जर्नल की परिभाषा दीजिये? जर्नल के प्रारूप को स्पष्ट कीजिये।
जर्नल या रोजनामचा (Journal) – यह लेखांकन की आधारभूत पुस्तक है जिसका उपयोग प्रत्येक व्यावसायिक संस्था के चाहे वह छोटी हो या बड़ी अवश्य ही किया जाता है। इसे लेखांकन रूपी महल की नीव कहा जाता है।
जर्नल का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions)- जर्नल शब्द फ्रेंच ‘भाषा के ‘Jour’ शब्द से बना है जिसका अर्थ डायरी, दैनिक पुस्त अथवा लॉग बुक है। जर्नल या रोजनामचा प्रारम्भिक लेखों की मूल पुस्तक होती है। इसे पंजी या नकल बही भी कहते हैं। इसमें प्रत्येक व्यवहार तिथिवार, क्रमानुसार, सैद्धान्तिक आधार पर प्रभावित होने वाले दोनों खातों को दर्शाते हुए लिखे जाते हैं।
सामान्य शब्दों में, “जर्नल या रोजनामचा वह सहायक पुस्तक है जिसमें व्यवसाय के प्रत्येक वित्तीय व्यवहारों को उनकी प्रकृति के अनुसार डेबिट (नामे) अथवा क्रेडिट (जमा) कर उसका उल्लेख क्रमानुसार तथा तिथिवार किया जाता है।”
एल.सी. क्रॉपर के अनुसार, “जर्नल वह पुस्तक है जिसका प्रयोग व्यवहारों को इस रूप में छाँटने या वर्गीकृत करने में किया जाता है जिससे बाद में उनकी खतौनी करने में सुविधा हो।”
कार्टर के अनुसार, “जर्नल या दैनिक रिकॉर्ड जैसा कि आरम्भ में प्रयुक्त किया जाता था, प्रारम्भिक लेखों की पुस्तक थी जिसमें स्मारक या कच्ची बही से सौदे तिथिवार लिखे जाते हैं। लेखा करते समय उन्हें डेबिट या क्रेडिट में वर्गीकृत कर दिया जाता है जिससे बाद में खाताबही में सही प्रविष्टि करने में सुविधा बनी रहे।”
जर्नल का प्रारूप (Proforma of Journal)-
इसके एक पृष्ठ का नमूना निम्नानुसार हैं-
रोजनामचा
तिथि (Date) |
विवरण (Particulars) |
खा. पृ.
(L.F) |
डेबिट राशि
(Dr.Amount) |
क्रेडिट राशि
(Cr.Amount) |
2011 जुलाई,1 | …….खाता…A/C ॠणी (Dr.)
………… खाता से To ……A/c (………………………) |
रु. | रु. |
जैसा कि उक्त प्रारूप से स्पष्ट है, जर्नल मुख्यतः पाँच भागों में विभक्त होती है-
(1) तिथि (Date)- इसमें व्यवहार से सम्बन्धित वर्ष, माह एवं तिथि का उल्लेख होता है। सर्वप्रथम वर्ष का उल्लेख किया जाता है तत्पश्चात् वर्ष के ठीक नीचे बायीं ओर माह का नाम तथा दायीं ओर तिथि अंकित की जाती है।
(2) विवरण (Particulars)- इस भाग में व्यवहार की प्रकृति के अनुसार खोले जाने वाले खातों के नाम अलग-अलग पंक्तियों में लिखे जाते हैं। प्रथम पंक्ति में डेबिट होने वाले खाते का नाम लिखकर अन्त में ऋणी (Dr.) शब्द लिख दिया जाता है, तत्पश्चात् क्रेडिट होने वाले खाते का नाम लिखकर ‘से’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, इसके पश्चात् व्यवहार का संक्षिप्त विवरण लिखकर एक सीधी रेखा खींच दी जाती है। विवरण में खाते का उल्लेख करते समय यह ध्यान में रखा जाये कि डेबिट किये जाने वाले खाते के नाम विवरण के सिरे से मिलाकर तथा (Dr.) शब्द दूसरे सिरे से जोड़कर लिखा जाना चाहिए तथा क्रेडिट हुए खातों को विवरण के दोनों सिरों से हटा लिखा जाना चाहिए।
(3) खाताबही पृष्ठांक (Ledger Folio)- जैसा कि हमें मालूम है, जर्नल में उल्लेखित प्रत्येक व्यवहार की खतौनी की जाती है। खतौनी के समय इस भाग में खाताबही की पृष्ठ संख्या का उल्लेख होता है।
(4) डेबिट राशि (Debit Amount) – इस भाग में डेबिट किये गये खाते की राशि का उल्लेख होता है।
योग एवं कुल योग (Total and Grand Total)- यदि व्यवहारों की जर्नल प्रविष्टियाँ एक ही पृष्ठ में पूर्ण हो तो अन्त में डेबिट एवं क्रेडिट पक्ष की राशि का कुल योग किया जाना चाहिए। किन्तु यदि व्यवहारों की प्रविष्टियाँ एक से अधिक पृष्ठों में हो तो प्रत्येक पृष्ठ के अन्त में इस पृष्ठ का योग कर उसे अगले पृष्ठ के प्रारम्भ में दर्शाया जाना चाहिए। इसके लिए पृष्ठ के अन्त में योग आगे ले जाया गया या ले/ग (Total Carried forward) तथा अगले पृष्ठ के प्रारम्भ में योग ला/ग या आगे लाया गया (Total brought forward) लिख जाता है।
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