कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

संगठनकर्त्ता के कार्य (Functions of an Organiser)

संगठनकर्त्ता के कार्य (Functions of an Organiser)
संगठनकर्त्ता के कार्य (Functions of an Organiser)

संगठनकर्त्ता के कार्य (Functions of an Organiser)

सामान्यतः संगठनकर्ता को निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं-

(1) उत्पादन की योजना तैयार करना- उद्यमी द्वारा निर्धारित किए गए लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठनकर्त्ता उत्पादन कीयोजना तैयार करता है। इसके लिए वह माँग तथा फैशन में होने वाले परिवर्तन, विद्यमान प्रतियोगिता की स्थिति, बाजार के विस्तार आदि बातों को ध्यान में रखता है।

(2) उत्पादन के उपादानों को एकत्रित करना-उत्पादन की योजना तैयार कर लेने के पश्चात् संगठनकर्ता भूमि, श्रम तथा पूंजी को पर्याप्त मात्रा में तथा न्यूनतम लागत पर प्राप्त करने की व्यवस्था करता है।

(3) विभिन्न उपादानों को अनुकूलतम अनुपात में मिलाना-संगठनकर्त्ता प्रतिस्थापन के नियम (Law of Substitution) में के आधार पर उत्पादन के विभिन्न उपादानों को अनुकूलतम अनुपात में जुटाने का प्रयत्न करता है ताकि कम से कम लागत पर अधिकतम उत्पादन किया जा सके। लिए वह कम कुशल साधनों को अधिक कुशल साधनों से प्रतिस्थापित करता है।

(4) कच्चे माल तथा यन्त्रों की व्यवस्था करना- संगठनकर्ता को आवश्यक कच्चा माल, यन्त्र, मशीन, शक्ति के साधनों आदि की भी व्यवस्था करनी होती है ताकि उत्पादन की योजना को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया जा सके। संगठनकर्ता को समय-समय पर मशीनों की मरम्मत तथा नवीनीकरण की भी व्यवस्था करनी पड़ती है।

(5) श्रमिकों को उनकी क्षमता के अनुसार कार्य सौंपना- संगठनकर्ता श्रमिकों को उनकी योग्यता, कुशलता तथा रुचि के अनुसार विभिन्न समूहों में विभाजित करके उन्हें कार्य पर लगाता है। तभी श्रम विभाजन के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

(6) श्रमिकों के कार्य का निरीक्षण करना- संगठनकर्ता श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले कार्य की देखभाल करता है ताकि श्रमिक अपनी क्षमता तथा योग्यता के अनुसार कार्य करें तथा अपना समय बर्बाद न करें। आलसी श्रमिकों पर वह अंकुश लगाता है। संगठनकर्ता का एक कार्य श्रमिकों की समस्याओं को सुलझाना भी है।

(7) उत्पादित माल की बिक्री की व्यवस्था करना-वस्तुओं का उत्पादन हो जाने के पश्चात् संगठनकर्त्ता को उत्पादित माल की बिक्री की व्यवस्था करनी होती है। इसके लिए वह (1) बाजार की स्थिति की जानकारी रखता है, (ii) वस्तु की माँग में वृद्धि करने हेतु विज्ञापन तथा प्रचार की व्यवस्था करता है, (iii) लागत, मोग तथा प्रतियोगिता को ध्यान में रखकर वस्तु की कीमत तब करता है, (iv) व्यापारिक प्रतिनिधियों, विक्रय एजेन्टों आदि की नियुक्ति करता है, (v) मण्डियों तक माल भेजने के लिए सस्ते व तीव्रगामी परिवहन के साधनों की व्यवस्था करता है इत्यादि।

(8) व्यावसायिक अनुसंधान- एक कुशल संगठनकर्ता उत्पादन की नई नई विधियों की जानकारी रखता है। साथ ही वह उत्पादन लागत, प्रबन्ध विज्ञापन, विक्रय आदि से सम्बन्धित अनुसंधान कार्य की व्यवस्था करता है।

(9) अन्य कार्य- संगठनकर्ता यह कार्य भी करता है (1) उत्पादन के विभिन्न साधनों के पुरस्कार के वितरण की व्यवस्था करना, (II) लागत, आय तथा व्यय का उचित हिसाब रखना, (III) लेखों के अंकेक्षण (auditing) की व्यवस्था करना, (iv) श्रम कल्याण सम्बन्धी कार्य करना आदि।

संगठनकर्ता की कुशलता (Efficiency of Organiser)

संगठन की कुशलता मुख्यतः दो बातों पर निर्भर करती है–(I) संगठनकर्ता की व्यक्तिगत कुशलता, तथा (II) उत्पादन के अन्य उपादानों की कुशलता

(1) संगठनकर्ता के व्यक्तिगत गुण-एक योग्य तथा कुशल संगठनकर्ता में अग्रलिखित गुणों का समावेश होना चाहिए-

(1) दूरदर्शिता- संगठनकर्ता को दूरदर्शी होना चाहिए ताकि वह भावी माँग का ठीक-ठीक अनुमान लगा सके। उसको बदलते हुए फैशन का समुचित ज्ञान होना चाहिए ताकि वह यह तय कर सके कि किस प्रकार की वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए।

(2) संगठन-योग्यता-संगठनकर्त्ता में उत्पादन के साधनों में अनुकूलतम अनुपात स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। इसके साथ ही उसमें उत्पादन के साधनों में सामंजस्य तथा सहयोग स्थापित करके उनसे न्यूनतम लागत पर अधिकाधिक उत्पादन करवाने की योग्यता होनी चाहिए।

(3) मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों का ज्ञान-एक कुशल संगठनकर्ता को श्रमिकों की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह उनसे उनकी क्षमता व योग्यता के अनुसार कार्य करवा सके। फिर संगठनकर्ता का यह गुण श्रमिकों की समस्याओं को जल्दी से सुलझाकर औद्योगिक शान्ति बनाए रखने में सहायक होता है।

(4) व्यवसाय का समुचित ज्ञान-संगठनकर्ता को अपने व्यवसाय का पूरा-पूरा सामान्य तथा तकनीकी ज्ञान होना चाहिए ताकि कोई भी कर्मचारी उसे बहका न सके उसे नई-नई मशीनों तथा आविष्कारों का ज्ञान होना चाहिए।

(5) उच्च शिक्षा-संगठनकर्ता को अपने क्षेत्र की उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। इसके साथ ही उसे अर्थशास्त्र, वाणिज्य, प्रबन्ध आदि विषयों का समुचित ज्ञान होना चाहिए।

(6) साहस तथा आत्मविश्वास- संगठनकर्ता को साहसी होना चाहिए। साथ ही उसमें आत्म-विश्वास होना चाहिए ताकि वह कठिनाइयों व समस्याओं का धैर्य से सामना कर सके। संकट-काल उसकी परीक्षा की घड़ी होती है। उसे मन्दी, प्रतिस्पर्धा, श्रम समस्याओं आदि का दृढ आत्म-विश्वास से सामना करना चाहिए।

(7) विश्वास उत्पन्न करने की योग्यता-एक कुशल संगठनकर्त्ता में उत्पादन के अन्य उपादानों में सहयोग तथा की भावना उत्पन्न करने की योग्यता होनी चाहिए।

(8) नैतिक गुण– एक कुशल संगठनकर्त्ता को ईमानदार, मृदुभाषी, निष्पक्ष, सहृदयी तथा चरित्रवान होना चाहिए।

(9) व्यवहार कुशलता-संगठनकर्ता का श्रमिकों, ग्राहकों, सरकारी अधिकारियों आदि विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से सम्बन्ध रहता है। अतः उसे व्यवहार कुशल होना चाहिए। उसमें श्रमिकों, ग्राहकों, अधिकारियों आदि को सन्तुष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए।

(II) उत्पादन के अन्य उपादानों की कार्यक्षमता- निजी गुणों के अतिरिक्त किसी संगठनकर्ता की कार्यकुशलता उत्पादन के अन्य उपादानों की कुशलता पर भी निर्भर करती है। यदि उसे प्राप्त भूमि, श्रम तथा पूजी कार्यकुशल नहीं होंगे तो संगठनकर्त्ता स्वयं कितना ही कुशल एवं योग्य क्यों न हो, वह न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन नहीं करा पायेगा।

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Anjali Yadav

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