अभिक्रमित अनुदेशन का क्या अर्थ है ? अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
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अभिक्रमित अनुदेशन ( Programmed Instruction)
अभिक्रमित अधिग़म शैक्षिक सामग्री को छोटे-छोटे पदों में विभाजित कर उसे इस प्रकार शृंखलाबद्ध करने की प्रक्रिया है जिसके सहारे अधिगमकर्त्ता जहाँ तक जानता है, उससे आगे के अज्ञान एवं नवीन ज्ञान को स्वयं ही सीख सके। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि अभिक्रमित अनुदेशन, शिक्षण अधिगम की एक विधि है जिसमें अधिगम के स्रोतों, साधनों एवं सामग्रियों को नियोजित और संगठित करने का प्रयास इस प्रकार किया जाता है जिससे अधिगमकर्त्ता शिक्षण के सुनिश्चित उद्देश्यों तक पहुँच जाये।
अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्त्व (Fundamental Elements of Programmed Instruction)
अभिक्रमित अनुदेशन के मूल तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. उद्दीपन नियन्त्रण का स्थानान्तरण- अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री के शुरू में जब छात्र उद्दीपन से जो अनुक्रियाएँ करता है, उनसे वह पहले से परिचित होता है। जैसे जैसे वह आगे बढ़ता है अनुक्रियाएँ पूर्व व्यवहार से अन्तिम व्यवहार तक पहुँचने में सहायता करती हैं और अधिगम के क्रम में उद्दीपन नियन्त्रण आगे चलता रहता है। इसी को उद्दीपन नियन्त्रण का स्थानान्तरण कहा जाता है।
2. सामान्यीकरण तथा विभेदीकरण- छात्रों में एक परिस्थितियों में अर्जित कौशल एवं अभिवृत्ति आदि को उसी प्रकार की दूसरी परिस्थिति में समान तत्त्वों के लिए ज्ञान, एक-सी अनुक्रिया करने की क्षमता सामान्यीकरण कहलाती है। सामान्यीकरण की प्रक्रिया में पहले विशिष्ट तथ्य, उदाहरण, दृष्टान्त छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं और फिर उनके आधार पर छात्र सामान्य नियम या सिद्धान्त तक पहुँचने का प्रयास करते हैं।
3. पुष्टिकरण- पुष्टिकरण, पृष्ठपोषण का ही एक रूप होता है, जिससे छात्रों को नवीन ज्ञान की प्राप्ति होती है और उन्हें पुनर्बलन भी प्राप्त होता है। छात्र अपनी अनुक्रियाओं के पुष्टिकरण के आधार पर क्रमानुसार पदों के माध्यम से आगे बढ़ते हुए शिक्षण सामग्री में सम्पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं।
4. व्यवहार तथा व्यवहार शृंखला- व्यवहार से हमारा तात्पर्य उन क्रियाओं से है जो शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए छात्र करते हैं।
अभिक्रमित अनुदेशन के सन्दर्भ में व्यवहार, उद्दीपन-अनुक्रियाओं के विशिष्ट समूह को कहा जाता है। अनुक्रिया, व्यवहार की एक यूनिट है। उद्दीपन-अनुक्रिया मिलकर व्यवहारों को विकसित करती हैं।
व्यवहार श्रृंखला वह शृंखला है, जिसमें अनेक अनुक्रियाएँ (Responses) एक समूह में तार्किक विधि से व्यवस्थित की जाती हैं।
विभिन्न प्रकार की अनेक व्यवहार शृंखलाएँ मिलकर छात्र का व्यवहार निर्धारित करती हैं। व्यवहार शृंखला, छात्र को उसके गुण या विशेषता प्रदान करती है।
5. पृष्ठपोषण/प्रतिपुष्टि- पृष्ठपोषण या प्रतिपुष्टि एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें छात्रों – को उनकी कमियों, गलतियों तथा त्रुटियों से अवगत कराया जाता है ताकि छात्र उन्हें सुधार सकें, साथ ही एक प्रक्रिया में छात्रों की अच्छी विशेषताएँ, अच्छे कार्य, उनके गुणों तथा उनकी अच्छाइयों का भी विवरण दिया जाता है ताकि वे इन्हें आगे भी अपने व्यवहारों में प्रदर्शित कर सकें। यह पुनर्बलन अनुक्रिया की सम्भावना बढ़ाता है जबकि पृष्ठपोषण व्यवहार में परिवर्तन लाने का एक सशक्त उपकरण है।
6. अनुबोधन- अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों को प्रत्येक पद के लिए अनुक्रिया करनी होती है, जिसके लिए एक अतिरिक्त उद्दीपन का प्रयोग किया जाता है। ही अनुबोध कहा जाता है। अनुबोध अभिक्रमित, अध्ययन के फ्रेम में छात्रों की सही अनुक्रिया की खोज में पूरी सहायता करते हैं। ये छात्रों को गलत अनुक्रिया करने से बचाते हैं। .
7. पुनर्बलन- पुनर्बलन किसी क्रिया के बाद घटने वाली एक ऐसी घटना है जो उस क्रिया को पुष्ट करती है। दूसरे शब्दों में, उस क्रिया के पुनः घटित होने की सम्भावना बढ़ जाती है। पुनर्बलन का सम्बन्ध वातावरण की उन घटनाओं से होता है जो किसी अनुक्रिया के करने की सम्भावना में वृद्धि करती है। नवीन व्यवहार अथवा परिवर्तन छात्र की उन अनुक्रियाओं पर निर्भर होता है, जिन्हें उद्दीपनों से बल प्रदान किया जाता है। उद्दीपनों की वे घटनाएँ तथा परिस्थितियाँ जो अनुक्रिया को उत्पन्न करती हैं, पुनर्बलन कहलाती हैं।
8. छात्र-नियन्त्रित अनुदेशन- इस अनुदेशन में छात्रों को पूरा महत्त्व दिया जाता है। अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री तैयार करने में ‘छात्र नियन्त्रित’ अनुदेशन क्रम अन्य किसी अधिगम क्रम की तुलना में अधिक प्रभावशाली है।
9. उत्तरोत्तर समीपता- अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में अधिगमकर्त्ता पहले जो अनुक्रियाएँ करता है, उसे पुनर्बलित किया जाता है। अन्तिम व्यवहार तक पहुँचने के लिए जिन-जिन की आवश्यकता पड़ती है उन्हें छोटे-छोटे पदों की तार्किक क्रमबद्ध व्यवस्था के अनुसार बाँट दिया जाता है। प्रत्येक पद पर पुनर्बलन प्रदान करते हुए उत्तरोत्तर समीपता के आधार पर अधिगमकर्त्ता की अनुक्रियाओं को अन्तिम व्यवहार के समीप पहुँचाते हैं।
10. क्रमागत प्रगति – अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में छात्रों को उनके पूर्व व्यवहार शृंखला से धीरे-धीरे शुरू करके अन्तिम व्यवहार तक क्रमागत प्रगति माध्यम से ले जाया जाता है। क्रमागत प्रगति में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि छात्र धीरे-धीरे अनुक्रियाएँ करते हुए जटिल व्यवहारों को विकसित करें।
11. निदान तथा उपचार- निदान तथा उपचार के सिद्धान्त से अभिप्राय है, छात्रों की कठिनाइयों, कमजोरियों का निदान करके उन्हें उपचारात्मक अनुदेशन प्रदान करना। शाखीय अभिक्रमित अनुदेशन में यदि छात्र गलत अनुक्रिया करता है तब उसकी कठिनाई, गलती या कमजोरी का पता चलता है, जिसके लिए उसे त्रुटि पृष्ठ पर उपचारात्मक अनुदेशन प्राप्त होता है और वह गलती सुधारने के लिए उपयुक्त निर्देश भी सामग्री से प्राप्त करता है।
12. उद्दीपन तथा अनुक्रिया – ऐसी परिस्थिति, घटना या व्यक्ति तथा वातावरण में परिवर्तन, यदि छात्रों के व्यवहार में भी परिवर्तन लाते हैं, तो उन्हें उद्दीपन कहा जाता है। उद्दीपन एक विशिष्ट अनुक्रिया के लिए परिस्थिति उत्पन्न करता है। अभिक्रमित अनुदेशन में विषय-वस्तु के छोटे-छोटे पदों को तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। ये प्रत्येक छोटे-छोटे पद उद्दीपन का कार्य करते हैं तथा ये ही पद उद्दीपन के रूप में छात्रों को अनुक्रियाएँ करने के लिए तैयार करते हैं।
अनुक्रिया – अनुक्रिया व्यवहार की वह इकाई है जो जटिल व्यवहारों का निर्माण करती है। अनुक्रिया के तीन कार्य होते हैं—
- (a) छात्र को अध्ययन में तत्पर रखना।
- (b) सही समय पर पुनर्बलन प्रदान करना ।
- (c) नवीन ज्ञान देना ।
अनुक्रिया, आंशिक या पूर्ण रूप में प्रत्येक अगले पद के लिए उद्दीपन का काम भी करती है।
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