कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

अर्थशास्त्र का भौतिक विज्ञानों से सम्बन्ध

अर्थशास्त्र का भौतिक विज्ञानों से सम्बन्ध
अर्थशास्त्र का भौतिक विज्ञानों से सम्बन्ध

अर्थशास्त्र का भौतिक विज्ञानों से सम्बन्ध

सामाजिक शास्त्रों के अतिरिक्त अर्थशास्त्र का भौतिक विज्ञानों (Physical Sciences) से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। अब हम अर्थशास्त्र का भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र तथा गणित के साथ सम्बन्ध का अध्ययन करेंगे।

(1) अर्थशास्त्र तथा भौतिकशास्त्र (Economics and Physics) – किसी देश के आर्थिक जीवन पर भौतिकशास्त्र का गहरा प्रभाव पड़ता है। बिजली, तार, रेडियो, रेल एवं वायु परिवहन, टेलीफोन आदि का आविष्कार भौतिकशास्त्र के कारण ही हुआ है। इन सब वस्तुओं ने मनुष्य के जीवन को पहले से कहीं अधिक सुखी बना दिया है। भौतिकशास्त्र की सहायता से विभिन्न मन्त्रों व मशीनों का निर्माण किया गया जिनकी सहायता से विशालस्तरीय उत्पादन सम्भव हो सका है। इसके अतिरिक्त, अर्थशास्त्र के कई नियम भौतिकशास्त्र के नियमों पर आधारित हैं।

(2) अर्थशास्त्र तथा रसायनशास्त्र (Economics and Chemistry)- (1) अर्थशास्त्र के कई नियमों का निर्माण रसायनशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर किया गया है। उदाहरणार्थ, प्रतिफल हास नियम (Law of Diminishing Returns) रसायनशास्त्र के इस तथ्य पर आधारित है कि भूमि में उत्पादक तत्वों की मात्रा सीमित होती है। अतः जैसे जैसे भूमि के किसी टुकड़े पर खेती की जाती है वैसे-वैसे उसका सीमान्त उत्पादन घटता जाता है। (ii) अर्थशास्त्र में ‘उपभोग’ तथा ‘उत्पादन’ का जो अर्थ बताया गया है वह रसायनशास्त्र पर आधारित है। अर्थशास्त्र में उत्पादन का अर्थ है तुष्टिगुण का सृजन करना तथा उपभोग का अर्थ है “तुष्टिगुण का प्रयोग करना’ ‘उत्पादन’ तथा ‘उपभोग’ की ये परिभाषाएँ रसायनशास्त्र के इस तथ्य पर आधारित है कि मनुष्य न तो किसी पदार्थ (matter) का उत्पादन कर सकता है और न ही वह उसका पूर्ण विनाश कर सकता है। (iii) साबुन, चीनी, वनस्पति घी, बिस्कुट, औषधियों आदि अनेक वस्तुओं के उत्पादन में रसायनशास्त्र की सहायता ली जाती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र तथा रसायनशास्त्र में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

(3) अर्थशास्त्र तथा गणित (Economics and Mathematics)- अर्थशास्त्र तथा गणित का सम्बन्ध न केवल पुराना बल्कि बहुत गहरा भी है जेवन्स (Jovons). कृनों (Cournot), पैरेटो (Fareto), एजवर्थ (Edgeworth) आदि विद्वानों ने आर्थिक नियमों के प्रतिपादन में गणित का प्रयोग किया है। आधुनिक अर्थशास्त्री विभिन्न आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में गणितीय विधियों का प्रयोग करते हैं। जेवन्स के शब्दों में, “यदि अर्थशास्त्र विज्ञान का रूप लेना चाहता है तो उसे गणितीय विज्ञान बनाना होगा।”

आजकल वक्रों (curves), रेखाचित्रों (diagrams), तालिकाओं (tables), समीकरणों (equations), सूत्रों (formulae) आदि का प्रयोग आर्थिक सिद्धान्तों के प्रतिपादन तथा आर्थिक समस्याओं को समझाने में व्यापक स्तर पर किया जाता है। वस्तुतः गणितीय रीतियों के प्रयोग से आर्थिक निष्कर्षों में निश्चितता आ जाती है। मार्शल के शब्दों में, गणित की सहायता से अर्थशास्त्र को सूक्ष्मता तथा निश्चितता प्राप्त हो जाती है। आजकल अर्थशास्त्र की एक शाखा को ‘गणितीय अर्थशास्त्र‘ (Mathematical Economics) के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं वरन अर्थशास्त्र में गणित के निरन्तर बढ़ते प्रयोग के कारण ‘अर्थमिति’ (Econometrics) नामक एक स्वतन्त्र विषय बन गया है जो अर्थशास्त्र के अध्ययन का एक भी है। ‘अर्थमिति‘ अर्थशास्त्र, गणित तथा सांख्यिकी का मिला-जुला स्वरूप है।

(4) अर्थशास्त्र तथा सांख्यिकी (Economics and Statistics) लॉविट (Lovitt) के शब्दों में, “सांख्यिकी विज्ञान है जो तथ्यों की व्याख्या विवरण एवं तुलना करने के लिए सांख्यिकीय तथ्यों के संकलन, वर्गीकरण एवं सारणीयन से सम्बन्ध रखता है।” संक्षेप में, सांख्यिकी में तथ्यों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सांख्यिकी तथा अर्थशास्त्र के बीच गहरा सम्बन्ध है जिसे निम्न बातों से भली-भांति समझा जा सकता है

(1) आगमन विधि का आधार- अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक आगमन विधि (inductive method) है। इस विधि के अन्तर्गत किसी आर्थिक व्यवहार या घटना के अध्ययन के लिए सर्वप्रथम तथ्य (facts) एकत्रित किए जाते हैं। इस दृष्टि से आगमन विधि का आधार ही सांख्यिकी है। फिर आगमन विधि को ‘साख्यिकीय विधि’ (statistical method) भी कहा जाता है।

(2) निगमन विधि पर आधारित नियमों की परख-जिन आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन निगमन विधि (deductive method) के आधार पर किया जाता है उनकी सत्यता की जाँच सांख्यिकी की सहायता से की जाती है।

(3) आर्थिक नियमों का स्पष्टीकरण तथा विवेचन-माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त, माँग का नियम, सीमान्त तुष्टिगुण नियम, सम-सीमान्त नियम, माँग की मूल्य सापेक्षता, पूर्ति का नियम आदि आर्थिक सिद्धान्तों का स्पष्टीकरण संकलित समकों के विश्लेषणात्मक विवेचन द्वारा ही सम्भव है साथ ही आर्थिक नियमों के आकर्षक ढंग से स्पष्टीकरण के लिए चित्रों तथा रेखाचित्रों का प्रयोग किया जाता है।

(4) आर्थिक भविष्यवाणी- अर्थशास्त्री संख्यात्मक अध्ययनों के आधार पर ही आर्थिक घटनाओं के सम्बन्ध में भविष्यवाणी कर पाते हैं। उदाहरणार्थ, कीमत-स्तर में गत वर्षों में हुए परिवर्तनों के विश्लेषण के आधार पर ही कीमतों सम्बन्धी कोई भविष्यवाणी की जा सकती है।

(5) व्यवसाय में महत्त्व-बोडिंगटन के अनुसार, “एक सफल व्यापारी वही है जिसके अनुमान यथार्थता के अधिक निकट होते हैं।” वस्तुतः एक कुशल व्यापारी संख्यात्मक तथ्यों के आधार पर माँग सम्बन्धी सही पूर्वानुमान लगाकर विज्ञापन तथा विक्री की उपयुक्त योजना तैयार करता है।

(6) बैंकिंग में महत्त्व- देश की बैंकिंग व्यवस्था माँग-जमा तथा साख-जमा सम्बन्धी आंकड़ों के आधार पर ही अपनी साख नीति तय करती है।

(7) आर्थिक नीतियों का निर्माण- किसी देश की सरकार आँकड़ों की सहायता से ही कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, परिवहन आदि की उन्नति के लिए आर्थिक नीतियों का निर्माण करती है।

(8) आर्थिक समस्याओं का समाधान-बेरोजगारी, अति जनसंख्या, गरीबी, आर्थिक विषमताएँ, गहँगाई, कृषि का पिछड़ापन, औद्योगिक पिछड़ापन आदि समस्याओं का समाधान आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण द्वारा ही भली-भाँति किया जा सकता है।

(9) आर्थिक नियोजन का आधार-आजकल कई राष्ट्र आर्थिक नियोजन (economic planning) द्वारा अपना तीव्र विकास करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों से आंकड़े एकत्रित करके उपलब्ध साधनों की जानकारी प्राप्त की जाती है। तत्पश्चात् चहुंमुखी विकास के लिए योजनाएं तैयार की जाती हैं। उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा वितरण सम्बन्धी सूचना प्राप्त करने के लिए सांख्यिकीय विधियों का सहारा लेना पड़ता है। टिप्पेट के अनुसार, “नियोजन आज की आवश्यकता हैं और सांख्यिकी के बिना नियोजन असम्भव है।”

(10) आँकड़े आर्थिक विकास के सूचक-राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय सम्बन्धी आँकड़े किसी देश में आर्थिक विकास की गति के सूचक होते हैं फिर विभिन्न राष्ट्रों के विकास-स्तर की तुलना उनके प्रति व्यक्ति आय सम्बन्धी आँकड़ों के

आधार पर की जाती है।

(11) अर्थमिति विषय का जन्म- अर्थशास्त्र में सांख्यिकी के व्यापक प्रयोग के परिणामस्वरूप ‘अर्थमिति (Econometrics) नामक एक स्वतन्त्र विषय का जन्म हुआ है। अर्थमिति एक ऐसा विज्ञान है जो आर्थिक जीवन में होने वाली परिमाणात्मक क्रियाओं एवं घटनाओं का अध्ययन सांख्यिकीय विधियों द्वारा करता है।

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Anjali Yadav

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