कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ तथा क्षेत्र (Meaning and Scope of Agricultural Economics)

कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ तथा क्षेत्र (Meaning and Scope of Agricultural Economics)
कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ तथा क्षेत्र (Meaning and Scope of Agricultural Economics)

कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ तथा क्षेत्र (Meaning and Scope of Agricultural Economics)

कृषि अर्थशास्त्र कृषि में संलग्न मनुष्यों की धन कमाने और धन व्यय करने की ओिं से उप पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है

-हिवाई

कृषि का अर्थ (Meaning of Agriculture)

‘कृषि’ शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर ‘Agriculture’ लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘Agri’ (खेत) तथा ‘Culture’ (खेती) से मिलकर बना है। इस प्रकार कृषि का शाब्दिक अर्थ हुआ भूमि पर खेती करना

साधारण बोलचाल की भाषा में कृषि से तात्पर्य भूमि को जीतने के विज्ञान एवं कला से है किन्तु अर्थशास्त्र में कृषि’ की अवधारणा का प्रयोग विस्तृत अर्थ में किया जाता है। इस दृष्टि से कृषि में फसलें उगाने के साथ-साथ पशुपालन को भी शामिल किया जाता है।

कृषि के अन्तर्गत निम्न दो प्रकार की क्रियाएं शामिल की जाती है-

(1) प्राथमिक क्रियाएँ (Primary Activities) इनमें खाय फसलें (food crops), जैसे अनाज, दाल, सब्जियाँ तथा अखाय या व्यापारिक फसलें (non-food or commercial crops) जैसे गन्ना, कपास, तिलहन, पटसन आदि के उगाने को शामिल किया जाता है।

(2) गीण क्रियाएँ (Secondary Activities)- इनमें पशुपालन, मुर्गी पालन, डेयरी फार्मिंग, वागान फसलें आदि से सम्बन्धित क्रियाएँ शामिल की जाती हैं।

विश्व में कृषि का विकास 1000 ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ। वस्तुतः कृषि के विकास का इतिहास मानव सभ्यता के विकास से जुड़ा हुआ है। इस दृष्टि से कृषि सभी सभ्यताओं की जननी है।

कृषि अर्थशास्त्र का अर्थ (Meaning of Agricultural Economics)

‘कृषि अर्थशास्त्र अध्ययन का कोई स्वतन्त्र विषय नहीं है बल्कि यह अर्थशास्त्र की एक शाखा मात्र है। ‘कृषि’ शब्द जोड़ देने का तात्पर्य केवल यह है कि अर्थशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत केवल कृषि सम्बन्धी आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, ‘कृषि अर्थशास्त्र’ में मनुष्य की उन समस्त आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो साधारणतया कृषि व्यवसाय से सम्बन्धित होती हैं।

परिभाषाएँ (Definitions) – विभिन्न लेखकों ने कृषि अर्वशास्त्र को निम्न ढंग से परिभाषित किया है-

(1) श्री जोजियर के शब्दों में, “कृषि अर्थशास्त्र कृषि विज्ञान की वह शाखा है जो कृपक के संसाधनों के सम्बन्धों को नियमित करने के ढंग का विवेचन करती है ताकि कृषि व्यवसाय में अधिकतम समृद्धि प्राप्त की जा सके।

(2) डॉ० ए० बी० मिश्र के अनुसार, “कृषि अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जिसमें अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों और प्रणालियों का प्रयोग कृषि उद्योग की विशिष्ट दशाओं में किया जाता है। कृषि अर्थशास्त्र कृषि में मनुष्य की आय प्राप्त करने और उसे व्यय करने की क्रियाओं से उत्पन्न सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

(3) प्रो० ग्रे (Gray) के शब्दों में, “कृषि अर्थशास्त्र वस्तुतः अर्थशास्त्र या राजनीतिक अर्थव्यवस्था के सामान्य विषय की एक शाखा है। इसे ऐसे विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों तथा विधियों को कृषि उद्योग की विशिष्ट दशाओं पर लागू किया जाता है।

(4) हावर्ड के मतानुसार, “कृषि अर्थशास्त्र को सामान्य अर्थशास्त्र के नियमों के कृषि की कला तथा व्यवसाय में प्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत कृषि व्यवसाय की समस्याओं का अध्ययन करके उन्हें दूर करने हेतु उपाय सुझाए जाते हैं ताकि कृषकों का अधिकतम कल्याण हो सके।

कृषि अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Agricultural Economics)

‘कृषि अर्थशास्त्र’ किसी भी देश की कृषि व्यवसाय की समस्याओं का अध्ययन करता है तथा उन समस्याओं का व्यावहारिक हल प्रस्तुत करता है। दूसरे शब्दों में, “कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत उत्पादन, उपभोग, विनिमय, वितरण तथा लोक वित्त के क्षेत्र में कृषि व्यवसाय की समस्याओं का अध्ययन करके उनके समाधान के लिए उपाय सुझाए जाते हैं।”

श्री एच० सी० एम० केस के विचारानुसार, कृषि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में फार्म प्रबन्ध, विपणन, सहकारिता, भू-धारण पद्धतियों, ग्रामीण कृषि साख, कृषि नीति, कृषि मूल्यों का विश्लेषण, कृषि के इतिहास एवं भूगोल को सम्मिलित किया जाता है। ‘कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम कृषि व्यवसाय को मानव जाति की प्रमुख आर्थिक क्रिया मानकर भूमि तथा प्राकृतिक सम्पदा, सिंचाई, जलवायु, बीज, पौध-संग्रहण, विपणन, परिवहन, ग्रामोद्योग, कुटीर उद्योग आदि सम्बन्धी घटकों की वर्तमान स्थिति, सरकारी नीति तथा प्रगति का मूल्यांकन करके कृषि के भावी विकास के लिए उपाय सुझाते हैं। दूसरे शब्दों में, कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम केवल आर्थिक घटकों (factors) का ही अध्ययन नहीं करते यत्कि कृषि-समस्याओं के समाधान हेतु व्यावहारिक सुझाव भी प्रस्तुत करते हैं।

कृषि विज्ञान का विकास होने से कृषि क्षेत्र में उत्पादन की नई-नई सम्भावनाएँ उत्पन्न हुई है। कृषि अर्थशास्त्र इस नवीनतम ज्ञान को सुलभ बनाकर कृषकों को नई प्रेरणा व स्फूर्ति प्रदान करता है। साथ ही कृषि अर्थशास्त्र कृषि अनुसंधान तथा तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करता है।

भारत में कृषि व्यवसाय अत्यन्त पिछड़ी हुई अवस्था में है जिस कारण यहाँ ‘कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन न केवल लाभप्रद बल्कि आवश्यक भी है। कृषि के मोर्चे पर जीतना हमारे लिए परमावश्यक है क्योंकि देश की उन्नति तथा समृद्धि कृषि के विकास तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि पर ही निर्भर है। खायाब संकट, बढ़ती हुई जनसंख्या आदि गम्भीर समस्याओं के समुचित समाधान के लिए कृषि का समुचित विकास अनिवार्य है। ‘कृषि अर्थशास्त्र’ हम कृषि सम्बन्धी समस्याओं से अवगत कराता है. तथा उनके समाधान हेतु व्यावहारिक सुझाव प्रदान करता है। अतः भारतीय कृषि के उत्थान के लिए कृषि अर्थशास्त्र का समुचित अध्ययन आवश्यक है।

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Anjali Yadav

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