भारतीय परिस्थितियों के विशेष सन्दर्भ में प्रबन्ध का महत्व (Importance of Business Administration in India)
भारत की असंख्य आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संगठनात्मक इकाइयों के सभी रोगों का इलाज उनके प्रबन्ध सुधार में निहित है। भारत में सर्वांगीण विकास की शक्तियों को प्रेरित करने हेतु सबसे महत्वपूर्ण घटक प्रबन्ध है। हमारे देश की विशिष्ट परिस्थितियों में प्रबन्ध तथा प्रबन्धकीय शिक्षा का महत्व निम्न प्रकार से स्पष्ट हो जाता है-
(1) आर्थिक विकास द्रुतगति से करने के लिए— भारत में प्रबन्ध का महत्व इसलिए भी अत्यधिक है कि इसकी विकासशील अर्थव्यवस्था में अनेकों आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है एवं जिसके कारण आर्थिक विकास अवरूद्ध हो रहा है। अतः यदि उपलब्ध साधनों का नियोजित विकास करके श्रेष्ठतम प्रबन्ध व्यवस्था कायम कर दें तो विकास को द्रुत गति दी जा सकती है।
(2) आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु- भारत में आधारभूत सुविधाओं जैसे- औद्योगिक शक्ति, परिवहन एवं संचार प्रौद्योगिकी आदि की समुचित व्यवस्था के द्वारा ही उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है। कुशल प्रबन्ध के बिना यह सम्भव नहीं है।
(3) संसाधनों के समुचित उपयोग हेतु— सुनियोजित प्रबन्ध के द्वारा ही देश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का समुचित उपयोग किया जा सकता है। प्रबन्ध से इन आर्थिक, मानव विज्ञान एवं अन्य घटकों के मध्य आपसी समन्वय स्थापित करके वांछित लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते है।
(4) उत्पादकता में अभिवृद्धि – कुशल प्रबन्ध द्वारा उत्पादन के साधनों में उचित समन्वय स्थापित करते हुए माल व मशीनों के दुरूपयोग को रोककर उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है जिसकी आज देश में विशेष आवश्यकता है।
(5) रोजगार के अवसरों मे वृद्धि – भारत की विशाल एवं मूल्यवान मानवीय सम्पदा का सदुपयोग कुशल प्रबन्ध द्वारा ही सम्भव है । प्रबन्धकीय क्षमता का पूर्ण उपयोग करके रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है ताकि देश की बेरोजगारी की समस्या हल हो सके।
(6) सार्वजनिक उपक्रमों के कुशल संचालन हेतु – देश में सार्वजनिक उपक्रमों का विस्तार तेजी से हो रहा है। लेकिन कुशल प्रबन्ध के अभाव में ये उपक्रम अपने उद्देश्यों की पूर्ति में असफल रहे हे। इनके घाटे से उबरने एवं इनकी उत्पादकता बढ़ाने की दृष्टि से प्रबन्धकों की सेवाएँ उपयोगी हो सकती हैं।
(7) श्रम पूँजी में मधुर सम्बन्ध हेतु – प्रबन्ध, श्रम एवं पूँजी के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सेतु का काम करता है। भारत में श्रम एवं पूँजी के सम्बन्ध मधुर एवं सन्तोषजनक नहीं हैं। इस दिशा में सुधार के लिए प्रबन्ध उपयोगी भूमिका निभा सकता है।
(8) कर्मचारियों की कुशलता में वृद्धि के लिए – किसी भी उपक्रम के कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता उसके प्रबन्ध पर निर्भर करती है। यदि भारतीय श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि करनी है तो नई वैज्ञानिक प्रबन्ध व्यवस्था को अपनाना जरूरी है।
(9) आधुनिक तकनीकों को अपनाने हेतु – आधुनिक वैज्ञानिक एवं तकनीकी विधियों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए वैज्ञानिक प्रबन्ध आवश्यक है। भारत में परम्परागत औद्योगिक ढाँचे में परिवर्तन प्रबन्ध के माध्यम से ही सम्भव है।
(10) उपभोक्ताओं के हित संवर्द्धन हेतु — वर्तमान समय में किसी भी उपक्रम का उद्देश्य केवल लाभ कमाना नहीं होता, बल्कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना भी होता है। भारत में उपभोक्ताओं को सस्ती, टिकाऊ एवं श्रेष्ठ किस्म की वस्तुएँ उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए प्रबन्ध नीति में सुधार आवश्यक है ।
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