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श्रम-विभाजन : अर्थ, रूप(Division of Labour : Meaning, Kinds)
“श्रम -विभाजन का अर्थ क्रियाओं का विशिष्टीकरण है।”
-एच० एल० हेन्सन
श्रम विभाजन का अर्थ (Meaning of Division of Labour)
आधुनिक काल में बड़े पैमाने के उत्पादन का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है। बड़े पैमाने पर किए जाने वाले उत्पादन कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया जाता है जिन्हें भिन्न-भिन्न श्रमिक करते हैं। किसी उत्पादन-क्रिया को छोटे-छोटे भागों में वाटने तथा प्रत्येक भाग को पृथक्-पृथक् अमिकों द्वारा किए जाने को ही ‘श्रग विभाजन’ कहते हैं। चेपमेन के शब्दों में, “कार्यों का विशिष्टीकरण ही श्रम-विभाजन है।” उदाहरणार्थ, सूती कपड़ा तैयार करने की उत्पादन प्रक्रिया को कई क्रियाओं में बाँट दिया जाता है, जैसे कपास उत्पन्न करना, कपास औटना, रूई धुनना, सूत कातना, धागे रंगना, कपड़ा गुनना आदि।
परिभाषाएँ (Definitions ) – (1) ए० एच० स्मिथ (A. H. Smith) के शब्दों में, “श्रम-विभाजन एक ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए उत्पादन क्रिया को इतने छोटे भागों में बाँटा जाता है कि प्रत्येक श्रमिक एक किया या एक से अधिक क्रियाएँ करता है।”
(2) वाटसन (Watson) के अनुसार, “किसी उत्पादन क्रिया को विभिन्न उप-क्रियाओं में विभाजित करके, प्रत्येक उप-क्रिया में उत्पादन के विशिष्ट साधनों को लगाना जिनमें कि वह निपुण है और फिर सबके उत्पादन को मिलाकर उपभोग की अभीष्ट वस्तुओं का उत्पादन करने को ही श्रम-विभाजन कहते हैं।
इस प्रकार जब किसी उत्पादन कार्य को कई भागों या उपभागों में विभाजित कर दिया जाता है और फिर प्रत्येक भाग या उपभाग को किसी श्रमिक या श्रमिकों के समूह से उनकी योग्यता तथा क्षमता के अनुसार कराया जाता है तब इसे ‘श्रम-विभाजन’ कहते हैं।
श्रम-विभाजन के रूप (Forms of Division of Labour)
श्रम-विभाजन के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं-
(1) सरल श्रम-विभाजन (Simple Division of Labour)- यह श्रम-विभाजन का अत्यन्त प्राचीन तथा सरल रूप है। जब किसी व्यवसाय का समस्त कार्य प्रारम्भ से लेकर अन्त तक कोई एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह करता है तो इसे सरल श्रम-विभाजन कहते हैं। उदाहरणार्थ, भारत में कोई व्यक्ति कृषि कार्य में, कोई व्यक्ति जूते बनाने में तथा कोई व्यक्ति लकड़ी का सामान बनाने में लगा हुआ है। चूंकि व्यक्ति-समूह मिन्न-भित्र व्यवसायों में बंट जाते हैं, इसलिए इसे व्यावसायिक श्रम-विभाजन (Occupational Division of Labour) भी कहते हैं। भारत में जातियों का निर्माण व्यावसायिक श्रम-विभाजन के आधार पर ही हुआ है।
‘सरल श्रम-विभाजन की धारणा का प्रयोग दूसरे अर्थ में भी किया जाता है। जब कोई कार्य किसी अकेले व्यक्ति के लिए कठिन या भारी हो और उसे दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर पूरा करें तो इसे सरल श्रम विभाजन कहते हैं, जैसे शहतीर उठाना, यस को धक्का लगाना, मारी मशीन को उठाना इत्यादि।
(2) जटिल श्रम विभाजन (Complex Division of Labour) थॉमस (Thomas) के शब्दों में, “श्रम-विभाजन तब जटिल होता है जबकि प्रत्येक मनुष्य या मनुष्यों का समूह केवल विशिष्ट कार्य को करता है और उनका अलग-अलग कार्य वस्तु को अन्तिम रूप से तैयार करने में सहायक होता है। “3 साधारण शब्दों में, जब किसी उत्पादन कार्य को कई भागों या उपभागों (क्रियाओं या उप-क्रियाओं में चोट दिया जाता है तथा प्रत्येक भाग या उपभाग को किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह द्वारा किया जाता है तो इसे जटिल श्रम विभाजन कहते हैं। उदाहरणार्थ, हौजरी व्यवसाय में स्वेटर के बनाने के काम की विभिन्न उप-क्रियाओं जैसे ऊन की रंगाई, ऊन का चुनना, लेबिल लगाना, प्रेस करना, पकिंग करना आदि को भिन्न-भिन्न श्रमिकों द्वारा किया जाता है। जटिल श्रम विभाजन निम्न दो प्रकार का होता है—
(i) पूर्ण क्रियाओं में श्रम-विभाजन (Division of Labour into Complete Processes) – जब किसी उद्योग में उत्पादन कार्य को कई उत्पादन-क्रियाओं में बाँट दिया जाता है और प्रत्येक क्रिया को श्रमिकों के भिन्न-भिन्न समूहों द्वारा सम्पन्न किया जाता है, तथा एक श्रमिक समूह द्वारा उत्पादित वस्तु अन्य श्रमिक समूह द्वारा कच्ची सामग्री के रूप में उपयोग में लाई जाती है तो इसे ‘पूर्ण क्रियाओं का श्रम विभाजन कहते हैं। उदाहरणार्थ, सूती कपड़ा तैयार करने की उत्पादन प्रक्रिया को कई पूर्ण क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। कपास का उत्पादन एक समूह द्वारा किया जाता है, कपास ओटने का कार्य दूसरे श्रमिक समूह द्वारा, थुनाई का कार्य तीसरे समूह द्वारा, सई कालने का कार्य चौथे समूह द्वारा, धागे को रंगने का कार्य पाँचवे समूह द्वारा तथा कपड़ा बुनने का कार्य छठे श्रमिक समूह द्वारा किया जाता है। उक्त विधियों (क्रियाओं) में प्रत्येक विधि अपने में पूर्ण है तथा प्रत्येक श्रमिक समूह द्वारा उत्पादित वस्तु दूसरे श्रमिक समूह द्वारा कच्ची सामग्री के रूप में प्रयुक्त की जाती है।
(ii) अपूर्ण क्रियाओं में श्रम-विभाजन (Division of Labour into Incomplete Processes) —जब किसी उत्पादन कार्य की प्रत्येक अपूर्ण किया एक श्रमिक या श्रमिक समूह द्वारा सम्पन्न की जाती है तब इसे अपूर्ण क्रिया में श्रम विभाजन कहते हैं। किसी श्रमिक या विभिन्न श्रमिक समूहों द्वारा उत्पादन में किए गए योगदान का कोई पृथक् या स्वतन्त्र मूल्य नहीं होता, अर्थात् प्रत्येक श्रमिक या श्रमिक समूह का कार्य अपूर्ण होता है। उदाहरणार्थ, आलपिन के निर्माण कार्य को 18 उप क्रियाओं में बांट दिया जाता है। इसी प्रकार जूते बनाने का कार्य अनेक उप-क्रियाओं में विभक्त कर दिया जाता है। इस प्रकार के श्रम विभाजन का जन्म मशीनों के आविष्कार के फलस्वरूप हुआ है।
(3) प्रादेशिक या भौगोलिक श्रम विभाजन (Territorial or Geographical Division of Labour) – जब विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में या एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न उद्योग-धन्धों का केन्द्रीकरण (centralisation) हो जाता है तो उसे प्रादेशिक अथवा भौगोलिक श्रम विभाजन कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जब विभिन्न देशों अथवा किसी देश के विभिन्न क्षेत्रों (प्रदेशों में वहाँ की अनुकूल भौगोलिक दशाओं के अनुसार पृथक्-पृथक् उद्योग केन्द्रित हो जाते हैं तो इसे ‘भौगोलिक श्रम विभाजन के नाम से जाना जाता है। उदाहरणार्थ, बंगाल में जूट मिले तथा बिहार व उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें केन्द्रित हैं। इस प्रकार के श्रम-विभाजन को ‘उद्योगों का स्थानीकरण’ (Localisation of Industries) भी कहते हैं।
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