कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

ग्रामीण समस्याओं का समाधान (Solution of Rural Problems)

ग्रामीण समस्याओं का समाधान (Solution of Rural Problems)
ग्रामीण समस्याओं का समाधान (Solution of Rural Problems)

ग्रामीण समस्याओं का समाधान (Solution of Rural Problems)

भारतीय ग्रामों की विभिन्न दुराइयों को दूर करने के लिए व्यापक नियोजन के साथ पुननिर्माण (re-construction) की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में निम्न उपाय सुझाए जा सकते हैं-

(1) कृषि की दशा में सुधार- भारतीय ग्रामों के पुनर्निर्माण की दिशा में सबसे पहला कदम कृषि की दशा में सुधार होना चाहिए। इस सम्बन्ध में निम्न उपाय सुझाए जा सकते हैं-

(1) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर नियन्त्रण, (2) सिंचाई सुविधाओं का पर्याप्त विकास (3) छोटे व बिखरे खेतों की चकबन्दी, (4) आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रबन्ध (5) रासायनिक खाद का प्रयोग (6) उन्नत चीजों का वितरण (7) फसलों की रक्षा (8) भूमि संरक्षण, (9) पशुओं की दशा में सुधार (10) कृषि उपज की बिक्री की उचित व्यवस्था (11) साख-सुविधाओं का विस्तार, (12) कुटीर व ग्राम उद्योगों का विकास, (13) शिक्षा का प्रसार, (14) कृषि अनुसन्धान पर विशेष ध्यान।

(2) आर्थिक पुनर्निर्माण– गाँवों के पुनर्निर्माण की दशा में दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम आर्थिक पुनर्निर्माण है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपाय सुझाए जा सकते हैं-

(i) सहकारी विपणन- सहकारी समितियों के द्वारा गाँवों में कृषि उपज के विक्रय की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

(ii) सहकारी साख- किसानों, व्यापारियों और छोटे उद्योगों में लगे ग्रामीणों को सहकारी बैंकों से आवश्यक ऋण कम ब्याज दर पर मिलना चाहिए।

(iii) बीमा व बचत योजनाएँ— गाँवों में बीमा योजनाएँ तथा अन्य बचत योजनाएँ प्रारम्भ की जानी चाहिए।

(iv) परिवहन के साधनों का विकास- गांवों में सड़कों का पुनरुद्धार होना चाहिए। अधिक से अधिक सड़कें पक्की बनवाई जाए और माल को लाने ले जाने के लिए ट्रकों आदि का प्रबन्ध होना चाहिए। जहाँ तक हो सके रेल मार्गों को भी अधिक से अधिक गाँवों के निकट पहुंचाने की कोशिश की जानी चाहिए।

(v) कुटीर व ग्रामोद्योगों को प्रोत्साहन- कुटीर और ग्रामोद्योगों को सरकार की ओर से विशेष प्रोत्साहन और सहायता मिलनी चाहिए। उन्हें नए-नए औजार और कम व्याज पर पूँजी उपलब्ध करायी जानी चाहिए। उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विक्रय में भी समुचित सहायता मिलनी चाहिए।

(vi) व्यापारिक मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन- गाँवों में समय-समय पर व्यापारिक मेलों और प्रदर्शनियों का आयोजन बड़ा आवश्यक है जिससे व्यापार को प्रोत्साहन मिले और ग्रामीण जनता का औद्योगिक ज्ञान बढ़े।

(vii) विचौलियों में कमी- किसान और मजदूर तथा उत्पादक और उपभोक्ता के बीच में बिचौलियों, जमींदारों तथा महाजनों आदि को कम करने की अधिकाधिक गम्भीर कोशिश होनी चाहिए।

(viii) पशुओं की नस्लों में सुधार- इसके लिए सरकार की ओर से उनत जाति के साँहों, भैंसों आदि की व्यवस्था होनी चाहिए। मुर्गी पालन तथा मत्स्य पालन आदि के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सुघरे हुए पशुओं की प्रदर्शनियों होनी चाहिए तथा नस्ल सुधार के उपायों का प्रदर्शन होना चाहिए।

(ix) भूमिहीन किसानों के लिए भूमि- भूदान आन्दोलन को प्रोत्साहन देकर भूमिहीन किसानों को अधिकाधिक भूमि दिलाने की कोशिश होनी चाहिए।

(x) प्राकृतिक विपत्तियों से बचाव तथा सहायता- बाढ़ आदि से बचाव के लिए सरकार को आवश्यक स्थानों पर बाँध बनवाने चाहिए और नहरें निकाल कर बाढ़ की सम्भावना को कम करना चाहिए। अकाल आदि के समय तकावी बाँटी जानी चाहिए और लगान माफ किया जाना चाहिए।

(xi) गाँव पंचायतों के कार्य- गाँव पंचायतों को गाँवों से लगे चारागाहों, जंगलों आदि का विकास करना चाहिए और उनकी सुरक्षा के लिए नियम बनाने चाहिए।

(3) सामाजिक पुनर्निर्माण- गांवों की बुराइयों को सामाजिक पुनर्निर्माण के बिना दूर नहीं किया जा सकता। इस विषय में मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं-

(i) शिक्षा का प्रसार- गाँवों में साक्षरता के प्रचार के लिए सामाजिक शिक्षा केन्द्र और वयस्क शिक्षा केन्द्र खोले जाने चाहिए। बुनियादी (प्राथमिक) शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य की जानी चाहिए।

(ii) बेकारी तथा गरीबी दूर करना — गाँवों में बेकारों को काम दिलाने की कोशिश होनी चाहिए तथा गरीबों को दूर करने के लिए भरसक प्रयास होने चाहिए। सूदखोरी पर प्रभावी नियन्त्रण होना चाहिए।

(iii) स्वास्थ्य में सुधार- गांवों में स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों का प्रचार किया जाना चाहिए। गाँवों में अस्पतालों तथा प्रसूतिगृहों की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिनमें गरीबों का मुफ्त इलाज हो। संक्रामक रोगों की रोकथाम के उपाय किए जाने चाहिए, खाद्य सामग्री में मिलावट रोकी जानी चाहिए, इत्यादि।

(iv) सफाई पर समुचित ध्यान- रोगों से बचाव के लिए गाँवों से गन्दगी को दूर करना आवश्यक है। गलियाँ चौड़ी की जानी चाहिए और ग्रामीणों में सफाई का प्रचार होना चाहिए। यह काम श्रमदान से भी किया जा सकता है।

(v) विभिन्न सामाजिक बुराइयों दूर करना- हुआछूत, दलबन्दी, अन्धविश्वास आदि को दूर करने के लिए गाँवों में सामाजिक प्रचार की आवश्यकता है।

(vi) मुकदमेबाजी में कमी- मुकदमेबाजी कम करने के लिए गाँवों में पंचायती अदालतों को छोटे-छोटे मुकदमें निपटाने का अधिकार मिलना चाहिए।

(4) राजनैतिक जागृति- भारत एक गणतन्त्र राज्य है। दूसरे भारत में ग्राम-सुधार की समस्या इतनी सरल भी नहीं है कि अकेले सरकार इसे सुलझा सके। अतः देश में राजनैतिक जागृति बड़ी जरूरी है जिससे ग्रामीण स्वयं पुनर्निर्माण में भाग ले सकें। रेडियो, दूरदर्शन व समाचारपत्रों और समय-समय पर भाषणों द्वारा गांव वालों में अधिकाधिक जागृति फैलानी चाहिए जिससे उनका पुनरुद्धार हो सके।

भारत में ग्रामीण पुनर्निर्माण के सम्बन्ध में उपरोक्त सुझायों से स्पष्ट है कि भारतीय ग्रामों में बहुमुखी योजनाएँ बनाने से ही काम चलेगा। सभी प्रकार के सुधार करने पड़ेंगे और सरकार तथा जनता सभी को प्रयास करने पड़ेंगे। गैर-सरकारी प्रयत्नों में विनोबा जी का भूटान आन्दोलन तथा अन्य कार्यक्रम इस दिशा में महत्त्वपूर्ण रहे हैं। भारत सरकार की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि-विकास तथा गाँवों के आर्थिक पुनर्निर्माण को और समुचित ध्यान दिया गया है। राज्य सरकारों ने नए-नए कानून बनाकर गाँव में सामाजिक पुनर्निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए है। पंचायतें पुनर्जीवित हो रही हैं और गांवों में राजनीतिक जागृति फैल रही है। किन्तु भारत जैसे विशाल तथा पिछड़े हुए देश में ये प्रयत्न अभी अपर्याप्त है। देश में ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिए, सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी प्रयत्नों को बढ़ाने की आवश्यकता है।

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Anjali Yadav

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