Contents
मूल्यांकन का अर्थ | मूल्यांकन की आवश्यकता (उपयोग) | मूल्यांकन में तुलना/सम्बन्ध (अन्तर)
मूल्यांकन का अर्थ
सामान्यतया मूल्यांकन एक व्यापक पद है, जो किसी लक्ष्य, व्यक्ति, संस्था एवं घटनाओं आदि के मूल्यांकन को सम्मिलित करता है। इसी प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन छात्रों के मूल्यांकन को व्यक्ति करता है, जिससे बौद्धिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास के रूप में उनके व्यक्तित्व के विकास के क्षेत्रों में छात्रों की निष्पत्ति का मूल्यांकन सम्मिलित है। तत्पश्चात् कक्षा कक्ष प्रक्रियाओं के माध्यम से अधिगम अनुभव प्रदान किये जाते हैं। शिक्षण की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम सम्बन्धी सामग्री, शैक्षणिक तकनीकी एवं विद्यालय का आधारभूत ढाँचा आदि तत्व भी उसके अधिगम को प्रभावित करते हैं और उसके अनुभवों में वृद्धि करते हैं। अतः अधिगम एवं शिक्षण में अभिवृद्धि की जाँच मूल्यांकन द्वारा ही सम्भव है। चूँकि मूल्यांकन का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है, जिसमें मूल्य निर्धारण और निष्पत्ति के संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों ही वर्णन सम्मिलित रहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा में मूल्यांकन अभी एक नवीन अवधारणा है। इसका प्रयोग विद्यालय कार्यक्रम, पाठ्यक्रम, शैक्षिक सामग्री, शिक्षक एवं छात्रों की जाँच के लिए किया जाता है। शैक्षिक मूल्यांकन के अर्थ को विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार स्पष्ट किया है|
मूल्यांकन की परिभाषा –
1. टारगेर्सन एवं एडम्स के अनुसार, “शैक्षिक मूल्यांकन किसी शिक्षण प्रक्रिया अथवा सीखने के अनुभव की उपादेयता की मात्रा पर निर्णय करना है। “
2. जेम्स एम. ली के अनुसार, “मूल्यांकन विद्यालय, कक्षा-कक्षा एवं स्वयं के द्वारा निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के सम्बन्ध में छात्र की प्रगति की जाँच है।”
3. शिक्षा आयोग ने मूल्यांकन के अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया है, “मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है, जो सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है और शैक्षिक लक्ष्यों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है। यह छात्रों की अध्ययन आदतों तथा शिक्षक की विधियों पर अधिक प्रभाव डालता है। इस प्रकार यह न केवल शैक्षिक उपलब्धि के मापन में सहायता करता है वरन् उसमें सुधार भी करता है। “
4. माइकेलिस के अनुसार, “मूल्यांकन लक्ष्यों की प्राप्ति की सीमा को निर्धारित करने की प्रक्रिया है।
शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता (उपयोग)
यह ठीक है कि मापन और मूल्यांकन में अन्तर है परन्तु शिक्षा के क्षेत्र में मापन और मूल्यांकन दोनों का ही महत्व और उपयोगिता है। मापन के बिना मूल्यांकन सम्भव नहीं है। यहां हम शिक्षा में मापन और मूल्यांकन के महत्व एवं उपयोगिता की चर्चा संक्षेप में कर रहे हैं|
(1) बालक के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ- मापन और मूल्यांकन के द्वारा ही बालक के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। इसके द्वारा ही बालक की विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक योग्यताओं, अभिरुचियों, निष्पत्तियों आदि के सम्बन्ध में विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, जिनके अभाव में शिक्षण कार्य पूर्ण नहीं हो सकता है। बालक के सम्बन्ध में विश्वसनीय एवं वांछनीय सूचनाओं के आधार पर ही उनका श्रेणीकरण एवं निर्देशन किया जाता है। इसके द्वारा अध्यापक छात्रों की समस्याओं का समाधान भी कर सकता है।
(2) शिक्षण विधि में सुधार- शिक्षण की सफलता या असफलता की जानकारी मापन और मूल्यांकन से ही होती है। मापन और मूल्यांकन से ही यह पता लगता है कि शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों को कहाँ तक प्राप्त किया जा सकता है। किसी भी स्थिति में यदि शिक्षण प्रणाली असफल होती है तो उसमें वांछित सुधार और परिवर्तन भी किया जा सकता है। मापन और मूल्यांकन में शिक्षण तकनीक प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। इसके द्वारा ही यह शिक्षण और तकनीकी प्रणाली की सफलता और असफलता ज्ञात होती है और उनमें समयानुसार सुधार की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं।
(3) पाठचर्या में सुधार- पाठचर्या में सुधार और विकास में भी मापन और मूल्यांकन विशेष योगदान देता है। यदि अधिगम मापन, सूक्षता से सही-सही नहीं किया जा सके तब भी पाठचर्या-विकास हेतु मूल्यांकन एक सशक्त साधन बना हुआ है।
(4) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान- छात्र की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान एक अध्यापक के लिए अत्यन्त आवश्यक है और इस ज्ञान के अभाव में वह न तो अपने दायित्व का ठीक निर्वाह कर सकता है और न छात्र के साथ न्याय । विभिन्न मापन एवं परीक्षणों के द्वारा बालक की शारीरिक एवं बौद्धिक योग्यता, अभरुचि, रुचियों एवं प्रेरणाओं का सही मापन करके विश्वसनीय परिणाम निकाले जा सकते हैं और उनके आधार पर छात्रों का श्रेणीकरण किया जाता है। व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर इनके हेतु उद्देश्य, अनुभव और शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की जाती है।
(5) विद्यालय संगठन एवं प्रशासन में सुधार- विद्यालय संगठन और प्रशासन की सफलता भी इस तथ्य पर निर्भर करती है कि बालक के व्यवहार में परिवर्तन किस सीमा तक हो रहा है। अतः विद्यालय संगठन और प्रशासन तो मनोवैज्ञानिक मान्यताओं पर आधारित हैं जो परीक्षणों एवं मूल्यांकनों के परिणाम हैं। आज के संगठन की मूल समस्याएँ अनुशासनहीनता, दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली अनुचित साधनों का उपयोग, गिरता हुआ शिक्षा स्तर, नवीन कार्यक्रमों के प्रति छात्रों, अध्यापकों एवं अभिभावकों की उदासीनता आदि। मूल्यांकन और मापन के आधार पर ही उनके सम्बन्ध में रचनात्मक कार्यक्रम बनाये जा सकते हैं।
(6) वर्ग विभाजन एवं कक्षोन्नयन में सहयोग- छात्र की प्रगति का मापन एवं मूल्याँकन करके ही हम उनमें वर्ग विभाजन कर सकते हैं और इस स्तर पर ही कक्षोन्नयन किया जा सकता है। परीक्षा प्रणाली के अभाव में वर्तमान शिक्षा की जो दुर्गति हो रही है उसे मापन और मूल्यांकन द्वारा ही रोका जा सकता है।
(7) निदान एवं उपचार में सहायक- छात्रों में कुछ दुर्बलताएँ प्रत्येक को देखने को मिलती हैं। यह दुर्बलताएँ अक्सर भयंकर रूप ले लेती हैं। यदि अध्यापक इनकी उपेक्षा करता है या उनके प्रति उदासीन बरतता है तो यह निरन्तर बढ़ती रहती हैं। छात्रों का कक्षा से पलायन, गृह कार्य ठीक से न करता, लिखने में वर्तनी-सम्बन्धी दोष, बोलने में हकलाहट, आदि ऐसी समस्याएँ हैं, जिनकी जानकारी मापन के द्वारा ही होती है। मूल्यांकन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर अध्यापक बालकों को सही रास्ते पर ला सकता है। इस प्रकार मापन निदान एवं उपचार में भी सहायक है।
(8) प्रेरणात्मक महत्व मापन एवं मूल्यांकन प्रेरणा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। मापन छात्र को अपनी प्रगति एवं शोध का सही ज्ञान कराता है और उसमें सुधार की प्रेरणा देने में योगदान देता है। छात्र को अपने भविष्य की प्रगति का अनुमान होता है और प्रगति कि प्रेरणा मिलती है।
मापन तथा मूल्यांकन में तुलना/सम्बन्ध (अन्तर)
मापन और मूल्यांकन एक दूसरे से घनिष्ट रूप से सम्बन्धित हैं, फिर भी दोनों में स्पष्ट भिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।
1. मापन का अर्थ है यथार्थ परिमाणात्मक मूल्य । जैसे इंचों में किसी मेज की लम्बाई का मापन किलोमीटर मेंदूरी का मापन या कियी परीक्षण में विद्यार्थी के अंक प्राप्त करना अदि। जबकि मूल्यांकन का अर्थ अधिक व्यापक है। इसे स्पष्ट करते हुए ब्रेडफील्ड तथा मोरडॉक (Bradfield and Mordock) ने लिखा है- “मापन की प्रक्रिया में किसी घटना या तथ्य के विभिन्न परिणामों के लिये प्रतीक निश्चित किये जाते हैं ताकि उस घटना या तथ्य के बारे में यथार्थ निश्चय किया जा सके, जबकि मूल्यांकन में उस घटना या तथ्य का मूल्य ज्ञात किया जाता है।’
2. मापन किसी वस्तु का संख्यात्मक विवरण प्रस्तुत करता है। अर्थात् इससे ज्ञात होता है कि कोई वस्तु कितनी है, जबकि मूल्यांकन गुणात्मक विवरण प्रस्तुत करता है अर्थात् यह बताता है कि कोई वस्तु कितनी अच्छी है?
3. मूल्यांकन का क्षेत्र मापन की अपेक्षा अधिक व्यापक है। मापन में किसी एक गुण की परीक्षा की जाती है, जबकि मूल्यांकन में व्यक्तित्व के सभी पक्षों अर्थात् शारीरिक, मानसिक, सामाजिक नैतिक की परीक्षा की जाती है।
4. मापन में मूल्यांकन की अपेक्षा कम समय लगता है। किसी क्षेत्र में व्यक्ति की योग्यता के मापन के लिये केवल एक परीक्षण का प्रयोग किया जाता है, जबकि मूल्यांकन के लिए एक से अधिक परीक्षणों का प्रयोग करना होता है। उदाहरण के लिये विद्यार्थी की भाषा सम्बन्धी योग्यता के मापन में लिये गये भाषा सम्बन्धी परीक्षा का प्रयोग कर सकते हैं, किन्तु भाषा की योग्यता का मूल्यांकन करने के लिये हमें उसकी भाषा सम्बन्धी रुचि, अभिक्षमता, कौशल आदि को भी ज्ञात करना होगा।
5. मापन वस्तुनिष्ठ होता है, जबकि मूल्यांकन आत्मनिष्ठ होता है।
6. मापन की अपेक्षा मूल्यांकन में अधिक धन व्यय होता है, क्योंकि मापन में जहाँ एक समय में एक ही परीक्षण का प्रयोग होता है वहाँ मूल्यांकन में अनेक परीक्षणों के अतिरिक्त विभिन्न मूल्यांकन पद्धतियों जैसे- निरीक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावली आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है।
7. मापन का सम्बन्ध किसी वस्तु के मात्रात्मक स्वरूप से होता है, जबकि मूल्यांकन में मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों स्वरूपों को स्थान दिया जाता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
मूल्यांकन = मापन + मूल्य निर्धारण
मापन में कोई वस्तु कितनी है, का उत्तर दिया जाता है, जबकि मूल्यांकन में उस वस्तु का क्या मूल्य है (what value) का उत्तर दिया जाता है।
जैसे एक टाइप सीखने वाले छात्र को लिया जाय और यह पाया जाय कि वह 70 शब्द प्रति मिनट टाइप करता है। टाइप करने में 4 गल्तियाँ करता है तो यह उसकी गति (Speed) व परिशुद्धता (Accuracy) का मापन होगा। अब यदि अन्य विद्यार्थियों के अंकों को सामने रखकर तुलना की जाये और उसे बी ग्रेड दिया जाय तो इस प्रक्रिया को मूल्यांकन कहेंगे।
मापन और मूल्यांकन में सूक्ष्म अंतर होते हुए भी दोनों में स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई देता है । वस्तुत: मूल्यांकन गुणात्मक निरूपण करने की प्रक्रिया है। अतः यह भी एक प्रकार का मापन ही है। किसी वस्तु की मात्रा का विवरण देने के लिये कुछ प्रतीकों जैसे इंच, सेकण्ड, किलोग्राम आदि को मापन का आधार बनाया जाता है, उसी प्रकार उस वस्तु के गुणों का विवरण देने के लिये मानकों (Norms) को मूल्यांकन का आधार बनाया जाता है। मापन को मूल्यांकन का एक तरीका कहा जा सकता है। मापन द्वारा प्राप्त आँकड़ों के आधार पर मूल्यांकन में सहायता मिलती है। आज शिक्षाशास्त्री बालक के केवल मानसिक विकास पर ही ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनका ध्यान बालक के व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास पर केन्द्रित रहता है। मापन और मूल्यांकन उन्हें इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायता करते हैं।
IMPORTANT LINK
- व्यक्तित्व के प्रमुख प्रकार | Major personality types in Hindi
- व्यक्तित्त्व भेद का शिक्षा में क्या महत्त्व है? What is the importance of personality difference in education?
- वैयक्तिक विभिन्नता क्या है? इसके विभिन्न प्रकार एंव कारण
- बुद्धि का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार | Meaning, definitions and types of intelligence in Hindi
- “व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान शिक्षक के लिए अनिवार्य है।”
- बुद्धि का स्वरूप क्या है? बुद्धि के दो खण्ड सिद्धान्त एंव योग्यताएं
- बुद्धि लब्धि क्या है? बुद्धि लब्धि वितरण एवं स्थिरता What is intelligence gain? IQ Distribution and Stability
- बुद्धि परीक्षण क्या है? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार | What is an IQ test? types of intelligence tests
- व्यक्तित्व का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ | Meaning, Definition and Characteristics of Personality in Hindi
Disclaimer