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बैंक: अर्थ (Bank: Meaning)
“बैंक यह संस्था है जो मुद्रा में व्यवसाय करती है। यह ऐसा संस्थान है जहाँ धन का निर्दोष, संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा जहाँ ऋण व कटौती को सुविधाएँ प्रदान की जाती है और एक स्थान से दूसरे स्थान पर धनराशि भेजने की व्यवस्था की जाती है।”
-वेब्स्टर शब्दकोष
बैंक का अर्थ (Meaning of Bank)
साधारण बोलचाल की भाषा में ‘बैंक’ एक ऐसी संस्था मानी जाती है जो व्यक्तियों से मुद्रा जमा के रूप में प्राप्त करती है तथा जरूरतमन्द व्यक्तियों व संस्थाओं को धनराशि (मुद्रा) को ऋण पर देती है। किन्तु आधुनिक बैंक विभिन्न प्रकार के कार्य सम्पन्न करते हैं, जिस कारण ‘बैंक की नपे-तुले शब्दों में एक सर्वमान्य परिभाषा देना कठिन कार्य है। बैंक को लेखकों ने भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है।
बैंक की परिभाषाएँ (Definitions of Bank) – बैंक की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
(1) प्रो० किनले (Kinley) के शब्दों में, “बैंक एक ऐसी संस्था है जो सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ऐसे व्यक्तियों को ऋण देती है जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है तथा जिसके पास व्यक्ति अपनी फालतू धनराशि जमा करते हैं।
(2) फिन्डले शिराज (Findlay Shirras) के शब्दों में, “बँकर वह व्यक्ति, फर्म अथवा कम्पनी है जिसके पास कोई ऐसा व्यापारिक स्थान हो जहाँ मुद्रा अथवा चलन की जमा द्वारा साख का कार्य किया जाता है तथा जमा का भुगतान ड्राफ्ट, चक अथवा आदेश द्वारा किया जाता है, जबवा जहाँ स्टॉक, बाण्ड, बुलियन और विनिमय विपत्र पर मुद्रा उधार दी जाती है, अथवा जहाँ विनिमय-विपत्र तथा प्रतिज्ञा पत्र बट्टे पर या बेचने के वास्ते लिए जाते हैं।”
(3) वाल्टर लीफ के विचार में बैंक एक ऐसी संस्था है जो जनता से जमा के रूप में धनराशि लेने के लिए हर समय तैयार रहती है तथा जमाकर्ताओं को उनके द्वारा लिखे गए बैंकों के माध्यम से उनकी धनराशि वापिस करती है।”
(4) भारतीय बैंकिंग कम्पनीज अधिनियम, 1949 के अनुसार, बैंक एक ऐसी संस्था या कम्पनी है जो मुद्रा को उधार देने या निवेश करने हेतु इसे जनता से जमा पर प्राप्त करती है तथा जो इसका भुगतान, माँगने पर चैक, ड्राफ्ट, या आदेश आदि द्वारा करती है|
उक्त परिभाषाओं का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इन सब में बैंक के दो महत्त्वपूर्ण कार्यों पर बल दिया गया है–(1) जनता से जमाराशियाँ स्वीकार करना, तथा (2) जरूरतमन्द व्यक्तियों व संस्थाओं को ऋण देना किन्तु इन दो कार्यों को करने से ही कोई संस्था बैंक नहीं बन जाती उदाहरणार्थ भारतीय महाजन उक्त दोनों कार्यों को सम्पन्न करते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें ‘बैंक’ नहीं कहा जा सकता। अतः बैंक की कोई ऐसी परिभाषा होनी चाहिए जो बैंक के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों का समावेश करती हो। इस दृष्टि से बैंक की यह सूक्ष्म परिभाषा उपयुक्त है- “बैंक उस व्यक्ति या संस्था को कहते हैं जो मुद्रा तथा साख में व्यवसाय करती है।” मुद्रा व साख में व्यवसाय करने का अर्थ है-मुद्रा तथा साख का क्रय-विक्रय करना। “व्यवसाय” (business) शब्द इतना व्यापक है कि इसमें बैंक के सभी कार्यों को शामिल किया जा सकता है।
बँक की उपयुक्त परिभाषा – बैंक की लगभग सभी विशेषताओं को वेब्स्टर शब्दकोश में दी गई परिभाषा में शामिल किया गया है जिस कारण इस परिभाषा को श्रेष्ठ माना गया है। वेक्टर शब्दकोश के अनुसार, “बैंक यह संख्या है जो मुद्रा में लेन-देन करती है। यह ऐसा संस्थान है जहाँ पन का निक्षेप, संरक्षण तथा निर्गमन होता है तथा जहाँ ऋण व कटौती की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पनराशि भेजने की व्यवस्था की जाती है।”
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