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राष्ट्रीय नियोजन में अर्थशास्त्र का महत्त्व (Importance of Economics in National Planning)
“राष्ट्रीय नियोजन की नीति की सफलता के लिए आवश्यक है कि कृषि सम्बन्धी उचित लक्ष्य निर्धारित करके उन्हें शांप्रतिशीघ्र पूर्ण किया जाए -एस० के० भट्टाचार्य
वर्तमान युग ‘नियोजन’ (Planning) का युग है। यह आवश्यक है कि देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए सरकार एक योजनाबद्ध तरीके से देश के आर्थिक विकास में अपना योग प्रदान करे। इसलिए आजकल विश्व के अधिकांश अल्प-विकसित राष्ट्र अपनी जनता के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन को उन्नत करने के लिए नियोजन की नीति अपना रहे हैं। इस सन्दर्भ में डर्बिन का कहना है, “आजकल हम सभी नियोजनकर्ता हैं।
आर्थिक नियोजन का अर्थ- ‘आर्थिक नियोजन’ (Economic planning) एक ऐसी विधि है जिसके अन्तर्गत किसी देश के साधनों को ध्यान में रखकर एक निश्चित समयावधि में पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। दूसरे शब्दों में, ‘नियोजन’ के अन्तर्गत सर्वप्रथम कुछ लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं; तत्पश्चात् उन्हें निश्चित समयावधि में प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम बनाकर उन्हें पूर्ण करने के प्रयत्न किए जाते हैं।
परिभाषाएँ (Definitions)-आर्थिक नियोजन की कुछ परिभाषाएँ निम्नांकित हैं-
(1) एच० डी० डिकन्सन (H. D. Dickinson) के अनुसार, “नियोजन से अभिप्राय मुख्य आर्थिक निर्णयों के लेने से है कैसे, कब व कहाँ उत्पादन किया जाए, क्या तथा कितना उत्पादन किया जाए, उसका बटवारा किसमें किया जाए इस सम्बन्ध में निश्चित अधिकारी द्वारा समस्त व्यवस्था के व्यापक सर्वेक्षण के पश्चात् सचेत निर्णय करने को आर्थिक नियोजन कहते हैं।”
(2) प्रो० टोडारो (Todaro) के शब्दों में, “आर्थिक नियोजन से अभिप्राय एक केन्द्रीय संगठन द्वारा निश्चित उद्देश्य के अनुसार एक निश्चित समय में किसी देश या क्षेत्र के मुख्य आर्थिक तत्त्वों (जैसे राष्ट्रीय उत्पादन उपभोग, निवेश, बचत आदि) में होने वाले परिवर्तनों को प्रभावित, निर्देशित तथा नियन्त्रित करने से है।
(3) रोडान (Rodan) के अनुसार, “आर्थिक नियोजन से अभिप्राय विचारशील, ऐच्छिक, निरन्तर तथा समन्वित आर्थिक नीति से है।
आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ
आर्थिक नियोजन की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं-
(1) केन्द्रीय योजना अधिकारी (Central Planning Authority)-नियोजित अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत राज्य द्वारा नियुक्त एक केन्द्रीय योजना संगठन होता है जो देश के भौतिक तथा मानवीय संसाधनों का सर्वेक्षण करके लक्ष्य निर्धारित करता है और फिर लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत योजना बनाता है। भारत में यह कार्य योजना आयोग (Planning) Commission) करता है जिसका गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया था।
(2) निश्चित उद्देश्य (Definite Objectives) — प्रत्येक जार्थिक नियोजन के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं जिन्हें योजनानुसार प्राप्त करने के प्रयास किए जाते हैं। ये उद्देश्य कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे तीव्र गति से औद्योगीकरण, पूर्ण रोजगार, राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, आर्थिक असमानताओं में कमी, क्षेत्रीय असमानताओं में कमी, आत्मनिर्भरता, कीमत स्थिरता इत्यादि।
(3) प्राथमिकताओं का निर्धारण (Determination of Priorities)-उद्देश्यों का निर्धारण कर लेने के पश्चात् उद्देश्यों के प्राथमिकता या महत्त्व के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि स्थान दिए जाते हैं।
(4) व्यापक क्षेत्र (Comprehensive Area)—तीव्र आर्थिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का आयोजन किया जाए। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत ऐसा ही किया जाता है।
(5) विकास कार्यक्रमों का निर्धारण (Determination of Development Programmes) प्राथमिकताओं के आधार पर ही विकास कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं। विकास योजना के प्रत्येक कार्यक्रम का विस्तृत रूप से निर्धारण किया जाता है। उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए विस्तृत कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं।
(6) निश्चित समयावधि (Definite Duration)- प्रत्येक विकास योजना एक निश्चित समयावधि होती है, जैसे भारत में प्रत्येक योजना सामान्यतया पाँच वर्ष के लिए बनाई जाती है।
(7) दीर्घकालीन दृष्टिकोण (Long Term Approach)-राष्ट्र के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखकर दीर्घकालीन योजनाएं तैयार की जाती हैं। वस्तुतः राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया दीर्घकाल तक चलने वाली सतत् प्रक्रिया है।
(8) चहुंमुखी विकास (All round Development)-आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार, खनिज सम्पत्ति आदि सभी के विकास के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
(9) लोच (Elasticity)-दीर्घकालीन नियोजन में त्रुटियों का होना स्वाभाविक है। नियोजन प्रक्रिया सम्बन्धी गलतियों कमियों को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि आर्थिक नियोजन की व्यवस्था लोचपूर्ण हो।
(10) तकनीकी समन्वय (Technical Co-ordination)– ‘साधन-उत्पाद सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों के साधनों के बीच समन्वय करना आवश्यक होता है।
(11) सरकारी नियन्त्रण (Government Control)-आर्थिक नियोजन सरकारी नियन्त्रण में किया जाता है। योजना अधिकारी द्वारा विकास योजनाएं सरकार के सम्मुख प्रस्तुत की जाती हैं। राष्ट्रीय उत्पादन, उपभोग, निवेश, बचत, कीमतें, व्यापार, विदेशी विनिमय आदि पर सरकार का नियन्त्रण होता है।
(12) मूल्यांकन (Evaluation) सम्पूर्ण नियोजन प्रक्रिया की प्रगति की जानकारी के लिए विकास योजनाओं समय-समय पर मूल्यांकन करना आवश्यक होता है ताकि समय रहते कमियों को दूर किया जा सके।
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