गबन उपन्यास के आधार पर रमानाथ का चरित्र चित्रण कीजिए।
गबन उपन्यास का प्रमुख पुरुष पात्र रमानाथ है। उपन्यास का नायक होने के साथ साथ वह वर्तमान युग के युवा वर्ग का प्रतिनिधि भी है जिसके माध्यम से उपन्यासकार ने युवा वर्ग का चरित्र-चित्रण किया है। रमानाथ एक ऐसा नायक है जिसमें कुछ अच्छाई है तो कुछ मानव जनित सहज दुर्बलताएं भी हैं। आरम्भ में यह पात्र एक दुर्बल व्यक्तित्व, आडंबर युक्त, झूठ से ओत-प्रोत, मिथ्या प्रदर्शन, फैशनपरस्त एवं अहंकार से युक्त हमारे समक्ष आता है वह मुंशी दयानाथ के तीन पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र है। उसका व्यक्तित्व आकर्षक है। जालपा उसकी पत्नी है जो उसके आकर्ष व्यक्तित्व से प्रभावित है। स्वभाव से रामनाथ आलसी, दायित्वविहीन है। उसका ध्यान ठाठ-बाट, घूमने-फिरने की ओर अधिक है। दफ्तर में उसकी स्थिति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की है। रमानाथ के चरित्र की विशेषता निम्नवत् है-
विलासोन्मुखी– युवावस्था से रमानाथ सैर-सपाटे, खेल-कूद एवं फैशन परस्ती में ही लगा रहा, दोस्तों से उधार कपड़े लेकर पहनना, उनकी गाड़ी पर घूमना, लोगों पर इन विलास वस्तुओं से अपना झूठा रौब जमाना यह सब उसके स्वभाव में शामिल है। घर के दायित्व में के प्रति गैर जिम्मेदारी का भाव उसके पिता दयानाथ को बहुत खलता था। उसकी यह उसकी बरबादी का कारण बनती है। जीवन के झंझावातों में उलझकर जब उसकी किस्मत उसे कलकत्ता ले गई वहाँ भी वह चाय की दुकान के चलते ही फिर उसी दिशा में बढ़ गया। जोहरा से उसका संबंध इसकी कारण जुड़ता है। उसे जब भी अवसर मिलता वह विलासिता के समंदर में डुबकी लगाता रहता।
संकोची प्रवृत्ति – रमानाथ सदैव अपनी संतोषी प्रवृत्ति के कारण ही अनेक संकटों में पड़ता है। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी ही यह है कि वह अपने मन की बात निकट से निकट व्यक्ति को भी नहीं बताता। यथा घर के आर्थिक हालात वह संकोचवश अपनी पत्नी जालपा से भी नहीं कहता, इसी का परिणाम है कि वह गबन जैसी घटना को अंजाम दे बैठता है। यदि वह जालपा को घर के सही हालातों से अवगत करा देता तो यह स्थिति कभी न आती। न ही जालपा उससे गहनों की माँग करती। उसी तरह वह जज के सामने अपनी झूठी गवाही की बात कहने में संकोच करता है। जालपा द्वारा धैर्य बंधाने पर कि जज के सामने पुलिस के हथकंड़ों का भण्डा फोड़ करे, अपनी झूठी गवाही की बात स्वीकारे, लेकिन अपनी संकोची प्रकृति के कारण वह चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता।
कायरता – रमानाथ स्वयं ही उलझनों को आमंत्रण देकर वह उनका सामना करने के बजाय उनके सामने घुटने टेक देता है। मुसीबतों से भागना उसका स्वभाव है। पहले वह जालपा के सामने घर के सच्चे हालात रखने से भागता है। फिर जालपा की खुशी के लिए गहने उधार लेकर मुसीबत को न्यौता देता है, उससे बचने के लिए रतन के जेवर दाँव पर लगाता है, सरकारी पैसों का गबन करता है और इन हालातों का सामना करने के बजाय भागकर कलकत्ता चला जाता है। वहाँ पुलिस से बचने के चक्कर में वह झूठी गवाही दे बैठता है। तब जालपा उसकी कायरता पर उसे धिक्कारती है। इस तरह रमानाथ तमाम उम्र अपनी कायरता का शिकार बना रहा।
अकर्मण्य और आवारा युवक- कथानक के प्रारंभ में रमानाथ एक अकर्मण्य और आवारा युवक के रूप में पाठकों के समक्ष आता है। उसे अच्छे व फैशनेबल परिधान पहनने का बेहद शौक है। अपने आत्मप्रदर्शन की तृप्ति के लिए वह मित्रों से वस्त्र व अन्य वस्तुएँ माँगकर अपनी अभिलाषा पूरी करता है। उसकी यही आडंबर प्रियता और विलासिता का शौक ही उसे जीवन में अनेक कष्टों में डाल देता है। उसकी अकर्मण्यता से उसके पिता बेहद परेशान हैं। युवा पुत्र पिता का बाँया हाथ होता है। यही अपेक्षा मुंशी दयानाथ रमानाथ से रखते हैं कि युवा होकर वह अपना दायित्व बोध संभाले, किन्तु रमानाथ उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता।
अनन्य प्रेमी- प्रत्येक व्यक्ति में जीवन की तमाम बुराइयों के साथ-साथ कुछ अच्छाइयाँ भी होती हैं। निःसंदेह रमानाथ संवेगी एवं कायर पुरुष है। मिथ्या आडंबर, आत्मप्रदर्शन उसकी कमजोरी है किन्तु वह अपने दाम्पत्य को लेकर सदैव गंभीर रहा। जालपा के प्रति अनुराग ही था जो वह सर्राफे से आभूषण उधार ले आया। वह जालपा से सच्चा प्रेम करता है इसलिए उसकी प्रत्येक इच्छा पूरी करना चाहता था। उसे दुखी नहीं देखना चाहता था। उसकी माँ ने कहा था कि गले में विवाह का जुँआ पड़ जाए तो सब ठीक हो जाएगा। जो एक बार तो रमानाथ के बारे में सच ही साबित होती है कि विवाह के पश्चात रमानाथ को दायित्वबोध होता है और वह नौकरी करता है, यद्यपि छोटे पद पर नौकरी करना उसे पसंद नहीं है किन्तु वह जालपा के लिए कुछ करना चाहता है उसे खुश रखना चाहता है।
निर्बल चरित्र- रमानाथ का लापरवाहपूर्ण व्यक्तित्व उसके चरित्र को निर्बल बनाता हैं। बड़ा बेटा होने के नाते घर के प्रति उसकी जिम्मेदारियाँ हैं किन्तु अपने मिथ्या प्रदर्शन, डींग हाँकने की प्रवृत्ति के चलते वह घर में अपने सम्मान को खो चुका है। यहाँ तक कि पत्नी द्वारा उसके विवाह करने के प्रस्ताव को भी दयानाथ यह कहकर ठुकरा देते हैं कि, “जो आदमी अपने पेट की फ्रिक नहीं कर सकता, उसका विवाह करना मुझे तो अधर्म सा मालूम होता है।” उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि रमानाथ कथानक का नायक अवश्य है परन्तु उसके व्यक्तित्व का कोई निजत्व नहीं है उसमें एक नायक के उज्जवल पक्ष को साबित करने के कोई गुण नहीं हैं। वह दुर्बल चरित्र का व्यक्ति है।
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