अष्टछाप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। अथवा अष्टछाप के कवियों में बल्लभाचार्य के शिष्यों का परिचय दीजिये।
अष्टछाप- ब्रजभाषा में कृष्ण काव्य की रचना का सम्पूर्ण श्रेय बल्लभाचार्य को है। उनके द्वारा प्रचरित पुष्टि मार्ग में दीक्षित होकर उनके भक्त कवि भगवान की लीला गाने में मस्त हो गये। वे प्रतिदिन गोवर्द्धन में श्रीनाथजी के मन्दिर में राधा कृष्णजी के मधुर पद बनाकर गाया करते थे। श्रीबल्लभाचार्यजी के पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथ ने उन कवियों में से सर्वश्रेष्ठ आठ कवियों को चुनकर अष्ट-छाप की स्थापना की। इन कवियों में सूरदास, कुंभनदास, परमानन्ददास, कृष्ण दास, छीत स्वामी, चतुर्भुजदास और नन्ददास सम्मिलित थे।
(1) सूरदास- अष्टछाप के कवियों में सूरदास प्रमुख थे। सूरदास ने ब्रजलीला के ” अतिरिक्त अन्य अवतारों का वर्णन किया है। सूरदास में भक्ति तो थी साथ ही उन्हें कृष्ण हृदय मिला था। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं का स्वाभाविक एवं सरस वर्णन किया है। उनके शृंगार वर्णन में भी पूर्ण सजीवता है। उनका भ्रमरगीत वियोग शृंगार की उत्कृष्ट रचना है।
(2) कुंभनदास- गोपाल भक्त कवि होने के साथ-साथ उच्च कोटि के गायक थे। बल्लभाचार्य की भक्ति पद्धति पर लिखी इनकी फुटकर कविता अत्यन्त भावमयी एवं रस सिक्ति है।
(3) परमानन्ददास- कृष्ण भक्त कवियों में सूर के बाद वात्सल्य और प्रेम का वर्णन करने वाले ये अत्यन्त भावुक एवं भक्त कवि थे।
( 4 ) कृष्णदास- इन्होंने राधा कृष्ण के विशुद्ध शृंगार का गेय पदों में बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है।
(5) छीतस्वामी- इनकी कविताओं में ब्रजभमि की आसक्ति परिलक्षित होती है। कविताएँ सरस एवं प्रेमानुभति से मिश्रित हैं।
(6) गोविन्द स्वामी- ये भी भक्त होने के साथ उच्च कोटि के गायक थे। इनके पदों में संगीतात्मकता का विशेष महत्व है। ये
(7) चतुर्भुजदास- कुम्भनदास के पुत्र तथा गोस्वामी विट्ठलनाथ के शिष्य थे। इनके भक्ति एवं शृंगार के बड़े सुन्दर पद मिलते है।
(8) नन्ददास- अष्टछाप के कवियों में सूरदास के बाद इन्हीं का वैशिष्ट्य है। इनके दो ग्रन्थ रास पंचाध्यायी तथा भंवरगीत अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इनके काव्य में भक्ति भावना की प्रधानता है।
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