स्थानीय भूगोल से आपका क्या आशय है? स्थानीय भूगोल अध्ययन के उद्देश्यों की विवेचना कीजिये।
स्थानीय भूगोल को ही गृह प्रदेश का भूगोल कहते हैं। स्थानीय भूगोल से आशय अपने निवास स्थान के आस-पास के भूगोल से हैं। जिस प्रकार बालक सर्वप्रथम अपने परिवार के लोगों को पहचानना प्रारम्भ करता है और धीरे-धीरे घर की वस्तुओं को पहचानने लगता है। अर्थात् वह घर के सम्पूर्ण वातावरण से परिचित हो जाता है। उसी प्रकार भौगोलिक ज्ञान स्थानीय क्षेत्र से प्रारम्भ करने पर उसको अनेक भौगोलिक तथ्यों का स्पष्टीकरण होने पर उनकी जो तथ्यात्मक आकृति मस्तिष्क पर अंकित हो जाती है वह स्थाई होती है और इसके आधार पर वह विश्व के किसी भाग में स्थित ऐसे तथ्य के बारे में कल्पना द्वारा सही अनुमान लगा सकता है। विद्यालय, गाँव अथवा नगर के निकटवर्ती क्षेत्र में अनेक भौगोलिक तत्व उपस्थित होते हैं जैसे फसलों के प्रकार, सिंचाई की व्यवस्था, पर्वत, पठार, मैदान, नदी, वर्षा, वर्षा का जल प्रवाह, कुँए, वन, प्रपात आदि जिनका प्रत्यक्ष ज्ञान छात्र के ज्ञान में स्थायी वृद्धि करने में अधिक सहायक होते हैं। जेम्स फेयरग्रीव नामक विद्वान ने स्थानीय भूगोल के अध्ययन के महत्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है ‘जब तक कि कोई वस्तु अपने स्थानीय परिप्रेक्ष्य में न देखी जाये, यह वास्तव में समझ में नहीं आती है। शिक्षक यदि प्रत्येक तथ्य का शिक्षण स्थानीय क्षेत्र के सन्दर्भ में करता है तो ऐसा करके वह छात्रों में रूचि पैदा कर सकता है।
(Unless a thing is seen in its local setting, it is not really understood, teacher can create interest among the pupil, while he teacher every thing in the reference of local region)
शिक्षा का कार्य चयनित तथा उपयोगी अनुभवों को आने वाली पीढ़ी को स्थानान्तरित करना है। ज्ञान क्या है? ज्ञान व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए उपयोगी वे अनुभव हैं जो व्यक्ति कार्य करके अथवा अवलोकन द्वारा अर्जित करता है। बालक जो अनुभव भूगोल के तत्वों को स्वयं देखकर अर्जित करता है वे अनुभव स्थायी होते हैं। स्थानीय भूगोल का अध्ययन ऐसे स्थायी अनुभवों का एक माध्यम है।
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स्थानीय भूगोल शिक्षण के उद्देश्य:
(1) भौगोलिक वातावरण तथा मानव के अन्तर्सम्बन्ध को समझने में सहायक:- स्थानीय भूगोल अध्ययन से छात्र भौगोलिक वातावरण को समझता है। उसको ज्ञात होता है कि कौन से भौगोलिक कारक भौगोलिक वातावरण का निर्माण करते हैं। भौगोलिक वातावरण के तत्व जैसे स्थिति, धरातल, मिट्टी, खनिज, जल, जलवायु आदि का मानव के रहन-सहन और खान-पान पर पड़ने वाले प्रभाव का प्रत्यक्ष ज्ञान करवाने स्थानीय भूगोल का अध्ययन सहायक होता है। इसी प्रकार स्थानीय भूगोल के अध्ययन से छात्र को ज्ञात होगा कि मानव की कौनसी क्रियाएँ प्राकृतिक वातावरण को प्रदूषित कर रही हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में रहने वाले बालक को ज्ञात होगा कि प्रतिदिन लाखों की संख्या में चलने वाले वाहन वहाँ के वातावरण को खराब कर रहे हैं।
(2) कल्पना शक्ति के विकास में सहायक:- स्थानीय भूगोल का अध्ययन छात्रों की कल्पना शक्ति के विकास में सहायता करता है। स्थानीय पर्वत, मैदान, नदी, भानव के कार्य आदि का स्थानीय अध्ययन विश्व स्तर पर इनकी कल्पना करने में छात्र की सहायता करेगा। भूगोल में हम सम्पूर्ण पृथ्वी का अध्ययन करते है लेकिन सभी स्थानों पर हम छात्रों को लेकर नहीं जा सकते हैं। अतः भूगोल का अधिकांश अध्ययन कल्पना पर आधारित होता है। स्थानीय अध्ययन छात्रों में विश्लेषणात्मक कल्पना शक्ति के विकास में सहायता करता है।
(3) व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि करना:- भूगोल में अनेक प्रायोगिक कार्यों के माध्यम से छात्रों को व्यावसायिक ज्ञान अर्जित करने का अवसर प्रदान किया जाता है। स्थानीय भूगोल शिक्षण द्वारा छात्रों के व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि करने में सहायता प्रदान का इसका मुख्य उद्देश्य है। स्थानीय भूगोल शिक्षण का एक उद्देश्य जीवन की परिस्थितियों से सम्बन्ध स्थापित करके उस ज्ञान को अन्यत्र लागू करने की कल्पना का विकास करना।
(4) प्राकृतिक सम्पदा तथा उसके सही उपयोग का ज्ञान कराना:- पृथ्वी प्राकृतिक सम्पदा का भण्डार है लेकिन मानव उसका अविवेकपूर्ण ढंग से दोहन करके उसका अवशोषण कर रहा है। स्थानीय भूगोल में वन क्षेत्र या खनिज क्षेत्र का निरीक्षण करके छात्रों को उनके दोहन से होने वाले दुष्परिणामों का ज्ञान कराकर उसके मितव्ययतापूर्ण उपयोग के चिन्तन का विकास छात्रों में किया जा सकता है।
(5) सौन्दर्यानुभूति का विकास करना:- स्थानीय भूगोल के शिक्षण का एक उद्देश्य छात्रों में प्राकृतिक तत्वों की सुन्दरता की अनुभूति कराना भी है।
(6) मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की पूर्ति:- स्थानीय भूगोल के अध्ययन से मनोविज्ञान के निम्न सिद्धान्तों की पूर्ति होती है- (1) ज्ञात से अज्ञात की ओर (2) सरल से कठिन की ओर (3) अंश से पूर्ण की ओर (4) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर।
(7) राष्ट्र प्रेम पैदा करना:- स्थानीय भूगोल का एक उद्देश्य गृह प्रदेश के प्रति लगाव तथा प्रेम पैदा करके छात्रों में अपने देश के प्रति प्रेम तथा राष्ट्र भक्ति का भाव पैदा करना है। इस सम्बन्ध में ह्वाइट हैड का कथन भी पुष्टि करता है कि देश प्रेम स्थानीय क्षेत्र के प्रेम से पैदा होता है।
स्थानीय भूगोल के पाठ्यक्रम की रूपरेखा
स्थानीय भूगोल के पाठ्यक्रम में निम्न बिन्दुओं को सम्मिलित किया जा सकता है।
- स्थानीय क्षेत्र की स्थिति में अक्षांश व देशान्तरीय स्थिति, जिला व राज्य में स्थिति तथा पड़ौसी जिले।
- स्थानीय क्षेत्र की प्राकृतिक दशा में धरातल का रूप, मिट्टी, चट्टानों का स्वरूप आदि। नदियाँ, झीलें, तालाब आदि की स्थिति।
- जलवायु के अन्तर्गत तापक्रम, वायुदाब, वर्षा, आर्द्रता आदि का मापन और रिकॉर्ड रखना, जलवायु का मानव जीवन पर प्रभाव।
- प्राकृतिक वनस्पति और कृषि में वन, घास, झाड़ियाँ तथा फसलों के प्रकार, बोने व काटने का समय, सिंचाई की व्यवस्था, कृषि करने की विधि।
- मानव के क्रियाकलाप- स्थानीय लोगों के व्यवसाय, शिक्षा तथा मनोरंजन के साधन।
- गाँव या नगर की बसावट, आवागमन के मार्ग व साधन, विद्यालय, औद्योगिक इकाई, सरकारी संस्थाएँ, बाजार आदि।
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