कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक परिवर्तन (Social Mobility and Social Change)

सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक परिवर्तन (Social Mobility and Social Change)
सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक परिवर्तन (Social Mobility and Social Change)

सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक परिवर्तन (Social Mobility and Social Change)

“सामाजिक परिवर्तन से अभिप्राय जीवन के स्वीकृत दंगों में परिवर्तन से है, चाहे गोगोलिक दशाओं में से अागांस्कृतिको संख् की संरचना या विचारधाराओं में परिवर्तन के कारण अथवा समूह के अन्दर ही प्रसार या आविष्कार द्वारा लाए गए।

-गिलिन तथा गिलिन

सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)

प्रत्येक समाज विभिन्न प्रकार के समूहों में विभक्त होता है, जैसे राजनैतिक समूह, सांस्कृतिक समूह, आर्थिक समूह इत्यादि। इन विभिन्न समूहों का स्वभाव भी मिन्न-भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त, सभी समूहों का सामाजिक स्तर भी पृथक्-पृथक् होता है। किसी समूह की स्थिति ऊँची होती है तो किसी की नीची समाज का कोई व्यक्ति समाज के सभी समूहों का सदस्य नहीं बन सकता, चल्कि वह कुछ समूहों की ही सदस्यता प्राप्त कर सकता है। फिर, विभिन्न समूहों के सदस्य एक समूह की सदस्यता का परित्याग करके अन्य समूह या समूहों की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं। इस प्रकार, विभिन्न समूहों की सदस्यता में परिवर्तन होते रहते हैं, अर्थात् विभिन्न समूहों के मध्य लोगों का आना-जाना बना रहता है। किसी समाज के विभिन्न प्रकार के समूहों के मध्य लोगों के आने-जाने की इस निरन्तर प्रक्रिया को ही ‘सामाजिक गतिशीलता‘ कहते हैं।

सामाजिक गतिशीलता के प्रकार (Kinds of Social Mobility)-सामाजिक गतिशीलता मुख्यतः निम्न दो प्रकार की होती है-

(1) समरेखिक गतिशीलता (Horizontal Mobility)-जब कोई व्यक्ति अथवा समूह एक स्तर से दूसरे समान स्तर को जाता है तो उसे ‘समरैखिक गतिशीलता’ कहते हैं। इस प्रकार की गतिशीलता में व्यक्ति को सामाजिक स्थिति यथावत् रहती है, अर्थात् उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता।

(2) रैखिक गतिशीलता [Vertical Mobility)-जब किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन हो जाता है तो उसे रैखिक गतिशीलता’ कहते हैं।

सामाजिक गतिशीलता के स्तर- प्रत्येक समाज में सामाजिक गतिशीलता निम्न दो स्तर पर होती है-

(1) व्यक्तिगत स्तर पर- जब सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन व्यक्तिगत स्तर पर होते हैं तो उसे ‘व्यक्तिगत सामाजिक गतिशीलता’ कहते हैं।

(2) सामूहिक स्तर पर- जब विभिन्न समूहों की सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन होते हैं, तो ऐसे परिवर्तन को सामूहिक गतिशीलता’ कहते हैं। उदाहरणार्थ, स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से भारत सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के फलस्वरूप हरिजनों की सामाजिक स्थिति में पर्याप्त सुधार हुआ है। यह सुधार या परिवर्तन सामूहिक सामाजिक गतिशीलता का परिचायक है।

सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करने वाले कारक – प्रत्येक समाज में गतिशीलता समान मात्रा में नहीं पाई जाती। फिर, किसी एक ही समाज में गतिशीलता की गति सदैव समान नहीं रहती किसी समयावधि में तो किसी समाज में परिवर्तन तीव्र गति से होते हैं जबकि दूसरी समयावधि में उसी समाज में परिवर्तन मन्द गति से होते हैं।

सामाजिक गतिशीलता को मुख्य रूप से निम्न कारक प्रभावित करते हैं-

(1) आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग- स्वचालित यन्त्रों के प्रयोग से सामाजिक गतिशीलता की गति तीव्र हो जाती है।

(2) समान अवसरों का उपलब्ध होना- प्रत्येक समाज में व्यक्तियों तथा समूहों को अपनी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन (सुधार) करने के समान अवसर प्राप्त नहीं होते। जिस समाज में ऐसे अवसर अधिक उपलब्ध होते हैं उसमें गतिशीलता (परिवर्तन) की गति अपेक्षाकृत तीव्र होती है।

(3) जनांकिकी घटक- सामाजिक गतिशीलता को दो जनांकिकी घटक भी प्रभावित करते हैं—(1) जनसंख्या का पत्तायन, (1) जन्म-दर व मृत्युदर का अनुपात

(4) महत्त्वाकांक्षाएं- व्यक्तियों तथा समूहों की महत्त्वाकांक्षाएं भी सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है।

सामाजिक परिवर्तन (Social Change)

अर्थ- समाज सामाजिक सम्बन्धों का एक जाल है। अतः ‘सामाजिक परिवर्तन’ सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन है। प्रश्न उठता है सामाजिक सम्बन्ध क्या है? सामाजिक सम्बन्धों में सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक प्रतिमान तथा परस्पर सामाजिक क्रियाएँ आती हैं। इनमें समाज के विभिन्न अंगों की परस्पर क्रियाएँ तथा सम्बन्ध आते हैं।

परिभाषाएँ (Definitions)-(1) डेबिस (Devis) के शब्दों में, सामाजिक परिवर्तन में केवल वे ही परिवर्तन आते हैं जो सामाजिक संगठन अर्थात् समाज के ढाँचे और क्रियाओं में होते हैं। इस प्रकार डेविस के विचार में सामाजिक परिवर्तन सामाजिक संगठन का परिवर्तन है।

(2) मेरिल तथा एलरिज (Merrill and Eldredge) के मतानुसार, “सबसे अधिक मूर्त रूप में सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है कि बहुसंख्यक लोग ऐसी क्रियाओं में लगे हुए हैं जो उनसे भिन्न हैं जिनमें वे (अथवा उनके तत्कालीन पूर्वज) कुछ समय पूर्व लगे हुए थे।

मानव समाज मनुष्यों से बना है। अतः मनुष्यों के आपस के व्यवहार में जो कुछ परिवर्तन होता है वह सामाजिक परिवर्तन है। मानव एक गतिशील प्राणी है। अतः समाज कभी भी गतिहीन नहीं रह सकता। उसमें निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं।

सामाजिक परिवर्तन के कारण (Causes of Social Change)

किसी समाज में परिवर्तन मुख्यतः निम्न कारणों से होते हैं-

(1) सांस्कृतिक कारक- सांस्कृतिक मूल्य, भावनात्मक लगाव आदि सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं। मैक्स वेबर के विचार में सामाजिक परिवर्तन संस्कृति में परिवर्तन के साथ होते हैं।

(2) प्रौद्योगिक कारक- प्रौद्योगिक विकास के प्रत्यक्ष प्रभाव श्रम-विभाजन, विशिष्टीकरण आदि है। नगरीकरण, बेकारी, प्रतिद्धन्द्रिता आदि इसके अप्रत्यक्ष प्रभाव हैं। प्रौद्योगिकी हमारे पर्यावरण को परिवर्तित करके हमारे समाज को परिवर्तित करती है।

(3) जैवकीय कारक- इन कारकों में वंशानुसंक्रमण से सम्बन्धित जनसंख्या का गुणात्मक पक्ष आता है। जनसंख्या के वितरण, संरचना आदि में परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन होते हैं।

(4) आर्थिक कारक- आर्थिक दशाओं में परिवर्तन के फलस्वरूप सामाजिक ढाँचे में अपने आप परिवर्तन आने लगते हैं।

(5) मनोवैज्ञानिक कारक- मनुष्य स्वभाव से परिवर्तनप्रिय है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह सदैव नईलाई खोजें करता है। इस प्रवृत्ति के कारण समाज में सदियों परम्पराओं, रीति-रिवाज आदि में बराबर परिवर्तन होते रहते हैं।

(6) अन्य कारक- नवीन विचारधाराओं की उत्पत्ति भी परिवर्तनका कारण होती है। सामाजिक क्रान्तियों नवीन विचारधाराओं के उत्पन्न होने के कारण होती हैं।

सामाजिक परिवर्तन में गतिरोध (Obstacles of Social Change)

(1) आविष्कारों की कमी- जिस समाज में आविष्कार बहुत कम होते हैं उसमें परिवर्तन भी बहुत कम होते हैं।

(2) मनोवैज्ञानिक गतिरोध– मनुष्य स्वभाव से ही पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं आदि के अनुसार चलता है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति परिवर्तन की विरोधी है।

(3) सामाजिक परिस्थितियों- भारत में जाति-प्रथा अनेक प्रकार के सामाजिक परिवर्तनों को रोकती है। इस प्रकार सामाजिक प्रयाएँ सामाजिक परिवर्तन की विरोधी हैं।

(4) आर्थिक दशाएँ- कुछ आर्थिक दशाएँ भी सामाजिक परिवर्तन में बाधा डालती हैं। उदाहरणार्थ, निर्धनता सामाजिक परिवर्तन में एक प्रमुख बाधा है।

(5) राजनैतिक परिस्थितियाँ- कुछ राजनैतिक परिस्थितियाँ भी सामाजिक परिवर्तन के मार्ग में बाधक हैं। उदाहरणार्थ, भारत में राजाओं तथा बड़े-बड़े जमींदारों ने जनता में समानता लाने वाले अनेक परिवर्तनों का घोर विरोध किया।

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Anjali Yadav

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