भारतीय श्रमिकों की कम कुशलता के कारण
प्रायः कहा जाता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी, फ्रांस आदि विकसित राष्ट्रों के श्रमिकों की तुलना में भारतीय श्रमिकों की कार्यकुशलता कम है। किन्तु बटलर के विचार में भारतीय श्रमिकों की कार्यकुशलता विवादग्रस्त है। कम से कम उद्योगों में तो वे विदेशी श्रमिकों से अधिक कार्यकुशल है। 1946 की श्रम समिति (Labour Enquiry Committee) के विचार में, “भारतीय श्रमिकों तथाकथित अकुशलताप है। यदि भारतीय अधिकों को अन्य पश्चिमी की । ही काम को दशाएँ, मजदूरी मशीनी उपकरण, प्रबन्ध-व्यवस्था तथा उत्पादन कार्य सम्बन्धी अन्य सुविधाएं प्रदान कर दी जाएँ, तब उनकी कार्यकुशलता भी किसी भी देश के श्रमिकों से कम नहीं होगी।” यदि भारतीय अमिक अकुशल हैं तो इसके लिए वे परिस्थितियाँ उत्तरदायी हैं जिनमें कि वे कार्य करते हैं। भारतीय अमिकों की कम कुशलता के लिए मुख्यतया अनलिखित कारण उत्तरदायी है
(1) गर्म जलवायु- देश के अधिकांश भागों में इतनी गर्मी पड़ती है कि थोड़ा-सा शारीरिक श्रम करने से ही पसीना बहने लगता है तथा थकान अनुभव होने लगती है। परिणामतः श्रमिकों की कार्यक्षमता घट जाती है। फिर समस्त देश में एक सी जलवायु नहीं पाई जाती।
(2) कार्य करने की प्रतिकूल दशाएं-भारत में कार्य करने की दशाएँ अच्छी नहीं है, जैसे कार्यों पर शुद्ध वायु, पर्याप्त रोशनी, सफाई, जल, गर्मी-सर्दी से बचाव, पर्याप्त सुरक्षा आदि का सामान्यतया अभाव पाया जाता है। इन बातों का श्रमिकों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित है।
(3) कार्य करने के अधिक घण्टे-यद्यपि भारत में कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत श्रमिकों के कार्य करने के घण्टे निश्चित कर दिए गए हैं, किन्तु फिर भी श्रमिकों से अधिक घण्टे कार्य करवाया जाता है। विना विश्राम के अधिक घण्टों तक कार्य करने से श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(4) श्रमिकों की प्रवासी प्रवृत्ति- अधिकांश श्रमिक कार्य करने के लिए गाँवों से शहर आते हैं तथा फसल बोने व काटने के समय वापिस गाँव चले जाते हैं। कार्य से बार-बार अनुपस्थित रहने तथा अपना कार्य स्थान बदलते रहने के कारण श्रमिकों की कार्यकुशलता बनी नहीं रह पाती।
(5) नैतिक गुण-निर्धनता तथा अशिक्षा के कारण भारतीय श्रमिकों में नैतिक गुणों का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता तया उनमें अनेक बुरी आदतें पड़ जाती हैं, जैसे बेईमानी, जुआ खेलना, शराब पीना आदि।
(6) कम मजदूरी- भारत में श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी मिलती है जिस कारण वे अनिवार्य आवश्यकताओं की भी सन्तुष्टि नहीं कर पाते। परिणामतः उनकी कार्यक्षमता कम है।
(7) रहन-सहन का निम्न स्तर- कम मजदूरी के कारण भारतीय श्रमिकों को सन्तुलित भोजन, अच्छा आवास तथा पर्याप्त वस्त्र उपलब्ध नहीं हो पाते।
(8) शारीरिक दुर्बलता-निम्न जीवन स्तर तथा मादक वस्तुओं के उपभोग के कारण भारतीय अमिक शारीरिक दृष्टि से होते हैं। फलतः उनकी कार्यक्षमता कम होती है। फिर कमजोर शरीर पर बीमारियों और भी जल्दी हावी हो जाती हैं।
(9) शिक्षा तथा प्रशिक्षण का अभाव- देश में सामान्य तथा तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव है। शिक्षा एवं प्रशिक्षण के अभाव में श्रमिकों की कार्यकुशलता का कम होना स्वाभाविक है।
(10) सामाजिक प्रथाएँ-जाति प्रथा, संयुक्त परिवार-प्रथा तथा अन्य सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण श्रमिक अपनी रुचि तथा योग्यता के अनुसार व्यवसाय नहीं चुन पाते।
(11) ऋणग्रस्तता- विभिन्न सामाजिक तथा धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाने के लिए अमिकों को अपनी सामर्थ्य से कहीं अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती है। इसके लिए उन्हें विवश होकर बार-बार ऋण लेने पड़ते हैं। अत्यधिक ऋणग्रस्त होने के कारण श्रमिकों की प्रेरणा समाप्त हो जाती है जिससे उनकी कार्यक्षमता घट जाती है।
( 12 ) श्रम कल्याणकारी कार्यों की कमी- भारत में अभी सरकार तथा उद्योगपति श्रमिकों के कल्याण के लिए वह सब कुछ नहीं कर पाए हैं जो कि विकसित देशों में किया जा चुका है तथा किया जा रहा है। फिर श्रमिकों के कल्याण के लिए जो कानूनी व्यवस्थाएँ की गई हैं उन्हें भली-भाँति लागू भी नहीं किया गया है।
(13) प्राचीन यन्त्र व मशीनें- भारत के श्रमिकों को प्राचीन तथा घिसे-पिटे उपकरणों तथा मशीनों से कार्य करना पड़ता है जिससे उनकी उत्पादन-शक्ति पट जाती है।
(14) पदोनति के कम अवसर- विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा भारत में श्रमिकों को पदोन्नति के कम अवसर प्राप्त हैं जिस कारण वे अपना कार्य लगन तथा उत्साह से नहीं कर पाते।
(15) दोषपूर्ण प्रबन्ध-प्रबन्धकों की अयोग्यता तथा उनके श्रमिकों से दुर्व्यवहार, श्रमिकों में दोषपूर्ण कार्य विभाजन आदि के कारण भी भारतीय श्रमिकों की कुशलता कम है।
(16) विश्रामगृहों का अभाव- भारतीय श्रमिक इस कारण से भी अकुशल है क्योंकि उनके लिए विश्राम गृहों की कमी है जहाँ पर कि वे काम के पश्चात् तनिक आराम करके पुनः कार्य-शक्ति प्राप्त कर सके।
(17) भर्ती की दोषपूर्ण पद्धति- कारखानों में श्रमिकों की भर्ती मध्यस्थों द्वारा की जाती है जो श्रमिकों से कमीशन, रिश्वत आदि लेकर उनका शोषण करते हैं। मध्यस्थ कभी भी श्रमिकों को से निकलवा सकते हैं जिससे ऐसे श्रमिक भय तथा अनिश्चितता के वातावरण में काम करते हैं, परिणामतः उनकी कार्यक्षमता घट जाती है।
(18) औद्योगिक झगड़े—श्रमिकों की उच्च कार्यक्षमता के लिए आवश्यक है कि देश में औद्योगिक शान्ति हो तथा मालिकों व मजदूरों के सम्बन्ध ठीक हों। किन्तु भारत के विभिन्न उद्योगों में होने वाली हड़तालों, तालाबन्दी, घेराव आदि का यहाँ के श्रमिकों की कार्यकुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(19) शक्तिशाली श्रम संघों की कमी-शक्तिशाली श्रम संगठन श्रमिकों को उचित मजदूरी, बोनस, सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याणकारी सुविधाएँ दिलाकर उनके हितों की रक्षा करते हैं। इससे श्रमिकों का रहन-सहन का स्तर उन्नत होता है तथा उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है, किन्तु भारत में शक्तिशाली श्रम संघों की कमी है।
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