राष्ट्रीय नियोजन में अर्थशास्त्र का महत्त्व
वैसे तो ‘राष्ट्रीय नियोजन‘ के अन्तर्गत मानव जीवन के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है, किन्तु इन पहलुओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ‘आर्थिक पहलू’ (Economic aspect) है। वास्तविकता तो यह है कि आर्थिक पहलू पर समुचित ध्यान दिए बिना राष्ट्रीय नियोजन सम्बन्धी कोई कार्यक्रम तैयार भी नहीं किया जा सकता है। हम भली-भांति जानते हैं कि अर्थशास्त्र मानव व्यवहार के आर्थिक पहलू का अध्ययन है। अतः राष्ट्रीय नियोजन में अर्थशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
राष्ट्रीय नियोजन में अर्थशास्त्र के अध्ययन के महत्त्व को निम्न बातों से अच्छी प्रकार समझा जा सकता है-
(1) लक्ष्यों का निर्धारण (Determination of Targets)-राष्ट्रीय नियोजन के अन्तर्गत सर्वप्रथम उन प्राथमिक लक्ष्यों को निर्धारित किया जाता है जिन्हें हम एक निश्चित समयावधि में पहले प्राप्त करना चाहते हैं। चूँकि हमारे साधन सीमित किन्तु हमारी आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं इसलिए हमें यह तय करना होता है कि राष्ट्रीय दृष्टि से सबसे पहले किन आवश्यकताओं की पूर्ति की जानी चाहिए। नियोजनकर्त्ताओं (Planners) को विभिन्न आवश्यकताओं में चुनाव (Choice) करना पड़ता है। अर्थशास्त्र में इस चुनाव पहलू का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार नियोजनकर्त्ताओं को अर्थशास्त्र का ज्ञान होना चाहिए तभी ये राष्ट्रीय लक्ष्यों का ठीक-ठाक निर्धारण कर सकेंगे।
(2) आर्थिक लक्ष्यों की प्रमुखता (Predominance of Economic Targets) – निःसन्देह राष्ट्रीय नियोजन के अन्तर्गत किसी देश की जनता के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं, किन्तु जितना अधिक महत्त्व आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति को दिया जाता है उतना महत्त्व अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति को नहीं दिया जाता। कम (अल्प) विकसित राष्ट्रों के सम्बन्ध में तो यह बात पूर्णतया ठीक है। भारत तथा अन्य अल्प-विकसित राष्ट्रों में नियोजन का प्रमुख लक्ष्य गरीबी तथा बेरोजगारी को दूर करना है। वर्तमान भौतिकवादी युग में कोई भी राष्ट्र गरीबी को दूर किए बिना आत्म-सम्मान का जीवन व्यतीत नहीं कर सकता फिर विकसित राष्ट्र भी यह अनुभव करते हैं कि जब तक विश्व में गरीबी विद्यमान रहेगी तब तक विश्व शान्ति को खतरा बना रहेगा। अतः विश्व शान्ति, मानवीय सुरक्षा तथा कल्याण के लिए अविकसित तथा अल्प-विकसित राष्ट्रों का आर्थिक विकास परमावश्यक है। सफल आर्थिक नियोजन द्वारा न केवल तीव्र गति से देश का सर्वांगीण विकास किया जा सकता है बल्कि विभिन्न आर्थिक व सामाजिक समस्याओं का समुचित समाधान भी किया जा सकता है। इसलिए आजकल ‘आर्थिक नियोजन’ (Economic Planning) अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
(3) अधिकतम सामाजिक लाभ-आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामाजिक लाभ को अधिकतम करना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए देश के वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित साधनों का विभिन्न उत्पादक कार्यों में आवंटन (allocation) पूर्व निर्धारित प्राथमिकताओं (priorities) के आधार पर किया जाता है।
(4) वित्तीय साधनों का प्रवन्ध (Management of Financial Sources)-नियोजन की सफलता समुचित साधनों की व्यवस्था पर निर्भर करती है। सरकार वित्त का प्रवन्ध अनेक स्रोतों से करती है, जैसे कराधान (Taxation)। सार्वजनिक ऋण (Public Debt) घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) इत्यादि कर लगाते समय वित्त मन्त्री को यह देखना होता है कि कौन-से कर लगाए जाएं तथा कितनी मात्रा में लगाए जाएँ ताकि उनका उत्पादन, उपभोग तथा वितरण पर बुरा प्रभाव न पड़े। इसी प्रकार सार्वजनिक ऋण के सम्बन्ध में सरकार को यह तय करना होता है कि ऋण विदेशों से लिए जाएं या देशवासियों से जब सरकार को नियोजन हेतु करो तथा ऋणों से समुचित धनराशि प्राप्त नहीं हो पाती तब वह अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त नए नोट भी छापती है। अधिक नोट छाप देने से मुद्रा-प्रसार (inflation) की स्थिति उत्पन्न होने का भय रहता है। अतः सरकार को नियोजन हेतु घाटे की वित्त व्यवस्था (अतिरिक्त नोट छापना) की नीति का प्रयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिए। कराधान, सार्वजनिक ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था, मुदा-प्रसार आदि सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक विषय है। अतः एक कुशल वित्त मन्त्री के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान न केवल उचित वस्नु आवश्यक
(5) राष्ट्रीय नियोजन तथा आर्थिक नियोजन में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध (Close Relation between National Planning and Economic Planning)- राष्ट्रीय नियोजन तथा आर्थिक नियोजन घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। देखा जाए तो ‘राष्ट्रीय नियोजन शब्दों का इतना प्रयोग नहीं किया जाता जितना कि ‘आर्थिक नियोजन’ शब्दों का किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत सामाजिक, सांस्कृतिक आदि पहलुओं के विकास पर भी समुचित ध्यान दिया जाता है। फिर आर्थिक व सामाजिक लक्ष्यों को पृथक्-पृथक् नहीं किया जा सकता। उदाहरणार्थ, भारत की सातवी पंचवर्षीय योजना (1985-90) का एक प्रमुख लक्ष्य सामाजिक समानता व न्याय को बढ़ाना था सामाजिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी दूर की जाए, आर्थिक विषमताओं (economic disparities) को समाप्त किया जाए तथा राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की जाए अतः सामाजिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्ति परमावश्यक है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्रीय नियोजन की सफलता के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान परमावश्यक है। वस्तुतः राष्ट्रीय नियोजन आर्थिक नियोजन पर निर्भर करता है और आर्थिक नियोजन अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
राष्ट्रीय नियोजन में कृषि अर्वशास्त्र का महत्त्व-व्यावहारिक अर्थशास्त्र’ की विभिन्न शाखाएं हैं जिनमें कृषि अर्थशास्त्र एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शाखा है। आदि काल से ही ‘कृषि’ मानव जीवन का मूल आधार रही है। इसलिए कृषि को मानव जाति का मूल व्यवसाय कहा जाता है। आर्थिक नियोजन वर्तमान युग में भारत जैसा कृषि प्रधान देश कृषि व्यवसाय की उपेक्षा करके अपना सर्वांगीण आर्थिक विकास नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में राष्ट्रीय नियोजन नीति की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि कृषि सम्बन्धी उचित लक्ष्य निर्धारित करके उन्हें शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त किया जाए। वस्तुतः भारत के विभिन्न योगों का विकास भी कृषि पर निर्भर करता है। वस्त्र, पटसन, चीनी, तेल, वनस्पति घी आदि उद्योग अपने कच्चे माल की पूर्ति के लिए कृषि पर आश्रित हैं। फिर खायात्र के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए भी कृषि का समुचित विकास परमावश्यक है। कृषि के इस महत्त्व को दृष्टिगत रखकर ही भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि व्यवसाय को प्राथमिकता दी गई है।
कृषि के समुचित विकास के लिए यह आवश्यक है कि हमें कृषि-समस्याओं तथा उनके समाधान के लिए प्रभावी उपायों का ज्ञान हो। इस सम्बन्ध में कृषि अर्थशास्त्र’ हमारी सहायता करता है। कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम कृषि अर्थव्यवस्था का निरूपण, विश्लेषण और मूल्यांकन करके कृषि-समस्याओं के समाधान हेतु व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत करते हैं। उक्त विश्लेषण से राष्ट्रीय नियोजन में कृषि अर्थशास्त्र का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। राष्ट्रीय नियोजन की सफलता के लिए कृषि-व्यवसाय का विकास परमावश्यक है तथा कृषि विकास के उपायों के समुचित ज्ञान के लिए कृषि अर्थशास्त्र का अध्ययन अनिवार्य है।
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