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अर्थशास्त्र क्या है What is Economics
प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी कार्य में संलग्न है-यदि हम समाज में रह रहे मनुष्यों के जीवन पर दृष्टि डालें तो हम पायेंगे कि सभी मनुष्य किसी न किसी कार्य में व्यस्त रहते हैं। उदाहरणार्थ, दुकानदार दुकान पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं, किसान खेतों में कृषि कार्य करते हैं, मजदूर खेतों व कारखानों में काम करते हैं, दर्जी दिन-रात कपड़े सोते हैं, शिक्षक स्कूल-कॉलेज हैं इत्यादि।
व्यक्ति कार्य क्यों करता है?
अब हमारे सम्मुख यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि सभी व्यक्ति विभिन्न कार्यों में क्यों लगे आते हैं। इसका उत्तर है-सभी व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन कमाने हेतु भिन्न-भिन्न कार्यों में व्यस्त रहते हैं। मनुष्य आवश्यकताओं (Wants) का पुतला है। जन्म से मृत्यु तक उसे नाना प्रकार की आवश्यकताएँ घेरे रहती है। उसे भूख मिटाने के लिए भोजन, पहनने के लिए यस्त्र तथा रहने के लिए मकान की आवश्यकता पड़ती है। फिर आधुनिक जीवन में खड़ी, साइकिल, स्कूटर, कार, रेडियो, टेलीविजन आदि विभिन्न वस्तुओं की आवश्यकता भी उसे अनुभव होती है। इसी प्रकार मनुष्य को धोबी, नाई, डॉक्टर, वकील, अध्यापक आदि की सेवाओं की भी आवश्यकता पड़ती है। किन्तु मनुष्य विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं को इच्छित मात्रा में प्राप्त नहीं कर सकता क्यों? क्योंकि मनुष्य की आवश्यकताएँ तो असीमित होती हैं किन्तु उसके साधन सीमित होते हैं। इन साधनों या धन की प्राप्ति के लिए उसे प्रयत्न करने पड़ते हैं जिन्हें आर्थिक क्रियाएँ कहते हैं। ‘अर्थशास्त्र‘ में हम मनुष्य की इन्हीं आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करते हैं। दूसरे शब्दों में, ‘अर्थशास्त्र’ ज्ञान की शाखा है जिसमें हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस प्रकार धन कमाते हैं तथा किस प्रकार उसका प्रयोग करते हैं ताकि उन्हें अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।
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