कफ़न कहानी की विशेषतायें कहानी के तत्वों के आधार पर बताइये।
‘कफन कहानी मुंशी प्रेमचन्द्र की प्रसिद्ध कहानी है। इसमें प्रेमचन्द्र ने सर्वहारा वर्ग के लोगों की दयनीय स्थिति का वर्णन किया है। इस कहानी के प्रमुख पात्र यद्यपि काम चोर और निकम्में हैं तथा उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय है। उनके घर पर खाने के लिए एक भी दाना नहीं है।
यहीं नहीं मरणोपरान्त दाह-संस्कार के लिए उनके पास ‘कफन’ के भी पैसे नहीं हैं। “विद्वानों ने कहानी के जो सर्वमान्य तत्व स्वीकार कियें है, वे है-
(1) कथावस्तु, (2) पात्र और चरित्र-चित्रण, (3) सम्वाद, (4) देश काल और वातावरण, (5) भाषा-शैली, (6) उद्देश्य। यहाँ हम इन्हीं तत्वों के आधार पर ‘कफन कहानी की समीक्षा करेगे।
(1) कथावस्तु या कथानक- ‘कफन की कथा संक्षिप्त में इस प्रकार हैं- घीस और माधव पिता-पुत्र हैं दोनों निर्धन श्रमिक हैं। दोनों अलाव के पास बैठे आलू भून-भून कर खा रहें हैं। झोंपड़ी के भीतर माधव की पत्नी बुधिया प्रसव पीड़ा से छटपटा रही है। दोनों ही दो दिन से भूखें है और इस डर से कहीं कोई सा भी रुग्ण स्त्री को देखने जाये तो दूसरा सारे आलू साफ न कर जायें, वहीं पर बैठे-बैठे आलू खाते रहते हैं। दोनो रातभर बाते करते रहते हैं और सुबह जाकर देखते हैं तब तक बुधिया दम तोड़ चुकी होती है। दोनो रोतें-पीटतें है जमीदार और गाँव वाले चन्दा करके ‘कफन’ के लिये रुपयें एकत्रित करके इन्हें देते हैं। दोनों कफन लेने की बजाय मधुशाला में जाकर शराब पीते है और अपने मन पसन्द का खाना खाते हैं और नशे में मदमस्त होकर नाचते कूदतें हुए गिर पड़ते हैं। प्रारम्भ में नाटकीयता धीरे-धीरें स्वाभविकता की ओर उन्मुख होती जाती है। जब वे कफन खरीदने की बजाय मधुशाला घुस में जाते हैं तो कथावस्तु में एक नया मोड़ आ जाता है। यहाँ कथावस्तु का उत्कर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। कथावस्तु में रोचकता, गतिशीलता देखते ही बनती है इस प्रकार कथावस्तु की दृष्टि से कफन पूरी तरह सफल है।
( 2 ) चरित्र चित्रण- कफन’ कहानी में मुख्य पात्र दो है- घीसू और माधव। दोनों पिता-पुत्र हैं दोनो काम चोर, निकम्में और झूठे हैं। वे अत्यन्त गरीब हैं और उन्हें कई-कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता है प्रेमचन्द्र ने दोनों का चरित्र-चित्रण बहुत कुशलता से किया हैं। दोनो का चरित्र-चित्रण करते हुए प्रेमचन्द्र ने लिखा है। “अगर दोनों साधु होते तो उन्हे सन्तोष और धैर्य के लिए संयम और नियम की बिल्कुल आवश्यकता न होती, यह तो उनकी प्रकृति थी। विचित्र जीवन था। इसका। घर में मिट्टी के दो-चार बर्तनों के सिवाय कोई सम्पत्ति नहीं। फटे चीथड़ों से अपनी नग्नता को ढाँके हुए जीवन-यापन किये जाते हैं संसार की चिन्ताओं से मुक्त कर्ज से लदे हुए गालियाँ भी खातें, मार भी खातें, मगर कोई गम नहीं दीन इतने कि वसूली की बिलकूल आशा न होने पर भी लोग इन्हें कुछ-न-कुछ कर्ज दे देते थे। मटर, आलू की फसल में दूसरे के खेतों से मटर या आलू उखाड़ लाते और भून-भान कर खा लेतें, या दस-पाँच ऊख उखाड़ लातें और रात को चूसते। घीसू ने इसी आशा दृष्टि से साठ साल की उम्र काट दी और माधव भी सपूत बेटे की भाँति बाप ही के पद चिन्हों पर चल रहा था, बल्कि उसका नाम और उजागर कर रहा था। “इस प्रकार का चरित्र पाठकों के हृदय में घृणा उत्पन्न करता है किन्तु प्रेमचन्द्र ने इस चरित्र को न केवल यथार्थ के अणुओं से गढ़ा है बल्कि करुणा-मूलक व्यंग्यात्मक ढंग से तराशा भी है।
(3) कथोपकथन (संवाद)- कथोपकथन की दृष्टि से कफन’ कहानी पूरी तरह से सफल है। यहाँ सम्वाद चरित्र रेखाओं को और उभारतें हैं। संक्षिप्त, गरिमा और प्रभावान्वित सभी दृष्टियों से सम्वाद कहानी की संवेदना को सघन और मार्मिक बनातें हैं। घीसू और माधव के चरित्र की निलज्जता, उसके भीतर निहित अबाध शोषण की पीड़ा प्रस्तुत सम्वाद में कितने सुन्दर रूप में अभिव्यक्त हुई हैं-
“दुनिया का दस्तूर है, नहीं तो लोग बामनों को हजारों रुपयें क्यों दे देते है? कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं।”
“बड़े आदमियों के पास धन है, फूँकें। हमारे पास फूँकने को क्या है ?”
लेकिन लोगों को क्या जवाब दोगे? लोग पूंछेंगे नहीं, ‘कफन’ कहाँ है?
घीसू हँसा-हम कह देंगे कि रुपये कमर से खिसक गये। बहुत ढूँढा मिलें नहीं। लोगो को विश्वास नहीं आयेगा, लेकिन फिर वही रुपये देंगे।
माधव भी हँसा- इस अपेक्षित सौभाग्य पर। बोला- बड़ी अच्छी थी बेचारी मरी तो खूब खिला-खिला कर।”
यहाँ दोनो की निर्लज्जता और उसमें घुलें पीड़ा के एहसास ने इस संवाद को अभूतपूर्व बना दिया है।
(4) देशकाल और वातावरण- देश काल और वातावरण कहानी को एक अनिवार्य विश्वासनीयता प्रदान करता हैं। दरअसल देश काल और वातावरण का परिवेश में ही अन्तर्भाव हो जाता है। देशकाल और वातावरण की दृष्टि से कफन कहानी पूरी तरह से सार्थक है। लेखक ने वातावरण निर्माण पर विशेष ध्यान दिया है। मधुशाला का यह दृश्य देखिये। “ज्यों -ज्यों अंधेरा बढ़ता था और सितारों की चमक तेज होती थी, मधुशाला की रौनक भी बढ़ती थी कोई डींग मारता था, कोई खाता था, कोई अपने संगी के गले लिपटा जाता था। कोई अपने दोस्त के मुँह में कुल्लड़ लगाये देता था। वहाँ का वातावरण में सरूर था, हवा में नशा कितने तो यहाँ आकर चुल्लू मे मस्त हो जाते थे। वे जीते हैं या मरते हैं या न जीतें हैं न मरते हैं।”
कहने का तात्पर्य है कि कहानी में देश काल और वातावरण का कहानीकार ने अत्यन्त मार्मिक अंकन किया है।
( 5 ) भाषा- शैली- प्रत्येक साहित्य विधा की भाषा का एक अपना मिजाज़, होता है। इसलिये यदि हम तुलना करें तो पायेंगे कि उपन्यास की भाषा में जहाँ विस्तार और स्फीति होती है, वहाँ कहानी की भाषा में घनत्व और गरिमा होती है। ‘कफन’ की भाषा ने पहली बार यथार्थवाद की पथरीली भूमि पर अपने पैर जमायें भाषा की पात्रानुकूलता, यथार्थपरकता, संप्रेक्षण-क्षमता देखते ही बनती है। भाषा की व्यंग्यात्मकता का एक उदाहरण प्रस्तुत है – “दोनो इस वक्त शान से बैठे पूड़ियाँ खा रहें थें जैसे जंगल में कोई शेर अपना शिकार उड़ा रहा हो। न जबाबदेही का खौफ था, न बदनामी की फिक्र । इन सब भावनाओं को उन्होंने बहुत पहले से जीत लिया था। “यहाँ एक ओर घीसू और माधव के प्रति हमारा मन वितृष्णा से भर उठता है तो दूसरी ओर उनके अवाध शोषण से हम करुणाभिभूत हो जाते हैं। यह भाषा की शक्ति का ही प्रमाण है।
( 6 ) उद्देश्य और संवेदना- कफन कहानी उस अर्थ में उद्देश्यमूलक नहीं है जिस अर्थ में प्रेमचन्द्र की पूर्व की कहानियाँ उद्देश्यमूलक हुआ करती थीं। प्रेमचन्द्र ने यहाँ यथार्थ को सर्जनात्मक रूप से ग्रहण किया है। कफ़न कथानक से अधिक संवेद्य घटना पर आधृत है, जिसमें विषमतामूलक समाज की विकृति पर प्रकाश डाला गया है। इस कहानी में सामाजिक व्यवस्था पर कहानीकार ने कटु और तीव्र व्यंग्य करना चाहा है। पूँजीवादी शोषण के नीचे दबा मनुष्य किस प्रकार अमानवीय हो जाता है। यही प्रस्तुत कहानी में प्रेमचन्द्र ने बताना चाहा है। इस प्रकार कहानी- कला के सभी तत्वों पर आलोच्य कहानी पूरी तरह से सफल है।
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