कृषि अर्थशास्त्र / Agricultural Economics

उद्यम का अर्थ तथा उद्यमी के कार्य (Meaning and Functions of Entrepreneur)

उद्यम (Enterprise)
उद्यम (Enterprise)

उद्यम (Enterprise)

उद्यमी व्यवसाय के स्वामी है ये पूंजी का निवेश करते हैं तथा व्यवसाय को अनिश्चितताओं का जोखिम उठाते हैं।”

-वाइटहैड

उद्यम का अर्थ (Meaning of Enterprise)

हर प्रकार के छोटे व बड़े व्यवसाय में कुछ न कुछ जोखिम अवश्य होता है। उत्पादक को भावी माँग का वर्तमान में अनुमान लगाकर उत्पादन करना होता है। हो सकता है कि भविष्य में फैशन आदि में परिवर्तन हो जाने के कारण उसका माल न बिक पाए अथवा उसे किसी और कारण से हानि उठानी पड़ जाए किसी व्यवसाय में निहित जोखिम अथवा लाभ-हानि सम्बन्धी अनिश्चितता को वहन करने की क्षमता को ही ‘उद्यम’ कहते हैं। उद्यम के स्वामी को ‘उद्यमी’ (Entrepreneur) कहते हैं। ‘उद्यमी’ वह व्यक्ति होता है जो किसी व्यवसाय की स्थापना करता है, उससे सम्बन्धित निर्णय लेता है तथा उसमें निहित जोखिम को वहन करता है।

उद्यम की परिभाषाएँ (Definitions of Enterprise)—–(1) हैने (Haney) के शब्दों में, उत्पादन के जोखिम को उठाने वाला उपादान उद्यम होता है।

(2) प्रो० नाइट (Knight) के अनुसार, उद्यमी वह व्यक्ति है जो दो कार्य करता है-व्यवसाय का जोखिम उठाना तथा उस पर नियन्त्रण रखना|

(3) बीरा एन्सटे (Vera Anstey) के विचार में, “सरकार सहित उद्यमी वे व्यक्ति या फर्म है, जो प्रायोजनाओं को प्रारम्भ तथा संगठित करने से सम्बन्धित निर्णय लेते हैं। वे उत्पादन के साधनों को एकत्रित करते हैं। वे वित्तीय जोखिम उठाने के इच्छुक होते हैं।

परन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री शुम्पीटर (Schumpeter) ने उद्यमी को ‘जोखिम उठाने वाला’ या ‘अनिश्चितता वहन करने बाला’ नहीं बल्कि नवप्रवर्तन (Innovation) लाने वाला व्यक्ति माना है। किन्तु अल्प-विकसित अर्थव्यवस्था में शुम्पीटर की परिभाषा लागू नहीं होती क्योंकि ऐसे देशों में नवप्रवर्तन कभी-कभी होते हैं।

उद्यमी की विशेषताएँ (Characteristics of Entrepreneur) उद्यमी की प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नवत् है

(1) मानवीय साधन (Human Factor)- उद्यमी उत्पादन का एक मानवीय साधन है।

(2) कार्य का स्वभाव (Nature of Work) किसी उद्यमी का प्रमुख कार्य किसी व्यवसाय को प्रारम्भ करना तथा उसमें निहित जोखिम को उठाना है। 

(3) गोण साधन (Secondary Fictor)-उद्यम उत्पादन का गौण साधन है जबकि भूमि और श्रम उत्पादन के प्राथमिक साधन हैं।

(4) व्यवसाय में स्थिति (Position in Business) उद्यमी व्यवसाय का स्वामी होता है।

(5) उद्यम का स्वरूप (Form of Enterprise)- उद्यमी कोई एक व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह अथवा सरकार हो सकती है।

(6) पुरस्कार (Reward) – उद्यमी को अपने कार्यों (सेवाओं) के बदले जो पुरस्कार मिलता है वह धनात्मक (लाभ) भी हो सकता है और ऋणात्मक (हानि) भी व्यवसाय के सफल होने पर उद्यमी को लाभ मिलता है जबकि व्यवसाय के असफल होने पर उसे हानि वहन करनी पड़ती है।

(7) कम गतिशील (Less Mobile) — श्रम तथा पूँजी की तुलना में उद्यमी कम गतिशील होता है। उद्यमी अपने काम अथवा व्यवसाय को आसानी से नहीं बदल सकता।

(8) सीमित पूर्ति (Limited Supply) —किसी देश में योग्य, कुशल तथा अनुभवी उद्यमियों की पूर्ति अपेक्षाकृत कम होती है। ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति तथा व्यक्तियों के समूह कम ही होते हैं जो व्यावसायिक जोखिम को उठाने की क्षमता तथा सार रखते हैं।

उद्यमी के कार्य (Functions of Entrepreneur)

उद्यमी सामान्यतः निम्नलिखित कार्य करता है-

(1) जोखिम उठाना- यह उद्यमों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है। आजकल वस्तुओं का उत्पादन तो वर्तमान में किया जाता है जबकि उनको बिक्री भविष्य में होती है। इसलिए उत्पादन का आयोजन भविष्य सम्बन्धी अनुमान के आधार पर वर्तमान में किया जाता है। हो सकता है कि मात्री माँग सम्बन्धी पूर्वानुमान गलत सिद्ध हो जाए और उद्यमी को हानि उठानी पड़ जाए। उद्यमी का कार्य है कि वह हानि के लिए तैयार रहे।

(2) व्यवसाय का चुनाव करना- उद्यमी को सर्वप्रथम यह तय करना होता है कि यह कौन-सा व्यवसाय प्रारम्भ करे व्यवसाय का चुनाव यह विभिन्न व्यवसायों में लाभ की सम्भावनाओं का अध्ययन करने के पश्चात् ही करता है। अपनी योग्यता तथा साधनों को ध्यान में रखते हुए वह उस व्यवसाय को चुनता है जिसमें उसे जोखिम कम तथा सफलता एवं लाम-प्राप्ति की सम्भावना अधिक दिखाई देती है।

(3) बस्तु का चुनाव करना- व्यवसाय का चुनाव कर लेने के पश्चात् उद्यमी को यह निर्णय लेना पड़ता है कि यह किस वस्तु का उत्पादन करे क्योंकि एक ही उद्योग या व्यवसाय के अन्तर्गत कई प्रकार की वस्तुएँ उत्पादित की जाती है। उदाहरणार्थ, बस्त्र उद्योग में वह सूती कपड़े का उत्पादन करे अथवा रेशमी कपड़े का|

(4) उत्पादन के स्थान का चुनाव-उद्यमी को यह भी तय करना पड़ता है कि फर्म (उत्पादन इकाई) की स्थापना किस स्थान पर की जाए। स्थान का चुनाव करते समय उसे कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है, जैसे कच्चे माल की निकटता, श्रम की उपलब्धि, शक्ति के साधन, परिवहन तथा संचार की सुविधाएं बाजार की निकटता, बैंक की सुविधाएँ आदि ।

(5) उत्पादन इकाई के आकार का निर्धारण- उद्यमी को यह भी निश्चित करना होता है कि उत्पादन इकाई का आकार कितना होना चाहिए। इस सम्बन्ध में निर्णय वस्तु की मांग पर निर्भर करता है। मांग के कम होने पर उत्पादन इकाई का आकार छोटा रखना पड़ता है जबकि माँग के अधिक होने पर इकाई का आकार बड़ा रखा जा सकता है।

(6) उत्पादन के पैमाने का निर्धारण- उद्यमी को इस बात का भी निर्णय लेना पड़ता है किका उत्पादन छोटे पैमाने पर किया जाये अथवा बड़े पैमाने पर इस सम्बन्ध में निर्णय लेते समय उद्यमी वस्तु की माँग की मात्रा, उपलब्ध पूंजी की मात्रा, लाभ की सम्भावना आदि बातों को ध्यान में रखता है।

(7) उत्पादन के उपादानों को एकत्रित करना- उक्त सभी निर्णय कर लेने के पश्चात् उद्यमी भूमि, श्रम, पूँजी (कच्चा माल, यन्त्र, मशीन आदि) को जुटाता है ताकि उत्पादन कार्य आरम्भ किया जा सके।

(8) उत्पादन के उपादानों को अनुकूलतम अनुपात में जुटाना- उत्पादन के उपादानों को एकत्रित कर लेने के पश्चात् उद्यमी उन्हें उत्पादन कार्य में अनुकूलतम अनुपात में लगाने का प्रयत्न करता है ताकि न्यूनतम लागत पर आधकतम उत्पादन किया जा सके।

(9) कच्चे माल व मशीनरी का प्रवन्ध- उद्यमी को आवश्यक कच्चे माल तथा मशीनरी का प्रवन्ध करना होता है ताकि इन साधनों की कमी न हो पाए और उत्पादन कार्य निरन्तर चलता रहे।

(10) नए-नए आविकार-उद्यमी नए-नए आविष्कारों को न केवल अपनाता है बल्कि उन्हें प्रोत्साहन भी देता है ताकि उसका व्यवसाय उन्नति कर सके। वह उत्पादन, उत्पादन-विधि, विक्रय-व्यवस्था, विज्ञापन आदि में नवप्रवर्तन लाने की व्यवस्था करता है।

(11) सामान्य नियन्त्रण तथा निर्देश- उद्यमी समस्त व्यवसाय पर सामान्य नियन्त्रण रखता है। यह व्यवसाय के सम्बन्ध में सामान्य नीतियों का निर्धारण करता है तथा व्यवसाय के सभी विभागों को निर्देश (instructions) देता है।

(12) सरकार से सम्बन्ध- आजकल कुशल उद्यमी का सरकार के सम्पर्क में रहना आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में उद्यमी अनेक कार्य करता है, जैसे (1) सरकार से लाइसेन्स लेना, (ii) सरकार को करों का भुगतान करना. (iii) सरकार को माल बेचना, (iv) आयात-निर्यात की व्यवस्था करना, (v) रेलवे विभाग तथा कर विभाग से सम्पर्क रखना आदि।

(13) विभिन्न उपादानों में जाय का वितरण-उत्पादन उत्पत्ति के सभी उपादानों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम होता है। उथमी उत्पादन से प्राप्त आय को भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन के स्वामियों में क्रमशः लगान, मजदूरी, व्याज तथा वेतन के रूप में वितरित करने की व्यवस्था करता है।

(14) प्रतियोगियों से सम्पर्क- व्यावहारिक जीवन में प्रायः प्रत्येक उद्यमी को अनेक प्रतियोगियों (competitors) का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, वनस्पति घी, टी० बी०, स्कूटर, कार आदि के उत्पादन में विभिन्न व्यावसायिक इकाइयाँ कार्यरत है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उद्यमी को न केवल अपने प्रतियोगियों की गतिविधियों को ध्यान में रखना पड़ता है बल्कि उनके साथ सम्बन्ध भी स्थापित करना पड़ता है, जैसे (1) प्रतियोगियों द्वारा वसूल की जाने वाली कीमत को ध्यान में रखकर ही उद्यमी अपनी वस्तु की कीमत तय करता है। (II) अपने विज्ञापन के स्वरूप तथा आकार को निर्धारित करते समय उद्यमी को अपने प्रतियोगियों की विज्ञापन-नीति पर ध्यान देना पड़ता है। (iii) समूचे उद्योग के लिए सरकार से विभिन्न सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु कई बार उद्यमियों को परस्पर मिलकर प्रयास करने पड़ते हैं।

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Anjali Yadav

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