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वंशानुक्रम तथा वातावरण की परिभाषाएँ | वंशानुक्रम के सिद्धान्त | बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव

वंशानुक्रम तथा वातावरण को परिभाषा कीजिए। वंशानुक्रम के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए । 

बालक अपने माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों से जो विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक गुण गर्भाधान के समय प्राप्त करता है। वह उसके ‘वंशानुगत गुण’ कहलाते हैं। वंशानुक्रम माता-पिता से उनकी सन्तान में दैहिक और मनोगुणों (लक्षणों) का संप्रेषण है।

परिभाषा – वंशानुक्रम को अनेक विद्वानों ने परिभाषित किया है। कुछ विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषायें निम्न हैं

(क) डी.सी. डिन्कमेयर के अनुसार — “वंशानुगत कारक वे जन्म जात विशेषताएँ हैं। जो शिशु को जन्म से ही प्राप्त होती है। प्राणी के विकास में ये वंशानुगत शक्तियाँ प्रधान तत्त होने के कारण उसके स्वभाव एवं जीवन चक्र की गति को नियंत्रित करती हैं। इन वंशानुगत तत्वों को प्राणी की संरचना एवं क्रियात्मकता से सम्बन्धित सम्पत्ति एवं ऋण समझना चाहिए क्योंकि इन्हीं कारकों की सहायता से प्राणी अपने विकास के लिए जन्मजात तथा अर्जित क्षमताओं का उपभोग कर पाता है। “

(ख) वुड्वर्थ एवं मारक्विस के अनुसार- “वंशानुक्रम में वे सभी कारक निहित होते हैं। जो व्यक्ति के जीवन के शुरूआत के समय से ही उपस्थित हो जाते हैं, जन्म के समय नहीं, अपितु गर्भाधान के समय हो, अर्थात् जन्म से नौ माह पूर्व ही उपस्थिति हो जाते हैं।”

(ग) जेम्स ड्रेवर के अनुसार- “माता-पिता के शारीरिक एवं मानसिक गुणों का अपने संतानों में हस्तांतरण ही वंशानुक्रम है।”

(घ) रूथ बैंडिक्ट के अनुसार — “वंशानुक्रम माता-पिता से उनकी संतान को गुणों का प्रेषण है। “

(ङ) एच. ए. पीटरसन के अनुसार- “व्यक्ति को उसके माता-पिता के द्वारा उसके पूर्वजों से जो स्टॉक (Stock) प्राप्त होता है, वही उसका वंशानुक्रम है।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यक्ति अपने माता-पिता अथवा पूर्वजों से जो गुण या वशेषतायें प्राप्त करता है, वही उसका वंशानुक्रम कहलाता है।

वातावरण (Environment)- मनुष्य के चारों तरफ जो कुछ भी विद्यमान है, वही उसका वातावरण है। वातावरण में पर्यावरण (Environment) भी कहते हैं। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है ‘परि + आवरण’ परि का अर्थ है बाहरी या चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है ‘ढंकना’। अतः सभी वस्तुएँ जिनसे व्यक्ति चारों ओर से घिरा हुआ है वह उसका पर्यावरण/वातावरण कहलाता है। पर्यावरण के अन्तर्गत सभी भौतिक एवं अभौतिक वस्तुएँ सम्मिलित हो जाती है जो बालक के विकास में महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। अतः वातावरण एक अत्यंत ही महत्वपर्ण एवं प्रमुख कारक है जो बालक के विकास को प्रभावित करता है ।

वातावरण की परिभाषाएँ

विभिन्न विद्वानों ने वातावरण की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। कुछ प्रमुख परिभाषा निम्नानुसार हैं-

(1) जे.एस. रास के अनुसार — “पर्यावरण हमें प्रभावित करने वाला वाह्य बल है। “

(2) पी. जिसबर्ट के अनुसार- “पर्यावरण वह कोई भी चीज है जो किसी एक वस्त्र के चारों ओर से घेरे हुए हैं और उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।”

(3) टी. डी. इलीएट के अनुसार- “किसी भी चेतन पदार्थ की इकाई के प्रभावशाली उद्दीपन एवं अन्तःक्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहा जाता है।”

(4) बोरिंग लैंगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार– “व्यक्ति के वातावरण के अन्तर्गत उनके सभी उद्दीपनों का योग आता है जिन्हें वह जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक ग्रहण करत रहता है।”

(5) बुडवर्ड के अनुसार — “अनुवंशिकता में भिन्न व्यक्ति समान नहीं होते परन्तु समान वातावरण उन्हें समान बना देता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि वातावरण के अन्तर्गत वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित होती है जिनसे व्यक्ति चारों ओर से घिरा होता है तथा उसके सम्पूर्ण जीवन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता रहता है। “

वंशानुक्रम के नियम-

वंशानुक्रम के मुख्य नियम इस प्रकार हैं:

(i) बीजकोष की निरन्तरता का नियम- इस नियम के अनुसार बालक अपने माता-पिता से उन गुणों को ग्रहण करता है जो उन्होंने अपने पूर्वजों से प्राप्त किये थे। बालक वे गुण जो माता-पिता ने स्वयं अर्जित किये, इस नियम के अनुसार ग्रहण नहीं करते। जर्मनी के वीजमैन (Weis mann) ने कई चूहे पाल कर हर बार उनकी पूंछ काट कर परखा। अपने प्रयोग में उन्होंने देखा कि पूंछ कटे हुए चूहों से उत्पन्न सन्तान में पूंछ ज्यों कि त्यों थी। इसी प्रकार आवश्यक नहीं है कि अपंग माता-पिता की संतान भी अपंग हो।

(ii) जीव सांख्यिकी नियम (Law of Biometrics)- इस नियम के अनुसार बालक विशेषक (Traits) सिर्फ माता-पिता से ही प्राप्त नहीं करता वरन् अन्य पूर्वजों से भी प्राप्त करता है। बालक आधी विशेषताएं माता-पिता से प्राप्त करता है, एक चौथाई दादा दादी, नाना-नानी से प्राप्त करता है, तथा आठवां भाग (1/8) परदादा-परदादी व परनाना परनानी से प्राप्त करता है। इसी प्रकार यह क्रम ऊपर की ओर चलता रहता है।

(iii) समानता का नियम (Law of Resemblance)– इस नियम के अनुसार बालक माता-पिता या पूर्वजों के समान होता है। बालक माता-पिता व पूर्वजों से गुण (Traits) ग्रहण करता है इसीलिए वह परिवार के किसी सदस्य से एकरूप होता है। गया है कि एक ही । परिवार के विभिन्न सदस्यों में समानता होती है।

(iv) विभिन्नता का नियम (Law of Variation) – इस नियम के अनुसार माता पिता व बालकों में भिन्नता पाई जाती है। यहाँ तक कि एक ही माता-पिता की संतानों में भी अंतर होता है। यह वंशसूत्र (Chromosomes) के मिश्रण पर निर्भर करता है। जैसे, लम्बे माता-पिता की संतान ठिगनी भी होती है वह काले माता-पिता की संतान गोरी भी हो सकती है।

(v) प्रत्थागमन या परावर्तन का नियम (Law of Regression ) – इस नियम के अनुसार व्यक्ति विल्कुल माता-पिता के समान न होकर सामान्य (Average) की ओर अग्रसर होता है। अगर माँ-बाप बुद्धिमान है तो बालक कम बुद्धिमान होगा। इसी प्रकार मंदबुद्धि माता-पिता की संतान बुद्धिमान भी हो सकती है।

(vi) आजत गुणों का संक्रमण (Transmission of Acquired Traits ) – इस नियम के अनुसार माता-पिता के अर्जित गुणों का संक्रमण होता है। माता-पिता वातावरण के साथ सामंजस्य करने के लिए अपने आप में कुछ परिवर्तन लाते हैं जिनका प्रभाव शारीरिक अवयवों पर पड़ता है और इन गुणों का संक्रमण उनके बच्चों में हो जाता है।

बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव

बालक जो भी गुण वंशानुक्रम से प्राप्तकरता है वे उसके विकास पर जो प्रभाव डालता है, उसमें प्रमुख निम्न हैं-

(1) लिंग भेद पर प्रभाव – पुरुष के शुक्राणु दो प्रकार के होते हैं – X व Y स्त्री के डिम्ब में केवल एक ही प्रकार के वंशसूत्र होते हैं: X पुरूष का जब X वाला शुक्राणु स्त्री के डिम्ब से मिलता है तो X के संयोग से लड़की होती है और जब Y शुक्राणु डिम्ब मिलता है तो संतान लड़का होती है।

(2) शारीरिक विशेषताओं पर प्रभाव – शारीरिक विशेषताएं जैसे-कद, रंग आदि आनुवांशिकता से प्रभावित होता है। प्रत्येक शारीरिक विशेषता का एक जोड़ा वंशसूत्र बालक को अपने माता-पिता से मिलता है। अगर ये दोनों वंशसूत्र एक से हैं तो बालक में वहीं शारीरिक गुण आ जाता है। यदि दोनों वंशसूत्र अलग-अलग हैं तो जो प्रबल होता है उसके गुण बालक में आ जाते हैं। यह भी हो सकता है कि बालक ने शारीरिक गुण माता-पिता से न लेकर पूर्वजों से लिये हो । जैसे—काले माता-पिता की संतान का गोरा होना इत्यादि।

( 3 ) बुद्धि पर प्रभाव – आनुवांशिकता का बुद्धि पर भी प्रभाव पड़ता है। बुद्धिमान माता-पिता की संतान बुद्धिमान होगी पर इसके विपरीत भी हो सकती है। अर्थात् संतान मंद बुद्धि हो सकती है, पर दोनों ही अवस्था में बुद्धि पर आनुवांशिकता का प्रभाव पड़ता है।

(4 ) व्यक्तित्व पर प्रभाव – अनुवांशिकता का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। बालक के व्यक्तित्व में अन्तर लिंग भेद के कारण होता है। लड़कियों का व्यक्तित्व लड़कों से भिन्न होता है। पर व्यक्तित्व के गुण वाल अपने माता-पिता या पूर्वजों से ग्रहण करता है।

( 5 ) व्यवहार पर प्रभाव – बालक का व्यवहार बहुत कुछ अनुवांशिकता पर निर्भर करता है। अगर माता-पिता शांत स्वभाव के हैं तो बालक का स्वभाव भी वैसा ही होगा। इसके विपरीत झगड़ालू माता-पिता की संतान भी उसी प्रकार की होगी।

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Anjali Yadav

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