उत्पादन के प्रकार (Types of Production)
किसी वस्तु या पदार्थ के तुष्टिगुण अथवा मूल्य में कई प्रकार से वृद्धि की जा सकती है जिन्हें उत्पादन के ढंग या प्रकार कहते हैं। उत्पादन के प्रमुख प्रकार निम्नांकित है-
(1) रूप परिवर्तन द्वारा उत्पादन (Production by Changing of Form)-जब किसी पदार्थ के रूप, रंग, आकार आदि को बदलकर उसके तुष्टिगुण में वृद्धि कर दी जाती है तब उसे रूप परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है। उदाहरणार्थ, कुम्हार मिट्टी के रंग-रूप को बदलकर वर्तन तथा खिलौनों का उत्पादन करता है। इसी प्रकार लुहार हथौड़े, खुरपे आदि तैयार करता है।
(2) स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन (Production by Changing of Place)-जब किसी वस्तु को ऐसे स्थान से, जहाँ वह अधिक या पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो, किसी ऐसे स्थान पर ले जाया जाये जहाँ पर वह दुर्लभ हो तो उस वस्तु के मूल्य या लुष्टिगुण में वृद्धि हो जाती है। अर्थशास्त्र में इस कार्य को ‘स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहते हैं। उदाहरणार्थ, नदी के किनारे से रेत को मकान-निर्माण के लिये शहर ले जाने तथा जंगलों से लकड़ी काटकर उसे शहर में पहुंचाने से, रेत तथा लकड़ी के मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
(3) समय परिवर्तन द्वारा उत्पादन (Production by Changing of Time) – जब किसी पदार्थ को कुछ समय तक बचाकर रखने से उसके तुष्टिगुण में वृद्धि हो जाती है तो इसे ‘समय परिवर्तन द्वारा उत्पादना कहते हैं, जैसे शराब, गुड़, चावल आदि को कुछ समय के लिए रख देने से या तो इनके स्वाद में वृद्धि हो जाती है या इनके मूल्य में इसी प्रकार फसल के दिनों में व्यापारी गेहूँ, जालू आदि के सस्ते होने पर इन्हें खरीदकर गोदामों में भर लेते हैं तथा जब बाद में ऐसी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती है तब इन्हें बेच देते हैं। इन सभी क्रियाओं को ‘समय परिवर्तन द्वारा उत्पादन’ कहते हैं।
(4) अधिकार परिवर्तन द्वारा उत्पादन (Production by Changing of Possession)– कई वस्तुओं के अधिकार या स्वामित्व में परिवर्तन होने से उनके तुष्टिगुण में वृद्धि हो जाती है, जैसे कोई पुस्तक दुकानदार के लिए उतनी उपयोगी नहीं होती जितनी कि विद्यार्थी के लिए अतः जब पुस्तक दुकानदार से विद्यार्थी के पास पहुंच जाती है तो पुस्तक का तुष्टिगुण बढ़ जाता है, इसी को अधिकार परिवर्तन द्वारा उत्पादन’ कहते हैं।
(5) सेवा द्वारा उत्पादन (Production by Service)-जब व्यक्तिगत सेवाओं से मनुष्य की आवश्यकताएँ सन्तुष्ट होती है तो इसे ‘सेवा द्वारा उत्पादन’ या तुष्टिगुण का सृजन कहते हैं। उदाहरणार्थ, शिक्षक, डॉक्टर, वकील, गायक, नर्तक, अभिनेता, सिपाही, गाई आदि अपनी सेवाओं द्वारा मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करते हैं।
(6) ज्ञान-वृद्धि द्वारा उत्पादन (Production by Increasing of Knowledge)—आजकल रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, समाचारपत्र, पत्रिकाओं आदि में नाना प्रकार के विज्ञापन देकर जनता को नई-नई वस्तुओं के गुणों तथा उनकी प्रयोग विधि को समझाया जाता है। वस्तुओं के गुणों के बारे में अधिक जानकारी होने पर लोगों के लिए ऐसी वस्तुओं का तुष्टिगुण बढ़ जाता है। इसी को ‘ज्ञान वृद्धि द्वारा उत्पादन कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी व्यक्ति को सिबाका टूथ पेस्ट के कुछ गुणों की जानकारी नहीं है तो उसके लिए इसका तुष्टिगुण कम होगा किन्तु यदि समाचारपत्र में सिवाका का विज्ञापन पढ़कर उसे इसके अन्य गुणों की भी जानकारी हो जाती है तो उसके लिये सिबाका टूथ पेस्ट का तुष्टिगुण अधिक हो जायेगा।
अतः अर्थशास्त्र में उत्पादन का अर्थ भौतिक वस्तुएँ उत्पन्न करने से नहीं बल्कि तुष्टिगुण का सृजन करने से है।
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