सह-संबंध क्या है? इतिहास शिक्षण में सह-संबंध का क्या महत्व है?
अथवा
सह-संबंध की उपयोगिता को समझाइये।
सह-संबंध का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & Definition of Correlation)
सह-संबंध अंग्रेजी भाषा के ‘Correlation’ शब्द का हिन्दी पर्याय है। हिन्दी भाषा में सह-संबंध के पर्यायवाची अन्य शब्द “समन्वय” तथा “समवाय” हैं, जिनका प्रचलन भी शिक्षा के क्षेत्र में समान रूप से किया जाता है। परिणामतः सह-संबंध, समवाय तथा समन्वय समानार्थी शब्द हैं। साधारणतः विभिन्न विषयों को एक-दूसरे से संबंधित करके पढ़ाने को सह-संबंध कहते हैं। अर्थात् “संबंध स्थापित करना” शिक्षा के क्षेत्र से संबंध स्थापित करने से तात्पर्य विभिन्न विषयों को पृथक-पृथक न पढ़ाकर एक-दूसरे से संबंध स्थापित कर पढ़ाने से है।
विद्वानों द्वारा सह-संबंध की दी गई परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
हरबर्ट के अनुसार, “पाठ्यक्रम के विषयों को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए कि जिससे एक विषय के शिक्षण से दूसरे विषय के ज्ञान में सहायता मिल सकें।”
प्रो. घाटे के अनुसार, “विभिन्न विषयों को पृथक संकुचित क्षेत्रों में रखकर नहीं बल्कि उन्हें अन्य विषयों से संबंधित करके पढ़ाया जाना चाहिए।”
दीक्षित एवं बघेला के अनुसार, “वास्तविक रूप से सह-संबंधित विषयों के अध्ययन अध्यापन के समय उनके परस्पर सहज संबंध की प्रक्रिया को ही सह-संबंध कहा है। इस प्रकार शिक्षक को किसी विषय को पढ़ाते समय उसका सहज एवं स्वाभाविक सह-संबंध अन्य विषयों के साथ जोड़कर पढ़ाना चाहिए ताकि एक विषय, दूसरे विषय के ज्ञान में सहायक हो सके।”
अतः स्पष्ट है कि सह-संबंध से तात्पर्य विभिन्न विषयों का पारस्परिक रूप से संबंधित करके पढ़ाना ही सह-संबंध या समवाय या समन्वय कहलाता है।
सह-संबंध के उद्देश्य महत्त्व / उपयोगिता आवश्यकता (Objectives / Importance/Utility/ Necessarily of Correlation) सह-संबंध के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है
(1) जीवन के लिए उपयोगी ज्ञान की प्राप्ति- जब हम ज्ञान का समन्वित रूप छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो हम कोरे सैद्धान्तिक ज्ञान की बात नहीं करते बल्कि ज्ञान के व्यावहारिक रूप की कल्पना करते हैं। सह-संबंध सिद्धान्त ज्ञान की उपयोगिता पर जोर देता है।
(2) अध्याय में रुचि जाग्रत करना- समन्वय का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि अध्याय में विद्यार्थियों की रुचि जाग्रत करना सह-संबंध द्वारा अध्यापक विभिन्न विषयों के मध्य एकरूपता स्थापित करके छात्रों की अध्याय में रुचि जाग्रत करने के लिए अध्याय को सरल बनाता है।
(3) समय की बचत- यदि हम पाठ्यक्रम में सह-संबंध के सिद्धान्त को निहित करते हैं तो अनावश्यक पुनरावृत्ति से बच सकते हैं। चूंकि कुछ विषय ऐसे हैं जो कई तथ्यों को समान रूप से अपने क्षेत्र में निहित किए हुए हैं, यथा-जनसंख्या की समस्या अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र व राजनीतिशास्त्र तीनों की सीमायें आती है। यदि इसे सह-संबंधित करके पढ़ाया जाएं तो समय की बचत होगी तथा अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचा जा सकेगा।
(4) ज्ञान की एकता की जागरूकता- यदि हम ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के रूप में फैले हुए विषयों को एक-दूसरे से बिल्कुल अलग कर देंगे तो ज्ञान भ्रम जाल सा प्रतीत होने लगेगा। हमें यह मानकर चलना चाहिए कि जिस तरह वृक्ष की शाखाएँ एक-दूसरे से संबंधित है तथा वे वृक्ष की अभिन्न अंग हैं, उसी तरह ज्ञान के यह विषय एक-दूसरे से सह-संबंध रखते हैं।
(5) पाठ्यक्रम को आसान बनाना- यदि विद्यार्थियों को कई विषय अलग-अलग तरह से पढ़ाए जाएंगें तो उन्हें पाठ्यक्रम से बोरियत होने लगेगी और वह ज्ञानार्जन की प्रक्रिया को अरुचिकर समझने लगेंगे। पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों का एकीकरण उसके सरल रूप को प्रस्तुत करता है।
(6) मानवीय संबंधों का ज्ञान- विभिन्न विषयों के सह-संबंध द्वारा अध्यापक छात्रों के मस्तिष्क में तर्क, कल्पना शक्ति का विकास करता है और वह मानवीय संबंधों की परस्पर अन्योन्याश्रितता का अनुभव करता है और उनके प्रति आदर भाव उसमें उत्पन्न (जाग्रत) होते हैं।