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पत्र – मुद्रा के लाभ (Advantages of Paper Money)
वर्तमान युग में विश्व के सभी देशों में पत्र मुद्रा का प्रचलन है। इसकी लोकप्रियता का कारण इसके लाभ हैं जोकि निम्नलिखित हैं-
(1) वहुमूल्य धातुओं की बचत- कागजी मुद्रा के उपयोग से सोने-चाँदी जैसी बहुमूल्य धातुओं की बचत होती है तथा इनका प्रयोग औद्योगिक विकास तथा विदेशी व्यापार में किया जा सकता है।
(2) मितव्ययिता – धातु मुद्रा अत्यन्त महँगी होती है क्योंकि धातुओं को खानों से निकालने, साफ करने, गलाने तथा सिक्कों में ढालने में बहुत खर्चा आता है किन्तु पत्र मुद्रा के निर्गमन पर अपेक्षाकृत बहुत कम खर्चा आता है। इसे छापने के लिए तो केवल कागज, स्याही तथा प्रिंटिंग प्रेस की आवश्यकता पड़ती है।
(3) वहनीयता–पत्र- मुद्रा बड़ी हल्की होती है जिस कारण बड़ी से बड़ी रकम को भी आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाया जा सकता है।
(4) धातुओं की पिसावट नहीं- सोने-चांदी के सिक्के प्रचलन में नहीं होते जिससे बहुमूल्य धातुओं की घिसावट नहीं हो पाती।
(5) मुद्रा प्रणाली में लोच-पत्र- मुद्रा की मात्रा को आसानी से देश की आवश्यकतानुसार घटाया बढ़ाया जा सकता है। इसके विपरीत, धात्विक मुद्रा (सिवकों) की पूर्ति धातुओं के खानों से निकाले जाने पर निर्भर करती है।
(6) प्रयोग में सुविधा-पत्र मुद्रा के गिनने में कोई कठिनाई नहीं होती। फिर इसमें हिसाब-किताब भी आसानी से कर लिया जाता है। इससे समय की बचत होती है।
(7) बैंकिंग सुविधाओं का विकास- पत्र-भुद्रा ने अधिकोपण-प्रणाली (banking system) के विकास को अत्यधिक प्रोत्साहित किया है। पत्र मुद्रा के प्रचलन से लोगों में अधिकीषण-सुविधाओं का लाभ उठाने की प्रवृत्ति बढ़ती गई है।
(8) आन्तरिक कीमत-स्तर में स्थिरता- देश की मौद्रिक आवश्यकताओं के अनुसार मुद्रा की माँग तथा पूर्ति में सन्तुलन स्थापित करके केन्द्रीय बैंक आन्तरिक कीमतों में स्थिरता ला सकता है।
(9) विकास में सहायक- आजकल सरकारें घाटे की वित्त व्यवस्था की नीति के अन्तर्गत विकास योजनाओं को पूरा करने हेतु अतिरिक्त पत्र- मुद्रा छाप रही हैं।
(10) संकटकाल में सरकार को सुविधा- युद्ध आदि आर्थिक संकट के समय यदि सरकार के पास बहुमूल्य धातुओं की कमी है तो वह कागजी मुद्रा छापकर अपना काम चला सकती है।
(11) जालसाजी की पकड़-पकड़ में सुविधा- कागजी नोटों की जालसाजी को आसानी से पकड़ा जा सकता है। सरकार के पास नोटों के नम्बर होते हैं जिनकी सहायता से वह जाली नोटों का पता लगा सकती है। यदि जनता को समय पर सूचित कर दिया जाता है तो वह भी जाली नोटों को स्वीकार नहीं करती।
(12) सुरक्षा-धातु मुद्रा की अपेक्षा पत्र मुद्रा को आसानी से छिपाकर रखा जा सकता है। फिर यदि नोटों की चोरी हो जाती है तो नोटों पर अंकित संख्याओं की सहायता से चोरी को जल्दी से पकड़ा जा सकता है।
पत्र- मुद्रा के दोष (Demerits of Paper Money)-पत्र- मुद्रा में निम्न दोष पाये जाते हैं-
(1) जनता का कम विश्वास- धात्विक सिक्कों को गलाकर तो धातुएँ प्राप्त की जा सकती हैं, किन्तु कागज़ी नोटों को गलाकर कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि नोटों का आन्तरिक मूल्य कुछ भी नहीं होता। इसलिए जनता का पत्र मुद्रा में अपेक्षाकृत कम विश्वास होता है।
(2) नाशवान–कागज़ी नोटों के गलने, फटने, कटने तथा जलने का भय रहता है जबकि धातुओं के सिक्कों में यह दोष नहीं होता।
(3) प्रचलन का सीमित क्षेत्र- कागजी मुद्रा केवल उस देश की सीमा में ही प्रचलित रहती है जिस देश की सरकार उसे निर्गमित करती है, अर्थात् विदेशी लोग इसे स्वीकार नहीं करते। इससे विदेशी व्यापार में कठिनाइयों उत्पन्न हो जाती हैं।
(4) अत्यधिक निर्गमन का भय-पत्र- मुद्रा (प्रतिनिधि पत्र मुद्रा को छोड़कर) के पीछे शत-प्रतिशत धात्विक कोष नहीं रखा जाता जिस कारण सरकार आसानी से अधिकाधिक नोटों का निर्गमन करती चली जाती है। प्रायः संकटकाल में देश में गम्भीर मुद्रास्फीति की दशा उत्पन्न होने का भय रहता है।
(5) मुद्रा के मूल्य में अनिश्चितता—चूँकि कागज़ी नोटों की मात्रा में सरलता से कमी या वृद्धि की जा सकती है इसलिए इनके मूल्य में स्थिरता की कमी पाई जाती है। मुद्रा के मूल्य में होने वाले उतार-चढ़ाव का देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(6) सट्टेबाजी को प्रोत्साहन-मुद्रा के मूल्य के अस्थिर होने के कारण सट्टेबाजी को प्रोत्साहन मिलता है। साथ ही इससे व्यापार-चक्रों को बढ़ावा मिलता है।
(7) विमुद्रीकरण का भय- सरकार द्वारा कागजी नोटों का विमुद्रीकरण (मुद्रा के प्रचलन का बन्द किया जाना) कर दिए जाने पर इनका मूल्य शून्य हो जाता है क्योंकि इनका आन्तरिक मूल्य कुछ नहीं होता।
(8) सरकार द्वारा दुरुपयोग- कभी-कभी सरकार, करों से पर्याप्त आय प्राप्त न होने पर अपनी विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त नए नोटों का निर्गमन कर डालती है। इससे कीमतों में तीव्रता से वृद्धि हो जाती है जिसका निर्धन वर्ग पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(9) जालसाजी का भय-जाली कागजी नोट छापना अपेक्षाकृत आसान होता है जिनकी एक साधारण व्यक्ति पहचान नहीं कर पाता जाली नोटों के प्रचलन से देश के सम्मुख बहुत खतरा उत्पन्न हो जाता है।
(10) विदेशी विनिमय दर में अस्थिरता-पत्र मुद्रामान के अन्तर्गत मुद्रा का बहुमूल्य धातुओं से कोई सम्बन्ध न होने के कारण अति-निर्गमन की स्थिति में विदेशी विनिमय दरों में अत्यधिक परिवर्तन हो सकते हैं।
(11) अन्य देशों पर प्रभाव- पत्र मुद्रा प्रणाली में एक देश में उत्पन्न आर्थिक संकट का प्रभाव दूसरे देशों पर भी पड़ता है।
(IV) निर्गमन के स्रोत के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
इस आधार पर मुद्रा को निम्न दो वर्गों में बांटा जा सकता है
(1) चलन मुद्रा (Currency Money) यह मुद्रा केन्द्रीय सरकार या केन्द्रीय बैंक द्वारा निर्गमित की जाती है तथा इसे सभी व्यक्तियों को स्वीकार करना पड़ता है।
(2) बँक- मुद्रा या साख- मुद्रा (Bank Money or Credit Money) इस प्रकार की मुद्रा में बैंकों के निक्षेप (deposits), चैक, बैंक-ड्राफ्ट, विनिमय विपत्र, हुण्डी आदि को शामिल किया जाता है।
(V) मुद्रा के अन्य वर्गीकरण
मुद्रा के कुछ अन्य वर्गीकरण भी किए गए हैं जो निम्नांकित है—-
(1) सस्ती मुद्रा तथा महँगी मुद्रा- मुद्रा का यह वर्गीकरण ब्याज दर के आधार पर किया जाता है। यदि ऋण (मुद्रा) कम ब्याज दर पर उपलब्ध हो जाता है तो मुद्रा ‘सस्ती मुद्रा (Cheap Money) कहलाती है। इसके विपरीत, यदि मुद्रा बाजार (Money Market) में ब्याज दर ऊंची होती है तो मुद्रा ‘महँगी मुद्रा’ (Dear Money) कहलाती है। मुद्रा का सस्ता या महँगा होना मुख्यतया देश के केन्द्रीय बैंक की साख-नीति पर निर्भर करता है। यदि केन्द्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) सस्ती मुद्रा नीति अपनाता है तो वह अपनी बैंक दर (Bank Rate) को कम कर देता है। इससे अन्य बैंकों को भी अपनी व्याजदर कम करनी पड़ती है। इसके विपरीत, यदि केन्द्रीय बैंक महेंगी मुद्रा नीति अपनाता है तो वह अपनी बैंक दर को बढ़ा देता है, जिससे अन्य बैंक भी ब्याज दर बढ़ा देते हैं।
(2) दुर्लभ मुद्रा तथा सुलभ मुद्रा- जिस देश की मुद्रा की माँग उसकी पूर्ति से अधिक होती है, उस देश की मुद्रा दुर्लभ मुद्रा’ (Hard Currency) कहलाती है। उदाहरणार्थ, आजकल संयुक्त राज्य अमेरिका, जास्ट्रेलिया, कनाडा तथा फ्रांस की मुद्राएँ दुर्लभ मुद्राएं कही जाती हैं। इसके विपरीत, जिस देश की मुद्रा की माँग कम होती है तथा जो आसानी से उपलब्ध हो जाती है। वह ‘सुलभ मुद्रा’ (Soft Currency) कहलाती है, जैसे आजकल भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश आदि की मुद्राएँ सुलभ मुद्रा कही जाती हैं। वैसे किसी देश की मुद्रा की दुर्लभता तथा सुलभता में समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है।
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