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आदर्श संगठन से आशय (Meaning of an Ideal Organisation)
संगठन साधन है साध्य नहीं। वास्तव में कोई संगठन अच्छा है या बुरा इस बात पर निर्भर करता है वह कितनी कुशलता से उपक्रम के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल है। एक आदर्श व स्वस्थ संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसमें संगठन के समस्त आवश्यक सिद्धान्तों का पालन किया जाता है तथा जो उपक्रम के अन्तिम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, “आदर्श संगठन वह है जो सामान्य व्यक्तियों को असामान्य कार्य करने में सहायता करता है।”
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आदर्श संगठन से आशय किसी सर्वगुणसम्पन्न संगठन से नहीं अपितु ऐसे संगठन से है जिससे सदैव आशा की जाती है कि वह अपने निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो ।
आदर्श संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of an Ideal Organisation)
आदर्श संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) उद्देश्यों की प्राप्ति- संगठन प्रत्येक उपक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति का एक साधन है। इसी दृष्टिकोण से संगठन को कई विभागों, शाखाओं व उपविभागों में बाँटा जाता है।
(2) स्पष्टता- संगठन में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए अर्थात् उसे अपने कार्यों, अधिकारों, दायित्वों व सम्बन्धों का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। इससे मतभेद, अनुत्तरदायित्व तथा शिथिलता आदि दोष दूर हो जाते हैं।
(3) समन्वय- आदर्श संगठन में उपक्रम के विभिन्न विभागों, कर्मचारियों व अधिकारियों में पर्याप्त समन्वय होना चाहिए। लियोनार्ड के शब्दों में, “संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए एक समूह के प्रयासों की क्रमबद्ध व्याख्या करने कार्यों में एकरूपता लाने के लिए समन्वय आवश्यक है।”
(4) प्रभावी निर्णय- आदर्श संगठन में सहभागिता के आधार पर सही समस्याओं पर निर्णय लिये जाते हैं तथा निर्णयन की प्रक्रिया कार्यवाहीप्रधान होती है।
(5) उच्च मनोबल- आदर्श संगठन में कार्यरत कर्मचारियों का मनोबल ऊंचा होता है। वह पूर्ण उत्साह व लगन निःस्वार्थ भाव स्वेच्छा से अधिकाधिक कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं।
(6) स्थायित्व- आदर्श संगठन वह है जो दीर्घकाल तक फर्म के उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता रखता है। साथ ही जिसमें विभिन्न उपद्रवों व परिवर्तित दशाओं के साथ समायोजित होने की क्षमता होती है।
(7) मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग- एक आदर्श संगठन का यह भी गुण है कि इकाई में उपलब्ध शक्ति का अधिकतम एवं मितव्ययितापूर्ण उपयोग होता है।
(8) सरलता- संगठन संरचना इतनी सरल होनी चाहिए ताकि प्रत्येक कर्मचारी उसे आसानी से समझ सके। जटिल संरचना संगठन में संघर्ष, शिथिलता, जड़ता व दबाव उत्पन्न करती है तथा कर्मचारियों को लक्ष्य से विचलित करती है।
(9) सन्तुलन- एक आदर्श संगठन की न केवल प्रत्येक इकाई सन्तुलित होती बल्कि वह साधनों व लक्ष्यों की दृष्टि से भी पूर्ण सन्तुलित होता है।
(10) कार्यान्वयन में सुविधा- आदर्श संगठन से कार्य अत्यधिक सुविधा एवं मितव्ययिता के साथ सम्पन्न किये जाएँ। इकर के अनुसार, “सर्वोत्तम साधन वह है जो सामान्य व्यक्तियों को असामान्य कार्य करने में सहायता करता है। “
(11) प्रभावी संचार- बिना प्रभावी संचार व्यवस्था के आदर्श संगठन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रभावी संचार व्यवस्था से संगठन के कर्मचारियों को संस्था की नीतियों, उद्देश्यों, कर्तव्यों, निर्देशों, पारस्परिक सम्बन्धों व प्रगति का पूर्ण ज्ञान रहता है।
(12) नेतृत्व सर्जन- आदर्श संगठन एक ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसमें प्रबन्धक कुशलतापूर्वक नेतृत्व कर सकते हैं । कण्ट्ज एवं ओ० डोनेल के अनुसार, “संगठन नेतृत्व को विकसित करने की तकनीक है।”
(13) नवप्रवर्तन की क्षमता – एक अच्छा संगठन वही है जो सृजनात्मक विचारों एवं नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करे संगठन में भावी विस्तार व स्वनवीकरण की क्षमता भी होनी चाहिए।
(14) साधनों का अधिकतम उपयोग- एक आदर्श संगठन वह होता है जो न केवल अपने भौतिक एवं मानवीय साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करता है बल्कि उनके विकास हेतु भी पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराता है। एक आदर्श संगठन वास्तव वह है जिसमें कार्य बड़ी सहजता से कुशलतापूर्वक बिना किसी समस्या के क्रियान्वित होता है। पीटर एफ० ड्रकर के शब्दों में, “एक स्वस्थ संगठन पूर्ण स्वास्थ्य की भाँति है। इसकी कसौटी यह है कि इसमें कोई दोष नहीं होते और इसीलिए उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती है।”
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