‘तीसरी कसम, उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी की समीक्षा कहानी कला तत्वों के आधार पर कीजिए।
फणीश्वर नाथ रेणु आंचलिक कहानियों के प्रेणता रहे हैं। इन्होंने अपनी कहानियों में एक विशेष अंचल की अपनी निजी छवियाँ और अछवियाँ शक्ति और अशक्ति तथा प्राकृतिक विशेषताओं को उभारा है। अपनी प्रसिद्ध कहानी ‘तीसरी कसम’ में भी उन्होंने अपनी आंचलिकता को उभारने का प्रयास किया है। ‘तीसरी कसम’ कहानी की समीक्षा कहानी कला के कहानी कला के प्रमुख तत्व निम्न हैं-
(1) कथानक अथवा कथावस्तु, (2) पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, (3) संवाद- योजना अथवा कथोपकथन, (4) देशकाल और वातावरण, (5) भाषा-शैली, (6) उद्देश्य एवं शीर्षक।
(1) कथानक अथवा कथावस्तु- ‘तीसरी कसम’ कहानी में प्रेम की एक गहरी पीड़ा है और सामाजिक परिवेश भी बड़ी जीवन्तता और सघमता से उसके इर्द-गिर्द बुना हुआ है। इस कहानी का प्रमुख पात्र अथवा नायक हिरामन बैलगाड़ी वाला भोला-भाला बिहारी युवक पहले वह नेपाल से तस्करी का सामान ढोकर भारत में लाता था। एक बार एक सेठ के कपड़े की गाँठें पकड़ी गई तो उसने रात के अंधेरे में अपने बैलों के साथ भागकर जान बचाई। तब उसने पहली कसम खाई थी कि वह कभी तस्करी का माल नहीं ढोयेगा। इसके बाद हिरामन जानवरों की ढुलाई करने लगा। वह बाँस भी ढोता था। जिसमें उसे बड़ी परेशानी होती थी। एक दिन वह अपनी गाड़ी में बाँस लादकर ले जा रहा था। बाँसों का कुछ हिस्सा आगे और कुछ की ओर निकला था। हिरामन की बैलगाड़ी एक बग्धी से टकरा गई। बग्धी की छतरी टूट जाने पर बग्धी हाँकने वाले ने हिरामन को कोड़े से मारा। उस समय हिरामन ने दूसरी कसम खाई कि अब कभी वह अपनी गाड़ी में बाँस नहीं ढोयेगा। इसके बाद की घटना है कि फारबिसगंज की नौटंकी में नाचने वाली हीराबाई उसकी गाड़ी में सवार हुई और एक अपरिचित सम्बन्ध इसके साथ जुड़ गया। इस बार उसने तीसरी कसम खाई की भाड़ा चाहे कितना भी मिले, ऐसी लदनी फिर नहीं लादूँगा। यह कहानी गाड़ीवान हिरामन और नर्तकी हीराबाई के सरल, स्निग्ध एवं सहज सम्बन्धों की है-फारबिसगंज में मेला लगता है और हिरामन कई बार फरबिसगंज आया है, परन्तु हीराबाई के कारण राह चलते हुए हिरासन ने किसी दूसरे गाड़ीवान को गलत बता दिया कि वह ‘छत्तापुर पचीरा’ जा रहा है और दूसरी बार दूसरे गाड़ीवानों से कह दिया कि वह ‘कुड़मा ‘गाँव’ जा रहा है। हीराबाई हैरान होकर कह उठी कि ‘छत्तापुर पचीरा’ कहाँ है? जिस पर हँसते हँसते हिरामन के पेट में बल पड़ गये। हिरामन के ‘तगच्छिया’ के पास पहुँचने पर पर्दे वाली गाड़ी को देखकर बच्चे तालियाँ बजाकर गा उठे-“लाली लाली डोलियाँ में ‘लाली रे दुलहनियाँ। ” हिरामन भी स्वप्नों में दुल्हन को लेकर लौटा है। कई बार और इस बार ‘तगच्छिया’ गाँव की ही नहीं, किसी दूसरे गाँव की स्मृति भी उसकी नस-नस में समा रही है। ‘कजरी नदी’ के साथ-साथ उसकी सड़क जा रही है और ‘परमान नदी’ का तो महुआ घटयारिन की लोककथा के सम्बन्ध ही हैं हीराबाई को कथा सुनने की रूचि को पूरा करने के लिए हिरामन को लीक छोड़कर ननकपुर के रास्ते पर जाना पड़ा। कहानी के अन्त में हीराबाई जब हिरामन से विदा लेती है, तब हिरामन को बहुत दुःख होता है, क्योंकि वह उससे अत्यधिक प्रेम करने लगता है।
श्री फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ने ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी का गठन सुव्यवस्थित रूप से किया है, जिससे कहानी सशक्त, सुग्राह्य, प्रभावशाली और रोचक बन पड़ी है। लेखक ने कहानी में ऐसे विषय का चयन किया है, जो सहज ही पाठक को बाँधने में समर्थ है।
(2) पात्र और चरित्र चित्रण- फणीश्वनाथ रेणु की कहानी ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी में हिरामन और हीराबाई प्रमुख पात्र हैं। इनके अतिरिक्त धुन्नीराम, पलटदास, लालमोहर गाड़ीवान हैं। हिरामन की भाभी और भाई का भी चरित्र चित्रण किया गया है।
हिरामन गाड़ीवान है। वह पूर्णिया जिले का रहने वला चालीस साल का हट्टा-कट्ठा, काला-कलूटा देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता। हिरासन भाई से बढ़कर भाभी की इज्जत करता है। भाभी से डरता भी है, हिरामन की भी शादी हुई थी, बचपन में ही गौने से पहल की दुल्हिन मर गई। हिरामन को अपनी गाड़ीवानी से बहुत लगाव है, चाहे सब कुछ छूट जाये, गाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हिरासन। उसे इस बार विचित्र अनुभव हुआ। दो बार पहले चोरी का माल और बाँसों की लदनी लादकर जो प्राण फँसे थे, सो बाल-बाल बचा। अब टप्पर में लाद रहा है हीराबाई को और परदा डालने पर भी उसे पीठ में गुदगुदी-सी लगती है। वह आश्चर्यचकित है कि यह औरत फूल-सी महक रही है, उसकी गँवई बातों, गाँव-गीत, लोककथाओं आदि में इतनी रुचि लेती है और स्वयं उसे ‘मीता’, ‘भैयन’, ‘गुरुजी’ कहती है। इतनी सुन्दर स्त्री कोई डाकिन-पिशचिन नहीं हो सकती है, परन्तु हिरामन का कलेजा धड़कता है लेकिन जब वह उसे देख लेता है कि वह तो अति सुन्दर युवा स्त्री है तो हिरामन मन ही मन में उससे प्रेम करने लगता है। हिरामन का एकतरफा प्रेम ही कहानी को बांधे रखता है।
(3) संवाद योजना अथवा कथोपकथन- श्री फणीश्वरनाथ रेणु बहुवर्चित एवं सुप्रसिद्ध आंचलिक कथाकार हैं। इसीलिए यह स्वाभाविक हो जाता है कि उनकी कहानियों में अंचल विशेष की भाषा का प्रयोग संवादों के अन्तर्गत किया जाये, जिससे उस ग्राम्यांचल में रहने वाले लोगों के जीवन को सरलता से समझा जा सके। इस सन्दर्भ में ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी से निम्नलिखित उदाहरण दृष्टव्य हैं—
“भय्या तुम्हारा नाम क्या है ?”
“मेरा नाम… . मेरा नाम है हिरामन ।”
तब तो मीता कहूँगी, भैया नहीं मेरा नाम भी हीरा है”।
इस्स! मर्द और औरत के नाम में फर्क होता है। “हाँ जी, मेरा नाम भी हीराबाई है। “
(4) देशकाल तथा वातावरण – श्री फणीश्वरनाथ रेणु उपरोक्त कहानी में बिहार में ग्राम्यांचल के वातावरण का अत्यन्त सूक्ष्मता से चित्रण किया हैं। रेणुजी ने फारबिसगंज, चम्पानगर तथा खरैहिया ग्राम्यांचलों का चित्रांकन किया है। ग्राम्यांचल में रहने वालों का जीवन कैसा होता है? गाँव में नौटंकी का मेला लगने पर लोगों के जीवन में परिवर्तन आता है। वहाँ के वातावरण में भी एक विचित्र-सा परिवर्तन आ जाता है, जहाँ नौटंकी का आयोजन होता है उसके आसपास लोगों की चहल-पहल बढ़ जाती है। वहाँ के लोग नौटंकी में नृत्य करने वाली बाई के विषय में भी अनेक प्रकार की ऊलूल-जलूल बातें करने लगते हैं। ‘तीसरी कसम’ कहानी देशकाल व वातावरण की दृष्टि से विशिष्ठ कहानी है। इसमें सामाजिक परिवेश के बीच प्रेम की संवेदना निर्मित की गयी है।
( 5 ) भाषा-शैली- कहानी विधा के क्षेत्र में श्री फणीश्वरनाथ रेणु एक महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय कथाकार इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने परम्परागत रूढ़ भाषा में अपनी कहानियों की रचना न करके अंचल-विशेष में प्रयुक्त होने वाली भाषा का प्रयोग किया है। यही कारण है कि उनकी कहानियों की भाषा जन-जीवन को तो सूक्ष्मता से रूपायित करती ही है। इसके अतिरिक्त उनकी भाषा यथार्थ के धरातल पर भी अवस्थित है। यही गुण उनकी तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी में भी परिलक्षित होता है। उनकी आंचलिक भाषा सहज एवं स्वाभाविक होने के साथ-साथ प्रभावशाली, सशक्त तथा सार्थक भी है।
(6) नामाकरण एवं उद्देश्य- श्री फणीश्वरनाथ रेणु ने ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम’ कहानी का नामकरण उसके कथानक के आधार पर किया हैं कहानी का नायक हिरासन एक भावुक एवं संवेदनशील व्यक्ति है। उसे यह ज्ञात भी नहीं होता है कि वह किन क्षणों में हीराबाई के प्रति इतना अधिक अनुरक्त हो गया था कि कहानी के अन्त में जब हीराबाई उससे विदा लेती है, तब उसके लिए यह दुःख सहन करना कठिन जाता है। इसलिए वह ‘तीसरी ‘कसम’ इस बात की लेता है कि वह अपनी गाड़ी में किसी नौटंकी की बाई को नहीं बिठायेगा। वस्तुतः कहानीकार ने प्रणय की अत्यन्त सूक्ष्म भावनाओं को आलोच्य कहानी में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है, जिससे वे पूर्णरूप से सफल रहे हैं।
IMPORTANT LINK
- कार्यालयी पत्राचार क्या हैं? कार्यालयी पत्राचार की प्रमुख विशेषताएँ
- परिपत्र से आप क्या समझते हैं? उदाहरण द्वारा परिपत्र का प्रारूप
- प्रशासनिक पत्र क्या हैं? प्रशासनिक पत्र के प्रकार
- शासकीय पत्राचार से आप क्या समझते हैं? शासकीय पत्राचार की विशेषताऐं
- शासनादेश किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी से क्या अभिप्राय है? प्रयोजनमूलक एवं साहित्य हिन्दी में अन्तर
- राजभाषा से क्या आशय है? राजभाषा के रूप में हिन्दी की सांविधानिक स्थिति एंव राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अन्तर
- हिन्दी के विभिन्न रूप, सर्जनात्मक भाषा तथा संचार भाषा
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ | प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम | हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र | प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ
- शैक्षिक तकनीकी का अर्थ और परिभाषा लिखते हुए उसकी विशेषतायें बताइये।
- शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | Types of Educational Technology in Hindi
- शैक्षिक तकनीकी के उपागम | approaches to educational technology in Hindi
- अभिक्रमित अध्ययन (Programmed learning) का अर्थ एंव परिभाषा
- अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार | Types of Programmed Instruction in Hindi
- महिला समाख्या क्या है? महिला समाख्या योजना के उद्देश्य और कार्यक्रम
- शैक्षिक नवाचार की शिक्षा में भूमिका | Role of Educational Innovation in Education in Hindi
- उत्तर प्रदेश के विशेष सन्दर्भ में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009′ के प्रमुख प्रावधान एंव समस्या
- नवोदय विद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया एवं अध्ययन प्रक्रिया
- पंडित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of Malaviya in Hindi
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
Disclaimer