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अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत (मूल्य) निर्धारण (Price Determination under Imperfect Competition)
अपूर्ण प्रतियोगिता तब पाई जाती है जबकि एक विक्रेता अपनी वस्तु के लिए गिरती हुई माँग रेखा का सामना करता है।”
-प्रो. लर्नर
अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ (Meaning of Imperfect Competition)
वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता की और न ही शुद्ध एकाधिकार की अवस्था पाई जाती है, बल्कि व्यावहारिक जीवन में इनके बीच की स्थिति पाई जाती है जिसे ‘अपूर्ण प्रतियोगिता’ कहते हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता में कुछ दशाएँ पूर्ण प्रतियोगिता की तथा कुछ दशाएं एकाधिकार की पाई जाती है। अतः अपूर्ण प्रतियोगिता, पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार का मिश्रण है। अपूर्ण प्रतियोगिता की अवधारणा की व्याख्या सर्वप्रथम सन् 1933 में इंग्लैण्ड की श्रीमती जॉन रॉबिन्सन ने की थी।
परिभाषाएँ (Definitions) (1) फेयरवाइल्ड के शब्दों में, “यदि बाजार ठीक प्रकार से संगठित नहीं है, क्रेतओं तथा विक्रेताओं को परस्पर सम्पर्क स्थापित करने में कठिनाई होती है और वे दूसरों के द्वारा चुकाई गई कीमतों में तुलना नहीं कर पाते हैं तो ऐसी स्थिति अपूर्ण प्रतियोगिता होती है।
(2) जे० के० मेहता के अनुसार, “इस बात को भली-भाँति समझ लिया गया है कि विनिमय की प्रत्येक स्थिति को आशिक एकाधिकार कहा जा सकता है और आशिक एकाधिकार को यदि दूसरी दृष्टि से देखा जाए तो यह अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है। प्रत्येक स्थिति में प्रतियोगिता तथा एकाधिकार दोनों का ही मिश्रण पाया जाता है। “
उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अपूर्ण प्रतियोगिता वास्तव में पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार इन दोनों के बीच की स्थिति होती है। वस्तु के विक्रेता संख्या में असंख्य नहीं बल्कि अनेक होते हैं। उनकी वस्तुएँ एक-सी नहीं होती बल्कि रंग, डिजाइन आदि के आधार पर उनमें अन्तर होता है। प्रत्येक उत्पादक या विक्रेता को अपूर्ण स्थानापन्न वस्तुओं के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। प्रो० चैम्बरलिन (Chamberlin) ने ऐसी बाजार स्थिति को ‘एकाधिकृत प्रतियोगिता’ (monopolistic competition) कहकर पुकारा है। किन्तु वास्तव में अपूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकृत प्रतियोगिता में अन्तर है बल्कि एकाधिकृत प्रतियोगिता, अपूर्ण प्रतियोगिता का ही एक अंग है। अपूर्ण बाजार में मुख्यतया निम्नलिखित बाजार शामिल होते हैं-
(1) एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)
(2) अत्याधिकार (Oligopoly)
(3) हृदाधिकार (Duopoly)
एकाधिकारी प्रतियोगिता में मिलती-जुलती वस्तुओं के अनेक (many) उत्पादक अथवा विक्रेता होते हैं। अल्पाधिकार में किसी वस्तु को बेचने वाली कुछ ही (few) फरों होती है। ददाधिकार में एक वस्तु के केवल दो (two) विक्रेता होते हैं। उक्त तीनों में एकाधिकारी प्रतियोगिता सर्वाधिक सामान्य अवस्था होती है। अतः हम इस अध्याय में केवल एकाधिकारी प्रतियोगिता में कीमत तथा उत्पादन के निर्धारण का अध्ययन करेंगे।
एकाधिकारी प्रतियोगिता में कीमत का निर्धारण
एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताएँ- एकाधिकारी प्रतियोगिता बाजार की एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन तथा विक्रय कर रही होती है। ये वस्तुएं बिल्कुल एक जैसी नहीं बल्कि मिलती-जुलती होती है तथा एक दूसरे की निकट स्वानापन्न होती है। नहाने के साबुन का उत्पादन करने वाली फर्मे एकाधिकारी प्रतियोगिता का उदाहरण हैं।
डोमिनिक सल्वाटोर के शब्दों में, “एकाधिकारी प्रतियोगिता ऐसे बाजार संगठन को कहते हैं जिसमें अनेक फर्म बिल्कुल एक जैसी तो नहीं किन्तु मिलती-जुलती वस्तुओं का विक्रय करती हैं।” एकाधिकारी प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित है—
(1) फर्मों (विक्रेताओं की अधिक संख्या- बाजार की ऐसी अवस्था में किसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्मों की संख्या काफी अधिक होती है। किन्तु पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा यह कम होती है।
(2) क्रेताओं की अधिक संख्या- ऐसे बाजार में किसी वस्तु के प्रत्येक ब्रान्ड को खरीदने वाले अनेक क्रेता होते हैं।
(3) वस्तु विभेद-अनेक फर्मे मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती है, अर्थात् रंग, रूप, आकार, डिजाइन, पैकिंग, सुशन्ध आदि के आधार पर वस्तु-विभेद पाया जाता है। वस्तुओं में एकरूपता तो नहीं होती किन्तु ये एक-दूसरे की निकट स्थानापन्न होती है। साबुन, टूथ पेस्ट, लेड, शेविंग क्रीम, पाउडर, चाय, बनियान, ऊनी कपड़े आदि कीमत विभेद तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता के कुछ उदाहरण हैं।
(4) प्रवेश करने तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता- एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत नई फर्मों को बाजार में प्रवेश करने तथा पुरानी फर्मों को बाजार को छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
(5) अपूर्ण ज्ञान-केताओं तथा विक्रेताओं की बाजार का अपूर्ण ज्ञान होता है। क्रेता यह नहीं जानते कि कौन-सी फर्म वस्तु को सबसे कम कीमत पर देख रही है।
(6) समझौता नहीं-कीमत या उत्पादन के सम्बन्ध में फर्मों के बीच कोई समझौता नहीं होता। प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु की कीमत तथा उत्पादन के बारे में स्वतन्त्र निर्णय ले सकती है।
(7) विक्रय लागतें (Selling Costs)- चूंकि फगों की वस्तुएँ एक दूसरे की निकटतम स्थानापन्न होती हैं इसलिए लगभग सभी फर्म अपनी वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, सिनेमा, रेडियो, टेलीविजन आदि में विज्ञापन पर पर्याप्त धनराशि व्यय करती है।
(8) गैर-कीमत प्रतियोगिता- एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्म अपनी वस्तुओं को अधिकाधिक मात्रा में बेचने के लिए गिफ्ट स्कीम चलाना, ग्राहकों को विशेष सुविधाएं प्रदान करना आदि गैर-कीमत प्रतियोगिता के विभिन्न तरीके अपनाती हैं।
(9) औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र- एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक फर्म की अपनी स्वतन्त्र कीमत निर्धारण नीति होती है। प्रत्येक फर्म को वस्तु को अधिक मात्रा में बेचने के लिए कीमत कम करनी पड़ती है। इसलिए एकाधिकार की भाँति फर्म के औसत आय तथा सीमान्त आवक (AR तथा MR) दाई ओर नीचे को झुके होते हैं किन्तु वस्तुओं के निकट स्थानापन्न उपलब्ध होने के कारण मांग या जीसत आय यक अपेक्षाकृत अधिक लोचदार होता है।
(10) लागत तथा पूर्ति वक-ऐसे बाजार में औसत लागत (AC), सीमान्त लागत (MC), औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) तथा लागत (selling costs) के वह ‘U’ आकार के होते हैं। एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तु विभेद के कारण उद्योग का पूर्ति इक नहीं खींचा जा सकता।
एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत किसी उत्पादक या विक्रेता का उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है लाभ अधिकतम तब होता है जबकि सीमान्त आय (marginal revenue) तथा सीमान्त लागत (marginal cost) एक-दूसरे के बराबर हो जाती है। दूसरे शब्दों में अधिकतम लाभ कमाने के लिए क्रेता वस्तु का उत्पादन तथा बिक्री उस समय तक बढ़ाता है जब तक कि वस्तु की अतिरिक्त इकाइयों (additional units) के बेचने से प्राप्त होने वाली सीमान्त आप उसकी सीमान्त लागत से अधिक रहती है। इस प्रकार एकाधिकारी प्रतियोगिता की स्थिति में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ वस्तु की सीमान्त तागत तथा सीमान्त आय एक-दूसरे के बराबर होते हैं (MR=MC) इस बिन्दु के आ जाने पर उत्पादक अपना उत्पादन तथा विक रोक देता है, क्योंकि सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत के परस्पर बराबर होने पर उत्पादन की मात्रा अनुकूलतम (optimum) हो जाती है।
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