हेनरी फेयोल द्वारा प्रतिपादित प्रबन्ध के चौदह सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए ।
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प्रबन्ध एवं प्रशासन में फेयोल का योगदान (Fayol’s Contribution in Management and Administration)
जिस प्रकार टेलर वैज्ञानिक प्रबन्ध के जन्मदाता कहे जाते हैं, उसी प्रकार प्रशासनिक प्रबन्ध या कार्यात्मक प्रबन्ध के विकास का श्रेय हेनरी फेयोल को जाता है। फेयोल के अतिरिक्त कार्यात्मक प्रबन्ध (Functional Management) के विकास के योगदान देने वाले अन्य लोगों में ओलिवर शेल्डन, मूने और रेले, एच. साइमन, एल. उर्विक तथा सींबनार्ड प्रमुख हैं।
हेनरी फेयोल (1841-1925) एक संक्षिप्त जीवन परिचय
फेयोल का जन्म सन् 1841 में फ्रांस में कोस्टेन्टीनोपाल में हुआ। सन् 1860 में इंजीनियरी ग्रेजुएट हो जाने पर इन्हें फ्रांस की एक बड़ी कोयला खान कम्पनी में इंजीनियर नियुक्त किया गया। 1872 में वे इसी कम्पनी के प्रबन्धक तथा 1888 में प्रबन्ध संचालक बन ये और अगले 30 वर्षों तक वे इसी पद पर कार्य करते रहे। इस सर्वोच्च पद पर आसीन होने के कारण फेयोल ने उच्च स्तर पर प्रबन्ध की समस्याओं का गूढ़ अध्य किया और उन्होंने 1916 में फ्रेंच भाषा में ‘जनरल एण्ड इण्डस्ट्रियल मेनेजमेण्ट’ पुस्तक प्रकाशित की जिसका 1929 में अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। सन् 1918 में अवकाश प्राप्त करने के बाद फेयोल ने अपने प्रबन्ध सिद्धान्तों का समुचित प्रचार किया। सन् 1925 में फेयोल की मृत्यु हो गयी और उस समय वे फ्रांसीसी तम्बाकू उद्योग पर संगठन सम्बन्धी अनुसन्धान कार्य कर रहे थे।
फेयोल का प्रबन्ध दर्शन
(1) प्रबन्ध का महत्व-
आधुनिक प्रबन्ध सिद्धान्त के वास्तविक जन्मदाता हेनरी फेयोल ही कहे जा सकते हैं। उन्होनें औद्योगिक प्रतिष्ठानों की समस्त क्रियाओं को निम्नांकित छः वर्गों में बाँटा है-
(1) तकनीकी (Technical) – उत्पादन, निर्माण, यन्त्र प्रक्रिया आदि से सम्बन्धित;
(2) वाणिज्यिक (Commercial) – सामग्रियों एवं माल के क्रय-विक्रय से सम्बन्धित;
(3) वित्तीय (Financial) – कोषों की प्राप्ति और उसके कुशल उपयोग से सम्बन्धित;
(4) सुरक्षात्मक (Security ) – मनुष्यों तथा सम्पत्तियों की सुरक्षा से सम्बन्धित ;
(5) लेखाकर्मीय (Accounting) – स्टॉक, बहीखातों, लागतों, अन्तिम परिणामों, आँकड़ों एवं अंकेक्षण से सम्बन्धित ; तथा
(6) प्रबन्धकीय (Managerial) – प्रतिष्ठान की सम्पूर्ण क्रियाओं के नियोजन, संगठन, आदेश समन्वय एवं नियन्त्रण से सम्बन्धित ।
उस समय तकनीकी योग्यता को प्रतिष्ठान में सर्वोच्च महत्व दिया जाता था। फैयोल ने स्पष्ट रूप से कहा कि तकनीकी योग्यता का बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों में निचले स्तर पर और छोटे प्रतिष्ठानों में ऊंचे स्तर पर निःसन्देह बहुत महत्व है। परन्तु जैसे-जैसे प्रतिष्ठा के आकार में वृद्धि होती है, तकनीकी योग्यता की तुलना में प्रबन्धकीय योग्यता का महत्व बढ़ता चला जाता है।
(II) प्रबन्ध के सिद्धान्त-
हेनरी फेयोल ने प्रबन्ध के 14 सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इन विभिन्न सिद्धान्तों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है-
(1) श्रम विभाजन- प्रशासन के क्षेत्र में भी श्रम विभाजन को अपनाया जाना चाहिए। हेनरी फेयोल के मतानुसार श्रम विभाजन केवल कारखानों में ही आवश्यक नहीं है वरन् तकनीकी और प्रशासन सम्बन्धी कार्यों में भी श्रम विभाजन के सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि श्रम विभाजन छोटी संस्थाओं में न अपनाया जाए तथा आवश्यक श्रम विभाजन किया जाए क्योंकि इससे अनावश्यक रूप से उत्पादन लागत में वृद्धि होगी। अतः श्रम विभाजन के सिद्धान्त को अपनाते समय संस्था के आकार का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। टेलर के अनुसार, “संगठन में जहाँ तक सम्भव हो, किसी एक व्यक्ति का कोई भी एक महत्वपूर्ण कार्य होना चाहिए।”
(2) अधिकार – अधिकार का आशय किसी कार्य को करने के लिए आज्ञा देने तथा निर्देश देने का अधिकार से है। प्रशासन में भूमिका निभाने वाले प्रत्येक अधिकारी को उचित एवं पर्याप्त अधिकार भी प्रदान किए जाने चाहिए, जिससे कि वह अपने उत्तरदायित्वों का भली-भाँति निर्वाह कर सके ।
(3) अनुशासन – अनुशासन का आशय कर्मचारियों में नियमों के प्रति आस्था, अधिकारों के प्रति श्रद्धाभाव, आज्ञा पालन, परिश्रम से कार्य करने की भावना, व्यावहारिकता आदि है। प्रत्येक व्यवसाय तथा औद्योगिक इकाई की सफलता के लिए उसके कर्मचारियों में अनुशासन होना अत्यन्त आवश्यक है। इकाई के छोटे से छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े से बड़े अधिकारी तक अनुशासन समान रूप से लागू किया जाना चाहिए क्योंकि नेतृत्व करने वाले अधिकारी ही अनुशासन का पालन नहीं करेगे तो कोई भी कर्मचारी अनुशासन का पालन नहीं करेगा। हेनरी फेयोल ने भी ठीक ही कहा है, “बुरा अनुशासन एक बुराई है, जो बुरे नेतृत्व से आती है।” अतः अनुशासन बनाए रखने के लिए प्रबन्ध के सभी स्तरों पर योग्य एवं अनुभवी व्यक्ति होने चाहिए।
(4) आदेश की एकता- इस सिद्धान्त का आशय है कि कर्मचारियों को कार्य करने के लिए एक ही व्यक्ति द्वारा निर्देश दिए जाने चाहिए। आदेश की एकरूपता के अभाव में प्रशासन में अव्यवस्था और गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है तथा अनुशासन के साथ-साथ उत्पादन में भी शिथिलता आ जाती है।
(5) निर्देश की एकता- किसी उपक्रम की समान लक्ष्य एवं उद्देश्य वाली विभिन्न क्रियाओं का संचालन एक योजना एवं एक ही प्रबन्धक के अन्तर्गत होने चाहिए, जिससे कि उन समस्त क्रियाओं को एक ही लक्ष्य की प्राप्ति हेतु निर्देशित किया जा सके, केवल तभी इसकी क्रियाओं एवं साधनों के मध्य सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
(6) सामूहिक हितों की प्राथमिकता- इस सिद्धान्त के अनुसार प्रशासन के अन्तर्गत समस्त क्रियाओं को सम्पन्न करने में व्यक्तिगत हितों की तुलना में सामूहिक हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। प्रत्येक कार्य किसी व्यक्ति विशेष के लाभ हेतु नहीं बल्कि सम्पूर्ण उपक्रम एवं समाज के हितों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
(7) समुचित पारिश्रमिक — प्रत्येक कर्मचारी को उसकी योग्यता एवं के अनुरूप ही पारिश्रमिक दिया जाए तथा उसका पारिश्रमिक एवं श्रम में प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहना चाहिए। इसके लिए ऐसी मजदूरी भुगतान पद्धति अपनाई जाए, जिससे कर्मचारी एवं नियोक्ता दोनों सन्तुष्ट रहें, श्रम एवं पूँजी में मधुर सम्बन्ध बने एवं उत्पादन में भी वृद्धि हो कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने को मौद्रिक प्रेरणाओं के साथ-साथ अमौद्रिक प्रेरणाएँ भी मिलनी चाहिए।
(8) केन्द्रीयकरण— कर्मचारियों से कार्य के लिए नियन्त्रण एवं निर्देशन का केन्द्रीयकरण किया जाए अथवा विकेन्द्रीयकरण तथा उसका अनुकूलतम स्तर कौन-सा माना जाए इस बात का सही एवं उचित निर्णय प्रशासन के अन्तर्गत बहुत सोच-समझकर किया जाना चाहिए। उपक्रम की सफलता तथा कर्मचारियों के गुणों एवं योग्यता का सर्वोत्तम लाभ उठाने के लिए निर्देशन, नियन्त्रण एवं विकेन्द्रीयकरण की समस्या एक महत्वपूर्ण घटक होती है। फेयोल के अनुसार किसी उपक्रम में अधिकारों का केन्द्रीयकरण किस सीमा तक हो, यह संस्था की प्रकृति, अधीनस्थों की कार्यकुशलता आदि पर निर्भर है।
(9) सम्पर्क शृंखला – व्यावसायिक तथा औद्योगिक संगठन में उच्च पदाधिकारियों से लेकर निम्न-स्तरीय कर्मचारियों तक सम्पर्क का मार्ग सीधा होना चाहिए अर्थात संदेश देने तथा प्राप्त करने का मार्ग एक सीधी रेखा के रूप में स्पष्ट एवं निश्चित होना चाहिए। इस सम्बन्ध में हेनरी फेयोल ने एक संगठन चार्ट का उल्लेख किया है।
फेयोल की सम्पर्क श्रृंखला का अर्थ है उच्च अधिकारियों से लेकर निम्न अधिकारियों के स्तर और उनकी स्थिति तक आदेशों, निर्देशों, प्रतिक्रियाओं और सूचनाओं के आदान-प्रदान की पूर्व निर्धारित सीढ़ी। इसकी अवहेलना नहीं की जानी चाहिए, लेकिन यदि यह सीढ़ी कुशलता में बाधक हो तो इसका उल्लंघन किया जा है।
(10) व्यवस्था — उत्पादन सम्बन्धी कार्यों के सुचारू संचालन के लिए तथा निष्पादन को प्रभावशाली बनाने के लिए भौतिक तथा मानवीय साधनों की समुचित तथा योजनाबद्ध व्यवस्था होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक यन्त्र, वस्तु एवं मनुष्य का स्थान पहले से निर्धारित होना चाहिए जिससे न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव हो तथा कार्यबाधाओं की पुनरावृति को रोका जा सके।
(11) समानता—समानता का आशय है कि अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ न्याय, उदारता एवं मैत्रीपूर्ण व्यवहार, जिससे कि उनमे सद्भावना, सहयोग एवं कार्य के प्रति लगन की भावना बनी रहे।
(12) कर्मचारियों का स्थायित्व – कुशलता एवं योग्य प्रशासन हेतु यह भी अत्यन्त आवश्यक है कि कर्मचारियों में जल्दी-जल्दी परिवर्तन नहीं हो। इससे कर्मचारी निश्चिन्तता एवं तत्परता से कार्य नहीं कर पाते तथा नये आने वाले कर्मचारियों को काम सीखने में समय लगता है अतः संगठन की सफलता एवं उसके निश्चित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को आसानी से प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों में स्थिरता होना नितान्त आवश्यक है ।
(13) कर्मचारियों को अभिप्रेरण— कुशल प्रशासन के लिए आवश्यक है कि कर्मचारियों को विभिन्न प्रेरणाएँ (वित्तीय एवं गैर-वित्तीय) दी जाएँ, कर्मचारियों को कार्य निष्पादन की नई-नई एवं लाभकारी योजनाएँ प्रस्तुत कर सकें तथा उन्हें सफल बनाने में लगन एवं तत्परता से कार्य कर सकें। अभिप्रेरणा से कर्मचारियों पर बहुत अच्छा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।
(14) पारस्परिक सहयोग — हेनरी फेयोल ने पारस्परिक सहयोग अथवा आपस में मिलकर काम करने की भावना पर विशेष बल दिया। इसके लिए उच्च अधिकारियों को कर्मचारियों के साथ सद्भावपूर्ण मानवोचित व्यवहार करना चाहिए। अधिकारियों को ऐसी योजनाओं का निर्माण एवं कार्य करने चाहिए जिनके कर्मचारियों में पारस्परिक सहयोग एवं सद्भाव की भावना जागृत हो सके।
(III) प्रबन्धकीय योजनाएँ एवं प्रशिक्षण-
श्री हेनरी फेयोल ने प्रबन्धकीय योग्यता एवं उन्हें प्रशिक्षण दिये जाने पर बल दिया। उनके अनुसार एक प्रबन्धक में निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए-
- शारीरिक स्वास्थ्य एवं स्फूर्ति ।
- विवेक शक्ति एवं सतर्कता ।
- उत्तरदायित्व स्वीकारने की क्षमता एवं स्वामिभक्ति
- सामान्य ज्ञान ।
- विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव ।
फेयोल के अनुसार प्रबन्धकीय योग्यता प्रबन्धकों में जन्मजात नहीं होती वरन् शिक्षण व प्रशिक्षण से प्राप्त एवं विकसित की जा सकती है।
(IV) नियन्त्रण का विस्तार-
एक शीर्ष अधिकारी के अधीन कितने अधीनस्थ हों, इस बात का निर्णयन करने से पूर्व संस्था में विद्यमान परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए—इस बात पर श्री फेयोल ने पृथक् से दिशा-निर्देश दिये थे। उनके अनुसार सामान्यतः एक उच्च अधिकारी के नियन्त्रण में चार या पांच अधीनस्थ ही होने चाहिए।
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध के क्षेत्र में फेयोल के योगदान की अनदेखी नहीं की जा सकती। उनके द्वारा प्रदत्त विचारों की गहनता एवं अनुभव का मिश्रण निश्चित रूप से अविस्मरणीय है।
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