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अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन बोर्ड द्वारा निर्मित विभिन्न लेखांकन मानक

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन बोर्ड द्वारा निर्मित विभिन्न लेखांकन मानक
अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन बोर्ड द्वारा निर्मित विभिन्न लेखांकन मानक
अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन बोर्ड द्वारा निर्मित विभिन्न लेखांकन मानकों का कीजिए।

इस बोर्ड में अब तक 41 लेखांकन प्रमाप निर्मित किये हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-1: वित्तीय विवरणों का प्रस्तुतिकरण (CIAS 1) Presentation of Financial Statements)- वर्ष 1997 में संशोधित यह लेखांकन मानक अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक मण्डल द्वारा जुलाई, 1997 में अनुमोदित किया गया तथा 1 जुलाई, 1998 अथवा इसके पश्चात् के वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। यह लेखांकन मानक पूर्व में जारी किये गये अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक 1 (IAS-I) लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण, अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक 5 (IAS-5) वित्तीय विवरणों से प्रकट की जाने वाली सूचना तथा अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक 13 (IAS-13) चालू सम्पत्तियाँ एवं चालू दायित्वों के प्रस्तुतीकरण को निष्याभवी अथवा निरस्त करता है।

यह वित्तीय विवरणों के स्वच्छ प्रस्तुतीकरण, लेखांकन नीतियाँ, चालू व्यवसाय, उपार्जन आधार पर लेखांकन, सुसंगति प्रस्तुतीकरण, मुजराई (offsetting) तथा तुलनात्मक सूचना के लिए सम्पूर्ण प्रतिफलों को परिभाषित करता है। वित्तीय विवरणों में चिट्ठा, आय विवरण, रोकड़ प्रवाह विवरण, समता में परिवर्तन दर्शाने वाला विवरण एवं इससे सम्बन्धित विभिन्न प्रपत्र सम्मिलित किये जा सकते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-2 : स्कन्ध अथवा रहतिया (IAS-2 : Inventories)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 अथवा इसके पश्चात् की अवधि के वित्तीय विवरणों पर लागू है। यह स्कन्ध अथवा रहतिया के लिए विभिन्न लागत विधियों की सुसंगति स्पष्ट कर ऐतिहासिक लागत पद्धति के अन्तर्गत लेखांकन उपचार निर्धारित करता है। इस लेखांकन मानक के अनुसार स्कन्ध का मूल्यांकन न्यूनतम लागत तथा शुद्ध वसूली योग्य मूल्य पर होगा। विक्रय मूल्य में स्कन्ध को कच्ची सामग्री से निर्मित माल तक लाने की लागत एवं विक्रय व्यय की लागत घटाकर ज्ञात किया गया मूल्य शुद्ध वसूली योग्य मूल्य होता है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-3: समेकित वित्तीय विवरण (IAS-3: Consolidated Financial Statement)- यह लेखांकन मानक वर्तमान में प्रभावशील नहीं है। इसे वर्ष 1989 में अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक -27 एवं 28 (IAS-27 & 28) के प्रभाव से निष्प्रभावी किया गया है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-4: मूल्य ह्रास लेखांकन (IAS-4 : Depreciation Accounting) – मूल्य ह्रास के लेखांकन के लिए जारी किया यह लेखांकन मानक 1999 में वापस ले लिया गया तथा अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 16, 22 एवं 38 (IAS-16, 22 & 38) द्वारा इसे प्रतिस्थापित किया गया। ये सभी लेखांकन मानक 1998 में निर्गमित एवं संशोधित किये गये हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-5 : वित्तीय विवरणों में प्रकट की जाने वाली सूचनाएं (IAS-5: Information to be Disclosed in Financial Statements)- यह लेखांकन मानक मूलतः अक्टूबर 1976 में जारी किया गया जो 1 जनवरी, 1977 अथवा इसके पश्चात् के वित्तीय विवरणों पर लागू हुआ, किन्तु अधिक समय तक प्रभावशील नहीं रहा। वर्ष 1997 में अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-1 (IAS-I) द्वारा इसे निष्प्रभावी किया गया।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-6 : परिवर्तनशील मूल्यों के प्रति लेखांकन प्रतिक्रिया (IAS-6 : Accounting Responses to Changing Prices)- यह लेखांकन मानक वर्ष 1981 में अन्तर्राष्ट्रीय मानक-15 (IAS-15) द्वारा निष्प्रभावी किया जा चुका है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-9 : अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिए लेखांकन (AIS-9: Accounting for Research and Development Activities)- इस लेखांकन मानक का उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के लिए लेखांकन विधि निर्धारित करना था, किन्तु 1 जुलाई, 1999 को अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-38 के प्रभाव से इसे निष्प्रभावी किया जा चुका है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 10 : चिट्टे की तिथि के पश्चात् की घटनाएँ (IAS-10: Events after the Balance sheet Date)- यह लेखांकन मानक अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक मण्डल द्वारा मार्च, 1999 में अनुमोदित किया गया तथा यह 1 जनवरी, 2000 को अथवा उसके बाद के वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। यदि चिट्टे की तिथि के पश्चात् की कोई घटना जो की तिथि के पूर्व की स्थिति का कोई साक्ष्य प्रकट करती हो, तो इस आधार पर उपक्रम को अपने वित्तीय विवरण में समायोजन करना चाहिए किन्तु यदि चिट्ठा तैयार होने की तिथि के पश्चात् कोई घटना घटित हो, जो चिट्ठे के पश्चात् की स्थिति को सूचित करती हो तो इसका समायोजन उपक्रम को अपने वित्तीय विवरण में नहीं करना चाहिये।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप-11: निर्माणी ठेके (IAS-11: Construction Contracts )- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 को अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों पर लागू है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य निर्माणी ठेके की रेवेन्यू (आय) एवं उसमें सम्मिलित की गयी लागत की लेखांकन विधि का निर्धारण करना है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 12 : आय-कर (संशोधित-1996) | IAS-12: Income Taxes (Revised-1996)] – यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1998 अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों लागू है। यह लेखांकन मानक वित्तीय की आय पर करें के लेखांकन में लागू होगा। इसमें लेखांकन अवधि की आय पर कर सम्बन्धी व्यय या बचत की राशि तथा वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने की अवधि में हुई आय की राशि सम्मिलित है। इस लेखांकन मानक के अनुसार आय कर के निर्धारण में उन्हीं दरों का उपयोग किया जाना चाहिए जिन दरों के लागू होने की सम्भावना हो ।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 13: चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों का प्रस्तुतीकरण (IAS-13: Presentation of Current Assets and Current Liabilities)- 1 जनवरी, 1981 से लागू यह लेखांकन मानक वित्तीय विवरणों में चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों को प्रस्तुत करने में लागू किया गया था। इसे अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-1 (IAS-1) द्वारा 1997 से प्रभावहीन किया गया है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 14 खण्डवार रिपोर्टिंग या प्रतिवेदन ((IAS 14 : Segment Reporting)- यह अन्तर्राष्ट्रीय मानक 1 जुलाई, 1998 अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों पर लागू है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य वित्तीय विवरणों के उपयोगकर्ताओं को विभिन्न उपक्रमों एवं विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र से सम्बन्धित आकार, लाभ, अंशदान एवं विकास प्रवृत्ति की सूचनाएँ भाग अथवा खण्ड में उपलब्ध कराना है। इसमें सार्वजनिक कम्पनियों अपने उत्पाद, सेवा कार्य एवं भौगोलिक क्षेत्र की जानकारी प्राथमिक रूप से खण्ड युक्त आधार पर तथा द्वितीयक रूप में अन्य आधार पर प्रदान करती है।

लेखांकन प्रमाप- 15 : परिवर्तित मूल्यों के प्रभाव से सम्बन्धित सूचना (IAS-15: Information Reflecting the Effects of Changing Prices) – यह लेखांकन मानक आदेशात्मक नहीं है। इसका अनुमोदन अन्तर्राष्ट्रीय मानक मंडल द्वारा मंडल द्वारा अक्टूबर, 1989 में किया गया। यह लेखांकन मानक परिवर्तित मूल्यों के प्रभाव के प्रतिबिम्ब को उपक्रम के संचालन एवं वित्तीय स्थिति के परिणामों को नापने में लागू है। लेखांकन मानकर 15 (IAS-15) अपनाने वाली संस्थाओं को निम्नलिखित सूचनाओं का प्रकटीकरण सामान्य रूप शक्ति अथवा चालू लागत आधार पर करना होगा-

(i) ह्रास समायोजन; (ii) विक्रय समायोजन (iii) मौद्रिक मदों का समायोजन, एवं (iv) उपर्युक्त सभी को अथवा उपर्युक्त में से किसी एक को प्रभावित करने वाले समायोजन।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-16: परिसम्पत्ति, प्लाण्ट एवं उपकरण (IAS 16 : Property, Plant and Equipment)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 से प्रभावशील है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य परिसम्पत्ति, प्लाण्ट (संयन्त्र), उपकरण के लिए लेखांकन व्यवहार निर्धारित करना है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 17 : पट्टा (IAS-17: Leases)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1999 को अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों पर लागू है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य पट्टों के लिए लेखांकन व्यवहार निर्धारित करना है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप- 18 : आगम ‘या’ रेवेन्यू (IAS-18: Revenue)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। यह लेखांकन मानक वित्तीय विवरणों को निर्धारित ढाँचे में प्रस्तुत करने से हुई आय को परिभाषित करता है। यह सम्पत्तियों में हुई वृद्धि अथवा दायित्वों में हुई कमी से उत्पन्न आर्थिक लाभों से हुई वृद्धि के परिणाम, अन्य समता भागियों से सम्बन्धित अंशदानों को प्रकट करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक-19: कर्मचारी सुविधाएँ (IAS-19 Employee Benefits)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1999 अथवा उसके पश्चात् के वित्तीय विवरणों पर प्रभावशाली है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य कर्मचारियों को प्रदान की गयी सुविधाओं को व्यय मानकर उस राशि पर स्वीकृत या मान्यता प्रदान करना है। यह लेखांकन मानक पेंशन सहित पूर्व रोजगार सुविधाओं का स्पष्टीकरण करता है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 20 : सरकारी अनुदान के लिए लेखांकन एवं सरकारी सहायता सहायता का प्रकटीकरण (IAS-20: Accounting for government Grants and Disclosure of Government Assistance)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1984 को अथवा इसके पश्चात् के वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। इस लेखांकन मानक का उपयोग सरकारी अनुदानों के लेखांकन में तथा विभिन्न प्रकार की सरकारी सहायता के प्रकटीकरण में किया जाना चाहिए। इस लेखांकन मानक के अनुसार सरकारी अनुदान प्रत्यक्ष रूप से समता में जमा (क्रेडिट) नहीं किया जाना चाहिए। इसे लागत के साथ सम्मिलित कर आय के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। सम्पत्ति से सम्बन्धित अनुदान होने पर उसे लागत से कम कर दिया जाना चाहिए तथा इसका उपचार आस्थगित आय के रूप में किया जाना चाहिए।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 21 : विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन का प्रभाव (IAS-21: The Effects of Changes in Foreign Exchange Rates)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 अथवा इसके पश्चात् तैयार किये गये वार्षिक वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। इस लेखांकन मानक का उपयोग विदेशी मुद्रा में हुए व्यवहारों का लेखा करने तथा विदेशी संचालन से सम्बन्धित वित्तीय विवरणों के रूपान्तरण करने में होती है। इसमें विदेशी विनिमय व्यवहारों का रूपान्तर व्यवहार की तिथि पर एवं आय विवरण की मर्दे औसत विनिमय दर से रूपान्तरित होती है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 22 : व्यावसायिक संयोजन (IAS-22 : Business Combinations)- यह लेखांकन मानक वार्षिक वित्तीय विवरणों में 1 जनवरी, 1995 को अथवा उसके पश्चात् की अवधि में प्रभावशील है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य व्यावसायिक संयोजन के लिए लेखांकन विधि निर्धारित करना है। इसमें संयोजन के दो प्रकार के लेखांकन का स्पष्टीकरण किया गया है-(i) क्रय विधि से लेखांकन, एवं (ii) हितों की समूहीकरण विधि से लेखांकन।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 23 : ऋण लेने की लागतें (IAS-23: Borrowing Costs)- यह लेखांकन मानक 1 जनवरी, 1995 को अथवा इसके पश्चात् के वार्षिक वित्तीय विवरणों पर प्रभावशील है। इस लेखांकन मानक का उद्देश्य ऋण लेने की लागत लिए लेखांकन विधि निर्धारित करना है।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक- 24: सम्बन्धित पक्षों का प्रकटीकरण ( IAS 24 : Related Party Disclosures) – यह लेखांकन मानक अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानक मण्डल द्वारा मार्च, 1984 में अनुमोदित किया गया जिसे 1991 में पुनः संशोधित किया गया। यह लेखांकन मानक प्रतिवेधी उपक्रम के प्रतिवेदन में सम्बन्धित पक्षकारों के साथ लेन-देन के व्यवहारों में लागू होता है।

अन्य मानक 25 से 41 तक है, जैसे 25 विनियोगों के लिये लेखांकन (26) सेवानिवृत लाभ योजना के आधार पर लेखांकन एवं प्रतिवेदन, (27) मिश्रित वित्तीय विवरणों तथा सहायक कम्पनियों में विनियोगों के लिये लेखांकन। (28) सम्बद्ध संस्थाओं में विनियोग (29) अतिस्फीतिक अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय प्रतिवेदन (30) बैंक तथा ऐसी ही वित्तीय संस्थाओं के वित्तीय विवरणों में प्रकटीकरण। शेष प्रतिअंश उपार्जन, आमूर्त सम्पत्तियों, कृषि आदि से सम्बन्धित हैं।

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Anjali Yadav

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