हिन्दी साहित्य

पत्रकारिता क्या है? पत्रकारिता के स्वरूप

पत्रकारिता क्या है? पत्रकारिता के स्वरूप
पत्रकारिता क्या है? पत्रकारिता के स्वरूप
पत्रकारिता क्या है? पत्रकारिता के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।

पत्रकारिता का स्वरूप

डा. मीरा रानी बल शब्दों में, “पत्रकारिता नित्य परिवर्तित होते सामयिक जनजीवन, भौतिक घटनाचक्र, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कार्य-कलापों का संकलन एवं प्रस्तुतीकरण मात्र नहीं है; यह कला व्यापक जनसंवेदना, परवर्ती मानवीय अनुभूतियों एवं अमूर्त भावनाओं को संप्रेषित करने का विसनीय लोकप्रिय जनमाध्यम भी है।”

वस्तुतः पत्रकारिता की आत्मा तो ज्ञान क्षुधा ही है और इस क्षुधा का कोई अन्त नहीं। सामयिक आयामों का जिस प्रकार विस्तार होता है उसी प्रकार पत्रकारिता की आत्मा उसे ग्रहण करती है और उसका स्वरूप परिष्कृत होता है। मनुष्य के समस्त कार्य व्यवहारों और चिन्तन का प्रेरक उसका स्वभाव जो जिज्ञासा उत्सुकता और कर्म-प्रवृत्ति उसके भीतर जागृत करता है, उसकी ज्ञान-क्षुधा को अर्थात् उसमें पूरा युगबोध समाया रहता है। किसी को कुछ बताने और किसी से या अपने चारों ओर के वातावरण के विषय में जानने की इच्छा मानव जीवन को गति प्रदान करती है। इस सबको प्रकाश में लाकर उसे विस्तार देने के कार्य को, जब कागज नहीं था, कलम नहीं थी, प्रेस नहीं थी, विभिन्न नामों से पुकारा जाता रहा होगा। अपने लघु रूप और सीमित साधनों से मनुष्य ने पत्रकारिता की नींव किसी-न-किसी नाम से डाली थी जो आज के युग में निःसीम साधनों का परिवेश प्राप्त कर अपनी पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हो गई है अर्थात् साधन भी जिनसे सामयिक ज्ञान को विस्तार दिया जा सकता है, पत्रकारिता के स्वरूप को निश्चित करते हैं। सभ्यता के विकास के साथ सुलभ रूप से उपलब्ध साधनों द्वारा इस कार्य को जिन्होंने जारी रखा होगा, वह पत्रकार भले ही न कहलाते थे परन्तु उनके कोई न कोई नाम रहे ही होंगे। एक प्रकार से उस काल के धर्मोपदेशक भी पत्रकार ही थे जो अपने उपदेशों के साथ-साथ इधर-उधर के समाचारों का प्रसार करते रहे होंगे। इतना भी निश्चित है कि सदा से ही समाचारों के संस्करण भी उनके प्रसार के साथ होते रहे होंगे। मूल समाचार की विवेचना और वैचारिक व्याख्याएँ समाचार संवाहकों का स्वाभाविक कार्य रहो होगा और उनकी अपनी रुचि और विवेक के अनुसार उनके संस्करण भी। पत्रकारिता का यही आदि स्वरूप होगा। वह किस-किस प्रकार का किस किस युग में रहा, इसका एक अनुमानपरक चित्र तो बनाया जा सकता है, वास्तविक नहीं।

आधुनिक पत्रकारिता के विशाल वटवृक्ष को देखकर रघुनाथ खाडिलकर ने आधुनिक पत्रकारिता के बारे में कहा है, ‘ज्ञान और विचार, शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना पत्रकला ।’ वास्तव में यह परिभाषा आधुनिक पत्रकारिता को ही निर्दिष्ट नहीं करती, बल्कि यह उसके सर्वकालिक स्वरूप को भी प्रस्तुत करती है। पत्रकला ही उसके स्वरूप का गठन करती है। किसी भी बात का संप्रेषण जिस प्रकार से जनहित और जनउत्सुकता के लिए सम्भव है, करना ही पत्रकला है। अतः इसके स्वरूप की व्यापकता समय-समय पर एक जैसी नही रही।

(1) समाज का आईना- पत्रकारिता समाज का खुला दर्पण है। सही पत्र सब कुछ सामने रख देते हैं। मानव समाज अपने समाज के सम्बन्धों में सब कुछ जानने का जिज्ञासु होना है। वह सामाजिक आदान-प्रदान करते रहना चाहता है। इसके लिए पत्रकारिता उचित माध्यम है। हर्बर्ट बूकर के शब्दों में पत्रकारिता ऐसा माध्यम है, जिससे हम अपने मस्तिष्क मैं संसार की ऐसी सारी सूचनाएँ कर लेते हैं, जिन्हें कभी भी स्वतः नहीं जान सकते।’ समाज की ऊर्ध्वमुखी या अधोमुखी स्थिति समाज के उत्थान, पतन, सृजन एवं विनाश की स्थितियों को यथावत पत्रकारिता ही हम तक पहुंचाती है। इस प्रकार पत्रकारिता वर्तमान की यथातथ्य प्रस्तुति एवं भविष्य के स्वरूप का निर्माण करती है।

2. सूक्ष्म पर्यवेक्षण – समाज सदैव बदलता रहता है। परिवर्तन की दशाओं को प्रकाशित करके पत्रकारिता सबको अमर बना देती है। अनेक घटनाओं का इससे ज्ञान हो जाता है। दिशा-निर्धारण में भी सुविधा होती है। कुशल पत्रकार सूक्ष्म निरीक्षक और पर्यवेक्षक भी होता है। पत्रकारिता अपनी सही सूचनाओं से समाज को सावधान करती है।

3. नीर-क्षीर विवेक- निष्पक्षता एवं सत्य-असत्य का प्रकाशन पत्रकारिता का बहुत बड़ा गुण है। अच्छी पत्रिकाएँ अनेक भ्रमों के बीच से सच्चाई को उद्घाटित कर देती हैं। अनेक घटनाओं के स्रोत उद्भव विकास और समापन की सूचनाएं हमें पत्रकारिता से मिलती है। अच्छी पत्रिका वादी प्रतिवादी, वकील और जज का काम करती है। दूध का दूध और पानी का पानी कर देती हैं।

4. मूल्यों की नियामिका मानव मूल्यों की स्थापना पत्रकारिता में मिलती है। सच्ची पत्रकारिता में सहीं सूचना, इतिवृत्त और संभावना के साथ-साथ गहन चिन्तन और मनन भी होता है। समाज में व्याप्त असंतोष, आक्रोश या विद्रोह का नियमन करके पत्रकारिता समाज की दिशा देती है, भटकते हुए समाज को नव जीवन देती है। उसके मूल्यों से परिचित कराती है। मानवीय गुणों का यह विकास करती है। समाज की धड़कन (अच्छी बुरी) को स्पष्ट करती है। यह मानवीय संवेदना को उभारती और आक्रोश को दबाती है। आज वैश्विक मूल्यों को स्पष्ट करने में पत्रकारिता सबसे अधिक सफल है। इसके साथ यह वैश्विक जगत से जोड़ने में सक्षम भी है।

5. विविध क्षेत्रों में व्यापक प्रसार- जीवन का कोई भी विषय कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो पत्रकारिता से अछूता हो। आज हर विषय से सम्बन्धित पत्र पत्रिकाएं आपको मिल जायेंगी। पत्रकारिता का क्षेत्र न केवल विविधात्मक है अपितु व्यापक भी है। हर समूह के व्यक्ति अपने विषय के सम्बन्धों में नवीनतम जानकारी और ज्ञान के लिए पत्रकारिता को ही माध्यम बनाते हैं। पत्रकारिता अब केवल रोचक समाचारों का संकलन या केवल मात्र राजनीतिक तक ही सीमित नहीं है वरन्, साहित्य, फिल्म, खेलकुद, वाणिज्य, व्यवसाय, विज्ञान, धर्म, हास्य व्यंग्य तथा ग्रामीण क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुकी है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसमें इसका प्रवेश नहीं हुआ है।

6. परिवेश से परिचय – पत्रकारिता मनुष्य को उसके चारों तरफ हो रहे घटनाचक्रों से परिचित कराती है। पत्रकारिता मनुष्य को उसके परिवेश से जोड़ती हुई अन्तर्राष्ट्रीय घटनाचक्र से भी जोड़ देती है। विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ मनुष्य व्यस्तता की ओर अग्रसर होता जा रहा है, ऐसी स्थिति में मनुष्य अपने पास-पड़ोस के मामले की ही सुध नहीं रख पाता, तब सारे विश्व की तो बात ही क्या है, परन्तु पत्रकारिता के जरिये न केवल हम अपने परिवेश से परिचित होते हैं, वरन् दूरदराज के देशों से भी हमारा परिचय कुछ ही क्षणों में हो जाता है। यहीं क्यों, कहीं कुछ घटित हुआ नहीं कि उसकी खबर हम न केवल पढ़ ही पाते हैं अपितु टेलीविजन जैसे वैज्ञानिक उपकरण के द्वारा उस घटना का आँखों देखा चित्र भी देख लेते हैं। जनसम्पर्क के माध्यम रेडियो, टेलीविजन, टेलीप्रिन्टर, टेलेक्स, वायरलेस – और समाचार पत्र आज ऐसे माध्यम है जो सारे विश्व को एक चक्र में ही बांध देते हैं।

7. कुशल चिकित्सक – पत्रकारिता एक कुशल चिकित्सक की तरह सामयिक परिस्थितियों और घटनाचक्र की नाड़ी की जांच कर उसके स्वास्थ्य को सुधारने का कार्य ‘करती है। पत्रकार के पास एक तीखी व तेज नजर तो होती ही है अपितु शिव जैसी तीसरी आँख भी होती है। यही कारण है कि पत्रकार परिवेश के शरीर में दौड़ते हुए रक्त अथवा उसके रक्तचाप की परीक्षा करता है, उसकी धड़कनों का हिसाब रखता है। जब वह अधिक विकृत होने लगता है तब पत्रकार कुशलतापूर्वक सामाजिक परिवेश की एक्स-रे रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर देता है। यह काम वह फोटो पत्रकारिता के जरिये करता है क्योंकि चित्र पत्रकारिता घटना की सत्यता को प्रमाणित करने के साथ-साथ एक चश्मदीद गवाह का भी काम करती है।

8. विवेक का सत्यापन – पत्रकारिता पूर्णतः निषेधात्मक माध्यम नहीं है। एक स्वस्थ पत्रकारिता का लक्षण उसके विवेक का सत्यापन होता है। इतना ही नहीं, विवेचन के साथ साथ निर्णय का काम भी पत्रकारिता करती है। जो पत्रकारिता गहराई तक अपनी पहुंच रख है उसे मात्र निषेधात्मक मानना औचित्यपूर्ण है क्योंकि एक “प्रकार भविष्यदृष्टा होता है। यह समस्त राष्ट्र की जनता की ‘चित्तवृत्तियों, अनुभूतियों और आत्मा का साक्षात्कार करता है। पत्रकार किसी को ब्रह्मज्ञानी नहीं बना सकता, परन्तु मनुष्य की भांति जीते रहने की प्रेरणा देता है, जहां उसे अन्याय, अज्ञान, उत्पीड़न प्रवंचना, भष्ट्राचार, कदाचार दिखाई देता है।”

(9) सम्प्रेषण का माध्यम – पत्रकारिता सम्प्रेषण का सामाजिक माध्यम है। आज का युग वैज्ञानिक युग है। इस विज्ञान में हमें रेडियो, टेलीविजन, फिल्म समाचार-पत्र आदि ऐसे माध्यम दिये हैं जिनके द्वारा समाज में किसी भी क्षेत्र में घटित घटनाएं, हमें तुरन्त पलक झपकते ही मालूम हो जाती हैं। उस घटना को सुनते ही या देखते ही अगर हमें किसी हानि की सम्भावना नजर आती हैं तो हम तुरन्त उससे बचने के उपाय कर सकते हैं।

(10) विशिष्ट उद्देश्य हर पत्र – पत्रिका के निश्चित उद्देश्य होते हैं। अब पंजीयन के समय इनको लिखकर देना पड़ता है। उद्देश्य पूर्ति के लिए इनको जीवित रखा जाता है। हानि उठाकर भी लोग पत्र-पत्रिका चलाते रहते हैं, क्योंकि पत्रकारिता व्यवसाय न होकर समाज-सेवा है। बाबूराव विष्णु पराइकर के अनुसार, ‘सच्चे भारतीय पत्रकार के लिए पत्रकारी केवल एक कला या जीविकोपार्जन का साधन मात्र नहीं होना चाहिए, उसके लिए वहु कर्तव्य-साधन की एक पुनीत वृत्ति भी होनी चाहिए। वस्तुतः पत्रकारिता एक मिशन और इस मिशन के अन्तर्गत जनता की सेवा भावना ही प्रधान होती है। आज पत्रकारिता में वैभव एवं प्रतिष्ठा भले ही सम्मिलित हो गई हो और उसके कारण जनाकर्षण बढ़ा हो, परन्तु यह एक तथ्य है कि पत्रकारिता का प्रारम्भ लोक सेवा के लिए संघर्षशील मानव मस्तिष्क द्वारा ही हुआ था और इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पत्रकार आर्थिक एवं शासकीय प्रहारों को सहन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते हैं। इस प्रकार पत्रकारिता विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति का कार्य है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment