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सम्भरण का नियम (Law of Supply)
सम्मरण किसी निश्चित समय पर सम्भावित वैकल्पिक कीमतों पर बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली वस्तु की विभिन्न मात्राओं की प्रदर्शित करता है।
-जे. एस. वैन
सम्भरण (पूर्ति) का अर्थ (Meaning of Supply)
किसी वस्तु का ‘सम्भरण’ (पूर्ति) उस वस्तु की वह मात्रा होती है जिसे किसी निश्चित समय तथा निश्चित कीमत पर बेचने के लिए बाजार में प्रस्तुत किया जाता है। थॉमस (Thomas) के शब्दों में, “वस्तुओं का सम्भरण वह मात्रा है जो किसी बाजार में किसी निश्चित समय पर, विभिन्न कीमतों पर बेचने के लिए प्रस्तुत की जाती है। जिस प्रकार किसी वस्तु की माँग उसकी कीमत द्वारा अत्यधिक प्रभावित होती है, उसी प्रकार किसी वस्तु के सम्भरण पर उसकी कीमत का गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः किसी वस्तु का सन्भरण किसी निश्चित कीमत पर ही होता है। इसी प्रकार किसी निश्चित समय के अभाव में वस्तु के सम्भरण का कोई अर्थ नहीं होता।
एनातोल मुराद (Anatol Murad) के अनुसार, “किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जिसे उसके विक्रेता किसी बाजार में एक निश्चित कीमत तथा निश्चित समय पर बेचने के लिए तैयार हैं।
सम्भरण तथा स्टॉक में अन्तर-किसी वस्तु के सम्भरण तथा उसके भण्डार या स्टॉक (stock) में अन्तर होता है। ” तो किसी वस्तु की उस मात्रा को बताता है जो किसी निश्चित समय पर बाजार में विद्यमान होती है, जबकि ‘सम्मरण’ स्टॉक का वह भाग होता है जिसे विक्रेता एक निश्चित समय तथा निश्चित कीमत पर बेचने के लिए तैयार होता है। किसी वस्तु का सम्भरण उसके स्टॉक से कम या उसके बराबर हो सकता है किन्तु स्टॉक से अधिक नहीं हो सकता।
सम्भरण अनुसूची तथा सम्भरण वक्र (Supply Schedule and Supply Curve)
सम्भरण अनुसूची (Supply Schedule) –यदि हम एक ऐसी सूची बना लें जिसमें यह दिखाया गया हो कि किसी वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमतों पर उसकी कितनी कितनी मात्रा बाजार में बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाएगी, तब यह उस वस्तु की सम्भरण अनुसूची होगी। इस प्रकार ‘सम्भरण अनुसूची’ किसी वस्तु की कीमत तथा उसके सम्भरण के सम्बन्ध को दिखाती है।
सम्मरण अनुसूची दो प्रकार की होती है–(i) व्यक्तिगत सम्भरण अनुसूची (Individual Supply Schedule) – यह अनुसूची या तालिका इस बात को दिखाती है कि किसी निश्चित समय में कोई विक्रेता वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमतों पर वस्तु को कितनी-कितनी मात्राएं बेचने की तैयार होगा (ii) बाजार सम्भरण अनुसूची (Market Supply Schedule) यह वह तालिका है जो निश्चित समय में किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर सभी विक्रेताओं के सम्भरण को दर्शाती है। स्पष्टतथा किसी वस्तु की बाजार सम्भरण- अनुसूची उसके विक्रेताओं की व्यक्तिगत सम्भरण अनुसूचियों का योग होती है।
सम्भरण का नियम (Law of Supply)
व्याख्या (Explanation)—किसी वस्तु की कीमत तथा बिक्री के लिए प्रस्तुत की गई उस वस्तु की मात्रा के सम्बन्ध को प्रकट करने वाले नियम को ‘सम्भरण का नियम’ कहते हैं। यह नियम बताता है कि यदि अन्य बातें समान रहें तो, किसी वस्तु की कीमत के बढ़ने पर उसका सम्मरण (पूर्ति) बढ़ता है तथा कीमत के घटने पर उसका सम्भरण भी घट जाता है। इस प्रकार किसी वस्तु की कीमत तथा सम्भरण दोनों एक ही दिशा में चलते हैं। चूंकि कम कीमत पर वस्तु की कम मात्रा तथा ऊंची कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाती है इसलिए सम्भरण-चक्र दाएं को ऊपर की ओर चढ़ता हुआ होता है।
डूली के अनुसार, “पूर्ति का नियम बतलाता है कि कीमत्त जितनी अधिक होती है पूर्ति उतनी ही अधिक होती है, अथवा कीमत जितनी कम होती है पूर्ति उतनी ही कम होती है।
वाटसन के शब्दों में, “अन्य बातों के समान रहने पर, वस्तु की कीमत के बढ़ने पर उसकी पूर्ति बढ़ जाती है तथा कीमत के कम होने पर पूर्ति कम हो जाती है।
मान्यताएँ (Assumptions)-सम्भरण का नियम तभी लागू होता है जबकि अन्य बातें समान रहती है, अर्थात् नियम के लागू होने के लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए-
(1) क्रेताओं तथा विक्रेताओं की आयु, रुचि तथा पसन्द में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(2) उत्पादन के उपादानों की कीमतें स्थिर रहनी चाहिए।
(3) उत्पादन-तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(4) वस्तु की कीमत में भविष्य में कमी या वृद्धि होने की सम्भावना नहीं होनी चाहिए।
(5) कीमत में मामूली परिवर्तन होने पर भी सम्मरण में परिवर्तन (कमी या वृद्धि) होना चाहिए।
(6) स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(7) सरकार द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
नियम के लागू होने के कारण-सम्मरण का नियम बताता है कि किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसके सम्मरण में वृद्धि हो जाती है तथा कीमत के कम होने पर उसके सम्भरण में भी कमी हो जाती है। ऐसा मुख्यतः अग्रलिखित दो कारणों से होता है-
(1) लाभ में वृद्धि- कीमतों के बढ़ने पर विक्रेताओं के लाभ बढ़ते हैं, जिस कारण वे वस्तु के सम्मरण (मात्रा) को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इसके अतिरिक्त, अधिक लाभ कमाने की आशा से कुछ नई फमें भी उस वस्तु का उत्पादन प्रारम्भ कर देती है।
(2) लाभ में कमी या हानि- कीमत कम होने पर विक्रेताओं के लाभ घट जाते हैं अथवा उन्हें हानि होने लगती है जिस कारण वे वस्तु की मात्रा (प्रति) को घटाने लगते हैं। इसके अतिरिक्त, हानि के भय से कम कार्यकुशल फर्मे वस्तु का उत्पादन कम या बन्द कर देती है।
नियम के अपवाद (Exceptions)- सम्मरण के नियम के कुछ अपवाद हैं जो निम्नवत् है-
(1) नाशवान वस्तुएं- नाशवान वस्तुओं की कीमतों घटने पर भी विक्रेता उन्हें बेच डालने का प्रयत्न करते हैं।
(2) भविष्य में कीमत में परिवर्तन की आशंका- भविष्य में कीमत में और अधिक वृद्धि या कमी की आशंका होने पर यह नियम लागू नहीं होता है।
(3) कृषि वस्तुएँ-मानसून की असफलता, बाढ़ और कुछ दशाओं में कृषि वस्तुओं पर सम्भरण का नियम लागू नहीं होता कृषि के प्रकृति पर निर्भर होने के कारण कृषि वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो जाने पर भी अल्पकाल में उनके सम्मरण में अपेक्षित वृद्धि नहीं की जा सकती क्योंकि पूर्ति को बढ़ाना व्यक्ति के हाथ में न होकर प्रकृति के हाथ में होता है।
(4) नीलामी की वस्तुएँ तथा कलात्मक वस्तुएँ- नीलामी की वस्तुओं, कलात्मक वस्तुओं आदि पर भी यह नियम लागू नहीं हो पाता, क्योंकि ऐसी वस्तुओं की पूर्ति प्रायः निश्चित होती है चाहे उनकी कीमत कुछ भी हो। उदाहरणार्थ, मृतक कलाकार की कलाकृतियाँ तथा मृतक कवि द्वारा रची गई कविताएँ इसी श्रेणी में आती हैं। इनकी कीमतों के बढ़ने पर भी इनकी पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता है।
(5) श्रम की पूर्ति–पिछड़े हुए देशों में श्रम के सम्भरण पर भी यह नियम लागू नहीं होता। ऐसे राष्ट्रों में श्रम का बाहुल्य (plenty) होता है तथा मजदूरी के घट जाने पर श्रम के सम्भरण को घटाया नहीं जा सकता।
(6) पुराने स्टॉक की बिक्री- कई बार विक्रेता वस्तुओं के अपने पुराने स्टॉक को निकालने के उद्देश्य से कम कीमत पर वस्तुओं को अधिक मात्रा में बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह नियम लागू नहीं होता।
(7) उत्पादन लागत में कमी- उत्पादन विधि में सुधार होने या किसी अन्य कारण से लागत में कमी हो जाने पर उत्पादक कम कीमत पर भी वस्तु की अधिक पूर्ति करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
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