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सम्प्रेषण की प्रक्रिया क्या है ? इस प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

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सम्प्रेषण की प्रक्रिया क्या है ? इस प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

सम्प्रेषण की प्रक्रिया क्या है ? इस प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

सम्प्रेषण की प्रक्रिया (Process of Communication)

सम्प्रेषण की प्रक्रिया हेतु निम्न दशाएँ आवश्यक होती हैं-

  1. एक व्यक्ति जिसे सन्देश भेजना हो ।
  2. एक अन्य व्यक्ति / कई व्यक्ति जो उसे ग्रहण करने हेतु उपस्थित हो।
  3. ग्रहणकर्त्ता सन्देश को पूर्ण / आंशिक रूप से ग्रहण करें।
  4. ग्रहणकर्त्ता सन्देश पर प्रतिक्रिया दे अथवा प्रतिपुष्टि प्रदान करे।

उपर्युक्त दशाओं की उपस्थिति में सम्प्रेषण प्रक्रिया पूर्ण होती है। इस प्रक्रिया के प्रभावी होने की दशा इसके सभी तत्वों के उचित प्रकार से कार्य करने पर निर्भर करती है। ये सभी तत्त्व निम्न हैं

(1) प्रेषक (Sender) – वह व्यक्ति जो सूचना को प्रसारित करना चाहता है एवं प्रसारित करता है, प्रेषक कहलाता है। यह अपने सन्देशों को शाब्दिक अथवा भाव-भंगिमाओं के रूप में भेजता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि सम्प्रेषण प्रक्रिया की शुरुआत प्रेषक के द्वारा की जाती है।

(2) सन्देश (Message)- वह विषय-वस्तु जो प्रेषक के द्वारा भेजी जाती है। यह विषय-वस्तु कोई तथ्य / मत / सूचना में से कोई भी हो सकती है। यह लिखित अथवा मौखिक भी हो सकती है।

(3) कूट प्रक्रिया (Encoding)- विषय-वस्तु को भेजने से पहले प्रेषक उसे एक निश्चित शब्द / भाव-भंगिमा प्रदान करता है जिससे उसका अर्थ उचित प्रकार से निकाला जा सके। इसके स्वरूप विभिन्न प्रकार के शब्द प्रतीक संकेत आदि हो सकते हैं।

(4) माध्यम (Channel/Medium)- प्रेषक, सन्देश भेजने के पूर्व माध्यम को निर्धारित कर लेता है। यह माध्यम यह मीडिया है जिसके द्वारा प्रेषक एवं ग्राही में सम्बन्ध स्थापित हो पाता है। यह कई रूपों, जैसे- रेडियो, टी.वी., ई-मेल, फैक्स, पत्र, व्याख्यान आदि में हो सकता है।

(5) ग्राही- सन्देश को ग्रहण करने वाला व्यक्ति ग्राही कहा जाता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया की सफलता का मापदण्ड ग्राही की ग्रहण क्षमता पर ही निर्भर करता है। ग्राही, सन्देश / सूचना को ग्रहण कर समझने का पूर्ण प्रयास करता है।

(6) कूटानुवाद (Decoding)- प्रेषक द्वारा दिए गए सन्देश की उचित व्याख्या (Interpretation) ही कूटानुवाद (decoding) कही जाती है। कूटानुवाद सार्थक होने की दशा में ही सम्प्रेषण अच्छा माना जाता है। शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में उचित अर्थ ग्रहण कर लेने पर ही शिक्षक की सफलता निश्चित होती है।

(7) प्रतिपुष्टि (Feedback)- सन्देश का अर्थ ग्रहण करने के पश्चात् ग्राही द्वारा उस पर प्रतिक्रिया की जाती है। यह प्रतिक्रिया पुनः सूचना के रूप में माध्यम द्वारा प्रेषक तक वापस जाती है। इस क्रिया में ग्राही एवं प्रेषक की भूमिकाएँ आपस में बदल जाती हैं।

उपर्युक्त तत्त्वों के अतिरिक्त एक तत्त्व और है जो सम्प्रेषण को प्रभावी रखने में सहायक सिद्ध होता है।

सन्देश को प्रेषक से ग्राही तक पहुँचने में प्रायः सन्देश को कुछ हिस्सा अपभ्रंश होकर बाहर हो जाता है। हालांकि इसकी प्रतिशतता कई मुख्य कारणों पर निर्भर करती है। फिर भी इसकी उपस्थिति लगभग अनिवार्य है।

सम्प्रेषण प्रतिमान

सम्प्रेषण प्रतिमान

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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