कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

समस्याएँ तथा समाधान (Rural Society : Problems and Solutions)

समस्याएँ तथा समाधान (Rural Society : Problems and Solutions)
समस्याएँ तथा समाधान (Rural Society : Problems and Solutions)

समस्याएँ तथा समाधान (Rural Society : Problems and Solutions)

“राजा तथा शासक समृद्ध हो सकते हैं अथवा नष्ट हो सकते हैं। परन्तु वीर किसान जी अपने देश का गौरव है- यदि एक बार नष्ट हो जाएं तो उनको पूर्ति करना असम्भव है।”

 -गोल्डस्मिथ

भारत के ग्रामीण समाज की समस्याएँ

आजकल भारत के गाँवों की दशा बड़ी शोचनीय है। जो गाँव कभी धरती पर स्वर्ग के समान थे, वे आज साक्षात दरिद्रता, भूख, रोग, फूट, वैमनस्य अव्यवस्था और कभी-कभी तो नरक की प्रतिमूर्ति दिखाई पड़ते हैं। मारपीट ही नहीं चोरी, डकैती और कत्ल की घटनाएं गाँवों में आए दिन सुनाई पड़ती है। छोटी-छोटी बात पर मुकदमे चलते हैं जोकि परस्पर शत्रुता को बनाए रखते है। ग्रामीणों के सूखे और निस्तेज चेहरे उनके स्वास्थ्य के खोखलेपन को प्रदर्शित करते हैं। जो गाँव कभी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, उनके निवासी आज मिलावट करने और झूठ बोलने में शहरी भाइयों के कान काटते हैं। जिन गाँवों में कभी नैतिकता का आदर्श बहुत ऊंचा था, उनमें आज गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार और नैतिक पतन अत्यधिक बढ़ गया है। अन्धविश्वास, अज्ञान, अशिक्षा, गरीबी, बेकारी आदि ने मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है। आजकल भारत के गायों में केवल कृषि सम्बन्धी आर्थिक समस्याएं ही नहीं बल्कि सामाजिक और राजनीतिक समस्याएं भी पाई जाती है।

भारतीय ग्रामों की समस्याओं को मोटे तौर पर तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- (1) कृषि सम्बन्धी समस्याएँ, (2) आर्थिक समस्याएं, तथा (3) सामाजिक समस्याएं

(I) कृषि सम्बन्धी समस्याएं- भारतीय कृषि की दशा अत्यन्त शोचनीय है। इसके लिए निम्न कारण उत्तरदायी हैं— (1) कृषि जोतों का उप-विभाजन तथा विखण्डन, (2) भूमि पर जनसंख्या का अत्यधिक भार (3) फसलों के रोग तथा कीटाणु, (4) प्राचीन कृषि यन्त्र, (5) वर्षा की अनिश्चितता (6) दोषपूर्ण भूमि व्यवस्था, (7) अच्छे पशुओं का अभाव, (8) कृषकों की ऋणग्रस्तता (9) उत्तम बीज, खाद व सिंचाई सुविधाओं का अभाव, (10) अवैज्ञानिक कृषि पद्धति (11) निर्धनता तथा अशिक्षा, (12) कुटीर उद्योग-धन्धों का पतन, (13) दोषपूर्ण बिक्री व्यवस्था, (14) भूमि की उत्पादक शक्ति में हास

(II) आर्थिक समस्याएँ- भारतीय गांवों की प्रमुख आर्थिक समस्याएँ निम्न प्रकार है—

(1) विक्रय की समुचित व्यवस्था का अभाव- भारत के गाँवों में कृषि उपज तथा ग्रामीण उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विक्रय की समुचित व्यवस्था नहीं है। इससे उत्पादकों को अपनी मेहनत का उचित पारिश्रमिक नहीं मिल पाता जिस कारण उनका उत्साह नहीं बढ़ता। उत्तर प्रदेश में कृषि की उपज का लगभग 56 प्रतिशत गाँवों में ही बेच दिया जाता है।

(2) अत्यधिक ऋणग्रस्तता और ऊँची व्याज दरें- भारत के गाँवों में कृणग्रस्तता अत्यधिक है। किसान तथा मजदूर उससे छुटकारा प्राप्त नहीं कर नहीं पाते, क्योंकि ब्याज की दर बहुत ऊंची है। कभी-कभी तो महाजन किसानों के बैल तक छीन लेता है या उसे जमीन से बेदखल करा लेता है। व्याज की ऊंची दर के कारण न तो खेतों में स्थाई सुधार हो पाते हैं तथा न ही ग्रामीण उयोग-धन्धों को प्रोत्साहन मिल पाता है।

(3) आवागमन और संदेशवाहन के साधनों की कमी- भारत के गाँवों में न तो सड़कें अच्छी है और न ही माल लाने-ले जाने के लिए वाहनों की पर्याप्त सुविधाएँ है। कहीं-कहीं तो डाक सप्ताह में एक बार ही बढ़ती है। आवागमन और संदेशवाहन के साधनों की कमी के कारण व्यवसाय की गति मन्द रहती है।

(4) कुटीर और ग्रामोद्योगों को बहुत कम सहायता– भारत के ग्रामों में कुटीर और ग्रामीण उद्योग बड़ी असहाय अवस्था में हैं। न तो ग्रामीणवासियों को उत्पादन के वैज्ञानिक यन्त्रों के विषय में पर्याप्त ज्ञान है, न ही ये यन्त्र आसानी से गिल पाते हैं क्योंकि उन्हें खरीदने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध नहीं होती। इनका उत्पादित माल मिलों से प्रतियोगिता नहीं कर पाता। अतः ग्रामोद्योगों का निरन्तर हास होता जा रहा है। गाँवों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए ग्राम उद्योगों की समस्याओं का समाधान और कुटीर उद्योगों का विकास परमावश्यक है।

(5) भूमिहीन कृषि मजदूरों की समस्या- भारत में भूमिहीन कृषि मजदूरों की दशा बड़ी शोचनीय है उनको पूरे वर्ष में औसतन 218 दिन काम मिलता है। उनमें से 16 प्रतिशत श्रमिक पूरे साल बेकार रहते हैं। सन् 1971 की जनगणना के अनुसार देश में कृषि मजदूरों की संख्या लगभग 4-75 करोड़ थी, जो सन् 1991 में बढ़कर 7-46 करोड़ हो गई थी। योजना आयोग के शब्दों में, “निःसन्देह इन मजदूरों की समस्या एक बड़ी जटिल समस्या है जिसका न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था से महत्वपूर्ण सम्बन्ध है बल्कि अगले 15-20 वर्षों में इसका समस्त आर्थिक और सामाजिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।”

(6) पशुओं की समस्या- भारत के गांवों में पशुओं की समस्या भी बड़ी गम्भीर है। पशुओं को न तो पर्याप्त चारा मिलता है और न ही रोगों से उनकी भली-भाँति रक्षा की जाती है। अच्छी नस्ल के पशुओं का भी भारी अभाव है। नस्ल सुधारने के लिए समुचित उपाय भी नहीं किए जा सके हैं। बहुत से पशु सर्वथा बेकार रहने पर भी चारा खाए जाते हैं, क्योंकि प्रचलित धार्मिक रूढ़ियों के कारण उनके वध का विरोध किया जाता है।

(7) वन-सम्पदा की अव्यवस्था- ग्रामीण अर्थव्यवस्था की एक समस्या बन-सम्पदा का समुचित उपयोग न होना है। वनों की न तो अच्छी तरह रक्षा की जाती है, न ही उनका विकास किया जाता है और न ही उनका समुचित प्रयोग किया जाता है। गाँवों की उपरोक्त आर्थिक समस्याओं के अलावा कुछ अन्य समस्याएं भी कभी-कभी बड़ी गम्भीर हो जाती हैं, जैसे अनावृष्टि, अकाल, बाढ़ आदि की समस्याएँ।

(III) सामाजिक समस्याएँ- भारत के गाँवों में सामाजिक क्षेत्र में बहुत-सी गम्भीर समस्याएं विद्यमान है जो निम्न प्रकार है –

(1) निरक्षता और अशिक्षा- भारतीय गांवों में निरक्षरता और अशिक्षा की समस्या बड़ी गम्भीर है। देश की ग्रामीण जनसंख्या में अधिकांश लोग अब भी अशिक्षित और निरक्षर हैं। तकनीकी और कृषि सम्बन्धी शिक्षा का तो काफी अभाव है। इससे न केवल अन्धविश्वास और रूढ़िवाद पनपता है, बल्कि आर्थिक विकास प्रक्रिया में भी बाधा आती है।

(2) निर्धनता और बेकारी- गांवों में निर्धनता और बेकारी की समस्या बड़ी विकट है। गाँवों में सब लोगों को दो समय भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाता। समुचित कपड़ों का तो सवाल ही क्या बहुत से लोगों को तो भली प्रकार तन ढकने योग्य मामूली वस्त्र भी उपलब्ध नहीं है। मकान छोटे, कच्चे और अपर्याप्त होते हैं। गाँवों में बहुत ही कम लोगों को साल भर काम मिलता है। किसान भी साल के अनेक महीने पूरे समय काम नहीं करते बल्कि कुछ महीने तो वे पूर्णतः बेकार रहते हैं। निर्धनता और बेकारी ने मिलकर गाँव में गन्दगी, भ्रष्टाचार तथा नैतिक पतन फैलाया हुआ है।

(3) स्वास्थ्य की बुरी दशा- भारतीय गाँवों की एक अत्यन्त गम्भीर समस्या स्वास्थ्य की दुर्दशा है। भारत में गाँवों में जन्म-दर और मृत्यु दर संसार के अधिकांश देशों से ऊँची है और औसत आयु भी कम है। देश में मातृ मृत्यु तथा बाल मृत्यु की दर भी ऊंची है। अपयांप्त और पोषणहीन भोजन के कारण आए दिन महामारियां फैलती रहती हैं जिनके इलाज का कोई समुचित प्रबन्ध नहीं है। गाँवों में घर नितान्त अस्वास्थ्यकर होते हैं। देश में नशीली वस्तुओं का बढ़ता हुआ प्रयोग तो स्वास्थ्य को और भी चौपट किए जा रहा है।

उपरोक्त समस्याओं के अलावा भारत के गाँवों में अन्धविश्वास, धर्मान्धता, जातिवाद, छूआछूत, दलबन्दी, फूट, मुकदमेबाजी आदि अनेक बुराइयाँ व्याप्त है। राजनैतिक जागृति का भारी अभाव है। प्रचार के साधन सुलभ न होने के कारण ग्रामीण लोग: देश-विदेश की सामाजिक समस्याओं से अनभिज्ञ रहते हैं। उपरोक्त दोषों के कारण गांवों में ग्राम पंचायतों की हालत सन्तोषजनक नहीं है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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