कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषा की आलोचना

धन सम्बन्धी परिभाषाएँ की आलोचना Criticism
धन सम्बन्धी परिभाषाएँ की आलोचना Criticism

अर्थशास्त्र की धन संबंधी परिभाषा की आलोचना कीजिए

एडम स्मिथ तथा उसके समर्थकों की धन सम्बन्धी परिभाषाओं में कुछ गम्भीर दोष थे जिस कारण उनकी कटु आलोचना की गई धन सम्बन्धी परिभाषाओं में मुख्यतः निम्नांकित दोष निकाले गए

(1) धन पर आवश्यकता से अधिक बल प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने धन को एक साध्य (end) मान लिया था। किन्तु वास्तव में धन ‘साध्य’ नहीं बल्कि ‘साधन’ (means) है जिसकी सहायता से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वन पर अत्यधिक बल दिए जाने के कारण कारलाइल (Carlyle) ने अर्थशास्त्र की कुबेर की विद्या (Gospel of Mammon), विलियम नौरिस (William Morris) ने घृणित विज्ञान (Dismal Science) तथा रस्किन (Ruskin) ने रोटी मक्खन का विज्ञान (Broad and Butter Science) आदि कहकर इसकी कटु निन्दा की।

(2) धन का संकुचित अर्थ-एडम स्मिथ तथा उसके समर्थकों ने ‘धन’ के अन्तर्गत केवल स्पर्शनीय व दृष्टिगोचर भौतिक वस्तुओं को शामिल किया था। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, अध्यापक आदि की सेवाओं (services) को भी धन में शामिल करते हैं।

(3) धन-प्राप्ति के साधनों की उपेक्षा-इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट नहीं होता कि धन में वृद्धि किन तरीकों से की जाए? धन कानूनी ढंगों से प्राप्त किया जा सकता है और गैर-कानूनी ढंगों से भी अर्थशास्त्र में मनुष्य की केवल कानूनी आर्थिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है।

(4) आर्थिक मनुष्य की दोषपूर्ण कल्पना-एडम स्मिथ ने ‘आर्थिक मनुष्य’ (Economic Man) की कल्पना कर डाली। ‘आर्थिक मानव से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो सभी कियाएँ केवल अपनी स्वार्थ-सिद्धि (निजी हित ) या धन प्राप्ति के लिए करता है। किन्तु वास्तविक जीवन में मनुष्य के कार्य निजी स्वार्थ के अतिरिक्त दया, प्रेम, परोपकार, देश भक्ति आदि भावनाओं से भी प्रेरित होते हैं। इसके अतिरिक्त, एडम स्मिथ ने यह मान लिया था कि व्यक्तिगत हित तथा सामाजिक हित में कोई अन्तर नहीं होता। किन्तु वास्तविकता यह है कि व्यक्तिगत हित तथा सामूहिक हित में प्रायः परस्पर विरोध पाया जाता है।

(5) मानव कल्याण की उपेक्षा-धन सम्बन्धी परिभाषाओं में केवल धन-संग्रह पर ही बल दिया गया धन के उचित प्रयोग तथा वितरण द्वारा मानव कल्याण में होने वाली वृद्धि पर इनमें कोई ध्यान नहीं दिया गया। सिसमॉण्डी (Sismondi) के अनुसार, “अर्थशास्त्र का उद्देश्य केवल धन की प्राप्ति ही नहीं वरन् मनुष्य के कल्याण में वृद्धि करना भी है।”

(6) धन व सुख में सीधा सम्बन्ध नहीं इन परिभाषाओं में धन को सुख का एकमात्र साधन माना गया है। जितना अधिक धन होगा, मनुष्य उतना ही अधिक सुखी होगा किन्तु व्यवहार में सुख तथा धन में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। सुख तो एक मानसिक स्थिति होती है।

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Anjali Yadav

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