उत्कृष्ट संक्षेपण की रचना में किन सावधानियों का पालन करना चाहिए। समझाइये।
उत्कृष्ट संक्षेपण में निम्नलिखित दोषों से बचना आवश्यक है-
- संक्षेपण में मूल अवतरण में आये हुए उदाहरण, दृष्टान्त, उद्धरण और तुलनात्मक विचारों का समावश वर्जित है। अर्थात् इसमें अत्यधिक विस्तार से बचना चाहिए।”
- संक्षेपण सामान्यतः भूतकाल और अप्रत्यक्ष (परोक्ष) कथन में लिखा जाना चाहिए। इसमें प्रत्यक्ष कथन से बचना चाहिए।
- इसमें अन्य पुरुष का प्रयोग करना चाहिए। मैं से शुरू वाले वाक्य का ‘वे’ में परिवर्तन।
- मूल अनुच्छेद के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग मना है।
- इसमें क्लिष्ट, शब्दाडम्बर और अप्रचलित शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
- भाषा सहज, चुस्त होनी चाहिए, न कि मुहावरेदार और आलंकारिक।
- वाक्य-योजना सरल और छोटी होनी चाहिए। शब्दों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए।
- इसमें टीका-टिप्पणी और आलोचना निषिद्ध है।
- संक्षेपण में भूमिका तथा उपसंहार का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए।
- मूल तथ्य से असम्बद्ध तथा अनावश्यक बातों को छाँटकर निकाल देना चाहिए।
- आरम्भ और अन्तिम वाक्य इतना प्रभावशाली होना चाहिए, जो मूल विषय के भावों को विचारों को स्पष्ट कर दे।
- कठिन शब्दों और प्रथम और मध्यम पुरुष के कथनों से बचना चाहिए।
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संक्षेपण का उदाहरण
(1) कविता पाठकों का मनोरंजन करती है, पर इसका मूल उद्देश्य मात्र मनोरंजन करना न होकर, मनोरंजक ढंग से पाठक को उपदेश देना है। जो बात व्यक्ति को बड़े-बड़े संतों-महात्माओं के उपदेश से नहीं समझ में आती, उसे कविता बहुत सहज एवं मनोरंजक ढंग से समझा देती है। यह कविता की मनोरंजन शक्ति है, जिससे कॅठिन से कठिन बात भी पाठक को सरल ढंग से समझ में आ जाती है, तभी तो कहा गया है कि कविता वक्ता के समान बड़े सुन्दर प्रभावकारी ढंग से व्यक्ति को उपदेश देती, अर्थात् उसके मन को सहलाकर उसे प्रभावित कर देती है। लगभग 100 शब्द।
शीर्षक कविता की उपयोगिता
संक्षेपण – अपने मनोरंजन के गुण के कारण ही कविता द्वारा दी गई शिक्षा बड़े-बड़े संत-महात्माओं की शिक्षा से अधिक प्रभावकारी होती है। पत्नी जैसे पति को स्नेहासिक्त शब्दों में जो कहती है, वही मानता है, वैसे ही कविता अपने मनोरंजक रूप के कारण व्यक्ति के अनतःकरण को प्रभावित करती है। लगभग 80 शब्द।
( 2 ) आनन्द प्राप्ति मानव जीवन का प्रमुख उद्देश्य है। इसे पाने के लिए वह इधर उधर भटकता रहता है। शास्वत सुख की अनुभूति उसके जीवन की प्राथमिकता है। इसकी पूर्ति के लिए वह तरह-तरह के माध्यम तलाशता रहता है। शैशव काल में माँ की गोद उसे आनन्द देती है, बाल्यावस्था में खिलौने, छात्र जीवन में पुस्तकें, यौवन में स्त्री तथा धन संचय उसे आनन्द देते हैं। उसके बाद वह गृहस्थाश्रम संतान मोह तथा यश प्राप्ति में आनन्द पाता है। परन्तु जिन भौतिक चीजों में वह आनन्द खोजने की चेष्टा करता है, वे आनन्द से रहित है। यदि इनमें से एक में भी आनन्द होता तो व्यक्ति उसी में लीन रहता, उसे आनन्द पाने के लिए बराबर आनन्द के केन्द्र बदलने नहीं पड़ते। वस्तुतः आनन्द भौतिक वस्तुओं में है ही नहीं। (लगभग 125 शब्द।)
शीर्षक – सच्चा आनन्द।
संक्षेपण – आनन्द प्राप्ति के लिए व्यक्ति जीवन भर भटकता है। मां की गोद से लेकर गृहस्थाश्रम के विविध क्रिया-कलापों में वह आनन्द खोजता है। परन्तु आनन्द, भौतिक वस्तुओं में है ही नहीं इसलिए व्यक्ति कहीं एक जगह मन को लीन नहीं कर पाता।
(लगभग 42 शब्द।)
(3) कर्तव्यपालन और सत्यनिष्ठता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। जो अपना कर्तव्यपालन करता है वह अपने कर्मों और वचनों में सत्यता भी रखता है। वह सही समय पर उचित रीति से अच्छे कार्यों को करता है। सत्यनिष्ठता के सहारे मनुष्य इस संसार में सफलता पा सकता है क्योंकि कोई काम झूठ का सहारा लेकर नहीं पूरा किया जा सकता। यदि परिवार के सभी लोग झूठ बोलने लगे तो उस परिवार में कोई काम नहीं हो सकेगा और सब लोग बड़ा दुःख भोगेंगे। इसलिए हम लोगों को अपने कार्यों में झूठ का बर्ताव नहीं करना चाहिए।
(लगभग 85 शब्द।)
शीर्षक सत्यनिष्ठता का महत्व
संक्षेपण-वाणी और कार्य में सत्यनिष्ठता ही सफलता दिलाती है। झूठ बोलने वाला कभी सफल नहीं होता, उसके परिवार के लोग भी दुःखी होते हैं। अतः झूठ नहीं बोलना चाहिए।
(लगभग 30 शब्द)
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