रण आवश्यक है। जिससे श्रम लागत में कमी अथवा श्रम लागत की वृद्धि को रोक कर ही उत्पादन लागत में कमी अथवा वृद्धि पर रोक लग सकती है। संक्षेप में, यदि प्रबन्धक श्रमिकों की कार्यक्षमता का अनुकूलतम उपयोग करना चाहता है तो उसे निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
( 1 ) श्रमिकों का चयन, नियुक्ति तथा कार्य वितरण (Selection of Labour, Appointment and Work Distribution)
प्रायः प्रत्येक संस्था में श्रमिकों के चयन, नियुक्ति तथा कार्य वितरण का कार्य कर्मचारी विभाग (Personnel Department) द्वारा किया जाता है। वास्तव में, यह एक ऐसा सेवा विभाग (Serive Department) होता है, जो एक तकनीकी सलाहकार व विशेषज्ञ के रूप में कार्य करता है। इस विभाग का अध्यक्ष कर्मचारी नबन्धक (Personnel Manager) कहलाता है। इस विभाग के मुख्य कार्य निम्नलिखित होते हैं-
(i) चयन (Selection) — जब किसी विभाग को श्रमिकों या कर्मचारियों की आवश्यकता होती है तो वह उनकी संख्या, योग्यता, कार्य आदि के विवरण ‘नियुक्ति मांग पत्र’ में भरकर कर्मचारी अप्रत्यक्ष मजदूरी विभाग को भेजता है। इस मांग पत्र की प्राप्ति के बाद कर्मचारी प्रबन्धक सर्वप्रथम यह देखता है कि संस्था के किसी विभाग में वांछित संख्या के अतिरिक्त श्रमिक तो नहीं है। यदि अतिरिक्त श्रमिक है तो नये श्रमिकों का चयन न करके स्थानान्तरण द्वारा श्रमिक मांग को पूरा कर दिया जाता है परन्तु किसी विभाग में यदि अतिरिक्त श्रमिक नहीं है तो वह श्रमिकों की नियुक्ति का प्रबन्ध करता है। इसके लिए कर्मचारी विभाग समाचार पत्र में विज्ञापन देकर या रोजगार कार्यालय को सूचना भेजकर आवेदन पत्र मागता है जिसकी एक सूची बनाकर उपयुक्त प्रार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। साक्षात्कार के लिए आये हुए प्रार्थियों में से आवश्यक संख्या में श्रमिकों का चयन किया जाता है।
(ii) नियुक्ति (Appointment)– चयन करने के पश्चात् चुने हुए श्रमिकों को नियुक्ति पत्र दिया जाता है जिसमें उनके कार्य का विवरण, पारिश्रमिक, सेवा की शर्तें आदि का उल्लेख होता है। तत्पश्चात् उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है तथा प्रशिक्षण पूरा होने पर प्रशिक्षित कर्मचारी की सम्बन्धित विभाग में नियुक्ति की जाती है। संस्था में नियुक्त किए गए श्रमिक का पूर्ण विवरण भी कर्मचारी विभाग द्वारा एक पत्रक में रखा जाता है। जिसमें उसका नाम, पता, विभाग, श्रेणी, वेतन, पूर्व अनुभव, पूर्व नौकरी छोड़ने के कारण, वर्तमान पता, योग्यता, विवाहित या अविवाहित, नियुक्ति तिथि आदि बातों का विवरण लिखा जाता है। इस पत्रक को ‘श्रमिक इतिहास कार्ड’ या ‘कर्मचारी लेखा कार्ड’ कहते हैं।
नियुक्ति के उपरान्त, कर्मचारी विभाग पद ग्रहण तिथि, मजदूरी दर, समय अंकन संख्या, श्रेणी आदि का लेखा-जोखा तैयार करता है और आवश्यकतानुसार समय अंकन विभाग से पे-रोल विभाग तथा अन्य सम्बन्धित विभागों को रिपोर्ट भेजी जाती है।
(iii) कार्य वितरण (Work Distribution)- कार्य के वितरण में यह ध्यान रखना चाहिए कि श्रमिक को उसकी योग्यता, क्षमता एवं रुचि के अनुसार ही कार्य दिया जाए। यदि ऐसा न हुआ तो उसकी कार्यक्षमता कम होगी और लागत में श्रम का भार अधिक आयेगा। कार्य वितरण में कार्य की प्रकृति को देखते हुए श्रमिक के स्वास्थ्य एवं उम्र पर विशेष ध्यान देना चाहिए और इस बात से पूर्ण सन्तुष्ट होना चाहिए कि वह श्रमिक उस कार्य को सरलता से रुचि पूर्व कर सके।
( 2 ) श्रमिकों के आने-जाने के समय पर नियन्त्रण (Control over Labour (Timings)
श्रमिकों के कारखाने में आने व जाने के समय का लेखा रखना लागत की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है। ऐसा करने से श्रमिकों की उपस्थिति की जानकारी प्राप्त हो सकेगी, संस्था में अनुशासन रह सकेगा तथा उनके पारिश्रमिक की सही गणना की जा सकेगी। यह कार्य समय आलेखन विभाग’ (Time Recording Department) द्वारा किया जाता है। आने व जाने के समय को अंकित करने के कुछ प्रचलित ढंग निम्नलिखित है-
(i) उपस्थित रजिस्टर पद्धति (Attendance Register Method)– इस पद्धति के अन्तर्गत कारखाने के प्रवेश द्वार पर एक रजिस्टर रख दिया जाता है जिसमें कारखाने के सभी श्रमिकों के नाम लिखे रहते हैं। प्रत्येक श्रमिक के कारखाने में आने और जाने का समय इस रजिस्टर में या तो श्रमिकों द्वारा स्वयं लिख दिया जाता है या इस कार्य के लिए ‘समय लेखन लिपिक’ (Time keeping clerk) की नियुक्ति भी की जा सकती है।
यह पद्धति अत्यन्त मरल तथा मितव्ययी है। परन्तु यह पद्धति दोषपूर्ण है क्योंकि इस पद्धति में बेईमानी होने के पर्याप्त अवसर हैं। श्रमिकों तथा समय लेखन लिपिक की मिली भगत से गलत समय को अंकित किया जा सकता है। दूसरे, समय लेखन लिपिक द्वारा अंकित समय मान्य नहीं होता क्योंकि बड़े कारखानों में जहां श्रमिकों की संख्या अधिक होती है, कारखाना खुलते ही अथवा पाली बदलते ही भारी भीड़ प्रवेश द्वार से आती जाती है, उस समय प्रत्येक श्रमिक के आने-जाने में सही समय अंकित करना सम्भव नहीं होता है, अतः समय लेखन लिपिक से समय अंकित करने में त्रुटि हो सकती है। अतः इस पद्धति से श्रमिकों का आने-जाने के समय को अंकित करना वही उपयुक्त रहता है जहाँ श्रमिकों की संख्या कम हो।
(ii) टोकन या धातु टिकट पद्धति (Token or Metal Disks Method) — इस पद्धति के अन्तर्गत प्रत्येक श्रमिक के लिए एक धातु का टोकन या टिकट बनवा दिया जाता है जिस पर श्रमिक को आंवटित संख्या अंकित होती है। कारखाने के प्रवेश द्वार पर विभिन्न कुण्डो से युक्त एक बोर्ड टाँग दिया जाता है और कुएडे के पास ही श्रमिक की संख्या लिखी हुई होती है। जैसे ही श्रमिक कार्य पर आते हैं वे अपना टोकन बोर्ड से उतारकर पास रखी बन्द पेटी में डाल देते हैं और अन्दर कार्य पर पहुँच जाते हैं। कारखाने में प्रवेश करने के निर्धारण समय के पश्चात् यह बन्द पेटी उठा ली जाती है तथा इसकी सहायता से श्रमिकों की उपस्थिति अंकित होती है। जो श्रमिक देर से आते हैं वे अपना टोकन व्यक्तिगत रूप से टाईम-कीपर को देते हैं ताकि उनके आने का ठीक समय नोट किया जा सके और जिनके टोकन बोर्ड पर टँगे रह जाते हैं, उन्हें अनुपस्थित (Absent) माना जाता है। यही व्यवस्था शाम को कार्य समाप्त होने पर श्रमिक अपना टोकन लेकर बोर्ड पर टांगते जाते हैं और घर लौटते जाते हैं।
यह पद्धति ऐसी संस्था, जहां अधिक श्रमिक हो उपयुक्त है तथा यह पद्धति सरल भी है। इसके अतिरिक्त, इससे प्रत्येक श्रमिक की उपस्थिति का आसानी से पता लग जाता है। परन्तु यह पद्धति भी दोषपूर्ण है। एक श्रमिक दूसरे श्रमिक का टोकन बोर्ड से उतारकर बन्द पेटी में डाल सकता है। इस प्रकार दर से आने वाला या अनुपस्थित श्रमिक स्वयं के दोष से बच सकता है। दूसरे, इसमें उपस्थिति का लिखित प्रमाण भी नहीं होती, अतः समय के बारे में विवाद उत्पन्न सकता है।
(iii) समय अंकित करने वाली घड़ी (Time Recording Clock)– इस पद्धति के अन्तर्गत कारखाने के प्रवेश द्वार के पास ही श्रमिकों का आने व जाने का समय अंकित करने के लिए स्वचालित मशीन रखी होती है जिसमें एक घड़ी लगी हुई होती है। इसे ‘टाइम रिकार्डर’ कहते हैं। इस मशीन में एक स्थान पर छिद्र होता है जिसमें कार्ड डालने पर समय स्वयं अंकित हो जाता है। अतः प्रत्येक श्रमिक को एक कार्ड दे दिया जाता है जिसका नमूना नीचे दिया गया है। ये कार्ड क्रमानुसार मशीन के पास एक दराज में रख दिये जाते हैं। श्रमिक आते ही वह अपने कार्ड को दराज में से उठाता है तथा उसे उस मशीन के छिद्र में डाल देता है तथा कार्ड में निर्धारित स्थान पर श्रमिक के आने का समय अंकित हो जाता है और अपने कार्ड का व्यवस्थित ढंग से दूसरी दराज में रख देता है। यही व्यवस्था श्रमिकों के जाने का समय अंकित करने के लिए दोहराई जाती है। इस प्रकार श्रमिक के आने व जाने का ठीक समय कार्ड पर अंकित हो जाता है। जो श्रमिक देर से आते हैं अथवा जल्दी लौट जाते हैं उन पर लाल स्याही से समय अंकित होता है अन्यथा नीली स्याही से। परिणामस्वरूप दर से आने वाले श्रमिकों की सूचना स्पष्ट नजर आ जाती है।
इस पद्धति का प्रमुख गुण यह है कि इसमें समय को अंकित करने में अशुद्धि या मतभेद होने की सम्भावना नहीं रहती क्योंकि समय को स्वचालित घड़ी अंकित करती है न कि टाइम कीपर। दूसरे, जहां श्रमिक अत्यधिक संख्या में होते हैं, वहां यह पद्धति अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। परन्तु इस पद्धति में भी अवगुण है। कोई व्यक्ति अपने साथी का कार्ड मशीन में डालकर समय अंकित करा सकता है और उसकी अनुपस्थिति या देर से आने को छिपा सकता है। दूसरे, यदि घड़ी खराब हो जाए या गलत समय रिकार्ड करने लगे तो समस्या गम्भीर हो सकती है।
(iv) डायल समय रिकॉर्डर (Dial Time Recorder) — इस रिर्काडर का मुख घड़ी जैसा होता है जिसके चारों ओर लगभग 150 छेद होते हैं और इसके साथ एक हैराडल भी लगा होता है। सभी श्रमिकों को नम्बर दिए जाते हैं तथा प्रत्येक छेद पर एक श्रमिक नम्बर होता है। श्रमिक नम्बर वाले डायल के चारों ओर हैण्डल को उस समय तक घुमाता है जब तक कि वाँछित नम्बर नहीं आ जाए। इसके बाद वह उस छेद में हैण्डल के कोने को दबा देता है। उसके नम्बर के सामने, मशीन के अन्दर कागज पर उसका समय अपने आप छप जाता है। इस प्रकार कागज पर आने व जाने का समय अंकित हो जाता है तथा काम के घण्टे भी मशीन द्वारा स्वतः ही मजदूरी सूची पर अंकित कर दिये जाते हैं ताकि श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी की गणना की जा सके। यह मशीन केवल छोटे व्यवसायों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है तथा सरल विधि होने के कारण प्रत्येक श्रमिक आसानी से प्रयोग कर सकता है।
इस पद्धति का मुख्य लाभ यह है कि समय रिकार्ड को दूसरी शीट पर नकल करने की आवश्यकता नहीं रहती। जब कागज की सीट निकाली जाती है तो मजदूरी विवरण पत्र का कार्य कर देती है परन्तु इस पद्धति के निम्न दोष है—
(अ) केवल छोटे व्यवसायों द्वारा ही प्रयोग में लाई जा सकती है क्योंकि छेदों की संख्या सीमित होती है।
(ब) श्रमिक को स्वयं को यह पता नहीं चलता कि ठीक समय दर्ज हुआ है या नहीं, अतः इससे विवाद उत्पन्न हो सकता है।
(स) एक श्रमिक के आने व जाने के समय का लेखा कागज पर अलग-अलग स्थानों पर होने से उपस्थिति समय की गणना का कार्य जटिल हो जाता है।
( 3 ) कार्य समय अंकन (Job Time Booking)
अर्थ (Meaning)– श्रमिक के आने व जाने के समय के अतिरिक्त यह देखना भी आवश्यक है कि श्रमिक ने कितने समय तक कारखाने में किस उपकार्य या किस विभाग में कार्य किया। अतः कार्य समय अंकन का आशय श्रमिक द्वारा कारखाने के भीतर व्यतीत किये गये समय का विभिन्न कार्यों एवं उपकार्यों पर लगाए गये समय का हिसाब-किताब रखो से है। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-“
- श्रमिक को जिस समय का भुगतान किया जाता है उस समय का उचित प्रयोग किया हुआ है।
- प्रत्येक कार्य तथा उपकार्य की पृथक रूप से श्रम लागत ज्ञात करना।
- उपरिव्ययों के विभाजन का आधार प्रदान करना।
- कार्यहीन समय का निर्धारण एवं नियन्त्रण।
- प्रमापित समय तथा वास्तविक समय की तुलना से श्रमिकों की कार्यक्षमता का ज्ञान एवं बोनस निर्धारण में सुविधा।
विधियाँ (Methods)– कार्य समय अंकन की निम्न विधियाँ है जिसमें किसी एक विधि द्वारा श्रमिक द्वारा किसी कार्य पर लगाये गये समय का लेखा रखा जा सकता है-
- दैनिक समय पत्रक (Daily Time Sheet)
- साप्ताहिक समय पत्रक ( Weekly Time Sheet )
- उपकार्य कार्ड (Job Card)
- कार्यानुसार कार्य पत्रक (Piece Work Card)
(i) दैनिक समय पत्रक (Daily Time Sheet)— इस विधि के अन्तर्गत प्रत्येक श्रमिक को एक दैनिक समय पत्रक दिया जाता है जिसमें वह दिन भर में प्रत्येक कार्य आदेश या उप-कार्य पर बिताए गए समय को अंकित करता है। श्रमिक द्वारा इस पत्रक को प्रतिदिन भरा जाता है तथा फोरमैन को दे दिया जाता है जो भरी गई प्रविष्टियों को अपने हस्ताक्षर करके प्रमाणिक करता है।
लाभ (Advantages)
दैनिक समय पत्रक के निम्नलिखित लाभ हैं—
(अ) इसका प्रयोग सरल तथा सुविधाजनक है।
(ब) प्रत्येक दिन के कार्य समय का सम्पूर्ण विवरण प्राप्त किया जा सकता है।
(स) फोरमैन द्वारा हस्ताक्षर किये जाने के कारण पत्रक में दी गई प्रविष्टियों की सत्यता भी प्रमाणित हो जाती है।
हानियाँ (Disadvantages)
दैनिक समय पत्रक के निम्नलिखित हानियाँ है—
(अ) अशिक्षित श्रमिकों की स्थिति में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।
(ब) बड़े उद्योगों के लिए यह प्रणाली अनुपयुक्त है।
(स) लिपिक की असवाधानी के कारण इस पत्रक का दुरुपयोग सम्भव है।
(ii) साप्ताहिक समय पत्रक (Weekly Time Sheet)— यह दैनिक समय पत्रक के समान ही है, अन्तर केवल यही है कि समय तथा श्रम की बचत करने के उद्देश्य से साप्ताहिक समय पत्रक में एक दिन के स्थान पर एक सप्ताह में सभी उपकायों पर बिताए गए समय लेखा किया जाता है। यह रिकार्ड प्रायः भवन अथवा निर्माणी कार्य में समय अंकित करने में लिए प्रयुक्त होता है।
लाभ (Advantages)
साप्ताहिक समय पत्रक के निम्नलिखित लाभ हैं-
(अ) दैनिक समय पत्रक की तुलना में साप्ताहिक समय पत्रक में कार्य बहुत कम हो जाता है, अतः इससे समय व श्रम की बचत होती है।
(ब) इसमें एक ही स्थान पर श्रमिक के कार्यहीन समय (Idle Time) का पता चल जाता है।
हानियाँ (Disadvantages)
साप्ताहिक समय पत्रक की निम्नलिखित हानियाँ है—
(अ) इसमें श्रमिक एक साथ कई दिनों की प्रविष्टि करता है जिसमें अशुद्धि होने की सम्भावना बनी रहती है।
(ब) साधारणतयाः यह विधि भवन या निर्माणी कार्य में समय का लेखा करने के लिए प्रयोग की जा सकती है।
(iii) उपकार्य कार्ड (Job Card)— यह पत्रक उन उद्योग के लिए अधिक उपयुक्त रहता है जिनमें एक साथ अनेक उपकार्य किये जाते हैं तथा प्रत्येक उपकार्य पर कई श्रमिकों द्वारा कार्य किया जाता है। समय कार्ड के आधार पर यह ज्ञात करना कठिन होता है कि किसी कार्य विशेष पर कितने घण्टे कार्य को पूरा करने के लिए लगेगे तथा उक्त कार्य पर कुल कितनी मजदूरी बनेगी। इसलिए प्रत्येक उपकार्य की श्रम लागत तुरन्त ज्ञात करने के लिए प्रत्येक उपकार्य का एक अलग पत्रक बनाया जाता है। अतः उपकार्य पत्रक एक ऐसा पत्रक है जिसमें एक उपकार्य पर उससे सम्बन्धित सभी श्रमिकों द्वारा लगाये गये कुल समय का लेखा किया जाता है। इसमें एक उपकार्य पर कार्य करने वाले समस्त श्रमिकों में से प्रत्येक द्वारा अपने कार्य का लेखा करके इसे अगले श्रमिक को दे देता है। श्रमिक कार्य प्रारम्भ करने तथा समाप्त करने का समय स्वयं ही भरता है परन्तु इस पर फोरमैन के हस्ताक्षर करवाकर उसे प्रमाणित करा लेता है।
इस मुख्य लाभ यह है कि प्रत्येक उपकार्य की श्रम लागत का सरलता से पता चल जाता है। इसके अतिरिक्त इसे तैयार करने की दशा में पृथक रूप से ‘मजदूरी संक्षिप्ति’ (Wages Abstract) बनाने की आवश्यकता भी नहीं रहती।
(iv) कार्यानुसार कार्य पत्रक (Piece Work Card) — श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान समयानुसार या कार्यानुसार किया जा सकता है। इस कार्ड का प्रयोग श्रमिकों को कार्यानुसार मजदूरी दिये जाने की दशा में किया जाता है। प्रत्येक श्रमिक को एक अलग पत्रक दे दिया जाता है जिसमें वह स्वयं द्वारा किया गया उत्पादन कार्य एवं लगने वाला समय भर देता है तथा निरीक्षक श्रमिक के कार्य का निरीक्षण करके उस पर अपने हस्ताक्षर कर देता है। तत्पश्चात् इस पत्रक को मजदूरी विभाग को मजदूरी की गणना करने के लिए भेज दिया जाता है।
उक्त पद्धति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। कारण कि कितना कार्य पूरा किया गया तथा भुगतान कार्य के अनुसार किया जाता है। परन्तु श्रमिकों में कार्य के प्रति रुचि एवं अनुशासन बनाये रखने लिए समय का भी लेखा रखना आवश्यक है अन्यथा श्रमिकों में मनमानी बढ़ जाएगी।
( 4 ) श्रम सम्बन्धी अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य (Other Important Pointe regarding Labour)
मजदूरी का निर्धारण करने से पूर्व श्रम के सम्बन्ध में निम्नलिखि तथ्यों के बारे में जानकारी आवश्यक है-
- अधिसमय (Overtime)
- कार्यहीन समय (Idle Time)
- मजदूरी सहित छुट्टियां व अवकाश (Holidays or Leave with Wages or Pay)
- कार्य मूल्यांकन (Job Evaluation)
- समय गति तथा थकान अध्ययन (Time Motion and Fatigue Study)
- प्रशिक्षाणार्थी श्रमिक (Apprentice Workers)
- श्रमिकों का स्थानान्तरण(Transfer of Workers)
- कल्याणकारी लाभ (Night Shift Allowance)
- कल्याणकारी लाभ (Fringe Benefits)
- भविष्य निधि (Provident Fund)
- आक्समिक श्रमिक (Casual Worker)
- बाह्य श्रमिक (Outside Workers)
- श्रम निकासी (Labour Turnover
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