बैंकों के प्रकार (KINDS OF BANKS)
आधुनिक युग में उद्योग, व्यापार एवं वाणिज्जा का अत्यधिक विकास हो गया है, जिस कारण एक प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था हर प्रकार की साख आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकती। कृषि, उद्योग, वाणिज्य, विदेशी व्यापार, सहकारिता आदि विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट बैंकिंग संस्थाओं की आवश्यकता पड़ती है। भारत में विभिन्न प्रकार के बैंकों की स्थापना की गई है जिन्हें मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है—(I) आधुनिक बैंक तथा (II) प्राचीन देशी बैंकर
(I) भारत के आधुनिक बैंक (Modern Banks of India)-भारत में विभिन्न प्रकार के आधुनिक बैंक पाए जाते हैं। इन्हें ‘आधुनिक बैंक’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनकी कार्यप्रणाली आधुनिक पश्चिमी राष्ट्रों के बैंकों की कार्यप्रणाली से मिलती-जुलती है।।
(1) व्यापारिक (वाणिज्यिक) बैंक (Commercial Banke)—ये बैंक व्यापार तथा वाणिज्य के विकास के लिए अल्पकालीन साख प्रदान करते हैं। ये बैंक ऋण देने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों, हुण्डी, विनिमय-विपन्न, तैयार माल आदि तरत सम्पत्ति की लेते हैं। ये बैंक सभी प्रकार के खातों में जमाएँ (deposits) स्वीकार करते हैं, किन्तु इन्हें सर्वाधिक जमाराशि चालू खातों में प्राप्त होती है। ये बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक प्रकार के एजेन्सी कार्य करते हैं। कुछ वाणिज्यिक बैंक विदेशी व्यापार की वित्त व्यवस्था सम्बन्धी कार्य भी करते हैं। भारत में बैंक ऑफ बड़ौदा, सेन्ट्रल बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक, सिण्डीकेट बैंक, केनरा बैंक, कॉरपोरेशन बैंक आदि व्यापारिक बैंक है। भारत सरकार ने जुलाई 1969 में 14 तथा अप्रैल 1980 में छः बड़े व्यापारिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था।
(2) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया (State Bank of India)—यह भारत का एक राष्ट्रीयकृत व्यापारिक बैंक है। इसकी स्थापना 1 जुलाई, 1955 को इम्पीरियल बैंक का राष्ट्रीयकरण करके की गई थी। देश में स्टेट बैंक की शाखाओं का जाल बिछा हुआ है जो व्यापारिक बैंकों के सभी कार्यों को करती हैं। स्टेट बैंक पर रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का प्रत्यक्ष नियन्त्रण है। जिन स्थानों पर रिजर्व बैंक की शाखाएँ नहीं है वहाँ यह रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
(3) औद्योगिक बैंक (Industrial Banks) इन बैंकों को ‘विकास बैंक’ (Development Banks) के नाम से भी जाना जाता है। मध्यम तथा बड़े उद्योगों को दीर्घकालीन ऋण की आवश्यकता पड़ती है, जिन्हें व्यापारिक बैंक प्रदान नहीं कर पाते। उद्योगों के लिए दीर्घकालीन ऋण (5 से 20 वर्ष) की व्यवस्था औद्योगिक बैंकों द्वारा की जाती है। औद्योगिक बैंक के तीन प्रमुख कार्य हैं–(1) निक्षेप या जमाराशियों स्वीकार करना, (ii) उद्योगों की ऋण सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करना, तथा (III) कम्पनियों के अशी व ऋणपत्रों का क्रय-विक्रय करना तथा ग्राहकों को इस सम्बन्ध में उचित परामर्श देना। भारत में ऐसे बैंकों की कमी दूर करने के उद्देश्य से औद्योगिक वित्त प्रमण्डलों की स्थापना की गई है। औद्योगिक वित्त निगम, विभिन्न राज्य वित्त निगम, राष्ट्रीय औद्योगिक विकास बैंक, औद्योगिक साख एवं निवेश निगम, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम आदि भारतीय औद्योगिक बैंकों के उदाहरण हैं।
(4) विदेशी विनिमय बैंक (Foreign Exchange Banks) — इन्हें ‘विनिमय बैंक’ भी कहते हैं। ये बँक मुख्यतः विदेशी व्यापार का ही अर्थ-प्रबन्ध करते हैं। इन बैंकों का मुख्य कार्य विदेशी विनिमय-विपत्रों का क्रय-विक्रय करना तथा देशी मुद्रा को अन्य देशों की मुद्राओं में परिवर्तित करना है। ये बैंक सोने-चाँदी का क्रय-विक्रय भी करते हैं। इन बैंकों की शाखाएँ विभिन्न देशों में होती हैं, जो विदेशी भुगतान को सुगम बनाती है। भारत के अधिकांश विनिमय बैंक विदेशी हैं किन्तु इन पर रिजर्व बैंक का समुचित नियन्त्रण है। भारत में कुछ व्यापारिक बैंक भी विनिमय बैंक के कार्य करते हैं।
(5) सहकारी बैंक (Co-operative Banks) — इन्हें ‘सहकारी साख समिति’ भी कहा जाता है। ये किसानों को अल्पकालीन ऋण प्रदान करते हैं। कोई भी दस या इससे अधिक व्यक्ति मिलकर एक सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते हैं। सहकारी समितियां अपने निजी साधनों के अतिरिक्त केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सहकारी बैंकों से ऋण प्राप्त करके कम व्याज दर पर अपने सदस्यों को ऋण प्रदान करती हैं। सहकारी साख समित्तियों की सहायता के लिए जिलों में केन्द्रीय सहकारी बैंक (Central Co-operative Banks) और केन्द्रीय सहकारी बैंकों की सहायता के लिए राज्य सहकारी बैंक (State Co operative Banks) है। सहकारी साख समितियों या बैंकों के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है तथा इन पर प्रान्तीय सरकार का नियन्त्रण होता है।
(6) भूमि विकास बैंक (Land Development Banks) भूमि विकास बैंकों को अब ‘सहकारी कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (Co-operative Agriculture and Rural Development Banks या CARDB) के नाम से जाना जाता है। ये बैंक किसानों की भूमि को बन्धक रखकर उन्हें दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। ऋण विभिन्न कार्यों के लिए दिए जाते हैं. जैसे नई भूमि खरीदने, भूमि में स्थाई सुधार करने, कुआँ बनवाने, पैतृक ऋण का भुगतान करने आदि के लिए ऋण प्रायः दस से बीस वर्ष के लिए दिए जाते हैं। ऐसे बैंक दो प्रकार के हैं–(i) राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक-ऐसे बैंकों का क्षेत्र एक समस्त राज्य होता है। (ii) प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक- इन बैंकों का कार्यक्षेत्र एक तहसील या जिला होता है। ये बैंक किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं।
(7) केन्द्रीय बैंक (Central Bank) प्रत्येक देश में वहाँ की मौद्रिक प्रणाली को भली-भाँति संचालित तथा नियन्त्रित करने के लिए एक केन्द्रीय बैंक का होना अनिवार्य होता है। यह देश के अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नियन्त्रण रखता है। सरकारी कोष भी इसी के अधिकार क्षेत्र में होते हैं। इसे पत्र मुद्रा के निर्गमन का एकाधिकार प्राप्त होता है। यह देश की मुद्रा के आन्तरिक तथा बाह्य मूल्य को स्थिर रखने का भी काम करता है। इस बैंक के अन्य कार्य है–साख पर नियन्त्रण, सरकार को महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा वित्तीय मामलों में परामर्श देना, विभिन्न प्रकार के आंकड़े एकत्रित करना आदि। भारत का केन्द्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (Reserve Bank of India) है, जिसकी स्थापना सन् 1935 में की गई थी जबकि इसका राष्ट्रीयकरण 1949 में किया गया। यह केन्द्रीय बैंक के सभी कार्य करता है।
(8) डाकघर बचत बैंक (Post Office Savings Banka)-भारत तथा कुछ अन्य देशों में डाकघर जनता की अल्प बचती को जमा करते हैं तथा उन पर ब्याज देते हैं। कोई भी व्यक्ति डाकघर में बचत बैंक खाता खोल सकता है। जमाराशि पर डाकघर ब्याज देते हैं। 31 मार्च, 2010 को लगभग 1.53 लाख डाकघर 23.75 करोड़ बचत खाते संचालित कर रहे थे।
(9) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banka) ग्रामीण क्षेत्र के कमजोर वर्गों, छोटे तथा सीमान्त किसानों, भूमिहीन मजदूरों, दस्तकारों तथा छोटे उद्यमियों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई है। 30 जून 2006 को देश में 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की 500 जिलों में 14.500 शाखाएँ थीं सितम्बर 2005 में इन बैंकों की विलयप्रक्रिया प्रारम्भ होने के कारण 31 मार्च, 2010 को इनकी संख्या घटकर 82 रह गई थी जिनकी जून 2010 में 15,406 शाखाएं थीं।
स्थापना के कारण- ग्रामीण बैंकों की आवश्यकता मुख्यतः दो कारणों से अनुभव की गई(I) राष्ट्रीयकृत व्यापारिक बैंक तथा सहकारी बँक छोटे व सीमान्त किसानों, ग्रामीण दस्तकारों तथा भूमिहीन किसानों की साख आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असमर्थ रहे हैं। अतः ऐसी साख संस्था की आवश्यकता थी जो ग्रामीण क्षेत्रों के पिछड़े तथा निर्धन वर्ग को साख प्रदान कर सके। (ii) व्यापारिक बैंकों की कार्यप्रणाली काफी जटिल है। ये बैंक अपना अधिकांश कार्य अंग्रेजी भाषा में करते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष प्रकार के बैंकों की आवश्यकता अनुभव की गई।
(10) राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agricultural and Rural Development) ग्रामीण क्षेत्र के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा के लिए देश में 12 जुलाई, 1982 को राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक’ नामक एक नया बैंक खोला गया जिसका संक्षिप्त नाम नाबार्ड (NABARD) है। इस बैंक को कृषि-साथ के सर्वोच्च बैंक के रूप में स्थापित किया गया है। यह भारत सरकार तथा रिजर्व बैंक का संयुक्त बैंक है तथा दोनों ने इसके शेयर खरीदे हुए हैं। यह बैंक मुख्यतः रिजर्व बैंक तथा भारत सरकार के ग्रामीण साख तथा ग्रामीण विकास सम्बन्धी कार्यों को करने के लिए खोला गया है। रिजर्व बैंक इसे अल्पकालीन ऋण देता है जबकि दीर्घकालीन ऋण इसे भारत सरकार से मिलते हैं। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित है
(i) कृषि साथ का पुनर्वित्त- नाबार्ड का प्रमुख कार्य राज्य सरकारों, राज्य सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा कृषि, लघु व कुटीर उद्योगों, ग्रामीण विकास, हस्तकला आदि के लिए दिए गए ऋणों पर पुनर्वित करना है।
(ii) संस्थागत ग्रामीण साख- बैंक का कार्य ऐसे उपाय अपनाना है जिनसे संस्थागत ग्रामीण साख संरचना को किया जा सके। यह स्वीकृत संस्थाओं को साख प्रदान करता है।
(iii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निरीक्षण- यह क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निरीक्षण तथा उनके पुनर्वित्त एवं विकास के लिए मुद्रुद कार्य करता है।
(iv) विदेशी सहायता- देश के कृषि तथा लघु उद्योगों के विकास से सम्बन्धित प्रायोजनाओं को प्राप्त होने वाली विदेशी सहायता नाबार्ड द्वारा प्रदान की जाती है।
(v) सरकार तथा रिजर्व बैंक का एजेन्ट- ग्रामीण विकास के सम्बन्ध में नाबार्ड भारत सरकार के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। यह रिजर्व बैंक के ग्रामीण साख विभाग तथा कृषि पुनर्वित्त एवं निगम के सभी कार्य करता है। ग्रामीण बैंकिंग तथा ग्रामीण विकास के सम्बन्ध में प्रशिक्षण, खोज तथा सूचना के आदान-प्रदान की सुविधाएँ प्रदान करता है।
(11) भारतीय निर्यात आयात बैंक (Export-Import Bank of India)- इस बैंक की स्थापना 1 जनवरी, 1982 को की गई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश के आयात-नियांत व्यापार को वित्तीय सुविधाएं प्रदान करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बैंक मुख्यतया ये कार्य करता है- (1) नियांत को बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान करना। (2) निर्यात उत्पादन हेतु दीर्घकालीन ऋण देना। (3) निर्यात विपणन के लिए ऋण देना (4) पुनः ऋण की सुविधा देना (5) देश के निर्यातकों को गारन्टी के रूप में सुविधा देना। 31 मार्च 2010 तक एक्जिम बैंक ने 38.843 करोड़ स० के ऋण स्वीकृत किए और 33,249 करोड़ रु० के ऋण वितरित किए।
(12) राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank) यह भारत की सर्वोच्च आवास वित्त संस्था है जिसकी स्थापना जुलाई 1988 में की गई थी। बैंक की अधिकृत पूंजी 500 करोड़ रु० है। इस बैंक के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-(1) क्षेत्रीय तथा स्थानीय स्तर पर आवास वित्त संस्थाओं का प्रवर्तन तथा उनकी स्थापना तथा (ii) अनुसूचित बैंकों तथा आवास वित्त संस्थाओं को वित्तीय तथा अन्य सहायता प्रदान करना।
(13) विदेशी विनिमय बैंक (Foreign Echange Bank) इन्हें ‘विनिमय बैंक’ भी कहते हैं। ये बैंक मुख्यता विदेशी व्यापार का ही अर्थ-प्रबन्धन करते हैं। इन बैंकों का मुख्य कार्य विदेशी विनिमय-विपत्रों का क्रय-विक्रय करना तथा देशी मुद्रा को अन्य देशों की मुद्राओं में परिवर्तित करना है। ये बैंक स्वर्ण रजत का भी क्रय-विक्रय करते हैं। इन बैंकों की शाखाएँ विभिन्न देशों में होती हैं जो विदेशी भुगतान का सुगम बनाती हैं। भारत में अधिकांश विनिमय बैंक विदेशी हैं किन्तु इन पर रिजर्व बैंक का समुचित नियन्त्रण है। भारत में कुछ व्यापारिक बैंक भी विनिमय बैंक का कार्य करते हैं।
(II) प्राचीन देशी बैंकर (Indigenous Bankens) यह पद्धति भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है। देशी बैंकर में वे महाजन, साहूकार तथा अन्य व्यक्ति सम्मिलित हैं जो व्याज पर ऋण प्रदान करते हैं। इन्हें भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे बेटी, मारवाड़ी सेठ, सरॉफ आदि देशी बैंकर सामान्यतः ऊँची ब्याज की दर पर ऋण देते हैं। इनका ग्रामीण वित्त व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। देशी बँकर प्रायः किसानों, मजदूरों, कारीगरों, छोटे व्यापारियों आदि को ऋण देते हैं।
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