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भारत में पत्रकारिता के उदय और विकास | Rise and Development of Journalism in India in Hindi

भारत में पत्रकारिता के उदय और विकास | Rise and Development of Journalism in India in Hindi
भारत में पत्रकारिता के उदय और विकास | Rise and Development of Journalism in India in Hindi
भारत में पत्रकारिता के उदय और विकास की विवेचना कीजिए। 

भारत में हिन्दी पत्रकारिता का प्रारम्भ कलकत्ता से हुआ। इसके दो प्रमुख कारण थे। एक तो यह कि कलकत्ता नगर में सन् 1755 से छपाई प्रारम्भ हो गयी थी और 1777 में जेम्स आगस्टस हिक्की ने कलकत्ता जैल से अपने ऋणों को अदाकर जेल में छुटकारा पाने के लिए एक प्रेस की स्थापना की और 29 जनवरी, 1780 को भारत के प्रथम समाचार पत्र ‘बंगाल गजट’ : ‘कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ की स्थापना की। इस समाचार पत्र ने पश्चिम के पत्रों की परम्परा स्वीकार करते हुए भारतीय पत्रों के आदर्श और उनका भविष्य निर्धारित किया। उन्होंने प्रथम अंक में लिखा था- “मुझे अपने मन और आत्मा के लिए स्वतंत्रता मोल लेने को अपने शरीर को दास बनाने में प्रसन्नता होती है” और पत्र के शीर्षक में नीचे लिखा गया था। “राजनीतिक और व्यापारिक साप्ताहिक खुला तो सब पार्टियों के लिए है पर प्रभावित किसी से नहीं है।” हिकीज ने इसी आधार पर अपना पत्र चलाया। ‘बंगाल गजट’ में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्ज की कड़ी आलोचना रहती थी जिससे गवर्नर जनरल उससे अप्रसन्न रहते थे। उस समय नियम यह था कि बिना टिकट लगाये समाचार पत्र भेज दिया जाये और टिकट के दाम पाने वाले से वसूल कर लिये जायें। लेकिन वारेन हेस्टिंग्ज ने 14 नवम्बर, 1780 को यह आज्ञा निकाली कि इस प्रकार ‘बंगाल ‘गजट’ डाक से न जा सकेगा। इस पर ‘बंगाल गजट’ में वारेन हेस्टिंग्ज और प्रधान न्यायाधीश सर ऐलिजा इम्पी की और भी कड़ी आलोचना निकली जिसके कारण हिक्की को पहले तो जेल भेज दिया गया और जब वह जेल से भी अपना पत्र निकालता रहा तो 1782 में उसका प्रेस जब्त कर लिया गया और बाद में उसे भारत से भी निकाल दिया गया। ‘बंगाल गजट’ जब इस स्थिति में गुजर रहा था उस समय ही एक दूसरा प्रेस एक थियेटर के मालिक बर्नार्ड मैर्सिक और एक नमक के व्यापारी श्री पीटर रीड ने स्थापित किया और नवम्बर, 1780 में दूसरा पत्र निकाला ‘इंडिया गजट’। कलकत्ता में इसके बाद और भी अंग्रेजी पत्र निकलते रहे। बंगला भाषा के पत्र निकलने की सुविधा तब हुई जब चार्ल्स विलकिस, जोजेफ शेपहर्ड और श्री पंचानन कर्मकार ने मिलकर बंगला भाषा के टाइप का निर्माण किया और हुगली से 1778 में बंगला भाषा का व्याकरण जो एन० बी० हालहैड ने लिखा था, प्रकाशित किया। 1780 में मालदा में फारसी के नस्तालीक टाइपों का निर्माण हुआ और 1781 में अंग्रेजी और फारसी की एक शब्दावली प्रकाशित हुई। भारतीय भाषाओँ के टाइप तो बहुत पहले बन चुके थे, सन् 1577 में गोवा में तमिल टाइप बने थे और उसी वर्ष कोंकणी के लिए मराठी टाइप तैयार हुए थे परन्तु उनका निर्माता फारिया केवल 50 कोंकणी अक्षर बनाकर मर गया और कोंकण में पहली पुस्तक पुराण क्रिस्टा 1616 में छपी थी। अन्य भाषा का सम्बन्ध है वह छपाई बाद में प्रारम्भ हुई। पहला गुजराती टाइप, नवम्बर, 1796 में बहरामजी जीजीभाई और नरसन जी कावस जी ने तैयार किया और पहली मराठी छपाई जुलाई, 1802 में प्रकाश में आयी। फर्दूनजी मर्जबान ने 1812 में एक गुजराती प्रेस की स्थापना की और जुलाई, 1822 में गुजराती का प्रथम समाचार पत्र ‘मुंबई समाचार’ प्रकाशित किया जो अभी तक जीवित है।

बंगला पत्रों के प्रसार में सबसे बड़ा योग दिया। सीरामपुर के पादरियों विलियम कैरी जोशुआ-मार्शमैन तथा उनके प्रेस विशेषज्ञ विलियम बार्ड ने। उन्होंने 1798 में कलकत्ता से एक प्रेस खरीदा और मार्च, 1800 में बंगला भाषा में सेंट मैथ्यू द्वारा लिखा गया बाइबिल का प्रकाशित किया। इसी प्रेस ने सन् 1818 में प्रथम बंगला मासिक ‘दिग्दर्शन’ का प्रकाशन हुआ। ‘दिग्दर्शन कई वर्षों तक चला और 19 फरवरी, 1979 तक ब्रिटिश संग्रहालय में ‘भारत में प्रथम छपाई की जो प्रदर्शनी हुई उसमें 1822 के दिग्दर्शन’ की एक प्रति दिखाई गयी। ‘दिग्दर्शन’ प्रकाशन के दो वर्ष पश्चात् कलकत्ता से एक पत्र निकला ‘बंगाल ग्येजट’ और सीरामपुर से ‘समाचार दर्पण’। ‘समाचार दर्पण’ के सम्पादक जोशुआ मार्शमैन थे और ‘बेंगाल ग्येजट’ के सम्पादक और प्रकाशक दोनों ही बंगाली थे। ये थे श्री हरुचन्द्र राय और श्री गंगाकिशोर भट्टाचार्य। ये दोनों श्री राजा राममोहन राय के मित्र थे और इन्होंने समाज सुधार की भावना से पत्र निकाला था। सन् 1820 में श्री राजा राममोहन रा के दूसरे मित्र श्री ताराचन्द दत्त और श्री भवानीचरण बनर्जी ने ‘संवाद कौमुदी’ निकाली और इसके बाद 1821 में राजा राममोहन राय ने ब्रहोनीकल मैगजीन निकाली जो बंगला और अंग्रेजी में थी और इसका मुख्य उद्देश्य समाचार दर्पण’ में हिन्दू धर्म पर जो अनुचित आक्रमण होता था उसका जबाब देना था। इसके बाद राजा राममोहन राय इंग्लैण्ड गये। इंग्लैण्ड से लौटने पर इनका बंगाली समाज में सामाजिक बहिष्कार हुआ तो राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की और फारसी में ‘मीरात उल अखबार निकाला। उस समय फारसी राजभाषा थी।

इसके पश्चात् भारतीय पत्रकारिता को समझने के लिए निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) भारतेन्दु युग से पूर्व पत्रकारिता ( 17801867 ई. तक ) – यह पत्रकारिता का उदभव काल है। यहाँ इसका स्वरूप बनता है। बंगाल से इसका प्रारम्भ होकर देशभर में फैलने लगता है।

(ii) भारतेन्दु युग में पत्रकारिता ( 1867-1885 ई. तक ) – इसको हिन्दी पत्रकारिता का द्वितीय उत्थान कहा जा सकता है। युग के प्रवर्तक भारतेन्दु बाबू स्वयं एक अच्छे पत्रकार व सम्पादक थे। पत्रकारिता का प्रकाशन व सम्पादन स्वयं करके उन्होंने आदर्श प्रेरणा प्रस्तुत की। अपने मण्डल के लोगों को उन्होंने प्रेरित किया। कालान्तर की पत्रकारिता पर उनका प्रभाव दर्शनीय है।

(iii) बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हिन्दी पत्रकारिता ( 1886-1900 ई. तक ) – भारतेन्दु बाबू को धन और प्रतिभा के साथ आयु नहीं मिली थी। इससे वे स्वयं बहुत कुछ चाहते हुए भी नहीं कर सके, परन्तु उनकी प्रेरणा से एक ऐसा जागरण आया कि उनकी कामनाओं की पूर्ति हो गयी। इस अवधि में लगभग 20 पत्रिकाएं उच्च स्तर के साथ प्रकाशित होती रहीं तथा इनमें से अधिकांश आगे भी चली रहीं।

(iv) द्विवेदी युग में पत्रकारिता ( 1900-1918 ई. तक ) – इस अवधि में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा था। इसी अवधि में गाँधीजी का इस आन्दोलन में प्रवेश हुआ। पत्रकारिता का पूर्ण विकास हुआ। राष्ट्रीयता, साहित्यकता दो प्रमुख बिन्दु थे। दोनों को पत्रकारिता ने बहुत आगे बढ़ाया। पै० महावीर प्रसाद द्विवेदी का नेतृत्व इस कॉल को मिलता रहा है।

(v) छायावाद् तथा उसके बाद में हिन्दी पत्रकारिता ( 1918 से वर्तमान समय तक ) – इसको गाँधी युग कहा जा सकता है। इस काल में स्वतन्त्रता संग्राम अपने चरमोत्कर्ष पर रहा। आज इसका व्यापक रूप सामने है। इधर नयी तकनीक से इसको अधिक सहायता मिली। इलेक्ट्रानिक मीडिया से इसको नवजीवन मिल रहा है। महान रचनाकार, समाजसेवी तथा राजनेता इससे जुड़े रहे हैं। देश को आजाद कराने में इसका बहुत बड़ा योगदान है। आजादी के बाद से हिन्दी पत्रकारिता देश का आधार स्तम्भ बनी हुई है।

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Anjali Yadav

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