न्यूनतम किराया क्या है? लघुकार्य की वसूली सम्बन्धी शर्तों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
(1) न्यूनतम किराया या मृत भाटक या स्थिर किराया (Minimum Rent or Dead Rent) – न्यूनतम किराये से आशय उस राशि से है जो पट्टेदार, प्रकाशक या सम्पत्ति के प्रयोगकर्ता द्वारा सम्पत्ति के स्वामी को निश्चित रूप से चाहे उत्पादन का कार्य हो अथवा नहीं, प्रदान करता है।
न्यूनतम किराये का प्रश्न तभी उत्पन्न होता है जबकि वास्तविक अधिकार-शुल्क की राशि न्यूनतम किराये से कम हो । वास्तविक अधिकार-शुल्क की राशि अधिक होने पर न्यूनतम किराया अधिकार-शुल्क में विलीन हो जाता है, अतः वास्तविक अधिकार-शुल्क की राशि ही देय होती है।
स्पष्ट अनुबन्ध की दशा में न्यूनतम किराये की राशि विभिन्न वर्षों में भिन्न-भिन्न हो सकती है तथा कुछ विशेष परिस्थितियों; जैसे, हड़ताल आदि में कम भी हो सकती है। स्पष्ट
अनुबन्ध के अभाव में यह राशि प्रायः समान होती है।
(2) लघुकार्य या अल्पकार्य या न्यून खनन (Short workings)- जब अधिकार शुल्क की राशि न्यूनतम किराये से कम हो तो इस कमी या अन्तर को लघुकार्य या अल्पकार्य या न्यून खनन कहते हैं। इस प्रकार लघुकार्य की राशि न्यूनतम किराये का अधिकार शुल्क पर आधिक्य होती है।
अल्प या लघुकार्य = न्यूनतम किराया अधिकार शुल्क Short working = Minimum Rent – Royalty
(3) अतिरेक या आधिक्य (Surplus)- जब अधिकार शुल्क की राशि न्यूनतम किराये की राशि से अधिक हो तो यह अन्तर अतिरेक या आधिक्य कहलाता है।
अतिरेक या आधिक्य = अधिकार शुल्क न्यूनतम किराया Surplus Royalty- Minimum Rent
(4) लघुकार्य की वसूली या शोधनीय लघुकार्य (Recoupment of Short workings) – अधिकार-शुल्क की राशि कम होने पर सम्पत्ति के स्वामी को न्यूनतम किराया प्राप्त करने का अधिकार होता है। ऐसी स्थिति में न्यूनतम किराये के भुगतानकर्ता को हानि उठानी पड़ती है। अतः इस हानि की पूर्ति के लिए अनुबन्ध में एक शर्त यह भी सम्मिलित कर दी जाती है। कि यदि किसी वर्ष अधिकार शुल्क की राशि न्यूनतम किराये से अधिक हो तो इस अतिरेक से हानि की वसूली की जा सकती है। ऐसी हानि की पूर्ति लघुकार्य या अल्पकार्य की वसूली कहलाती है।
लघु कार्य की वसूली निम्नलिखित शर्तों में से किसी भी एक शर्त के अधीन की जा सकती है।
- लघुकार्य की राशि असीमित अवधि में अपलिखित करना – ऐसी स्थिति में लघुकार्य की राशि तब तक आगे लायी जायेगी जब तक कि वह अतिरेक की राशि से पूर्णतः वसूल न हो जाय।
- लघुकार्य की राशि अगले वर्ष ही अपलिखित करना- ऐसी स्थिति में लघुकार्य की राशि अगले वर्ष के अतिरेक में से ही अपलिखित की जा सकेगी। वसूल न होने पर लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित की जायेगी।
- लघु कार्य की राशि प्रथम कुछ वर्षों में अपलिखित करना- ऐसी स्थिति में लघुकार्य की वसूली अनुबन्ध करने की तिथि से प्रारम्भ होकर उतने ही वर्षों में की जा सकेगी जितने वर्षों के लिए शर्त रखी हो। इसके पश्चात् लघुकार्य की शेष राशि लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित की जायेगी।
- लघुकार्य की राशि अगले या बाद के कुछ वर्षों में उपलिखित करना – ऐसी स्थिति में लघुकार्य वसूली लघुकार्य उत्पन्न होने की तिथि से अगले कुछ वर्षों में की जा सकेगी।
(5) असमायोजित अथवा अशोधनीय लघुकार्य (Unrecouped Short workings) – जब लघुकार्य की वसूली का अधिकार समाप्त हो जाता है तो इसे असमायोजित अथवा अशोधनीय लघुकार्य कहते हैं। इसे लाभ-हानि खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। इसके विपरीत, वसूली योग्य लघुकार्य की राशि वर्ष के अन्त में चिट्टा (स्थिति विवरण) के सम्पत्ति पक्ष में दर्शायी जाती है।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण खनूजा लि. ने एक खान 10 वर्षों के लिए पट्टे पर ली। प्रथम पाँच वर्षों में उत्पादन निम्नानुसार रहा :
वर्ष | प्रथम | द्वितीय | तृतीय | चतुर्त | पंचम |
उत्पादन (टनों में) | 500 | 700 | 1,2000 | 1,000 | 1,400 |
अधिकार- शुल्क रु. 1 प्रति टन तथा न्यूनतम किराया रु.1,000 प्रति वर्ष है। निम्नलिखित परिस्थितियों में असमायोजित अथवा अशोधनीय लघुकार्य की राशि ज्ञात कीजिए:
(क) यदि लघुकार्य की वसूली प्रथम तीन वर्षों में की जा सकती हो।
(ख) यदि लघुकार्य की वसूली अगले तीन वर्षों में की जा सकती हो।
(ग) यदि लघुकार्य की वसूली असीमित अवधि में की जा सकती हो।
(घ) यदि लघुकार्य की वसूली सम्बन्धी कोई शर्त न हो।
Solution :
(क) यदि लघुकार्य की वसूली प्रथम तीन वर्षों में की जा सकती हो – ऐसी स्थिति में प्रथम वर्ष का लघुकार्य रु.500 तथा द्वितीय वर्ष की लघुकार्य रु.300, कुल रु. 800 की वसूली तृतीय वर्ष तक ही की जा सकेगी। तृतीय वर्ष में अतिरेक की राशि रु0 200 है, अतः अशोधनीय लघुकार्य की राशि तृतीय वर्ष में रु.600 होगी। इसके पश्चात् किसी भी वर्ष की लघुकार्य की राशि आगामी वर्ष के लिए शोधनीय नहीं होगी।
(ख) यदि लघुकार्य की वसूली अगले तीन वर्षों में की जा सकती हो- ऐसी स्थिति में प्रथम वर्ष के लघुकार्य की वसूली द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ वर्ष में होगी तथा द्वितीय वर्ष में लघुकार्य की वसूली तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम वर्ष में होगी।
अतः तृतीय वर्ष के अतिरेक रु.200 की वसूली प्रथम वर्ष के लघुकार्य के सम्बन्ध में होगी तथा अतिरेक के अभाव में चतुर्थ वर्ष में अशोधनीय लघुकार्य की राशि रु. 300 होगी।
पंचम वर्ष में अतिरेक रु. 400 से द्वितीय वर्ष के लघुकार्य रु.300 की वसूली होगी अतः पंचम वर्ष में कोई लघुकार्य अशोधनीय नहीं होगा।
(ग) यदि लघुकार्य की वसूली असीमित अवधि में की जा सकती हो- ऐसी स्थिति में प्रथम वर्ष के लघुकार्य रु0 500 तथा द्वितीय वर्ष के लघुकार्य रु.300 की वसूली दस वर्षों तक कभी भी अतिरेक से की जा सकती है, चूँकि दस वर्षों के पश्चात् पट्टे की अवधि समाप्त होनी है, अतः प्रथम पाँच वर्षों तक कोई भी लघुकार्य की राशि अशोधनीय नहीं होगी।
(घ) यदि लघुकार्य की वसूली के सम्बन्ध में कोई शर्त न हो- ऐसी स्थिति में लघुकार्य की राशि अगले वर्षों के अतिरेक से वसूल नहीं की जा सकेगी। अतः प्रथम वर्ष में अशोधनीय लघुकार्य की राशि 500 तथा द्वितीय वर्ष में अशोधनीय लघुकार्य की राशि रु.300 होगी।
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