आभासी अथवा अवास्तविक कक्षा से आप क्या समझते हैं ? इसकी कार्यशैली, उपयोगिता एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
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आभासी अथवा अवास्तविक कक्षा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Virtual Classroom)
अवास्तविक या आभासी कक्षा-कक्ष इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तथा इण्टरनेट की सहायता से निर्मित ऐसा स्थान है जहाँ शिक्षक तथा छात्र एक-दूसरे से मीलों दूर हुए भी एक-दूसरे अनुभव को देख सकते हैं, सुन सकते हैं तथा घर बैठे बातचीत द्वारा वास्तविक कक्षा-कक्ष के को प्राप्त कर सकते हैं
इसके लिए वे कम्प्यूटर लैपटॉप, टेबलेट या मोबाइल द्वारा इण्टरनेट से जोड़ कर आपस में एक ही समय में सम्पर्क स्थापित करते हैं
अवास्तविक कक्षा-कक्ष का प्रयोग ई-लर्निंग प्रणाली, ऑनलाइन पाठ्यक्रम तथा मुक्त शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत औपचारिक कक्षा-कक्ष के विकल्प के रूप में किया जाता है।
एस. के. मंगल के अनुसार- “अवास्तविक कक्षा-कक्ष से अभिप्राय ऐसे कक्षा-कक्षों से है जिनमें आधुनिक कम्प्यूटर तथा सम्प्रेषण टेक्नोलॉजी युक्त साधनों, जैसे- इण्टरनेट, ई-मेल, ऑनलाइन चैटिंग, वर्ल्ड वाइड वेब World wide web, सी.डी. रोम, टेलीकान्फ्रेंसिंग इत्यादि का प्रयोग करके नियमित कक्षाओं की परम्परागत शैक्षिक मूल्यांकन तथा प्रशासनिक गतिविधियों का आंशिक या पूर्ण रूप से स्थान लेने का प्रयत्न किया जा सकता है।”
आभासी कक्षा कक्ष क्या हैं? (What are Virtual Classrooms ?)
आभासी कक्षा कक्ष की अवधारणा पर अपनी टिप्पणी करते हुए अमेरिका के न्यूजर्सी तकनीकी संस्थान में कार्यरत प्रोफेसर मुर्रे ट्यूरोफ (Murray Turoff, 2007) लिखते हैं, “आभासी कक्षा कक्ष एक ऐसा वेब आधारित माध्यम या शिक्षण अधिगम वातावरण है जो गंतव्य स्थान पर जाए बिना ही आपको वहाँ चल रही प्रशिक्षण सम्बन्धी कार्यों में हिस्सा लेते हो, प्रश्न यूछते हो तथा ठीक वैसे ही बदले में पृष्ठपोषण प्राप्त करते हो जैसा कि मानो अपि परम्परागत कक्षा कक्ष में बैठकर अनुदेशन ग्रहण कर रहे हो। अन्तर केवल यह होता है यहाँ आप अपनी सुविधानुसार उस जगह डेस्कटॉप पर विराजमान होकर यह सब कुछ करते हैं, जहाँ आपको इण्टरनेट तथा फोन कनेक्शन की सुविधाएँ प्राप्त हों। इससे आपके प्रशिक्षण स्थल तक जाने सम्बन्धी समय और पैसे जैसे सभी बातों की पर्याप्त बचत होती है।”
“इस प्रकार जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है कि आभासी कक्षा कक्षों से तात्पर्य उनके नाम के अनुरूप ही ऐसे कक्षा कक्षों से है जो वास्तविक कक्षा शिक्षण के प्रतिरूपों के रूप में हमारे सामने आते हैं। व्यावहारिकता में ये साइबर कक्षा कक्ष (Cyber Classrooms) होते हैं, जहाँ अध्यापक और विद्यार्थी एक उपस्थित रहकर पारस्परिक अंतः क्रिया में रत रहते हैं। इस प्रकार इन कक्षा कक्षों का सदैव यही प्रयत्न रहता है कि इनके द्वारा परम्परागत कक्षा शिक्षण जैसा प्लेटफॉर्म ही अध्यापक तथा विद्यार्थियों को शिक्षण अधिगम हेतु प्रदान किया जाये। अतः परिभाषा के रूप में अवास्तविक कक्षा-कक्ष से अभिप्राय ऐसे कक्षा कक्षों से है जिनमें आधुनिक कम्प्यूटर तथा संप्रेषण टेक्नोलॉजी युक्त संसाधनों; जैसे-इण्टरनेट, ई-मेल, ऑनलाइन चैटिंग, वर्ल्ड वाइड वेब, सीडी. रोम, डीवीडी, टेलीकांफ्रेंसिग तथा वीडियो ऑफ कॉन्फ्रेन्सिंग इत्यादि का प्रयोग करके नियमित कक्षाओं की परम्परागत शैक्षिक, मूल्यांकन तथा प्रशासनिक गतिविधियों का आंशिक या पूर्ण रूप से स्थान लेने का प्रयत्न किया जाता है।
आभासी कक्षा कक्षों की कार्यशैली (Modus Operandi of the Virtual Classroooms)
आभासी कक्षा कक्ष विभिन्न प्रकार के स्कूल पाठ्यक्रमों तथा कक्षा कक्ष गतिविधियों को स्वयं विद्यार्थियों को उनके अपने घरों तथा कार्यक्रमों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। इनकी कार्यशैली से सम्बन्धित मुख्य बातों को निम्न प्रकार उल्लेख किया जा सकता है-
1. अपनी कार्यपद्धति का श्रीगणेश करते हुए एक आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था में विषय विशेषज्ञों या अनुभवी अध्यापकों को विद्यालय पाठ्यक्रम के किसी एक प्रकरण पर अनुदेशन सामग्री प्रस्तुत करने के लिए कहा जा सकता है। इनका प्रसारण सेटेलाइट आधारित टेलीकॉन्फ्रेन्सिंग द्वारा (जैसा कि एन.सी.ई.आर.टी. के शैक्षिक तकनीकी प्रभाग में एडूसैट कार्यक्रम द्वारा हो रहा है) सम्पन्न हो सकता है।
2. दूसरा तरीका यह हो सकता है कि विशेषज्ञों तथा अनुभवी अध्यापकों द्वारा विकसित अध्ययन सामग्री या वास्तविक कक्षा कक्ष या कैम्पस की वेबसाइट पर डाल दी जाये और विद्यार्थियों को सम्बन्धित सामग्री अपने अध्ययन हेतु डाउनलोड करने दिया जाये। इस कार्य हेतु सभी रजिस्टर्ड विद्यार्थियों को अलग-अलग गुप्त पासवर्ड दिये जा सकते हैं।
3. अपने तीसरे प्रारूप में आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था के द्वारा कोर्स सामग्री तथा उससे सम्बन्धित अनुदेशनात्मक निर्देश सीडी रोम या डीवीडी के रूप में विद्यार्थियों को वितरित की जा सकती है। विद्यार्थी अपनी सुविधानुसार इसे अपने कम्प्यूटर या लेपटॉप का उपयोग कर अपने अध्ययन हेतु प्रयोग में ला सकते हैं। इस तरह अध्ययन सामग्री चाहे सीडी रोम या डीवीडी में संकलित करने दी जाये अथवा इसे पूर्ववर्णित इण्टरनेट फाइलों और वेब पेजों के रूप में विद्यार्थियों के सामने रखा जाए, विद्यार्थियों को अध्ययन सामग्री के साथ सन्दर्भ सामग्री, अवलम्बन सामग्री (Support Material) तथा पूरक सामग्री (प्रायः पूछे जाने प्रश्नों के रूप में) अवश्य ही प्रदान की जाती है ताकि विद्यार्थियों का स्व-अधिगम कार्य सुचारू रूप से चलता रहे।
4. अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था द्वारा ऐसे प्रबन्ध करने का प्रयत्न किया जाता है कि विद्यार्थी विशेष को अपने अध्यापकों तथा साक्षी विद्यार्थियों के साथ सम्पर्क स्थापित कर उचित अंतःक्रिया करने के समुचित अवसर प्राप्त हो सकें। उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से इस कार्य हेतु कई विकल्प प्रस्तुत किये जा सकते हैं; जैसे-ऑनलाइन चैटिंग, ई-मेल, ऑडियो एवं वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग, मोबाइल फोन सुविधाएँ आदि। अध्यापकों द्वारा इस प्रकार के सम्पर्क और अंतः क्रिया का उपयोग शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी बनाने हेतु किया जा सकता है। वे विद्यार्थियों से प्रश्न पूछ उनके ज्ञान एवं बोध की जाँच कर सकते हैं, उनका समय-समय पर मूल्यांकन कर सकते हैं, उनकी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं तथा उनकी अतिरिक्त ज्ञान सम्बन्धी जिज्ञासा की संतुप्ति कर सकते हैं।
5. अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था द्वारा ऐसा कुछ अपना अलग से एक व्यवस्थित प्रबन्ध किया जा सकता है कि विद्यार्थियों के अधिगम को पुनर्बलित करने, आवश्यक अभ्यास कराने, पुनरावृत्ति कराने तथा प्रोजेक्ट कार्य, अधिन्यास और गृहकार्य देने आदि जैसी आवश्यक गतिविधियों का संचालन और प्रबन्धन भी अच्छी तरह होता रहे। इस कार्य हेतु आवश्यक सामग्री तथा संदेश वेबसाइट पर समयानुसार डाले जा सकते हैं और विद्यार्थियों से कहा जा सकता है कि वे आवश्यक कार्यवाही कर उन्हें ई-मेल तथा ई-फाइलों के रूप में अध्यापकों तक निश्चित समय के अन्तर्गत प्रतिपुष्टि प्रदान करने का कार्य सुचारु रूप से चलता रहे।
आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था की उपादेयता (Advantages of the Virtual Classroom System)
आभासी कक्षा कक्ष प्रणाली अपने उपयोगकर्ताओं को दुहरा लाभ पहुँचाने का सामर्थ्य रखती है। इससे एक ओर तो जहाँ भी जिस समय उन्हें अध्ययन करना हो ऐसा प्रबन्ध करने तथा दूसरी ओर परम्परागत कक्षा प्रणाली की तरह आमने-सामने होकर अध्यापकों से अंतः क्रिया कर अनुदेशन प्राप्त करने जैसी सुविधा प्रदान करने का कार्य अच्छी तरह किया जा सकता है। अपनी इस विशेषता और सामर्थ्य के फलस्वरूप अवास्तविक कक्षा कक्ष प्रणाली विद्यार्थियों के लिए निम्न प्रकार से बहु-उपयोगी सिद्ध हो सकती है-
1. अनुदेशन तथा अधिगम अनुभव ग्रहण करने सम्बन्धी सुविधाएँ इस प्रणाली में हर समय सप्ताह के सातों दिन और 24 घण्टे विद्यार्थियों को उपलब्ध रहती हैं। इस प्रकार की सुविधा परम्परागत, नियमित कक्ष अनुदेशन में किसी भी तरह उपलब्ध नहीं हो सकती। विद्यार्थी जब इच्छा हो तभी किसी समय अपने अनुदेशन में रत रह सकते हैं। इस प्रकार की अनोखी छूट ही इस व्यवस्था को एक अद्वितीय अध्ययन प्रणाली बनाने की पूरी सामर्थ्य रखती है।
2. यह विद्यार्थियों को अपेक्षित अधिगम अनुभव प्रदान करने के कार्य में बेहद लचीली सिद्ध हो सकती हैं। वे अपनी-अपनी जगहों पर बैठे हुए या कार्य करते हुए अपनी सुविधानुसार किसी भी समय अपनी स्वगति से अध्ययन कार्य में रत रह सकते हैं।
3. परम्परागत अनुदेशन व्यवस्था की तरह यहाँ विद्यार्थियों को एक निश्चित समय तथा स्थान पर स्वयं उपस्थित रहकर अध्ययन नहीं करना होता। अतः यह प्रणाली विद्यार्थियों को यह छूट देती है कि वे अपने-अपने व्यवसायों या कार्यों में रत रहते हुए साथ-साथ अपना अध्ययन कार्य भी चला सकें।
4. इस प्रणाली में यह अच्छी तरह सम्भव है कि अच्छे विषय विशेषज्ञों तथा अनुभवी अध्यापकों की सेवाओं का लाभ विद्यार्थियों को भली-भाँति प्रदान कराया जा सके। जहाँ परम्परागत कक्षा शिक्षण में सामान्य कक्षा शिक्षकों का भी अभाव बना रहता है वहाँ इस प्रकार का अनूठा लाभ इस प्रकार की व्यवस्था द्वारा ही सम्भव । इस प्रणाली में प्रायः सर्वश्रेष्ठ और अनुभवी अध्यापक वर्ग या विषय विशेषज्ञों को अच्छा पारिश्रमिक देकर पूर्णकालिक सेवा पर न रखकर समय विशेष पर उनकी सेवाएँ लेने का कार्य किया जाता है। सभी प्रकार के शिक्षण पाठ्यक्रमों, विषयों तथा क्षेत्र विशेषों के लिए इस प्रकार वांछित फैकल्टी का प्रावधान यहाँ किया जा सकता है जबकि परम्परागत विद्यालय व्यवस्था या कक्षा अनुदेशन कार्य में यह करना न तो सम्भव है और न आर्थिक दृष्टि से लाभदायक। इस प्रकार सभी प्रकार के शिक्षण कोर्सों के लिए सर्वोत्तम मानवीय संसाधनों का प्रबन्ध करने में भी अवास्तविक कक्षा अनुदेशन व्यवस्था परम्परागत कक्षा व्यवस्था की तुलना में काफी अच्छी मानी जा सकती है।
5. अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था विद्यार्थियों के लिए अपने कई अन्य ऑनलाइन फीचर्स की वजह से भी काफी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। उन्हें इससे प्रवेश लेने, रजिस्ट्रेशन कराने, कोर्स और शैक्षणिक गतिविधियों से परिचित होने, अधिन्यास तथा प्रोजेक्ट प्राप्त करने, परीक्षण और मूल्यांकन में से गुजरने, अपनी उपलब्धियों के सम्बन्ध में परिणामों से अवगत होने, सर्टीफिकेट तथा ग्रेडिंग प्राप्त करने, अध्यापकों से आवश्यक सलाह एवं मार्गदर्शन ग्रहण करने, पब्लिक परीक्षाओं, मेरिट स्कीम, व्यावसायिक एवं उच्चतर कोर्सों में दाखिला लेने आदि से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाएँ आसानी से घर बैठे ही ऑनलाइन प्राप्त हो जाती हैं।
6. इस प्रणाली में शिक्षण अधिगम के कार्य में विविध प्रकार की नवीन तकनीकी सामग्री और माध्यमों का प्रयोग होता है; जैसे-सीडी ROM, डीवीडी, इण्टरनेट, ऑनलाइन चैटिंग, मोबाइल एवं टेलीफोन संप्रेषण, वर्ल्ड वाइड वेब, ऑडियो एवं वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग इत्यादि। इस प्रकार के बहुगामी संसाधनों के प्रयोग से शिक्षण अधिगम कार्य विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के लिए अतिरुचिकर तथा प्रेरणादायक बन जाता है।
7. अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था में विद्यार्थियों को अपने अध्यापकों तथा साथियों से किसी भी प्रकार की आलोचना प्रताड़ना तथा मजाक उड़ाने का भय नहीं होता। किसी भी प्रकार की असफलता भी उन्हें बहुत अधिक विचलित नहीं करती, क्योंकि उन्हें अपने अधिगम प्रयासों द्वारा अपनी मंजिल पाने की पूरी आशा बनी रहती है।
आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था की कमियाँ एवं सीमाएँ (Drawbacks and Limitations of the Virtual Classroom System)
किसी भी वस्तु या प्रक्रिया का अपने सही वास्तविक रूप में उपस्थित रहकर क्रियाशील न होना ही अपने आप में उसकी कमी तथा सीमाओं की ओर इशारा करने में काफी रहता है यही बात आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था में दिखाई देने वाली खामियों तथा कमियों के लिए भी यथेष्ट रूप से लागू होती है। संक्षेप में इस व्यवस्था में पाई जाने वाली कमियों तथा सीमाओं को निम्न प्रकार लिपिबद्ध किया जा सकता है-
1. प्रायः यह देखा जाता है कि आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था के संगठन और प्रबन्धन में अधिगम सामग्री और विद्यार्थियों को उसे प्रदान करने के तरीकों की गुणवत्ता में काफी असंदिग्धता रहती है। इस कार्य हेतु जो फैकल्टी नियुक्त की जाती है वह अपने कर्त्तव्यों के निर्वाह में समुचित रूप से सक्षम नहीं पाई जाती। इस तरह के हालातों में विद्यार्थी वर्ग पर काफी बुरी बीतती है और यही बात अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था के लिए काफी बदनामी और बुराई का कारण बन जाती है।
2. यह सही है व्यवस्था विद्यार्थियों के अपने अध्ययन के सन्दर्भ में काफी लचीली सिद्ध होती है। वे अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी समय और स्थान विशेष में स्वगति से अध्ययनरतत रह सकते हैं और इसके लिए किसी भी प्रकार की संम्प्रेषण शैली तथा माध्यम (जिनके विकल्प इस व्यवस्था में उपलब्ध रहते हैं) का चयन कर सकते हैं, परन्तु यही लचीलापन विद्यार्थियों को गुमराह भी कर सकता है और वे इससे नाजायज फायदा उठाने की कोशिश भी कर सकते हैं। उम्र का तकाजा और अनुभव की कमी उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराने में अक्षम सिद्ध हो सकती है और वे अपनी शक्ति और समय को निरुद्देश्यीय कार्यों में खर्च कर सकते हैं।
3. विद्यालय शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास है। परम्परागत कक्षा शिक्षण और विद्यालय व्यवस्था में इस कार्य हेतु काफी उपयोगी प्रयास किये जाते हैं, जैसे-पाठांतर क्रियाओं का आयोजन, विद्यार्थियों के लिए कल्याणकारी क्रियाओं का सम्पादन, सामुदायिक गतिविधियों का संचालन, अभिभावकों तथा समुदाय के सदस्यों के साथ मेल-मिलाप और सहयोग इत्यादि। ऐसी क्रियाओं का अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था में पूरी तरह अभाव ही रहता है और इसके अभाव में हम इस व्यवस्था द्वारा विद्यार्थियों को वह सब कुछ नहीं दे पाते जिनके माध्यम से उसके शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा नैतिक विकास को उचित आधार तथा दिशा प्राप्त हो और उनके व्यक्तिगत का सर्वांगीण विकास हो सके।
4. यह सोचा जाता है कि आभासी कक्षा कक्ष व्यवस्था के माध्यम से विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष तथा शिक्षण जैसे अनुभव और कक्षा अंतःक्रिया के अवसर सुलभ कराये जा सकेंगे, परन्तु यह बात अधिकतर स्वप्न ही बनकर रह जाती है। अवास्तविक कभी भी सही रूप में वास्तविक नहीं बन सकता। ऐसी कोई भी अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था नहीं हो सकती जिसमें वास्तविक कक्षा शिक्षण के जीवन्त अनुभव, अंतः क्रिया तथा सम्बन्धों की गूढ़ता, सामाजिकता तथा अन्तरंगता पाई जाए। मानवीय सम्बन्धों की जो गरमाहट तथा सामाजिक-संवेगात्मक वातावरण का जो प्रभाव वास्तविक कक्षा शिक्षण में दिखाई देता है ऐसी कोई बात अवास्तविक कक्षा कक्ष व्यवस्था में मिल पाना दुष्प्रायः ही होता है। इन हालातों में विद्यार्थियों के व्यक्तिगत विकास को समुचित दिशा मिल पाना मुश्किल ही रहता है।
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