कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

आर्थिक नियमों की कम निश्चितता के कारण

आर्थिक नियमों की कम निश्चितता के कारण
आर्थिक नियमों की कम निश्चितता के कारण

आर्थिक नियमों की कम निश्चितता के कारण

(1) मनुष्य का अध्ययन- अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। आर्थिक नियम मानव-आचरण पर निर्भर करते हैं और मनुष्य के आचरण में परिवर्तन होते रहते हैं। ऐसा कई कारणों से होता है–(i) मनुष्य का आचरण अनेक भावनाओं से प्रेरित तथा प्रभावित होता है, जैसे प्रेम, दया, परोपकार, धर्म, देश-प्रेम आदि। यह जानना कठिन होता है कि किसी समय आर्थिक क्रियाओं पर मनुष्य की उक्त भावनाओं का कितना और कैसा प्रभाव पड़ेगा। (ii) मनुष्य की आवश्यकताएँ परिवर्तनशील हैं। रीति-रिवाज, शिक्षा, फैशन, ऋतुओं आदि में परिवर्तन होने पर मनुष्य की आवश्यकताएं भी परिवर्तित हो जाती हैं। (iii) भिन्न-भिन्न मनुष्यों के स्वभाव तथा रुचि में भी अन्तर होता है। मनुष्यों के व्यवहारों को प्रभावित करने में उनकी स्वतन्त्र इच्छा शक्ति का बहुत बड़ा हाथ होता है। अतः मानव व्यवहार की अनिश्चितता के कारण आर्थिक नियम उतने निश्चित नहीं होते जितने कि प्राकृतिक नियम प्राकृतिक विज्ञानों में तो निर्जीव, अचेतन तथा बुद्धिहीन जड़-पदार्थों तथा प्राकृतिक तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है जिनकी न तो कोई स्वतन्त्र इच्छा होती है तथा न ही उनके आचरण पर अभौतिक भावनाओं का प्रभाव पड़ता है। अतः प्राकृतिक तत्त्वों के बारे में निश्चित भविष्यवाणी की जा सकती है। संक्षेप में, मनुष्य के व्यवहार के सतत परिवर्तनशील, विविध जटिल तथा संवेदनशील होने के कारण उसे (व्यवहार) शत-प्रतिशत रूप से एक सरल नियम की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता।

(2) आर्थिक नियमों का परीक्षण प्रयोगशाला में सम्भव नहीं- प्राकृतिक विज्ञानों के नियमों का अधिक निश्चित होने का एक कारण यह है कि वैज्ञानिक अपनी इच्छानुसार जड़ पदार्थों पर प्रयोगशालाओं (laboratories) में प्रयोग करते हैं तथा प्रयोगों के आधार पर ही नियमों का प्रतिपादन किया जाता है किन्तु अर्थशास्त्र में प्रयोगशाला विधि को अपनाना सम्भव नहीं है, क्योंकि अर्थशास्त्र में जड़-पदाचों के स्थान पर विचार-शक्ति रखने वाले मनुष्यों का अध्ययन किया जाता है जिन पर किसी प्रकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

(3) मुद्रा का दोषपूर्ण मापदण्ड होना- अर्थशास्त्र में मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं को मुद्रारूपी मापदण्ड द्वारा मापा जाता है। किन्तु मुद्रा एक अपूर्ण तथा अविश्वसनीय मापदण्ड है क्योंकि-(i) मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन होते रहते हैं, तथा (ii) मुद्रा द्वारा मानवीय आवश्यकताओं की तीव्रता को सही-सही नहीं मापा जा सकता। परिणामतः मुद्रा के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष अस्थिर तथा अनिश्चित होते हैं।

(4) विभिन्न गैर-आर्थिक प्रवृत्तियों का प्रभाव-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसलिए मनुष्य के व्यवहार पर आर्थिक प्रवृत्तियों के अतिरिक्त सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक बातों का भी प्रभाव पड़ता है। इसलिए केवल आर्थिक पहलू के आधार पर ही मानव के व्यवहार तथा कार्यों का सही-सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। फिर यह कहना कठिन होता है कि किन परिस्थितियों में मानव व्यवहार किन तत्वों से प्रेरित होगा।

(5) समय में परिवर्तन- समय में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं जिनके परिणामस्वरूप मनुष्य के स्वभाव, रुचि, दृष्टिकोण आदि में भी परिवर्तन हो जाते हैं। इससे आर्थिक नियमों में भी परिवर्तन करने आवश्यक हो जाते हैं।

(6) अज्ञात घटकों का प्रभाव-डरबिन (Durbin) के विचार में आर्थिक घटनाओं को निर्धारित करने वाले सभी वास्तविक तत्वों की अभी तक खोज नहीं की जा सकी है। कई बार अज्ञात घटक (unknown factors) भी अपने प्रभाव दिखा देते हैं जिस कारण ज्ञात घटकों के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष मिथ्या सिद्ध हो जाते हैं।

अर्थशास्त्र एक विकासमान विज्ञान है। गत वर्षों में इसकी अध्ययन विधियों तथा तकनीक में निरन्तर सुधार हुआ है। इस दृष्टि से अर्थशास्त्रियों के उपकरण अपर्याप्त तथा अपूर्ण हैं।

(7) विभिन्न मान्यताओं पर आधारित-आर्थिक नियम तभी लागू होते हैं जबकि अन्य बाते सगान रहती है, अर्थात् आर्थिक नियम कुछ मान्यताओं (assumptions) पर आधारित होते हैं। किन्तु वास्तविक जीवन में अन्य बातें समान नहीं रहती बल्कि बदलती रहती हैं, जैसे जनसंख्या, रुचि, फैशन, आय, रीति-रिवाज आदि में परिवर्तन होते रहते हैं। परिणामतः इन घटकों को स्थिर मानकर बनाए गए नियम भी पूर्णरूपेण सत्य तथा निश्चित नहीं हो सकते।

निष्कर्ष (Conclusion)- उपर्युक्त कारणों से अर्थशास्त्र को अपूर्ण तथा अनिश्चित विज्ञान कहा गया है। किन्तु अर्थशास्त्र के नियम अन्य सामाजिक विज्ञानों (राजनीतिशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र आदि) की अपेक्षा कहीं अधिक निश्चित होते हैं। यद्यपि आर्थिक नियम इतने पूर्ण तथा निश्चित नहीं होते जितने कि प्राकृतिक नियम होते हैं किन्तु वे अन्य सामाजिक विज्ञानों के नियमों की अपेक्षा अधिक निश्चित तथा सही होते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि अर्थशास्त्र में मनुष्य की क्रियाओं को मुद्रा के मापदण्ड द्वारा मापा जा सकता है जबकि अन्य सामाजिक विज्ञानों में ऐसा कोई मापदण्ड उपलब्ध नहीं है।

आर्थिक नियमों की ज्वार-भाटे के नियमों से तुलना

(Comparison of Economic Laws with the Laws of Tides)

मार्शल ने आर्थिक तथा प्राकृतिक नियमों को विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह कहा है, “आर्थिक नियमों की तुलना गुरुत्वाकर्षण के साधारण व निश्चित नियमों से न करके ज्वार-भाटे के नियमों से की जानी चाहिए 172 गुरुत्वाकर्षण का नियम तो एक निश्चित सर्वव्यापी नियम है जो प्रत्येक स्थान तथा समय में समान रूप से कार्यशील होता है। इसके विपरीत जितने अनिश्चित ज्वार-भाटे के नियम होते हैं उतने ही अनिश्चित आर्थिक नियम होते हैं। अतः मार्शल का विचार है कि आर्थिक नियमों की तुलना ज्वार-भाटे के नियम से की जानी चाहिए।

ज्वार-भाटे का नियम हमें यह बताता है कि चन्द्रमा के प्रभाव से ज्वार क्यों और कब आता है। इस नियम के अनुसार पूर्ण चन्द्रमा के दिन ज्वार अर्थात् लहरों का उठना सबसे ऊंचा होगा और जैसे-जैसे चन्द्रमा का आकार छोटा होता जायेगा वैसे-वैसे ज्वार की ऊँचाई कम होती जायेगी। इस प्रकार चन्द्रमा के आकार को देखकर हम यह भविष्यवाणी करते हैं कि अमुक दिन समुद्र में ज्यार सबसे अधिक ऊँचाई तक आयेगा। किन्तु हमारी यह भविष्यवाणी गलत भी सिद्ध हो सकती है। यदि उस दिन तेज वर्षा, जींधी, तूफान या समुद्र में कोई अन्य बड़ा परिवर्तन आ जाए तो हमारी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध नहीं होगी। कभी-कभी ज्वार भाटे निश्चित समय से पहले या पीछे भी आ सकते हैं तथा उनकी ऊँचाई में भी अन्तर आ सकता है। इसी प्रकार अर्थशास्त्र का मुख्य विषय मनुष्य है, वह किसी समय पर किस प्रकार का आचरण करेगा इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। फिर कई बार समाज में होने वाले आकस्मिक परिवर्तन भी आर्थिक नियमों को असत्य सिद्ध कर देते हैं।

प्रो० मार्शल के अनुसार जिस प्रकार ज्वार-भाटे के नियमों के साथ सम्भवतया शब्द जुड़ा रहता है उसी प्रकार आर्थिक नियमों के साथ ‘यदि अन्य बातें समान रहे तो’ वाक्यांश जुड़ा रहता है। अतः आर्थिक नियम मानव-व्यवहार के आर्थिक पहलू के सम्बन्ध में केवल अनुमान या सम्भावनाएँ ही व्यक्त करते हैं। इसलिए आर्थिक नियमों की तुलना प्राकृतिक विज्ञानों के निश्चित नियमों से नहीं की जा सकती।

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Anjali Yadav

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