उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के लाभ या महत्त्व (Merits or Importance of M. B. 0.)
उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि एक स्पष्ट एवं सीधी विधि है जिससे अनेक लाभ होते हैं-
(1) कुशल निष्पादन- इस विधि का उपयोग किये जाने से प्रबन्धकीय निष्पादन में सुधार होता है। उनकी समस्त क्रियाएं उद्देश्यों पर आधारित होती हैं।
(2) लाभदेय क्रियायें— उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध लागू करने से संस्था एवं प्रबन्धकों की क्रियायें केवल लाभदेय क्रियाओं तक केन्द्रित रहती हैं।
(3) प्रबन्धकीय क्षमता को मान्यता- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि प्रबन्धकीय क्षमता एवं प्रवीणता को सरलता से मान्यता प्रदान करती है।
(4) उच्च मनोबल – उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि प्रबन्धकों का मनोबल ऊँचा उठाती है तथा उनमें उद्देश्यों के प्रति समझ उत्पन्न करती है।
(5) श्रेष्ठ प्रत्यायोजन— इसके द्वारा प्रत्यायोजन अथवा भारार्पण का मार्ग प्रशस्त एवं श्रेष्ठ हो जाता है।
(6) प्रभावी प्रबन्धकीय विकास- इससे प्रभावी प्रबन्धकीय विकास को बल मिलता है जिसके कारण प्रबन्धकीय योग्यता स्तर ऊँचा हो जाता है।
(7) श्रेष्ठ संचार— उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि संस्था में संचार व्यवस्था को श्रेष्ठ बनाती है।
(8) अभिप्रेरणा – उद्देश्यों के निर्धारण में अन्तर्ग्रस्तता के परिणामस्वरूप प्रबन्धकों को अभिप्रेरणा मिलती है । अन्तप्रेरणा ही वास्तविक रूप में अभिप्रेरणा हैं।
(9) संगठन में स्पष्टता — उद्देश्यों का पहले से ही निर्धारण होने से प्रत्येक प्रबन्धक एवं अधीनस्थ अपने अधिकारों, कर्त्तव्यों एवं दायित्वों का स्पष्ट ज्ञान कर लेता है जिसके कारण संगठन में व्याप्त सम्भान्ति एवं टकराव से छुटकारा मिल जाता है।
(10) विकेन्द्रीकरण— इससे विकेन्द्रीकरण का मार्ग प्रशस्त होता है तथा उससे उत्पन्न होने वाले लाभ संगठन को प्राप्त होते हैं।
(11) निर्णायन में सहभागिता – उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि का मूलभूत उद्देश्य निर्णयन में अधीनस्थों की सहभागिता में वृद्धि करना है।
(12) नियन्त्रण — उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि के अन्तर्गत वास्तविक निष्पादन की तुलना पूर्व निर्धारित उद्देश्यों द्वारा की जाती है। जिसे परिणामस्वरूप नियन्त्रण का कार्य सरल हो जाता है। उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध बाहरी नियन्त्रण की तुलना में स्वतः नियन्त्रण को अधिक महत्व प्रदान करता है। श्री ड्रकर के अनुसार, “स्वतः नियन्त्रण उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध दर्शन का एक अनिवार्य अंग हैं।”
(13) समन्वय – समन्वय प्रबन्ध का तत्व है। उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध विधि में समन्वय का कार्य स्वेच्छा से सम्पन्न होता है।
(14) उत्तरदायित्व की भावना का विकास- इसमें प्रत्येक कर्मचारी में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है जिसके कारण वह अधिक लगन एवं निष्ठा के साथ अपने उत्तरदायित्वों को निभाता है। उसे पता रहता है कि निष्पादन का कार्य पूरा हो जाने के पश्चात् उसकी क्रियाओं की समीक्षा की जायेगी।
(15) एकीकृत नियोजन – इससे एकीकृत नियोजन का पथ-प्रदर्शन होता है।
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