हिन्दी साहित्य

प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ | प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम | हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र | प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ

प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ | प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम | हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र | प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ
प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ | प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम | हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र | प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ

प्रयोजन मूलुक हिन्दी से क्या अभिप्राय है? प्रयोजन मूलक हिन्दी के विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डालिए। 

प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ

‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ से तात्पर्य उस हिन्दी से है जिसका अपना कोई विशेष लक्ष्य या प्रयोजन हो । वास्तव में प्रयोजनमूलक शब्द अंग्रेजी के फंक्शनल (Functional) शब्द का हिन्दी पर्याय है जिसका अर्थ ही होता है प्रयोजन विशेष के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला। इस प्रकार प्रयोजन मूलक हिन्दी से तात्पर्य हिन्दी है, जिसका प्रयोग विशेष प्रयोजन लिए किया व्यावहारिक हिन्दी भी कहा जाता है।

प्रयोजनमूलक हिन्दी सामान्य हिन्दी और साहित्यिक हिन्दी से भिन्न है। इसका प्रयोग न तो सामान्य व्यवहार में करते हैं और न ही साहित्य में क्योंकि जब हम अपने मित्रों या सगे सम्बन्धियों से बातचीत करते हैं तो हम एक प्रकार की हिन्दी का प्रयोग करते हैं जिसे सामान्य हिन्दी कहा जाता है। लेकिन जब हम कविता, कहानी या उपन्यास आदि की रचना करते हैं तो उसमें दूसरी तरह की हिन्दी का प्रयोग करते हैं जिसे ‘साहित्यिक हिन्दी’ कहा जाता है लेकिन जब हमें कार्यालयों, बैंकों, जनसंचार माध्यमों या व्यावसायिक क्षेत्रों से सम्बन्ध स्थापित करना होता है तो उन दोनों से अलग एक विशेष प्रकार की हिन्दी का हम प्रयोग करते हैं और उसी हिन्दी को ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ कहा जाता है।

प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम

‘प्रयोजनमूलक हिन्दी के लिए अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नाम दिये हैं। डॉ. विद्यानिवास मिश्र ‘फंक्शनल’ के लिए ‘प्रयोजनमूलक’ के बजाय ‘व्यावहारिक’ का प्रयोग अधिक उचित मानते हैं तो रमाप्रसन्न नायक भी ‘व्यावहारिक हिन्दी’ कहना ही उचित मानते हैं। डॉ. हरदेव बाहरी इसे ‘दप्तरी भाषा’ कहते हैं तो डॉ. कैलाश चन्द्र भाटिया ‘कामकाजी हिन्दी’, लेकिन डॉ. नगेन्द्र, डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा और डॉ. मोटूरि सत्यनारायण इसे ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी कहने के पक्ष में हैं। डॉ. ब्रजेश्वर वर्मा तो रमाप्रसन्न नायक के इस प्रश्न कि ‘क्या निष्पयोजन हिन्दी भी होती हैं’, का उत्तर देते हुए कहते हैं कि निष्पयोजन हिन्दी कोई चीज़ नहीं है लेकिन प्रयोजनमूलक विशेषण उसके व्यावहारिक पक्ष को उजागर करने के लिए प्रयुक्त किया गया है। डॉ. नगेन्द्र ने भी ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ के पक्ष में ही अपना मत व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रयोजनमूलक हिन्दी के विपरीत अगर कोई हिन्दी है तो वह निष्प्रयोजनमूलक नहीं, वरन् आनन्दमूलक हिन्दी है। आनन्द व्यक्ति सापेक्ष्य है और प्रयोजन समाज सापेक्ष आनन्द स्वकेन्द्रित होता है। और प्रयोजन समाज की ओर इशारा करता है। यानी डॉ. नगेन्द्र के मुताबिक प्रयोजनमूलक हिन्दी’ का प्रयोग उचित है और इसका जन्म सामाजिक आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप हुआ है। डॉ. मोटूरि सत्यनारायण भी डॉ. नगेन्द्र की तरह ही प्रयोजनमूलक’ शब्द के प्रयोग के ही हिमायती हैं और उन्हीं से मिलती-जुलती बात करते हैं। वे कहते हैं कि जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लायी जाने वाली हिन्दी ही प्रयोजनमूलक हिन्दी’ वे भाषा के दो पक्ष बताते हुए कहते हैं कि एक का सम्बन्ध हमारी सौन्दर्यपूरक अनुभूति से है तो दूसरे का हमारी सामाजिक आवश्यकता और जीवन की उस व्यवस्था से जुड़ा होता है जो व्यक्तिपरक होकर भी समाज सापेक्ष्य होती है जिसका सम्बन्ध मूलतः हमारी जीविका के साथ जुड़ा होता है और उसके निमित्त जो सेवा माध्यम (Service tool) के रूप में प्रयुक्त होता है। भाषा व्यवहार का यह दूसरा पक्ष ही भाषा का प्रयोजनमलक सन्दर्भ है। यानी प्रयोजनमूलक हिन्दी का तात्पर्य हिन्दी के उन विविध रूपों से है जो सेवा-माध्यम के रूप मेंसामने आते हैं। ‘कामकाजी हिन्दी’ का अर्थ तो रोज़मर्रा के  कामकाज के लिए प्रयुक्त हिन्दी है जिसे सामान्य या बोलचाल में ही प्रयोग किया जा सकता है, इसमें कोई वैशिष्ट्य नहीं और न ही ‘व्यावहारिक हिन्दी प्रयोग ही ठीक है क्योंकि इसमें अतिव्याप्ति दोष है क्योंकि रोजाना व्यवहार में प्रयोग की जाने वाली हिन्दी ही व्यावहारिक हिन्दी है। इसमें भी कोई वैशिष्टय नहीं, जबकि ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ का एक विशेष प्रयोजन है।

हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र

मशहूर भाषा वैज्ञानिक डॉ. भोलानाथ तिवारी ने हिन्दी के मुख्य प्रयोजनमूलक रूप सात बताये हैं-

  1. व्यापारी हिन्दी (वाणिज्यिक हिन्दी) इसमें भी मन्डियों की भाषा, सर्राफे के दलालों की भाषा, सट्टाबाज़ार की भाषा आदि कई उपरूप हैं।
  2. कार्यालयी हिन्दी कार्यालय भी कई प्रकार के होते हैं और उनमें भी भाषा के स्तर पर कुछ अन्तर है।
  3. शास्त्रीय हिन्दी – विभिन्न शास्त्रों में प्रयुक्त भाषाएँ भी शब्द के स्तर पर कुछ अलग हैं। इसमें संगीत शास्त्र, काव्यशास्त्र, भाषाशास्त्र, दर्शनशास्त्र, योगशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, विधिशास्त्र आदि की भाषाएँ हैं।
  4. तकनीकी हिन्दी- इंजीनियरी, बढ़ईगिरी, लुहारी, प्रेस, फैक्टरी, मिल आदि की तकनीकी भाषा।
  5. समाजी हिन्दी – इसका प्रयोग सामाजिक कार्यकर्ता करते हैं।
  6. साहित्यिक हिन्दी— इसमें कविता, कलासाहित्य, तथा नाटक की भाषा में अन्तर होता है।
  7. बोलचाल वाली हिन्दी

(1) कार्यालयी हिन्दी ( Official Hindi)- कार्यालयी हिन्दी से तात्पर्य प्रशासनिक क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी से है। इसे कार्यालयी हिन्दी इसलिए कहा जाता है कि सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालयों में उसी में काम होता है। वैसे तो कार्यालय भी कई प्रकार के होते हैं, जैसे सरकारी, अर्ध सरकारी या निजी और हर कार्यालय की अपनी अलग पहचान होती है लेकिन प्रायः सभी कार्यालयों में टिप्पण लिखे जाते हैं। पत्राचार होता है। फाइलों पर नोटिंग की जाती है। टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं। निविदायें आमंत्रित की जाती हैं लेकिन इन सब में जो हिन्दी लिखी जाती है, वह कुछ हटकर होती है। उसका एक बंधा-बंधाया ढाँचा होता है और उसी के अनुसार वह चलती है। कार्यालयी हिन्दी का अपना निश्चित प्रारूप होता है; जिसमें प्रायः परिवर्तन नही होता है।

(2) वाणिज्यिक हिन्दी ( Commercial Hindi)- वाणिज्यिक हिन्दी से मतलब वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी से है। जैसे-

  1. सोने की मांग में कमी, डालर का भाव चढ़ा।
  2. शेयर बाज़ार में रौनक। सेंसेक्स 215 और निफ्टी 67 अंक चढ़ा।
  3. आम आदमी से दूर हुआ खाद्य तेल। दस दिनों में 4 रुपए भाव बढ़े, रियायती दर पर वितरण की योजना फाइलों तक सिमटी।
  4. सुजुकी की ‘मोडरों’ मॉडल कार बाज़ार में लांच हुई।
  5. सट्टेबाजी से बढ़ा कच्चे तेल का दाम।
  6. अभी और बढ़ेगे प्याज के भाव ।

(3) विधिक हिन्दी (Legislative Hindi) विधि या कानून के क्षेत्र में या अदालती कामकाज में जो भाषा इस्तेमाल होती है, उसकी अपनी विशेषता होती है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा अधिनियमों एवं विधेयकों आदि में निम्न प्रकार की हिन्दी लिखी जाती है।

अनुच्छेद 348–

(1) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक (क) उच्चतम न्यायालय में तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सब कार्यवाहियाँ, (ख) जो-

(क) विधेयक, अथवा उन पर प्रस्तावित किये जाने वाले जो संशोधन, संसद के प्रत्येक सदन में पुनः स्थापित किये जायँ उस सब में प्राधिकृत पाठ,

(ख) अधिनियम, संसद द्वारा या राज्य के विधानमण्डल द्वारा पारित किये जायें, तथा जो अध्यादेश राष्ट्रपति या राज्यपाल या राजप्रमुख द्वारा प्रख्यापित किये जायँ, उन सब के प्राधिकृत पाठ तथा

(ग) आदेश, नियम, विनियम और उपविधि इस संविधान के अधीन, अथवा संसद या राज्यों के विधान-मण्डल द्वारा निर्मित किसी विधि के अधीन, निकाले जायँ उन सबके प्राधिकृत पाठ, अंग्रेजी भाषा में होंगे।

विधिक मामलों में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी के कुछ अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं-

(i) अन्तरिती, जो सप्रतिफल है और जिसे सूचना नहीं है।

(ii) व्यादेश को पुष्ट करने या विघटित करने वाला आदेश ।

( 4 ) वैज्ञानिक हिन्दी (Scientific Hindi)- विज्ञान के क्षेत्र में जो हिन्दी प्रयुक्त की जाती है, उसे वैज्ञानिक हिन्दी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत भौतिकी, रसायन, वनस्पतिशास्त्र, जीवविज्ञान और चिकित्सा विज्ञान आदि की भाषा आती है जिसमें विज्ञान की अपनी शब्दावली, वाक्य संरचना तथा विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत है-

(क) एड्स (Aids) के बारे में हाईस्कूल बायोलॉजी की पुस्तक में लिखा है- “इस रोग का नाम उपार्जित प्रतिरक्षा-अभाव संलक्षण (Acquired immuno-deficiency Syndrome) है। यह रोग शरीर में मानव प्रतिरक्षण ह्रास विषाणु (Human Immuno deficiency Virus, HIV) के संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है।” (P.120)

(ख) (Mechanism of Aerobic Respiration) (वायव या आक्सी श्वसून की क्रिया विधि) के अन्तर्गत Glycolysis के बारे में उसी पुस्तक में लिखा है- “ये प्रक्रियाएँ कोशिकाद्रव्य में होती हैं जिसमें ग्लूकोज का एक अणु विर्घोटत होकर पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनाता ग्लूकोज 6 कार्बन परमाणु वाला तथा पाइरुविक अम्ल 3 कार्बन परमाणु वाला यौगिक है। इन प्रक्रियाओं में उत्पन्न ऊर्जा से चार ATP अणुओं का निर्माण होता है, किन्तु अभिक्रियाओं को कराने के लिए दो ATP अणु पहले ही काम में आ चुके होते हैं।

( 5 ) जनसंचार माध्यमों में प्रयुक्त हिन्दी- जनसंचार माध्यमों में इस्तेमाल हो रही हिन्दी की जब बात करते हैं तो उसमें प्रिन्ट, आडियो और आडियो-वीडियो सभी माध्यम शामिल होते हैं। इनमें न्यूज में प्रयुक्त हिन्दी प्रायः सभी माध्यमों में एक सी है, कुछ में अंग्रेज़ी की मिलावट नाममात्र को है तो कुछ में ज्यादा । प्रिन्ट मीडिया में सबसे ज्यादा साहित्य सृजित होता है, उसकी हिन्दी साहित्यिक होती है तो आडियो में रेडियों की साहित्यिक कार्यक्रमों की हिन्दी उससे मिलती-जुलती है। विजुअल मीडिया में फिल्मों में प्रयुक्त हिन्दी बहुत साहित्यिक तो नहीं लेकिन रोजमर्रा वाली हिन्दी से बेहतर होती है। इलैक्ट्रानिक मीडिया पर आने वाले रियलिटी शो की हिन्दी अलग होती है तो धारावाहिकों की अलग। गीत-संगीत पर आधारित कार्यक्रमों में प्रयुक्त हिन्दी अलग होती है तो पैनल डिस्कसंस और बातचीत की हिन्दी अलग।

( 6 ) बैंक में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी— बैंकिंग के क्षेत्र में जिस हिन्दी का प्रचलन है, वह आमतौर पर अंग्रेजी से अनूदित हिन्दी है। अपने बचत खाते से रुपए निकालने की पर्ची हो, उसमें रुपए जमा करने की पर्ची हो, पास बुक हो, चेक बुक हो, बैंक ड्राफ्ट हो, एफडी हो, उन सभी पर जिस प्रकार की हिन्दी लिखी होती है, उसकी प्रकृति हिन्दी होती ही नहीं, सीधे-सीधे अंग्रेज़ी का तर्जुमा होता है। आम आदमी की तो बात ही छोड़ दीजिए उसे अच्छा-खासा पढ़ा-लिखा आदमी नहीं समझ पाता। वह भी पूछ-पूछ कर उसे भरता है।

(7) तकनीकी हिन्दी – तकनीकी क्षेत्र में यानी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में लिखी जाने वाली हिन्दी अलग है। इसके पूर्व विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी के कुछ उदाहरण दिये जा चुके हैं। उसी प्रकार इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में जो हिन्दी लिखी जा रही है, वह भी आसान नहीं जटिल है। इसका कारण भी अनुवाद ही है। एक तो शब्द सामर्थ्य, दूसरे उसके प्रचलन की समस्या है। शब्दकोश भी हैं, शब्दावलियाँ भी लेकिन पढ़ने-पढ़ाने वाले कहते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना-पढ़ाना सरल है, लेकिन हिन्दी में कठिन है।

( 8 ) विज्ञापन में प्रयोग होने वाली हिन्दी (Hindi in advertisement)- हिन्दी जब से बाज़ार की भाषा हुई है, तब से उत्पादों के ज्यादातर विज्ञापन हिन्दी में आने लगे हैं। जनसंचार के जितने साधन हैं, प्रायः सभी में विज्ञापन भी दिये जा रहे हैं। एक तरह से हिन्दी ने अंग्रेजी को धीरे-धीरे पछाड़ दिया है। विज्ञापनों में जो हिन्दी लिखी जा रही हैं, उसे निम्न उदाहरणों से समझा जा सकता है-

  1. झंडू बाम लागाओ, झट से आराम पाओ।
  2. लकी पढ़ो, लकी बनो।
  3. दूध सी सफेदी निरमा से आये, रंगीन कपड़ा भी खिल-खिल जाये।
  4. आयोडेक्स मलिए, काम पर चलिए।
  5. एक बार खाओगे, स्वाद न भूल पाओगे।
  6. बस एक सॉरीडान, सरदर्द में दे आराम।

प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ

भारतीय संविधान में राजभाषा स्वीकृत होने के बाद हिन्दी के व्यवहारपरक पक्ष की ओर विद्वानों का ध्यान गया। विद्वानों का विचार था कि जब प्रयोग और कामकाज के स्तर पर हिन्दी का व्यवहार नहीं होगा, तब तक इसकी प्रगति अधूरी ही मानी जायेगी। बहरहाल, इस कल्पना ने ‘प्रयोजनमूलक हिन्दी’ के रूप में मूर्त रूप अख्तियार किया, हिन्दी सदा ही संघर्ष की भाषा रही हैं। इसने अपना जीवत्व सदैव अपने जन से प्राप्त किया, अपने समाज से, राज से नहीं। यह कितना ही विस्मयकारी और चकित कर देने वाला तथ्य है कि इस देश की बहुलतावादी संस्कृति परम्परा और विलक्षणता का अपूर्व समंजन अपने भीतर करने वाली हिन्दी को यहाँ की राजकाज की भाषा बनने का अधिकार नहीं मिला। अंग्रेजी, फारसी और कभी-कभार उर्दू ने निरन्तर इसे दबाया-दबोचा। हाँ, साहित्यिक हिन्दी में यहाँ के कवियों ने अपनी स्मृतियों और अहसास अवश्य व्यक्त किया है।

प्रयोजनमूलक हिन्दी की प्रमुख विशेषताऐं निम्न हैं—

(1) प्रयोजनमूलक भाषा के शब्दों का एक निश्चित अर्थ होता है। जैसे अँगरेजी के Act शब्द का सामान्य अर्थ काम करना है, परन्तु कानून की भाषा में इसका अर्थ कानून/ अधिनियम है और कानून के क्षेत्र में सर्वत्र इसका यही निश्चित अर्थ होगा।

(2) प्रयोजनमूलक भाषा के शब्दों का प्रयोग एक सीमित क्षेत्र में होता है, इसीलिए प्रत्येक क्षेत्र की प्रयोजन मूलक भाषा की पारिभाषिक शब्दावली अलग होती है। बीमा, बैंक, प्रशासन, न्यायालय आदि में काम करने वाले कर्मचारियों/ अधिकारियों को इनसे संबंधित शब्दावली का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक होता है।

(3) सामान्य बोलचाल की भाषा ही विविध प्रयोजनीय क्षेत्रों की पारिभाषिक शब्दावली के प्रयोग से प्रयोजन मूलक भाषा का रूप धारण कर लेती है। सामान्य बोलचाल की भाषा के व्याकरणिक प्रतिमानों को सुरक्षित रखते हुए भी यह उससे कुछ भिन्न भाषा रूप में व्यवहृत की जाती है।

(4) प्रयोजनमूलक भाषा न तो अलंकार प्रधान होती है, न कहावतों और मुहावरों से लदी हुई लच्छेदार भाषा होती है। यह सपाट, सार्थक और नीरस भाषा होती हैं, क्योंकि इसका उद्देश्य आनन्द प्राप्ति न होकर, यथार्थ परिस्थितियों पर आधारित कार्य व्यापार होता है।

प्रयोजन मूलक हिन्दी की परिव्याप्ति

भाषा मानव जीवन की अनिवार्य सामाजिक वस्तु और व्यावहारिक चेतना है, जिसके दो प्रमुख आयाम अथवा कार्य होते हैं—(1) सौन्दर्य मूलक (2) प्रयोजन मूलक। भाषा के प्रयोजन मूलक आयाम का संबंध हमारी सामाजिक आवश्यकताओं और जीवन व्यवहार से है। यह व्यक्तिपरक होते हुए भी समाज सापेक्ष्य सेवा माध्यम रूप में प्रयुक्त होती है। भूमण्डलीकरण के इस युग में सामाजिक व्यक्ति के क्रियाकलापों में पर्याप्त क्षेत्र विस्तार हुआ है। आये दिन जीवन के नये-नये व्यवहार क्षेत्र प्रकाश में आ रहे हैं। इन व्यवहार क्षेत्रों से संबंधित नवीन तकनीकी और वैज्ञानिक खोजें पढ़ने-पढ़ाने वाले कहते हैं कि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना-पढ़ाना सरल है, लेकिन हिन्दी में कठिन है।

प्रकाश में आ रही हैं। आज की भाषा को इन सभी का समाहार करके विकसित होना पड़ रहा है। बाजारवाद एवं नयी तकनीकी ने पूरे विश्व को समेट कर एक गाँव बना दिया है। विश्वभर के देशों का ज्ञान-विज्ञान संबंधी परस्पर विनिमय बढ़ रहा है। विविध व्यावहारिक सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों का दबाव भाषा को भी विश्वजनीन रूप देना चाहता है। ये सारे दबाव व प्रभाव प्रयोजन मूलक भाषा को जन्म दे रहे हैं।

वर्तमान में प्रयोजनमूलक हिन्दी का स्वरूप विस्तार त्वरित गति से हो रहा है। सामान्य हिन्दी की नींव पर प्रयोजन मूलक हिन्दी का भव्य भवन निर्मित हो रहा है। पठन-पाठन में भी साहित्यिक हिन्दी के समानान्तर प्रयोजन मूलक हिन्दी का महत्व बढ़ रहा है। यह आवश्यक भी है; क्योंकि शिक्षित होने के बाद युवक-युवतियों को किसी न किसी क्षेत्र में काम करना पड़ रहा है, अतः इनके लिए चुने गये क्षेत्र की प्रयोजन मूलक भाषा का ज्ञान अनिवार्य हो गया है। भारत में सबसे अधिक नौकरियाँ दफ्तरों में मिलती हैं। इनके कामकाज का एक तरीका होता है और इस तरीके की अभिव्यक्ति करने वाली एक अलग प्रकार की भाषा भी होती है।

इस समय प्रयोजनमूलक हिन्दी का व्यवहार क्षेत्र बढ़ रहा है। विज्ञान, वाणिज्य, विज्ञापन तथा विविध संचार माध्यमों की अपनी एक निजी शब्दावली प्रकाश में आ रही है। इन सभी क्षेत्रों में प्रयोजनीय भाषा का स्वरूप भी अलग-अलग होता है। अतः हिन्दी के इस प्रयोजनमूलक रूप का अध्ययन अनिवार्य हो गया है। प्रयोजन मूलक हिन्दी का ज्ञान समाज की रोजगार अथवा जीविका संबंधी समस्या का हल प्रस्तुत करने में सहायक है।

प्रयोजनमूलक हिन्दी का नवविकसित रूप सामान्य हिन्दी को एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा भी दिला सकता है, परन्तु शर्त यह है कि इसके प्रयोजनीय रूप निर्माण में अनुवाद की प्रवृत्ति से बचा जाये। विश्व के विविध व्यावहारिक क्षेत्रों से विविध भाषाओं के माध्यम से आ रही शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार किया जाये। हिन्दी की लिपि देवनागरी में यह शक्ति प्रकृति प्रदत्त है। इस पद्धति से विकसित प्रयोजन मूलक हिन्दी निश्चित ही विश्वभाषा (Global Language) बन सकती है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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