कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

वस्तु-विनिमय-व्यवस्था (Barter System)

वस्तु-विनिमय-व्यवस्था (Barter System)
वस्तु-विनिमय-व्यवस्था (Barter System)

वस्तु-विनिमय-व्यवस्था (Barter System)

ज्ञान की प्रत्येक शाखा की अपनी एक आधारभूत खोज है जो महत्त्व यन्त्रशास्त्र में पहिए का विज्ञान में अग्नि का तथा राजनीति में मल का है. यहाँ स्थान मनुष्य के आर्थिक जीवन में मुद्रा के आकार का है।”

-क्राउथर

वस्तु-विनिमय का अर्थ (Meaning of Barter)

वस्तु-विनिमय एक ऐसी प्रणाली है जिसमें दो या अधिक पक्ष (parties) अपनी आवश्यकता की वस्तुओं को एक-दूसरे से, विना मुद्रा की सहायता के प्रत्यक्ष रूप से अदल-बदल करते हैं। दूसरे शब्दों में, वस्तुओं की प्रत्यक्ष अदला-बदली को वस्तु विनिमय कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई कृषक अपने कुछ गेहूं के बदले किसी जुलाहे से कुछ कपड़ा ले लेता है तो यह वस्तु-विनिमय हुआ। इसी प्रकार यदि कोई मालिक अपने नौकर को उसकी सेवाओं के बदले अनाज तथा कपड़ा देता है तो यह भी वस्तु-विनिमय होगा।

वस्तु-विनिमय की परिभाषाएँ (Definitions)—–(1) थॉमस (Thomas) के अनुसार, “एक वस्तु से दूसरी वस्तु को सीची अदल-बदल ही वस्तु-विनिमय कहलाती है।

(2) आर० पी० कैन्ट (R. P. Kent) के शब्दों में, “मुद्रा का विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग किए बिना वस्तुओं का वस्तुओं से प्रत्यक्ष लेन-देन वस्तु-विनिमय कहलाता है।

(3) चैन्डलर के विचार में, आर्थिक वस्तुओं का एक दूसरे से प्रत्यक्ष विनिमय वस्तु विनिमय कहलाता है। 3 वस्तु-विनिमय-प्रणाली एक प्राचीन तथा सरल प्रणाली है, किन्तु आधुनिक जटिल अर्थव्यवस्थाओं में इसका कोई महत्त्व नहीं है। आजकल इस प्रणाली का स्थान ‘मुद्रा’ ने ले लिया है। हो, इतना अवश्य है कि आर्थिक तथा व्यापारिक दृष्टि से पिछड़े हुए क्षेत्रों तथा जातियों में यह प्रणाली अब भी थोड़ी-बहुत मात्रा में प्रचलित है। वैसे शनैः शनैः इस प्रणाली का लोप होता जा रहा है।

वस्तु विनिमय प्रणाली की आवश्यक शर्ते

वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन तभी होता है जबकि समाज में निम्नांकित बातें पाई जाती हैं-

(1) दो पक्षों का होना-वस्तुओं का परस्पर विनिमय तभी होता है जबकि कम से कम दो ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपनी फालतू वस्तु या वस्तुओं को एक दूसरे को देने को तैयार होते हैं। स्पष्ट है कि कोई अकेला व्यक्ति अपनी वस्तुओं का अपने से ही विनिमय नहीं कर सकता।

(2) आवश्यकताओं का सीमित होना-वस्तुओं का परस्पर विनिमय तभी होता है जबकि व्यक्तियों की आवश्यकताएँ कम होती है क्योंकि तभी एक व्यक्ति के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना सरल होता है जो उससे उसकी फालतू वस्तु लेकर उसे वह वस्तु प्रदान कर सके जिसकी कि उसे आवश्यकता है। यदि आवश्यकताएँ अधिक तथा विविध होंगी तो उनकी सन्तुष्टि के लिए बहुत-सी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी जिन्हें परस्पर आदान-प्रदान द्वारा प्राप्त करना लगभग असम्भव होगा।

(3) विनिमय-क्षेत्र का सीमित होना-वस्तुओं की अदला-बदली करने वाले व्यक्ति आस-पास के गांवों या कस्बों में रहने चाहिए, तभी वस्तु-विनिमय प्रणाली को अपनाया जा सकेगा। यदि लोग दूर-दूर कस्बों तथा शहरों में रहते हैं तो फिर इस प्रणाली को अपनाना सम्भव नहीं होगा क्योंकि लोगों को अपनी इच्छित वस्तुओं की खोज में दूर-दूर घूमना पड़ेगा जिससे उनका पर्याप्त समय तथा शक्ति विनिमय कार्य में ही नष्ट हो जायेगी।

(4) समाज का पिछड़ा होना-वस्तु विनिमय को अपनाना ऐसे समाज में ही सम्भव होता है जो आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा (backward) होता है। पिछड़े हुए समाज में लोगों की आवश्यकताएं कम होती हैं। यही कारण है कि आज भी भारत के कुछ पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में वस्तु-विनिमय प्रणाली प्रचलित है।

(5) परिवहन के साधनों का अभाव- परिवहन की सुविधाओं के उपलब्ध न होने पर वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान को नहीं भेजी जा सकतीं। परिणामतः लोगों को विवश होकर स्थानीय वस्तुओं से काम चलाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वस्तु-विनिमय प्रणाली को बल मिलता है। फिर परिवहन के साधनों के अभाव में औद्योगिक सभ्यता का विकास नहीं हो पाता।

(6) मुद्रा का अभाव या कमी-जब समाज में मुद्रा का प्रचलन नहीं होता तथा वस्तुओं के मूल्य को मापने का कोई सर्वमान्य मापक भी नहीं होता, तब लोग वस्तुओं के परस्पर विनिमय द्वारा ही अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते हैं। मुद्रा के प्रचलन में होने पर वह विनिमय के माध्यम का कार्य करती है, जिस कारण वस्तु-विनिमय व्यवस्था समाप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त, किसी देश में प्रचलन में मुद्रा की मात्रा के कम होने पर भी सभी वस्तुओं का क्रय-विक्रय मुद्रा के माध्यम से नहीं हो पाता जिस कारण वहाँ वस्तु-विनिमय-प्रणाली भी अस्तित्व में बनी रहती है।

विनिमय के स्वरूप (Forms of Exchange)

(1) वस्तु-विनिमय (Barter)-जब मनुष्य परस्पर अपनी वस्तुओं या सेवाओं का आदानप्रदान प्रत्यक्ष रूप से (directly) तथा बिना किसी माध्यम (medium) की सहायता के करते हैं तो इसे वस्तु-विनिमय या प्रत्यक्ष विनिमय (Direct Exchange) कहते हैं। उदाहरणार्थ, मान लीजिए महेश के पास गेहूं है और उसे गुड़ चाहिए। सुरेश के पास गुड़ है और उसे गेहूँ चाहिए। दोनों आपस में गेहूं तथा गुड़ का आदान-प्रदान कर लेते हैं। यह वस्तु विनिमय हुआ।

(2) मुद्रा विनिमय (Money Exchange)-जब विनिमय-कार्य मुद्रा के माध्यम (medium) द्वारा किया जाता है तो इसे मुद्रा विनिमय अथवा परोक्ष विनिमय (Indirect Exchange) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, मुद्रा विनिमय में वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय-विक्रय मुद्रा की सहायता से किया जाता है। इसलिए इसे क्रय-विक्रय प्रणाली (Purchase-Sale System) भी कहते हैं।

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Anjali Yadav

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