नियोजन के लक्ष्य एवं उद्देश्यों (लाभ) को समझाइये।
लक्ष्य, उद्देश्य अथवा लाभ (Targets, Objectives or Advantages)
लक्ष्य परिणाम होते हैं, जिनकी प्राप्ति के लिए समस्त क्रियाएँ की जाती हैं। लक्ष्य की प्राप्ति केवल नियोजन का ही अन्तिम बिन्दु नहीं होती, अपितु वह प्रबन्ध की सभी अन्य क्रियाओं; जैसे-संगठन, नियन्त्रण, अभिप्रेरण, समन्वय, कर्मचारियों की नियुक्ति आदि भी अन्तिम बिन्दु होता है। उपक्रम का लक्ष्य निर्धारित करना नियोजन का प्राथमिक चरण है, क्योंकि बिना लक्ष्यों को निर्धारित किये नियोजन का कोई अर्थ नहीं होता। सामान्यतः यह कहा जाता है कि प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम का एकमात्र लक्ष्य अधिकतम लाभ कमाना होना चाहिए, किन्तु आधुनिक युग में इस प्रकार की भावना असामाजिक एवं अनैतिक है। यद्यपि व्यावसायिक उपक्रम की स्थापना लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है, किन्तु यह उसका एकमात्र लक्ष्य नहीं होता। व्यवसाय को सुदृढ़ बनाना एवं उसका विस्तार करना, नये-नये उत्पादों का निर्माण करना, प्रतिद्वन्द्वियों को कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करना, योग्य कर्मचारियों को नियुक्त करना, उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं एवं मनोवृत्तियों का ध्यान रखना तथा उनके प्रति सेवायें अर्पित करना आदि अनेक लक्ष्य हैं जो कि प्रबन्धक के समक्ष रहते हैं। उर्विक के शब्दों में, “लाभ कमाना व्यापार का उतना ही लक्ष्य हो सकता है जितना कि बाजी लगाना घुडदौड का रन संख्या बढ़ाना क्रिकेट का अथवा भोजन करना जीवन का” उर्विक ने अपने उपर्युक्त कथन को और अधिक स्पष्ट करते हुए यह बताया है कि लाभ कमाने की भावना व्यावसायिक क्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्तियों को उद्दीपन (Stimulus) प्रदान करती है, किन्तु यह उद्दीपन किसी व्यवसाय के वास्तविक लक्ष्य का रूप धारण नहीं कर सकता है। इस प्रकार का कथन यह सुझाव देने के समान है कि एक व्यक्ति अपने व्यवसाय का संचालन केवल हिसाब-किताब रखने के लिए करता है ।
(इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि सम्पूर्ण व्यवसाय के लक्ष्य को निर्धारित करने के साथ-साथ अलग-अलग विभागों के भी लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिए। यद्यपि वे विभागीय लक्ष्य सम्पूर्ण व्यवसाय के लक्ष्य के पूरक होते हैं, परन्तु वास्तव में हैं ये अलग। लक्ष्यों का यह वर्गीकरण अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन लक्ष्यों के रूप में भी हो सकता है। इस प्रकार लक्ष्य निर्धारित करना नियोजन की आधार शिला है।)
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