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सीमान्त तथा कुल तुष्टिगुण (उपयोगिता) (Marginal and Total Utility)
“अर्थशास्त्री के लिए तुष्टिगुण मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की अगता है”
– प्रो. बाघ
तुष्टिगुण या उपयोगिता का अर्थ (Meaning of Utility)
साधारण बोलचाल में तुष्टिगुण का अर्थ किसी वस्तु की लाभदायकता से लगाया जाता है। किन्तु अर्थशास्त्र में तुष्टिगुण का अभिप्राय किसी वस्तु या सेवा की उस क्षमता या गुण से होता है जिसके द्वारा मनुष्य की किसी आवश्यकता की सन्तुष्टि की जा सके। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु की किसी मानवीय आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की क्षमता को ‘तुष्टिगुण’ कहते हैं। उदाहरण के लिए, रोटी-सब्जी, फल, दूध आदि में मनुष्य की भूख मिटाने की शक्ति उनका ‘तुष्टिगुण’ कहलाती है।
उपयुक्त परिभाषा– किसी वस्तु या सेवा की वह शक्ति या गुण अथवा क्षमता, जिससे किसी समय विशेष पर किसी व्यक्ति विशेष की आवश्यकता की सन्तुष्टि की जा सकती हो, तुष्टिगुण’ कहलाती है।
परिभाषाएँ (Definitions) –(1) प्रो० हिब्डन के शब्दों में, “तुष्टिगुण किसी वस्तु की वह क्षमता है जो किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है। “
(2) एम० एम० बॉबर के अनुसार, “तुष्टिगुण किसी वस्तु या सेवा की किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने वाली शक्ति हैं।
(3) जेवन्स के शब्दों में, “किसी वस्तु या सेवा में निहित आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की शक्ति या गुण को तुष्टिगुण कहते है।
तुष्टिगुण के लक्षण (Characteristics of Utility)-तुष्टिगुण की प्रमुख विशेषताएँ निम्न है
(1) तुष्टिगुण व्यक्तिगत होता है- किसी वस्तु का तुष्टिगुण प्रत्येक मनुष्य के लिए अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, सिगरेट पीने वाले के लिए सिगरेट में तुष्टिगुण होता है, किन्तु जो आदमी सिगरेट नहीं पीता उसके लिए सिगरेट में कोई तुष्टिगुण नहीं होता। इस प्रकार वस्तुओं का तुष्टिगुण व्यक्तियों के स्वभाव, आदत तथा रुचि पर निर्भर करता है।
(2) तुष्टिगुण अमूर्त होता है- तुष्टिगुण हम केवल अनुभव कर सकते हैं। तुष्टिगुण कोई ठोस वस्तु नहीं है। अतः हम उसे ना तो देख सकते हैं तथा न ही उसे स्पर्श कर सकते हैं। वस्तुतः तुष्टिगुण एक मनावैज्ञानिक अवधारणा है जिस कारण व्यक्तियों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन होने पर तुष्टिगुण में भी परिवर्तन हो जाता है।
(3) तुष्टिगुण वस्तुगत नहीं होता- तुष्टिगुण वस्तु विशेष का स्थायी गुण नहीं होता बरतु यह तो वस्तु के प्रयोग तथा उसकी आवश्यकता पर निर्भर करता है। पानी में केवल प्यासे व्यक्ति के लिए तुष्टिगुण है तथा प्यास के बुझ जाने पर ऐसे व्यक्ति के लिए भी पानी में तुष्टिगुण नहीं रहता, यद्यपि पानी के आन्तरिक गुण में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। फिर कुछ समय के बाद दोबारा प्यास लगने पर पानी में पुनः तुष्टिगुण अनुभव होने लगता है।
(4) तुष्टिगुण सापेक्ष होता है- किसी वस्तु में तुष्टिगुण सदैव समान नहीं रहता। यह समय, स्थान, परिस्थिति तथा में व्यक्ति में परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होता रहता है। उदाहरणार्थ, गर्मी के मौसम में ऊनी कपड़ों में तुष्टिगुण नहीं रहता।
(5) तुष्टिगुण तथा सन्तुष्टि में अन्तर- ‘तुष्टिगुण तो किसी वस्तु का वह गुण है जो उसमें सदैव विद्यमान रहता है जबकि ‘सन्तुष्टि’ (satisfaction) किसी वस्तु का उपभोग करने के पश्चात् प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ, रोटी खाने के पश्चात मनुष्य को सन्तुष्टि मिलती है। इस प्रकार सन्तुष्टि प्राप्त तुष्टिगुण होती है। अतः तुष्टिगुण कारण है जबकि सन्तुष्टि परिणाम (result)।
(6) तुष्टिगुण का लाभदायकता से कोई सम्बन्ध नहीं- प्रायः वस्तुएँ दो प्रकार की होती हैं लाभदायक तथा हानिकारक रोटी, दूध, फल, कपड़ा आदि लाभदायक वस्तुएँ हैं जबकि सिगरेट, शराव आदि हानिकारक वस्तुएँ हैं। साधारणतया मनुष्य केवल लाभदायक वस्तुओं को ही उपयोगी मानते हैं किन्तु अर्थशास्त्र में तुष्टिगुण का लाभदायकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता। अर्थशास्त्र की दृष्टि से तो वे सभी वस्तुएँ तुष्टिगुण रखती हैं जो मनुष्यों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने की शक्ति रखती हैं, चाहे दे लाभदायक हैं या हानिकारक उदाहरणार्थ, सिगरेट, शराब, अफीम आदि मादक वस्तुएँ हानिकारक होती हैं किन्तु अर्थशास्त्र की दृष्टि से उनमें तुष्टिगुण होता है।
(7) तुष्टिगुण तथा स्वादिष्टता में सम्बन्ध नहीं- तुष्टिगुण का किसी वस्तु की स्वादिष्टता से कोई सम्बन्ध नहीं होता। उदाहरणार्थ, कुनैन स्वादिष्ट नहीं होती किन्तु मलेरिया के रोगी के लिए इसमें तुष्टिगुण होता है।
(8) तुष्टिगुण और वैधता में सम्बन्ध नहीं- तुष्टिगुण का वैधता से भी कोई सम्बन्ध नहीं होता। उदाहरण के लिए, एक बिना लाइसेन्स की बन्दूक का प्रयोग अवैध है किन्तु एक डाकू के लिए उसमें तुष्टिगुण होता है।
(9) तुष्टिगुण तथा नैतिकता में सम्बन्ध नहीं- तुष्टिगुण तथा नैतिकता में भी कोई परस्पर सम्बन्ध नहीं है। शराब, अफीम, मांग आदि मादक वस्तुओं का उपयोग नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है। किन्तु शराबी के लिए शराब में तथा अफीमची के लिए अफीम में तुष्टिगुण होता है।
तुष्टिगुण का माप (Measurement of Utility)
तुष्टिगुण एक अमूर्त तथा वैज्ञानिक अवधारणा है। दूसरे शब्दों में, तुष्टिगुण कोई ठोस वस्तु नहीं है जिसे देखा या स्पर्श किया जा सके। कोई उपभोक्ता अपने मन में इसका केवल अनुमान ही लगा सकता है।
तुष्टिगुण के माप के सम्बन्ध में दो विरोधी दृष्टिकोण प्रचलित हैं-(i) गणनावाचक दृष्टिकोण तथा (ii) क्रमवाचक दृष्टिकोण।
(i) गणनावाचक दृष्टिकोण (Cardinal Approach)—-मार्शल के विचार में तुष्टिगुण मापनीय (measurable) है। गणनावाचक दृष्टिकोण के अन्तर्गत तुष्टिगुण को मापने के लिए गणनावाचक संख्याओं 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 आदि का प्रयोग किया जाता है। मार्शल के अनुसार तुष्टिगुण को निम्न दो विधियों द्वारा परोक्ष रूप से मापा जा सकता है-
(1) मुद्रा द्वारा माप- कोई उपभोक्ता किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए जितनी मुद्रा देने को तैयार होता है वही उसके लिए उस वस्तु के तुष्टिगुण का माप होती है। उदाहरणार्थ, यदि चन्द्रवीर एक कुर्सी खरीदने के लिए 350 रुपए खर्च करने को तैयार है तो चन्द्रवीर के लिए कुर्सी का तुष्टिगुण 350 रुपए के बराबर हुआ।
(2) इकाइयों द्वारा माप- इकाइयों (units) का प्रयोग तब किया जाता है, जबकि हमें दो वस्तुओं की तुलना करनी होती है। उदाहरणार्थ, यदि समीर किसी पुस्तक को प्राप्त करने के लिए 50 रुपए तथा पैन को प्राप्त करने के लिए 5 रुपए व्यय करने को तैयार है, तो पुस्तक का तुष्टिगुण 50 इकाई तथा पैन का तुष्टिगुण 5 इकाई हुआ दूसरे शब्दों में, समीर के लिए पुस्तक का तुष्टिगुण पैन के तुष्टिगुण की अपेक्षा दस गुना अधिक है।
तुष्टिगुण के गणनावाचक माप की आलोचना- हिस्क, एलन आदि आधुनिक अर्थशास्त्रियों का विचार है कि तुष्टिगुण का ठीक ठीक माप सम्भव नहीं है। उन्होंने तुष्टिगुण के गणनावाचक माप सम्बन्धी उक्त दोनों विधियों में निम्न दोष निकाले है-
(1) मनावैज्ञानिक अवधारणा– सुष्टिगुण एक वैज्ञानिक अवधारणा है। कोई उपभोक्ता इसका अपने मन में केवल अनुमान लगा सकता है।
(2) तुष्टिगुण का व्यक्तिगत होना- किसी वस्तु का तुष्टिगुण सभी व्यक्तियों के लिए समान नहीं होता, बल्कि रुचि, स्वभाव तथा आय में अन्तर के कारण किसी एक वस्तु से विभिन्न व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न तुष्टिगुण प्राप्त होता है। इसलिए तुष्टिगुण का सही-सही माप संभव नहीं है।
(3) तुष्टिगुण का स्थिर न रहना– यदि एक ही व्यक्ति को लिया जाए तो भिन्न-भिन्न समय पर एक ही वस्तु से मिलने वाला तुष्टिगुण उसके लिए अलग-अलग होगा। ऐसे परिवर्तनशील तत्त्व (तुष्टिगुण) को ठीक प्रकार से नहीं मापा जा सकता।
(4) मुद्रा का सही मापदण्ड न होना- मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन होता रहता है। अतः मुद्रा द्वारा तुष्टिगुण का ठीक-ठीक माप सम्भव नहीं है। इसके अतिरिक्त, मुद्रा के सीमान्त तुष्टिगुण में परिवर्तन होता रहता है। किसी व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा के बढ़ने पर मुद्रा का सीमान्त तुष्टिगुण घट जाता है जबकि मुद्रा की मात्रा के कम होने पर उसका सीमान्त तुष्टिगुण बढ़ जाता है।
उक्त कठिनाइयों को ध्यान में रखकर ही पीगू ने लिखा है, “मुद्रा के द्वारा केवल इच्छा की तीव्रता को मापा जा सकता है, लेकिन तुष्टिगुण को नहीं।”
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Disclaimer
Very simple and easy to understand। Thankyou so much for notes
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