अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण या विशेषताएं बताइए। मानसिक स्वास्थ्य को कौन कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
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अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण या विशेषताएं
मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताओं का ज्ञान किसी सुसमायोजित व्यक्ति के लक्षणों से ज्ञात हो सकता है। प्रायः अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के निम्नांकित लक्षण होते हैं-
1. सन्तुलित, एकीकृत तथा समन्वित विकास- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक प्रक्रियाओं का एक सन्तुलित, एकीकृत तथा समन्वित विकास होता है। वे अपने जीवन के लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राथमिकता की दृष्टि से क्रमबद्ध क्रम में विकसित करते हैं।
2. नियमित दिनचर्या- मानसिक रूप में स्वस्थ व्यक्ति प्रायः अपना जीवन नियमित जीवन के रूप में व्यतीत करते हैं। उनके रहन-सहन, खान-पान, सोने-जागने तथा अन्य क्रिया कलापों आदि की कुछ निश्चित आदतें होती हैं, जिन्हें वे स्वाभाविक ढंग से पूरा करते हैं।
3. समायोजन योग्यता- मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में अपने भौतिक तथा सामाजिक वातावरण के साथ शीघ्र समायोजन करने की योग्यता होती है। वे नये भौतिक परिवेश तथा अन्य व्यक्तियों के विचारों, परेशानियों व समस्याओं को भली-भाँति समझकर उनके साथ उचित समायोजन कर लेते हैं। सहयोगी व्यक्तियों में रूचि रखना एवं अन्य व्यक्तियों के साथ उत्साहजनक सम्बन्ध बनाने की योग्यता मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों की एक प्रमुख पहचान है।
4. संवेगात्मक परिपक्वता – ऐसे व्यक्ति संवेगात्मक दृष्टि से परिपक्व होते हैं अर्थात् उनमें अपने संवेगों को नियन्त्रित रखने तथा उन्हें वांछनीय ढंग से व्यक्त करने की क्षमता होती है। वे क्रोध, भय, ईर्ष्या, प्रेम, घृणा आदि संवेगों से अस्त-व्यस्त नहीं होते हैं वरन् विपरीत परिस्थितियों में भी सभी कार्यों को प्रसन्नता तथा लगन के साथ करते हैं। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अति प्रतिक्रिया तथा अल्प प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति से प्रायः मुक्त होते हैं।
5. आत्मविश्वास- मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति में आत्मविश्वास की भावना अधिक होती है। उन्हें यह विश्वास होता है कि वे विभिन्न कार्यों को उचित ढंग से सफलतापूर्वक कर सकते हैं। वे आत्महीनता की भावना से मुक्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति किये जाने वाले कार्य की सफलता के प्रति अनावश्यक रूप से संदिग्ध या उद्विग्र नहीं होते हैं। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति तनाव, भग्नाशा तथा द्वन्द्वों से मुक्त रहते हैं। वे अन्य व्यक्तियों पर विश्वास भी करते हैं। ऐसे व्यक्ति आशावादी दृष्टिकोण के होते हैं।
6. सहनशीलता – मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में प्रायः सहनशीलता अधिक होती है। वे जीवन में कठिनाईयों के आने पर निवश नहीं होते हैं। वे विपरीत परिस्थितियों का सामना सहनशीलता से करते हैं। धैर्य और सहनशीलता के कारण वे विषम परिस्थितियों में कष्ट का कम अनुभव करते हैं तथा मानसिक असंतुलन से बचे रहते हैं।
7. निर्णय करने की योग्यता- ऐसे व्यक्तियों में उचित निर्णय लेने की योग्यता पायी जाती है। वे स्पष्ट रूप से विचार करके विभिन्न कार्यों के सम्बन्ध में उचित निर्णय लेते हैं। स्वयं निर्णय लेकर निर्धारित की गयी बातों को वे सफलतापूर्वक क्रियान्वित करते हैं। वस्तुतः आलोचनात्मक योग्यता का विकास करके ही व्यक्ति अपने स्वयं के एवं अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को समझ सकता है, व्याख्या कर सकता है तथा उसमें औचित्य को स्वीकार कर सकता है।
8. वास्तविकता की स्वीकृति-सुसमायोजित व्यक्ति काल्पनिक संसार में नहीं वरन् वास्तविक संसार में विचरण करते हैं। उनका जीवन दर्शन वास्तविकता पर आधारित होता है। उनका व्यवहार कल्पनाओं अथवा इच्छाओं से निर्देशित न होकर वास्तविक रूप से विद्यमान बातों से निर्देशित होता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जीवन के आनन्द को प्राप्त करते हैं। वे कार्य तथा अवकाश दोनों का सदुपयोग करते हैं।
9. आत्म-मूल्यांकन की क्षमता- ऐसे व्यक्ति अपने स्वयं का मूल्यांकन ठीक ढंग से करते हैं वे अपने गुणों, दोषों, विचारों, इच्छाओं आदि की उपयुक्तता-अनुपयुक्तता को भली-भाँति समझते हैं। वे निष्पक्ष रूप से अपने व्यवहार के औचित्य का निर्णय करते हैं। उन्हें अपने दोषों को स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होता है।
10. कार्य सन्तुष्टि- ऐसे व्यक्ति अपने कार्य तथा व्यवहार में रूचि लेते हैं तथा उसे पूरा करके सन्तुष्टि का अनुभव करते हैं। इनमें अपने कार्य के प्रति लगाव होता है तथा वे कार्यों में रूचि लेते हैं। अपने उत्तरदायित्वों का पालन ऐसे व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक करते हैं।
उपरोक्त लक्षणों से युक्त व्यक्तियों को मानसिक दृष्टि से स्वस्थ व्यक्ति समझा जा सकता है। इसके विपरीत मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ व्यक्तियों में संवेगात्मक अस्थिरता, आत्मविश्वास की कमी, निराशा आदि उत्पन्न हो जाती है। जब व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भली-भाँति समायोजन स्थापित नहीं कर पाता है अर्थात् उसकी इच्छाओं, रूचियों आदि का वास्तविक परिस्थितियों में सामन्जस्य नहीं हो पाता है तब उसका व्यवहार असन्तुलित हो जाता है जिसके फलस्वरूप उसमें अनेक मानसिक विकास जैसे भग्राशा, मानसिक द्वन्द्व, तनाव, भावना ग्रंथियां, चिन्ता आदि उत्पन्न हो जाते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने वाले अनेक कारक हो सकते हैं। ये कारक व्यक्ति की समायोजन शक्ति को क्षीण करके उसे कुसमायोजन की ओर अग्रसित कर देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक अग्रांकित हैं—
1. वंशानुक्रम- कभी-कभी बालक वंशानुक्रम में अपने पूर्वजों से कुछ मानसिक विकारों को प्राप्त करता है जो उसे मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ बना देते हैं। दोषपूर्ण वंशानुक्रम के कारण बालक में मानसिक दुर्बलता या स्नायु सम्बन्धी रोग हो सकते हैं जिनके कारण उसका समायोजन कठिन हो जाता है।
2. शारीरिक स्वास्थ्य – शारीरिक स्वास्थ्य का मानसिक स्वास्थ्य से घनि सम्बन्ध अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रायः अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को आधार माना होता जाता है। शारीरिक दृष्टि से अस्वस्थ्य, रोगी या कमजोर व्यक्तियों में नई परिस्थितियों से समायोजन करने की क्षमता प्रायः कम होती है।
3. शारीरिक विसंगतियाँ- जन्मजात अथवा दुर्घटना के कारण आयी शारीरिक विसंगतियाँ भी व्यक्ति के मानसिक समायोजन में कठिनाई उत्पन्न करती हैं। शारीरिक दोष के कारण बालकों में प्रायः हीन भावनायें पैदा हो जाती हैं तथा वे अपने साथियों के साथ समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।
4. परिवार का वातावरण- बालक का विकास परिवार में होता है। परिवार बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है। पारिवारिक अनुशासन, आर्थिक स्थिति, उच्च महत्त्वाकांक्षायें, परिवार के सदस्यों के परस्पर सम्बन्ध आदि बालक के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। अत्यधिक अनुशासन अथवा अनुशासनहीनता, आवश्यक भौतिक वस्तुओं का अभाव अथवा अत्यधिक सम्पन्नता, असम्भावित महत्त्वाकांक्षायें अथवा योग्यता को नकारना, परिवार में टूटते सम्बन्ध, कलह, भेदभावपूर्ण व्यवहार आदि के कारण बालकों में प्रायः कुसमायोजन हो जाता है।
5. समाज- बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर समाज का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। सामाजिक वातावरण अथवा सामाजिक संगठन के दोषपूर्ण होने पर बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। समाज के आन्तरिक झगड़े, जातीय संघर्ष, धार्मिक उन्माद, राजनैतिक दाँवपेंच, ऊँच-नीच व अमीर-गरीब की भावना, सामाजिक कुरीतियाँ व्यक्तिगत स्वतन्त्रता व सुरक्षा का अभाव जैसी बातें बालकों में मानसिक तनाव उत्पन्न कर सकती हैं जो उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होता है।
6. विद्यालय – विद्यालय भी बालक के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। विद्यालय का वातावरण, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, परीक्षा प्रणाली, साथी छात्र, अध्यापक का व्यवहार आदि भी बालक के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। विद्यालय में भय, आतंक, तथा अवरुद्ध वातावरण के होने, पाठ्यक्रम के अत्यधिक बोझिल होने, शिक्षण विधियों के अमनोवैज्ञानिक होने, परीक्षा प्रणाली के उचित न होने, साथी छात्रों के कंठित या हताश होने तथा शिक्षक के सहानुभूतिपूर्ण व सहयोगात्मक व्यवहार के अभाव में बालक मानसिक रूप से अस्वस्थ से हो जाते हैं।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वंशानुगत दोष, कमजोर शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक विंसगतियां, परिवार का कलहपूर्ण वातावरण, विखण्डित सामाजिक परिवेश तथा भय व आतंक से युक्त बोझिल स्कूल वातावरण बालकों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
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