गबन के रतन नामक पात्र की चारित्रिक विशेषता पर प्रकाश डालिए।
रतन की चारित्रिक विशेषता- गबन उपन्यास में रतन वकील इन्द्रभूषण की पत्नी है। पहली पत्नी की मृत्यु के काफी समय बाद वकील साहब रतन से शादी करते हैं। रतन एक गरीब परिवार की लड़की थी और इसलिए उसके मामा ने उसका विवाह वृद्ध वकील से कर दिया था। रतन और वकील साहब की उम्र में इतना अन्तर था कि जब जालपा पहली बार उससे मिलने गयी तो उसने रतन को वकील साहब की बेटी समझा। ऐसी अवस्था में कोई भी स्त्री प्रसन्न नहीं रह सकती और उसका पति से असंतोष होना स्वाभाविक ही है। किन्तु रतन को इस स्थिति में रहकर भी क्षोभ नहीं होता और वह पूरे मन से वकील साहब की सेवा करती है तथा उन्हें प्रसन्न रखने की चेष्टा करती है। वकील साहब को भी रतन से बड़ा स्नेह है और वह रतन की प्रत्येक इच्छा पूरी करने का प्रयत्न करते हैं। पति के वृद्ध होने पर भी रतन के मन में कभी पर पुरुष की बात नहीं आती। केवल एक स्थान पर उसकी हल्की सी दुर्बलता व्यक्त होती है जबकि वह रमानाथ के विषय में एक अनुचित प्रकार का भाव मन में लाती है। गबन उपन्यास में रतन की निम्न विशेषताओं का उल्लेख किया गया है-
आभूषण-प्रेम- गबन उपन्यास में यह दर्शाया गया है कि अन्य स्त्रियों की भांति रतन को भी गहनों से प्रेम है और वह जालपा के कंगनों को देखकर उन पर इतनी मोहित होती है कि वह वैसे ही कंगन बनवाने के लिए रमानाथ को रुपये देती है। जब रमानाथ वे रुपये अपने हिसाब में दे देता है और जौहरी नये कंगन बनाने से इंकार कर देता है, तब रतन बार-बार मांगने पर भी रमा उसे टालने का प्रयास करता है। तब रतन को यह संदेह होता है कि रमा उसके रुपये खर्च तो नहीं कर दिये। इसलिए यहां रतन के चरित्र की एक दुर्बलता व्यक्त होती है। जब जालपा उसे रुपये की थैली देती है तब उसे संतोष हो जाता है। लेकिन रतन जालपा के आग्रह पर रुपये ले जाती है, जिसके परिणामस्वरूप रमा को मुसीबतें उठानी पड़ती है। रमा के चले जाने के बाद रतन का हृदय जालपा के लिए दया और स्नेह से भर उठता है। उस समय यह एक सच्ची सहेली के रूप में जालपा के मन को बहलाने की कोशिश करती है। उसे खुश रखने का प्रयास करती है और एक सच्ची सखी के कर्तव्य का निर्वाह करती है।
आत्म सम्मान- रतन के चरित्र में जहाँ आदर्श पत्नी के गुण विद्यमान हैं, वहीं उसके चरित्र में आत्मसम्मान की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। दूसरा प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि जब मणिभूषण कोठी बेचने की बात कहता है और उसे माहवारी खर्च देने की बात करता है तो उसका आत म्मान उठता है और वह सब कुछ त्याग कर निकल पड़ती है। वह सोचती है “मैं क्यों अपने को अनाथिनी समझ रही हूँ? क्यों दूसरे के द्वार भीख मांगूं? संसार में लाखों स्त्रियां मेहनत-मजदूरी कर जीवन निर्वाह करती हैं। क्या मैं कोई काम नहीं कर सकती? मैं कपड़े नहीं सी सकती ? “
पति सेवा- गबन उपन्यास में रतन के चरित्र का सबसे अधिक प्रभावशाली पक्ष यह है कि वह एक आदर्श भारतीय पत्नी के कर्तव्य का पालन करती है। पति के बीमार होने पर वह जिस लगन से उसकी सेवा करती है उसे देखकर मन बड़ा प्रभावित होता है। पति की मृत्यु के बाद वह संसार से उदासीन-सी हो जाती है। उसकी इस उदासीनता का अनुचित लाभ उठाकर मणिभूषण उसकी सारी जायदाद पर अधिकार कर लेता है। लेकिन वह किसी बात की चिंता नहीं करती।
इस प्रकार रतन, रमा आदि के साथ रहने लगती है और वहीं एक संध्या को उसकी मृत्यु हो जाती है। इसका प्रभावशाली वर्णन लेखक ने इन पंक्तियों में किया है-“रतन की मृत्यु का शोक वह शोक नहीं था, जिसमें आदमी हाय-हाय करता है, बल्कि वह शोक जिसमें वह मूक रुदन करते हैं, जिसकी याद कभी नहीं भूलती, जिसका बोझ दिल से कभी नहीं उतरता।”
यहां रतन के करुण अंत को भुला देना सरल काम नहीं है। रतन के चरित्र द्वारा लेखक ने तत्कालीन भारतीय समाज की दो महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर संकेत किया है- बेमेल विवाह समस्या की ओर, जहाँ लड़की के घर वाले दरिद्रता के कारण उसकी शादी किसी धनवान वृद्ध से कर देते हैं तथा दूसरा, भारतीय जीवन में विधवाओं का अन्त कितना शोकमय होता है।
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